क्या यह आश्चर्य का विषय नहीं है कि अलग देश बनवाने के बाद भी वे भारत में क्यों रहे ?
इन लोगों की भयावह चाल को कभी भी हम भारतीयों को सफल नहीं होने देना चाहिए।
बॉलीवुड के तथाकथित देशभक्तों के पास वास्तव में अपने पिता, दादा या परदादा के पापों का जवाब देने के लिए केवल झूठ ही है।
शुरुआत हम शबाना आजमी के पिता कैफी आजमी से कर सकते हैं।
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उन्होंने पाकिस्तान के निर्माण का जश्न मनाते हुए कविताएँ लिखीं। कैफ़ी आज़मी विभाजन के समर्थक थे और उन्होंने विभाजन से ठीक पहले एक कविता लिखी थी “अगली आय में” (अगली ईद पाकिस्तान में)।
कैफी आज़मी पाकिस्तान गये और कुछ ही दिनों में वापस आ गया। फिर वे यहीं बस गये I अब उनके बच्चे हमें ज्ञान देते हैं कि उनके माता-पिता भारत से कितना प्यार करते थे।
इप्टा (इंडियन पीपल्स थिएटर एसोसिएशन) कम्युनिस्ट पार्टी का सांस्कृतिक मोर्चा था और आज भी है I
शबाना आज़मी इप्टा की सक्रिय प्रस्तावक हैं। यह कम्युनिस्ट विचारधारा के तहत था कि कैफ़ी और यहां तक कि साहिर लुधियानवी जैसे लेखकों ने पाकिस्तान के निर्माण का समर्थन किया।
साहिर लुधियानवी भी वास्तव में लगभग 6-7 महीने पाकिस्तान में रहा फिर उसने भारत सरकार से वापस आने और यहां रहने की अनुमति देने की गुहार लगाई।
फिर भी कैफ़ी और साहिर और नासर के पिता जैसे लोग ‘न्यू मदीना’
(पाकिस्तान) के पक्ष में लगातार कविताएँ लिख रहे थे और भाषण दे रहे थे।
जावेद अख्तर के परदादा मौलाना फजले हक खैराबादी ने 1855 में अयोध्या में प्रसिद्ध हनुमान गढ़ी मंदिर पर कब्जा करने और उसे गिराने के लिए फतवा दिया था।पर अंग्रेजों ने वास्तव में इन मुस्लिम आक्रांताओं से हनुमान गढ़ी के अयोध्या मंदिर को बचाया।
इसी कारण खैराबादी ने अंग्रेजों के खिलाफ जिहाद का आह्वान किया, जिसके लिए उन्हें पकड़ लिया गया और काला पानी भेज दिया गया।
वह 1857 के बाद भी अंग्रेजों के प्रति वफादारी की याचना करता रहा I तब अंग्रेज़ो ने दया की I
लेकिन खैराबादी तब भी दूसरे मुसलमानो को जिहाद करने और मरने मारने के लिए उकसाता रहा I जान निसार अख्तर के दादाजी ने विनती की और अंग्रेजों ने उनकी वफादारी के बदले में नरमी बरती।फिर उन्होंने खुद एक भव्य और शानदार जीवन व्यतीत किया I
अब नसीरुद्दीन शाह के परिवार पर आते हैं। उनके परदादा जन-फिशन खान ने 1857 में अंग्रेजों का समर्थन किया, सरधना में एक जागीर और एक हज़ार रुपये की पेंशन प्राप्त की।उनके पिता, अली मोहम्मद शाह, एक मुस्लिम लीग सदस्य, बहराइच, यूपी से थे। उन्होंने पाकिस्तान को वोट दिया, इंग्लैंड में रेस्टोरेंट खोलना चाहता था I पर कहीं नहीं जा पाया और यहीं रुके रहे I इसी तरह यूपी/महाराष्ट्र/तमिलनाडु/केरल/बिहार के मुसलमानों ने पाकिस्तान को वोट दिया पर वे भी पाकिस्तान नहीं गए।
अब नसीर खान हमें ज्ञान देते हैं कि उनके परिवार का भारत के प्रति गहरा प्रेम है।
अब मजरूह सुल्तानपुरी का एक और मामला लें। उन्होंने भी पाकिस्तान की महानता पर कविताएँ लिखीं पर कुछ दिनो में भारत लौट आये फिर यहीं रुके रहे I
मुस्लिमों में से बहुत शातिर क़िस्म के लोग भी जिनमें उनका नेतृत्व भी शामिल है, पाकिस्तान के लिए रवाना हुए पर उन्होंने भारत में परिवार का एक हिस्सा आबाद रखा I राजा महमूदाबाद जैसे कुछ लोग यूपी में संपत्ति का दावा करने के लिए बुढ़ापे में वापस आए (मामला चल रहा है)।
उन्होंने जिन्ना (उनके मामा) को वित्त पोषित किया। इस मामले को आखिरकार सुलझा लिया गया और @narendramodi सरकार ने संपत्ति को बचाने के लिए शत्रु संपत्ति अधिनियम में संशोधन किया। कांग्रेस उन्हें संपत्ति देने के लिए पूरी तरह तैयार थी।
“पाकिस्तान की विचारधारा” शब्द का इस्तेमाल पहली बार 1971 में याह्या खान के सूचना मंत्री मेजर जनरल शेर अली खान पटुआदी द्वारा किया गया था। क्या आप जानते हैं कौन है ये पटौदी? जी हां, सैफ अली खान पटुआदी के अंकल। सैफ के दादा यहां क्यों रुके थे? क्योंकि यहां उनकी संपत्ति बहुत ज्यादा थी।
सैफ के बड़े चाचा मज्र. जनरल इसफंदयार अली खान पटौदी आईएसआई के उप निदेशक थे। एक और परदादा मामा एम.जे.आर. जनरल शेर अली पटौदी पाक सेना में जनरल स्टाफ के प्रमुख थे, एक और महान चाचा शहरयार अली पटौदी पीसीबी के अध्यक्ष थे।
यह सब बहुत सोचा समझा प्लान था। इनका विचार भारत की राजनीति में घुसपैठ करना और पाकिस्तान के लिए अनुकूल परिवर्तन करवाते रहना सरकारी शासन तन्त्र पर कब्जा करना था I
जो लोग पाकिस्तान चाहते थे, वे योजना अनुसार नहीं गए और जो पंजाब और एनडब्ल्यूएफपी (पठानों) को नहीं चाहते थे, उन्हें मिल गया।
हैदराबाद के मुसलमानों ने वैसे भी सोचा था कि उनका एक अलग देश होगा I नवाब ने रु 1947 में पाकिस्तान को मदद के लिए 150 करोड़ ओवैसी के पिता (जो रजाकार थे) को दिये पर वह रक़म उन्होंने लंदन के एक बैंक में जमा करवा दिया। ओवैसी अब ज्ञान बाँट रहे हैं कि वे भारत से कितना प्यार करते हैं I
पाकिस्तान से वापस आने वालों की लिस्ट लम्बी है I बिहार से सैय्यद हुसैन इमाम, एम. मो. मद्रास से इस्माइल, आदि, मुस्लिम लीग के कुछ नेता भी भारत में वापस आ गए थे।
इन सभी मुस्लिमों ने पाकिस्तान को भारतीय मुसलमानों की मातृभूमि के रूप में बनाया था I ख़ुद ऐसे नेता वापस रहने की अनुमति लेकर भारत में बस गये I मेरी राय में उन्हें भारत आने देने का कोई औचित्य नहीं था।
महमूदाबाद के राजा, बेगम एजाज रसूल, पीरपुर के राजा, मौलाना हसरत मोहानी आदि पाकिस्तान के बड़े पैरोकार पाकिस्तान नहीं गए I उनके वंशज यहां ज्ञान देते हैं।
विडंबना यह है कि लतीफ़ी, जो पाकिस्तान के वास्तुकारों में से एक थे और पाकिस्तान के निर्माण के एक उत्साही समर्थक थे, नए देश में नहीं गए। लतीफी 1950 के दशक में खुशवंत सिंह के पिता द्वारा दिए गए फ्लैट में रहते थे और फिर उन्हें अपना ठिकाना मिल गया। दिल्ली में मरे, बनवाकर भी पाकिस्तान नहीं गए।
इसके अलावा, आजम खान की प्रसिद्धि के रामपुर ने, रामपुर राज्य को पाकिस्तान में शामिल करने की मांग करते हुए, सरकारी भवनों को आग लगाकर एक आंदोलन शुरू किया।
आप उस सबसे बड़े बदमाश को जानते हैं जिसने मुस्लिम लीग (1945-46 में जिन्ना द्वारा इस्तेमाल किया गया) का घोषणापत्र लिखा था, पाकिस्तान के विचारक, बॉम्बे हाई कोर्ट में प्रैक्टिस करते रहे और कभी पाकिस्तान नहीं गए। उन्हें इस देश में रहने और अभ्यास करने की इजाजत कैसे दी गई। पाकिस्तान के लिए उनका योगदान इकबाल से भी बड़ा है, फिर भी वे कभी नहीं गए। यदि आप पाकिस्तान में मुसलमानों के लिए एक मातृभूमि बनाने में इतने निवेशित थे और घोषणापत्र, वैचारिक कारणों को लिखा और इसे इकबाल के आध्यात्मिक संदेशों के साथ मिला दिया, तो भी वह नहीं गए, लेकिन उस भूमि पर रहे जिससे वे नफरत करते थे और छुटकारा पाना चाहते थे।
मुझे इस सब में संयोग नहीं दिखता, मुझे एक भयावह मकसद दिखाई देता है।
जैसा कि सरदार पटेल ने कोलकाता 1949 में कहा था, “कल तक आप पाकिस्तान चाहते थे, उसे वोट दिया और अब आप भारत से प्यार करने का दावा करते हैं, मैं आप पर कैसे विश्वास करूं ?
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Day: May 25, 2022
जब टाईटेनिक समुन्द्र में डूब रहा था तो उसके आस पास तीन ऐसे जहाज़ मौजूद थे जो टाईटेनिक के मुसाफिरों को बचा सकते थे।
सबसे करीब जो जहाज़ मौजूद था उसका नाम SAMPSON था और वो हादसे के वक्त टाईटेनिक से सिर्फ सात मील की दूरी पर था।
SAMPSON के कैप्टन ने न सिर्फ टाईटेनिक की ओर से फायर किए गए सफेद शोले (जो कि बेहद खतरे की हालत में हवा में फायर किये जाते हैं।) देखे थे, बल्कि टाईटेनिक के मुसाफिरों के चिल्लाने के आवाज़ को भी सुना भी था। लेकिन सैमसन के लोग गैर कानूनी तौर पर बेशकीमती समुन्द्री जीव का शिकार कर रहे थे और नहीं चाहते थे कि पकड़े जाएं, अपने जहाज़ को दूसरी तरफ़ मोड़ कर चले गए।
यह जहाज़ हम में से उन लोगों की तरह है जो अपनी गुनाहों भरी जिन्दगी में इतने मग़न हो जाते हैं कि उनके अंदर से इनसानियत खत्म हो जाती है।
दूसरा जहाज़ जो करीब मौजूद था उसका नाम CALIFORMIAN था, जो हादसे के वक्त टाईटेनिक से चौदह मील दूर था, उस जहाज़ के कैप्टन ने भी टाईटेनिक की ओर से निकल रहे सफेद शोले अपनी आखों से देखे, क्योंकि टाईटेनिक उस वक्त बर्फ़ की चट्टानों से घिरा हुआ था और उसे उन चट्टानों के चक्कर काट कर जाना पड़ता, इसलिए वो कैप्टन सुबह होने का इन्तजार करने लगा।और जब सुबह वो टाईटेनिक की लोकेशन पर पहुंचा तो टाईटेनिक को समुन्द्र की तह मे पहुचे हुए चार घंटे गुज़र चुके थे और टाईटेनिक के कैप्टन Adword_Smith समेत 1569 मुसाफिर डूब चुके थे।
यह जहाज़ हम लोगों मे से उनकी तरह है जो किसी की मदद करने के लिए अपनी सहूलियत और आसानी देखते हैं और अगर हालात सही न हों तो अपना फ़र्ज़ भूल जाते हैं।
तीसरा जहाज़ CARPATHIA था जो टाईटेनिक से 68 मील दूर था, उस जहाज़ के कैप्टन ने रेडियो पर टाईटेनिक के मुसाफारों की चीख पुकार सुनी, जबकि उसका जहाज़ दूसरी तरफ़ जा रहा था, उसने फौरन अपने जहाज़ का रुख मोड़ा और बर्फ़ की चट्टानों और खतरनाक़ मौसम की परवाह किए बगैर मदद के लिए रवाना हो गया। हालांकि वो दूर होने की वजह से टाईटेनिक के डूबने के दो घंटे बाद लोकेशन पर पहुच सका लेकिन यही वो जहाज़ था, जिसने लाईफ बोट्स की मदद से टाईटेनिक के बाकी 710 मुसाफिरों को जिन्दा बचाया था और उन्हें हिफाज़त के साथ न्यूयार्क पहुचा दिया था।
उस जहाज़ के कैप्टन “आर्थो रोसट्रन ” को ब्रिटेन की तारीख के चंद बहादुर कैप्टनों में शुमार किया जाता है और उनको कई सामाजिक और सरकारी आवार्ड से भी नवाजा गया था।
हमारी जिन्दगी में हमेशा मुश्किलें रहती हैं, चैलेंज रहते हैं लेकिन जो इन मुश्किल और चैलेंज का सामना करते हुए भी इन्सानियत की भलाई के लिए कुछ कर जाए वही सच्चा इन्सान है।
महामुद्रा तिरोहित

🍁सास बहू संबंध🍁
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पुत्रवधू का व्यवहार ऐसी हो कि सास ससुर गर्व करें!!
मैं पुनि पुत्रवधू प्रिय पाई।
रूप राशि गुन शील सुहाई।।
अपने प्राणपति श्रीराम जी के वनवास सुनकर सीता जी अपनी सासु माँ के शरण लेती हैं और सिर झुका कर नेत्रों से जलधार बहा रही हैं। उनकी व्याकुलता कौशल्या जी से सहन नहीं होता अतः वे पुत्र श्रीराम जी से विनती करती हैं कि- हे राम सुनो! मेरी प्यारी पुत्रवधू सीता बहुत सुकोमल है। इनका स्वभाव ऐसी है कि ये सास ससुर के साथ साथ परिवार के सभी सदस्यों को प्रिय हैं।
तात सुनहु सिय अति सुकुमारी। सास ससुर परिजनहि पिआरी।।
ये मेरी प्यारी पुत्रवधू अपने स्वभाव से परिजनों पर अमिट छाप छोड़ दी है।
हे राम! मैं सीता को पुत्रवधू के रूप में पाकर परम धन्य हो गई हूँ।
क्या विशेषता है जो सीता जी सभी को प्रिय हैं….
पुत्रवधू चयन करने वालों को इस पर विशेष ध्यान देना चाहिए…
१. रूप राशि- जब श्रीराम जी जनकपुर के पुष्प वाटिका में सखी संग सीता जी को देखे…
प्रभु जब जात जानकी जानी। सुख सनेह शोभा गुन खानी।।
१.सुख- प्रसन्नचित्त रहने वाली बहु हो , न तो आजकल बात बात पर मुँह लटकाने वाली बहुओं की भरमार है।
२. सनेह- पति, सास, ससुर, परिजन सभी से स्नेह रखने वाली बहु हो। जो जिस सम्मान के योग्य हैं उसे सम्मान दे।
३. शोभा- केवल बाह्य सुंदरता ही शोभा नहीं है और न तो आजकल की सभी नहीं परंतु बहुतेरे बहुएँ देखने में सुंदर किन्तु शील में कैसी हैं यह सर्व विदित है।
४.गुन खानी- सीता हरण समय भी श्रीराम जी को सीता जी के गुण याद आते हैं…हा गुन खानी जानकी सीता।
हमेशा शीतल स्वभाव रखने वाली बहु रहना चाहिए।
सीता जी वनवास में भी कौशल्या जी को छोड़िए कैकेई को भी अपने सेवा से अपने अधीन कर लीं…सीय सासु प्रति बेष बनाई। सादर करइ सरिस सेवकाई।।
सरिस- माता कौशल्या जी हों या वनवास देने वाली कैकेई सभी से सम भाव
सियँ सासु सेवा बस किन्हीं। तिन्ह लहि सुख सिख आसिष दीन्हीं।।
सेवा के फलस्वरूप आशीर्वाद मिला, शिक्षा मिली।
और कैकेई आत्मग्लानी में डूब गई…
लखि सिय सहित सरल दोउ भाई। “कुटिल रानी ” पछितानि अघाई।।
(काश! दहेज लोभी इन सभी पर ध्यान देते!!!!)
सास पुत्रवधू के स्नेह रूपी रस्सी से बँध गई हैं अतः उन्हें पुत्रवधू में सद्गुण क्यों न दिखाई देंगे।
जय रामजी की!!
सिताला दुबे
तुर्की का
सैन्य कमांडर बख्तियार खिलजी गंभीर रूप से बीमार पड़ गया।
सारे हकीम हार गए परंतु बीमारी का पता नहीं चल पाया खिलजी दिनों दिन कमजोर पड़ता गया और उसने बिस्तर पकड़ लिया ।उसे लगा कि अब उसके आखिरी दिन आ गए हैं ।
एक दिन उससे मिलने आए एक बुज़ुर्ग ने सलाह दी कि दूर भारत के मगध
साम्राज्य में अवस्थित
नालंदा महावीर के एक ज्ञानी राहुल शीलभद्र को एक बार दिखा लें ,वे आपको ठीक कर देंगे।
खिलजी तैयार नहीं हुआ। उसने कहा कि मैं किसी काफ़िर के हाथ की दवा नहीं ले सकता हूं चाहे मर क्यों न जाऊं!!
मगर बीबी बच्चों की जिद के आगे झुक गया। राहुल शीलभद्र जी तुर्की आए।
खिलजी ने उनसे कहा कि दूर से ही देखो मुझे छूना मत क्योंकि तुम काफिर हो और दवा मैं लूंगा नहीं।राहुल शीलभद्र जी ने उसका चेहरा देखा,शरीर का मुआयना किया,बलगम से भरे बर्तन को देखा,सांसों के उतार चढ़ाव का अध्ययन किया और बाहर चले गए
फिर लौटे और पूछा कि कुरान पढ़ते हैं?
खिलजी ने कहा दिन रात पढ़ते हैं
पन्ने कैसे पलटते हैं?
उंगलियों से जीभ को छूकर सफे पलटते हैं!!
शीलभद्र जी ने खिलजी को एक कुरान भेंट किया और कहा कि आज से आप इसे पढ़ें और राहुल शीलभद्र जी वापस भारत लौट आए
उधर दूसरे दिन से ही खिलजी की तबीयत ठीक होने लगी
और एक हफ्ते में वह भला चंगा हो गया
दरअसल राहुल शीलभद्र जी ने कुरान के पन्नों पर दवा लगा दी थी जिसे उंगलियों से जीभ तक पढ़ने के दौरान पहुंचाने का अनोखा तरीका अपनाया गया था
खिलजी अचंभित था मगर उससे भी ज्यादा ईर्ष्या और जलन से मरा जा रहा था कि आखिर एक काफिर मुस्लिम से ज्यादा काबिल कैसे हो गया?
अगले ही साल 1193 में उसने
सेना तैयार की और जा पहुंचा नालंदा महावीर मगध क्षेत्र।पूरी दुनिया का सबसे बड़ा ज्ञान और विज्ञान का केंद्र। जहां 10000 छात्र और 1000 शिक्षक एक बड़े परिसर में रहते थे।जहां एक तीन मंजिला इमारत में विशाल लायब्रेरी थी जिसमें एक करोड़ पुस्तकें,पांडुलिपियां एवं ग्रंथ थे
खिलजी जब वहां पहुंचा तो शिक्षक और छात्र उसके स्वागत में बाहर आए क्योंकि उन्हें लगा कि वह कृतज्ञता व्यक्त करने आया है
खिलजी ने उन्हें देखा और मुस्कुराया….और तलवार से भिक्षु श्रेष्ठ की गर्दन काट दी
फिर हजारों छात्र और शिक्षक गाजर मूली की तरह काट डाले गए
खिलजी ने फिर ज्ञान विज्ञान के केंद्र
पुस्तकालय में आग लगा दी
कहा जाता है कि पूरे तीन महीने तक पुस्तकें जलती रहीं
खिलजी चिल्ला चिल्ला कर कह रहा था कि तुम काफिरों की हिम्मत कैसे हुई इतनी पुस्तकें पांडुलिपियां इकट्ठा करने की? बस एक कुरान रहेगा धरती पर बाकी सब को नष्ट कर दूंगा
पूरे नालंदा को तहस नहस कर जब वह लौटा तो
रास्ते में विक्रम शिला विश्वविद्यालय को भी जलाते हुए लौटा
मगध क्षेत्र के बाहर बंगाल में वह रूक गया और वहां खिलजी साम्राज्य की स्थापना की
जब वह लद्दाख क्षेत्र होते हुए तिब्बत पर आक्रमण करने की योजना बना रहा था तभी एक रात उसके एक कमांडर ने उसकी सोए में हत्या कर दी
आज भी बंगाल के
पश्चिमी दिनाजपुर में उसकी कब्र है जहां उसे दफनाया गया था
और सबसे हैरत की बात है कि उसी दुर्दांत हत्यारे के नाम पर बिहार में बख्तियार पुर नामक जगह है जहां रेलवे जंक्शन भी है जहां से नालंदा की ट्रेन जाती है।..साभार