#संस्कार
एक राजा के पास सुन्दर घोड़ी थी। कई बार युद्व में इस घोड़ी ने राजा के प्राण बचाये और वह घोड़ी राजा के लिए पूर्णतः वफादार थीI कुछ दिनों के बाद इस घोड़ी ने एक बच्चे को जन्म दिया किन्तु बच्चा काना पैदा हुआ अर्थात उसकी एक आंख जन्मजात खराब थी लेकिन उसका शरीर हृष्ट-पुष्ट व सुडौल था।
बच्चा बड़ा हुआ तो एक दिन बच्चे ने मां से प्रश्न किया- “मां मैं बहुत बलवान हूँ लेकिन मेरी एक आंख जन्म से ही खराब है।यह कैसे हो गया?”
अपने पुत्र के प्रश्न को उत्तरित करते हुए घोड़ी बोली-“बेटा, जब में गर्भवती थी तब एक दिन राजा ने मेरे ऊपर सवारी करते समय मुझे एक कोड़ा मार दिया था जिसके कारण तेरी एक आंख ज्योतिविहीन हो गई।”
सारी बात जानकर बच्चे को राजा पर गुस्सा आया और मां से बोला: “मां, अब मैं इसका बदला राजा से लूंगा।”
मां ने कहा- “राजा ने हमारा पालन-पोषण किया है बेटा, तू जो स्वस्थ है….सुन्दर है, उन्हीं के पोषण से तो है। यदि राजा को एक बार किसी बात पर गुस्सा आ गया तो इसका अर्थ यह नहीं है कि हम उसे क्षति पहुंचाएं।”
घोड़ी की यह समझदारी भरी बात उसके बच्चे की समझ में नहीं आई। उसने मन ही मन राजा से बदला लेने का दृढ़ निश्चय कर लिया।
एक दिन ऐसा भी आ गया जब घोड़े को राजा के साथ युद्व में जाने का अवसर मिल गया। युद्व लड़ते-लड़ते राजा घायल हो गया। घोड़ा उसे तुरन्त उठाकर वापस महल ले आया।
महल पर पहुंच कर घोड़े को स्वयं आश्चर्य हुआ कि वह राजा को घायल अवस्था में वापस क्यों ले आया जबकि उसने तो बदला लेने का प्रण कर रखा था?उसने अपनी दुविधा को मां से कहा- “मां, आज राजा से बदला लेने का अच्छा अवसर था था मगर मुझे युद्व के मैदान में बदला लेने का ख्याल ही नहीं आया और न ही मैं ले पाया। मन ने इसे स्वीकार ही नहीं किया।”
अपने बेटे की इस बात पर घोड़ी ने हंस कर बोली-“बेटा, तेरे खून में और तेरे संस्कार में धोखा है ही नहीं। तू जानकर तो धोखा दे ही नहीं सकता है।तुझ से नमक हरामी हो ही नहीं सकती क्योंकि तेरी नस्ल में तेरी मां का ही तो अंश है।”
घोड़े की आशंका का समाधान हो गया।
यह सत्य है कि जैसे हमारे संस्कार होते है, वैसा ही हमारे मन का व्यवहार होता है, हमारे पारिवारिक-संस्कार अवचेतन मस्तिष्क में गहरे बैठ जाते हैं, माता-पिता जिस संस्कार के होते हैं, उनके बच्चे भी उसी संस्कारों को लेकर पैदा होते हैं।
संस्कार मनुष्य को आचरणवान और चरित्रवान बनाते हैं। संस्कार मनुष्य जीवन को परिष्कार एवं शुद्धि प्रदान करते हैं तथा मनुष्य को पवित्रता प्रदान करके व्यक्तित्व को निखारते हैं। संस्कार मनुष्यों को सामाजिक एवं आध्यात्मिक नागरिक बनाने में सहयोग करते हैं। संस्कार मानव के समाजीकरण में सहयोगी होते हैं।
हमारे कर्म ही ‘संस्कार’ बनते हैं और संस्कार ही प्रारब्धों का रूप लेते हैं! यदि हम कर्मों को सही व बेहतर दिशा दे दें तो संस्कार अच्छे बनेगें और संस्कार अच्छे बनेंगे तो जो प्रारब्ध का फल बनेगा, वह मीठा व स्वादिष्ट होगा।
🏹💢🏹#जय_श्री_राम🏹💢🏹
रवि कांत