Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

भगवान कौन और कहाँ ?
एक प्रेरक बोध-कथा।
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एक 6 साल का छोटा सा बच्चा अक्सर भगवान से मिलने की जिद किया करता था। उसे भगवान् के बारे में कुछ भी पता नही था, पर मिलने की तमन्ना भरपूर थी। उसकी चाहत थी की एक समय की रोटी वो भगवान के साथ बैठकर खाये।

एक दिन उसने अपने थैले में 5-6 रोटियां रखीं और परमात्मा को को ढूंढने के लिये निकल पड़ा। चलते चलते वो बहुत दूर निकल आया संध्या का समय हो गया। उसने देखा एक नदी के तट पर एक बुजुर्ग माता बैठी हुई हैं। उनकी आँखों में बहुत ही गजब की चमक थी, प्यार था, किसी की तलाश थी, और ऐसा लग रहा था जैसे उसी के इन्तजार में वहां बैठी उसका रास्ता देख रहीं हों! वो 6-7 साल का मासूम बालक बुजुर्ग माता के पास जा कर बैठ गया, अपने थैले में से रोटी निकाली और खाने लग गया। फिर उसे कुछ याद आया तो उसने अपना रोटी वाला हाथ बूढी माता की ओर बढ़ाया और मुस्कुरा के देखने लगा, बूढी माता ने रोटी ले ली, माता के झुर्रियों वाले चेहरे पे अजीब सी खुशी आ गई, आँखों में खुशी के आंसू भी थे।

बच्चा माता को देखे जा रहा था, जब माता ने रोटी खाली बच्चे ने 1 और रोटी माता को दे दी। माता अब बहुत खुश थी, बच्चा भी बहुत खुश था। दोनों ने आपस में बहुत प्यार और स्नेह के पल बिताये।

जब रात घिरने लगी तो बच्चा इजाजत लेकर घर की ओर चलने लगा और वो बार-बार पीछे मुडकर देखता! तो पाता बुजुर्ग माता उसी की ओर देख रही होती हैं।

बच्चा घर पहुंचा तो माँ ने अपने बेटे को आया देखकर जोर से गले से लगा लिया और चूमने लगी, बच्चा बहूत खुश था। माँ ने अपने बच्चे को इतना खुश पहली बार देखा तो खुशी का कारण पूछा, तो बच्चे ने बताया माँ ! आज मैंने भगवान के साथ बैठकर रोटी खाई, आपको पता है माँ उन्होंने भी मेरी रोटी खाई, पर माँ भगवान् बहुत बूढ़े हो गये हैं, मैं आज बहुत खुश हूँ माँ!

उधर बुजुर्ग माता भी जब अपने घर पहुँची तो, गाँव वालों ने देखा माता जी बहुत खुश हैं, तो किसी ने उनके इतने खुश होने का कारण पूछा? माता जी बोलीं मैं 2 दिन से नदी के तट पर अकेली भूखी बैठी थी। मुझे पता था भगवान आएंगे और मुझे खाना खिलाएंगे। आज भगवान् आए थे, उन्होंने मेरे साथ बैठकर रोटी खाई। मुझे भी बहुत प्यार से खिलाई, बहुत प्यार से मेरी ओर देखते थे, जाते समय मुझे गले भी लगाया भगवान बहुत ही मासूम हैं बच्चे की तरह दिखते हैं।

दोनो ने भगवान को पा लिया, लेकिन दोनो की आँखो ने भगवान का रूप अलग अलग देखा. आपके सत्कर्म ही आपको ईश्वर की उपाधि दिला देते है।

– वाट्सऐप से

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लाश

एक बूढ़ा मर रहा था। मरा नहीं था, बस मर ही रहा था। उसके चार बेटे उसके पास ही खड़े थे। उनके नाम थे- सोम, मंगल, बुध, वीर। वह चाहता तो सात बेटे था, पर मंहगाई के चलते चार पर ही संतोष कर लिया था।
ये चार आपस में बात कर रहे हैं-
सोम- भाई! जब पिताजी मर जाएँगे तो उनकी शवयात्रा हम गुप्ता जी की मर्सिडीज़ में निकालेंगे। लोग भी तो देखें कि किसका बाप मरा है।
मंगल- भैया! गुप्ता जी कार दे तो देंगे, पर सारी उम्र सुनाएँगे कि तुम्हारा बाप मरा था, तो मैंने कार दी थी। मैं अपने दोस्त बंटी की होंडा माँग लाऊँगा। होंडा भी कोई छोटी कार नहीं।
बुध- अरे मंगल! मालूम भी है कि होंडा धुलवाना कितना मंहगा है? मैंने कल ही अपनी आल्टो ठीक करा ली है, उसी में ले चलेंगे। कार तो कार है, छोटी हो या बड़ी? और सारी जिंदगी पिताजी ने कंजूसी में बिताई है, क्या यह बात लोग नहीं जानते?
वीर- देखो भैया! बुरा न मानना। आल्टो में पिताजी की लाश ले तो जाएँगे पर फिर हमेशा उसमें बैठते वहम आया करेगा। श्मशान वालों ने इस काम के लिए एक ठेला बनाया हुआ है। अब कार हो या ठेला, मरने वाला तो मर ही गया, तब क्या फर्क पड़ता है?
और जैसा कि मैंने पहले ही बता दिया है की बूढ़ा मर रहा था, मरा नहीं था। वह तो सब सुन रहा था।
वह उठ कर बैठ गया और बोला- मेरी साइकिल कहाँ है? मेरी साइकिल लाओ!
वह उठा, और साइकिल चलाकर श्मशान घाट पहुँच गया, साइकिल से उतरा, साइकिल खड़ी की, भूमि पर लेटा, और मर गया।
लोकेशानन्द कहता है कि यही जगत के संबंधों का ढंग है। प्राण छूट जाने पर इस शरीर को कोई नाम ले कर भी नहीं बुलाता, सभी “लाश-लाश” कहते हैं। अभी भी समय है, प्राण छूटने से पहले ही अपने असली संबंधी को अपना बना लो। या तो भगवान को अपना बना लो। या अपने बच्चो में अच्छे संस्कार भर लो।

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एक चूहा एक कसाई के घर में बिल बना कर रहता था।

एक दिन चूहे ने देखा कि उस कसाई और उसकी पत्नी एक थैले से कुछ निकाल रहे हैं। चूहे ने सोचा कि शायद कुछ खाने का सामान है।

उत्सुकतावश देखने पर उसने पाया कि वो एक चूहेदानी थी।

ख़तरा भाँपने पर उस ने पिछवाड़े में जा कर कबूतर को यह बात बताई कि घर में चूहेदानी आ गयी है।

कबूतर ने मज़ाक उड़ाते हुए कहा कि मुझे क्या? मुझे कौन सा उस में फँसना है?

निराश चूहा ये बात मुर्गे को बताने गया।

मुर्गे ने खिल्ली उड़ाते हुए कहा…जा भाई..ये मेरी समस्या नहीं है।

हताश चूहे ने बाड़े में जा कर बकरे को ये बात बताई…और बकरा हँसते हँसते लोटपोट होने लगा।

उसी रात चूहेदानी में खटाक की आवाज़ हुई, जिस में एक ज़हरीला साँप फँस गया था।

अँधेरे में उसकी पूँछ को चूहा समझ कर उस कसाई की पत्नी ने उसे निकाला और साँप ने उसे डस लिया।

तबीयत बिगड़ने पर उस व्यक्ति ने हकीम को बुलवाया। हकीम ने उसे कबूतर का सूप पिलाने की सलाह दी।

कबूतर अब पतीले में उबल रहा था।

खबर सुनकर उस कसाई के कई रिश्तेदार मिलने आ पहुँचे जिनके भोजन प्रबंध हेतु अगले दिन उसी मुर्गे को काटा गया।

कुछ दिनों बाद उस कसाई की पत्नी सही हो गयी, तो खुशी में उस व्यक्ति ने कुछ अपने शुभचिंतकों के लिए एक दावत रखी तो बकरे को काटा गया।

चूहा अब दूर जा चुका था, बहुत दूर ……….।

अगली बार कोई आपको अपनी समस्या बतायेे और आप को लगे कि ये मेरी समस्या नहीं है, तो रुकिए और दुबारा सोचिये।

समाज का एक अंग, एक तबका, एक नागरिक खतरे में है तो पूरा समाज व पूरा देश खतरे में है।

अपने-अपने दायरे से बाहर निकलिये। स्वयं तक सीमित मत रहिये। सामाजिक बनिये.

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आप कैमरे 🎥 की नजर में है।

एक दिन सुबह सुबह दरवाजे की घंटी बजी । दरवाजा खोला तो देखा एक आकर्षक कद- काठी का व्यक्ति चेहरे पे प्यारी सी मुस्कान लिए खड़ा है ।

मैंने कहा, “जी कहिए..”

तो उसने कहा, “अच्छा जी, आप तो रोज़ हमारी ही गुहार लगाते थे”

मैंने कहा -“माफ कीजिये, भाई साहब ! मैंने पहचाना नहीं, आपको…”

तो वह कहने लगे, “भाई साहब, मैं वह हूँ, जिसने तुम्हें साहेब बनाया है… अरे ईश्वर हूँ.., ईश्वर.. तुम हमेशा कहते थे न कि नज़र मे बसे हो पर नज़र नही आते.. लो आ गया..! अब आज पूरे दिन तुम्हारे साथ ही रहूँगा।”

मैंने चिढ़ते हुए कहा, “ये क्या मज़ाक है?”

“अरे मज़ाक नहीं है, सच है। सिर्फ़ तुम्हे ही नज़र आऊंगा। तुम्हारे सिवा कोई देख- सुन नही पायेगा, मुझे।”

कुछ कहता इसके पहले पीछे से माँ आ गयी.. “अकेला ख़ड़ा- खड़ा क्या कर रहा है यहाँ, चाय तैयार है , चल आजा अंदर..”

अब उनकी बातों पे थोड़ा बहुत यकीन होने लगा था, और मन में थोड़ा सा डर भी था.. मैं जाकर सोफे पर बैठा ही था, तो बगल में वह आकर बैठ गए। चाय आते ही जैसे ही पहला घूँट पिया मैं गुस्से से चिल्लाया, “अरे मां..ये हर रोज इतनी चीनी ?”

इतना कहते ही ध्यान आया कि अगर ये सचमुच में ईश्वर है तो इन्हें कतई पसंद नही आयेगा कि कोई अपनी माँ पर गुस्सा करे। अपने मन को शांत किया और समझा भी दिया कि ‘भई, तुम नज़र में हो आज… ज़रा ध्यान से।’

बस फिर मैं जहाँ- जहाँ… वह मेरे पीछे- पीछे पूरे घर में… थोड़ी देर बाद नहाने के लिये जैसे ही मैं बाथरूम की तरफ चला, तो उन्होंने भी कदम बढ़ा दिए..

मैंने कहा, “प्रभु, यहाँ तो बख्श दो…”

खैर, नहा कर, तैयार होकर मैं पूजा घर में गया, यकीनन पहली बार तन्मयता से प्रभु वंदन किया, क्योंकि आज अपनी ईमानदारी जो साबित करनी थी.. फिर आफिस के लिए निकला, अपनी कार में बैठा, तो देखा बगल में महाशय पहले से ही बैठे हुए हैं। सफ़र शुरू हुआ तभी एक फ़ोन आया, और फ़ोन उठाने ही वाला था कि ध्यान आया, ‘तुम नज़र मे हो।’

कार को साइड मे रोका, फ़ोन पर बात की और बात करते- करते कहने ही वाला था कि ‘इस काम के ऊपर के पैसे लगेंगे’ …पर ये तो गलत था, : पाप था तो प्रभु के सामने कैसे कहता तो एकाएक ही मुँह से निकल गया,”आप आ जाइये । आपका काम हो जाएगा, आज।”

फिर उस दिन आफिस मे ना स्टाफ पर गुस्सा किया, ना किसी कर्मचारी से बहस की 25 – 50 गालियाँ तो रोज़ अनावश्यक निकल ही जाती थी मुँह से, पर उस दिन सारी गालियाँ, ‘कोई बात नही, इट्स ओके…’मे तब्दील हो गयीं।

वह पहला दिन था जब क्रोध, घमंड, किसी की बुराई, लालच, अपशब्द , बेईमानी, झूठ ये सब मेरी दिनचर्या का हिस्सा नही बनें।

शाम को आफिस से निकला, कार में बैठा, तो बगल में बैठे ईश्वर को बोल ही दिया…

“प्रभु सीट बेल्ट लगा लें, कुछ नियम तो आप भी निभायें… उनके चेहरे पर संतोष भरी मुस्कान थी…”

घर पर रात्रि भोजन जब परोसा गया तब शायद पहली बार मेरे मुख से निकला, “प्रभु, पहले आप लीजिये ।”

और उन्होंने भी मुस्कुराते हुए निवाला मुँह मे रखा। भोजन के बाद माँ बोली, “पहली बार खाने में कोई कमी नही निकाली आज तूने। क्या बात है ? सूरज पश्चिम से निकला है क्या, आज?”

मैंने कहाँ, “माँ आज सूर्योदय मन में हुआ है… रोज़ मैं महज खाना खाता था, आज प्रसाद ग्रहण किया है माँ, और प्रसाद मे कोई कमी नही होती।”

थोड़ी देर टहलने के बाद अपने कमरे मे गया, शांत मन और शांत दिमाग के साथ तकिये पर अपना सिर रखा तो ईश्वर ने प्यार से सिर पर हाथ फिराया और कहा, “आज तुम्हे नींद के लिए किसी संगीत, किसी दवा और किसी किताब के सहारे की ज़रुरत नहीं है।”

गहरी नींद गालों पे थपकी से उठी…”कब तक सोयेगा .., जाग जा अब।”

माँ की आवाज़ थी… सपना था शायद… हाँ, सपना ही था पर नीँद से जगा गया… अब समझ में आ गया उसका इशारा…

“तुम नज़र में हो…।”

जिस दिन ये समझ गए कि “वो” देख रहा है, सब कुछ ठीक हो जाएगा। सपने में आया एक विचार भी आंखे खोल सकता है।

बस हमेशा याद रखो कि…..हम सांसारिक कैमरे की नही बल्कि प्रभु के कैमरे की नजर में हर समय हैं..!!

राम चंद्र आर्य

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एक जंगल में एक शेर रहता था.
बड़ा भारी भरकम, बहुत मजबूत और बहुत पराक्रमी.

सब उससे डरते भी थे और उसका आदर भी करते थे तथा उसके कारण निश्चिन्त भी रहते थे… क्योंकि, वह उतना ही शिकार करता जितने से उसका पेट भर जाए.

साथ ही… वह सबको अपने अपने ढंग से जीने की आजादी भी देता था.

लेकिन… इतना होते हुए भी वह एक प्राणी की बात पर बहुत श्रद्धा रखता था… क्योंकि, वह प्राणी खुद को रंग कर और साधु का वेश धारण कर सन्त बना हुआ था…
इसलिए, उसके सियार होने के बावजूद भी शेर उसका बहुत आदर करता था.

फिर… एक बार जंगल के एक हिस्से को अपने लिए अलग जंगल बनाने के लिए साँपों ने भयंकर उत्पात मचाना शुरू कर दिया जिससे पूरे जंगल में त्राहि-त्राहि मच गयी.

इस पर साधुवेषधारी सियार साँपों को उनका अलग जंगल देने पर सहमत हो गया तथा सियार के प्रभाव में सरलता का शिकार हो चुका शेर आँसू बहाता यह सब देखता रहा.

क्योंकि…. इसके कई वर्ष पहले से ही सियार ने शेर को मांसाहार छोड़ शाकाहारी बनने की सलाह दे देकर उसे बिल्कुल कमजोर बना दिया था.

और, अब तो हालात ऐसे बन चुके थे कि उसे चींटी भी आ आकर काट जाती और वह इस दर्द को सियार उपदेशित संयम समझ सहता जाता.

क्योंकि, सियार ने … इतने दिनों में उस शेर को कन्विंस कर दिया था कि दुख और अपमान झेलना ही असली “”शेरिज्म” है.

इस प्रकार घनघोर कष्ट, पीड़ा और अपमान में तड़प तड़प कर वह जीता रहा.

स्थिति ऐसी हो गई कि…. उसकी कंदराओं में साँप घुस आये और वहाँ भी अपना कब्जा जमाकर बैठ गये.

फिर, अचानक एक दिन एक जहरीले साँप ने उसे डँस लिया.

सांप के जहर के प्रभाव से वह शेर अचेत और मृतप्राय हो गया.

और, शेर को मरा हुआ समझकर धीरे धीरे साँप, बिच्छू, जोंक, कीट आदि उसके अचेत शरीर के एक एक भाग पर डेरा जमाने लगे और जंगल में भी प्रसिद्ध हो गया कि यह “”शेर का शरीर नहीं बल्कि इन साँपों का ही घर”” है.

धूर्त कौवे और बगुले भी इसी बात को उड़ उड़कर चारों ओर फैलाने और स्थापित करने लगे.

लेकिन… तभी अचानक शेर की किस्मत बदली.

एक हफ्ते के बाद मौसम बदला और एक सघन बादल या समझ लो कि सोशल मीडिया आकर जंगल पर बरस गया.

और…. सिर पर वर्षा का पानी पड़ते ही धीरे-धीरे शेर की चेतना लौटने लगी.

साथ ही साथ… बारिश के पानी के कारण उस तथाकथित रंगे सियार का रंग का धुल कर उतर गया और अब वो साफ पहचान में आने लगा कि वो कोई संत-फंत नहीं बल्कि एक धूर्त सियार था.

इधर, चेतना लौटते ही… शेर ने देखा कि उसके शरीर पर तो ढेर सारे साँप कुंडली मारे बैठे हुए हैं और इसके कानों तक को बिल बना रखा है तथा इसका हिलना डुलना भी मुहाल कर रखा है…

इस पर शेर ने सबको अपने अपने घर जाने और शांति से रहने के लिए कहा…

लेकिन, शेर की इस सलाह पर साँप, बिच्छू, जोंक, कीट आदि जोर जोर से चिल्लाने लगे कि…. आजकल जंगल में बहुत असहिष्णुता फैल रही है और ये असली शेरिज्म नहीं है आदि आदि.

ऐसी बकसोदी भरी बातें सुनकर पहले तो शेर ने उसे इग्नोर करने की कोशिश की… लेकिन, ये सब बर्दाश्त से बाहर होने लगा तो उसे बहुत क्रोध आया.

फिर… शेर तो आखिर शेर ही था.

वो.. कुछ देर गुर्राता रहा और उन सबको तुरन्त अपने बदन पर से हट जाने को कहा.

लेकिन… हटना तो दूर उन साँप- बिच्छुओं ने शेर को ही मृत्त घोषित कर दिया तथा कौओं और बगुलों ने कुतर्कों के निर्लज्ज प्रमाण दे देकर सबको कन्फ्यूज कर दिया और जंगल का माहौल और भी खराब कर दिया.

परंतु… अब शेर की चेतना लौट चुकी थी… इसीलिए, शेर ने किसी की बकसोदी नहीं सुनी और अंगड़ाई लेकर खड़ा हो गया.

तब साँपों, बिच्छुओं, कौओं और बगुलों ने कहना शुरू कर दिया कि शेर के शरीर पर साँपों आदि को रहने दिया जाए….
क्योंकि, एक तो हम एक सप्ताह से यहीं थे और दूसरे इससे शेर और साँप की मिलीजुली संस्कृति और आपसी भाईचारे का भी एक अच्छा उदाहरण दुनिया के सामने जाता है.

परन्तु… चूंकि अब तक शेर की निद्रा और तन्द्रा दोनों पूरी तरह समाप्त हो चुकी थी और वो उस संत बने सियार को भी अच्छी तरह पहचान चुका था इसीलिए होश में आकर उसने एक जोरदार गर्जना की.

उसकी भीषण गर्जना ने जंगल को हिला कर रख दिया.

कुछ साँपों को उसने वहीं मार डाला तथा बहुतों को खदेड़ दिया..

शेर का यह रौद्र रूप देखकर बाकी के अतिक्रमणकारी जान बचाने के लिए सिर पर पाँव रखकर भाग खड़े हुए और अंत में जो बच गये उन्होंने शेर की प्रदक्षिणा करते हुए कहने लगे कि….

“हम तो शुरू से ही कहते थे कि शेर के साथ बहुत अन्याय हुआ है और यह शेर का ही शरीर है लेकिन हमारी कोई नहीं सुनता था”

अब जंगल में पूरी तरह से शांति लौट आयी.

कौवे और बगुले कहाँ दुबक गये यह पता नहीं चल सका.

पर हाँ, सुनने में आया है कि… किसी स्वाभिमानी बाघ ने उस रंगे सियार को मार कर खा गया..!!

जय महाकाल…!!!
C/P

कुमार सतीश

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सोचिए कैसे-कैसे मूर्ख शासक होते हैं

कल शाम जर्मनी में रहने वाले मेरे एक मित्र से बात हो रही थी उन्होंने वीडियो कॉल करके दिखाया कि जर्मनी के एक बड़े जंक्शन मेन्हेम में हजारों यात्रियों की भीड़ थी जबकि जर्मनी के रेलवे स्टेशन पऱ इतनी भीड़ नहीं होती

फिर जब उन्होंने ट्रेन का दृश्य दिखाया तो मैं हिल गया ऐसे लग रहा था जैसे अपने भारत की ट्रेन है फिर उन्होंने बताया कोविड-19 से जर्मनी की अर्थव्यवस्था खराब थी फिर धीरे-धीरे पटरी पर लौट रही थी कि गैस तेल वाला प्रॉब्लम हो गया सरकार को पेट्रोल की कीमत काफी बढ़ानी पड़ गई फिर गेहूं का संकट हो गया क्योंकि जर्मनी में गेहूं रूस और यूक्रेन से आता था

गेहूं और खाने के तेल की कीमतें भी तीन गुनी हो गई

उसके बाद वहां के चांसलर ने हर एक रेलवे स्टेशन पर एक अलग से टिकट वेंडिंग मशीन लगा दिया जो 9 यूरो का टिकट है उनका यह कहना था कि जो लोग इस संकट की घड़ी में थोड़ा राहत चाहते हैं वह 9 यूरो का टिकट ले ले और पूरे 24 घंटे जर्मनी में कहीं भी ट्रेन से आते जाते रहे

यह टिकट सिर्फ बुलेट ट्रेन आई सी ई एक्सप्रेस में लागू नहीं है उसे छोड़कर सभी ट्रेन में लागू ह

इतना ही नहीं यह 9 यूरो का टिकट जर्मनी की मेट्रो में भी मान्य होगा क्योंकि जर्मनी में रेलवे प्राइवेट है इसलिए 9 यूरो वाले जितने टिकट बिकते हैं सरकार उतनी सब्सिडी रेल कंपनियों को देती है

सरकार का यह सोचना था कि बहुत कम ही लोग इस फैसिलिटी का इस्तेमाल करेंगे जो देश भक्त हैं राष्ट्रभक्त हैं वह देश के लिए खर्चा करेंगे लेकिन चांसलर साहब भूल गए कि जब आर्थिक स्थिति लोगों की खराब होती है तब देश भक्ति और राष्ट्र भक्ति के पहले घर की भक्ति नजर आती है

हालात ऐसे हो गए कि 9 यूरो टिकट वाले काउंटर पर लंबी लंबी लाइन लगी हुई है सारी ट्रेन खचाखच भरी रहती हैं हालांकि इससे फायदा यह हुआ कि लोगों ने अपनी गाड़ियां कार छोड़कर अब 9 यूरो वाले टिकट से सफर करना शुरू कर दिया है लेकिन इसका नुकसान यह हुआ कि जर्मनी की ट्रेनें भारत और बांग्लादेश की ट्रेनों जैसी हो गई मित्र ने वीडियो से दिखाया की शौचालय में भी लोग खड़े थे

रवि कांत

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एक बादशाह ने अपने यहां “#रफूगर” रखा हुआ था !

रफूगर का काम सिलाई करना नहीं था बल्कि बादशाह की बातों को रफू करना था !

दरअसल वह रफूगर बादशाह की हर बात की मरम्मत इस तरह करता कि जनता वाह वाह करती और तालियां बजाती ..!

एक दिन बादशाह दरबार लगाकर जनता को अपने जवानी की शिकार का किस्सा सुना रहे थे ..?

जोश में आकर कहने लगे ….

एक बार तो ऐसा हुआ कि मैंने आधे किलोमीटर दूर से एक हिरन पर निशाना लगाया ..! तीर सनसनाता हुआ गया और..
हिरन की बायीं आंख में लगकर दायें कान से होता हुआ पिछले पैर की दायीं टांग के खुर में लगा …

बादशाह को उम्मीद थी कि जनता वाह वाह करेगी !

परन्तु ये क्या !?
चारों तरफ शांति ..

बादशाह भी समझ गया कि मैंने ज्यादा लम्बी छोड़ दी ..!

बादशाह ने तुरंत रफूगर की ओर देखा ..!

रफूगर उठा और बोला :- हजरात में इस वाकए का चश्मदीद गवाह हूं !..
दरअसल महाराज एक पहाड़ी के ऊपर खड़े थे ! हिरन काफी नीचे था ..😄 हवा भी माफिक चल रही थी वरना आधे किलोमीटर तीर कहां जाता है ! जहां तक ताल्लुक है आंख कान और खुर का .. तो अरज कर दूं कि जिस वक्त तीर लगा था हिरन दांये खुर से दांया कान खुजला रहा था !

इतना सुनते ही जनता ने तालियां बजाना शुरू कर दिया !..

अगले दिन बोरिया बिस्तर बांधकर रफूगर जाने लगा ..!

बादशाह ने परेशान होकर पूछा :- कहां चले ..?

रफूगर बोला :- हूजूर, मैं छोटी- मोटी “#तुरुपाई” कर लेता हूं !..

#शामियाना सिलवाना हो तो ..
कांग्रेस के #रणदीप सुरजेवाला को रखिए .. जो #पप्पू की हर बात में #ज्ञान खोज लेता है !!..
🤣😄😅😝