“आओ बच्चों सैर कराएँ तुमको पाकिस्तान की, इसकी खातिर हमने दी कुर्बानी लाखों जान की….पाकिस्तान जिंदाबाद-पाकिस्तान जिंदाबाद”
हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री में पचास के शुरुआती दशक के सुप्रसिद्ध बाल कलाकार रतन कुमार, जिनका असली नाम सैयद नज़ीर अली रिज़वी था. जिन्होंने उस दौर में दो बीघा जमीन (१९५३) बूट पॉलिश (१९५४) और जागृति (१९५४) में बतौर बाल कलाकार यादगार भूमिकाएँ निभाई थीं, जिसने उन्हें खूब नाम और शोहरत दी.
वहीं जागृति फिल्म का, कवि पंडित प्रदीप द्वारा लिखा गया अमर गीत “आओ बच्चों तुम्हें दिखाएँ झाँकी हिंदुस्तान की, इस मिट्टी से तिलक करो ये धरती है बलिदान की” कौन भूल सकता है, तब से लेकर आज तक की पीढ़ियाँ इसे गाती हैं, सराहती हैं.
१९५६ में रतन कुमार उर्फ़ सैयद नज़ीर अली रिज़वी भारत से पाकिस्तान चले जाते हैं. वहाँ वे रतन कुमार नाम को ही नहीं भारत के नाम और पहचान को भी दफ़न कर देते हैं,
पाकिस्तान में उनके अन्दर का मुसलमान न केवल जाग जाता है, बल्कि उन पर हावी हो जाता है, जो बच्चा दो साल पहले ‘जागृति’ फिल्म में भारत की मिट्टी को तिलक कर रहा था, वन्देमातरम के नारे लगा रहा था, वह पाकिस्तान पहुँचते ही १९५७ में ‘बेदरी’ नाम से ‘जागृति’ फिल्म का रीमेक बनाता है, और इसमें वो गाता है “आओ बच्चों सैर कराएँ तुमको पाकिस्तान की, इसकी खातिर हमने दी कुर्बानी लाखों जान की….पाकिस्तान जिंदाबाद-पाकिस्तान जिंदाबाद”
जो सैयद नजीर, दो साल पहले शिवाजी और महाराणा प्रताप की जय कर रहा था, वह पाकिस्तान पहुँचते ही गाता है “यह है देखो सिंध यहाँ जालिम दाहिर का टोला था, यहीं मोहम्मद बिन कासिम अल्लाह हो अकबर बोला था”
आगे उन्होंने और भी फ़िल्में की वहाँ, पर वह सफलता नहीं मिली, जिसका स्वाद उन्होंने भारत में चखा था और जिस इरादे से वो पाकिस्तान गए थे. अस्सी के दशक में वो अमरीका जाकर बस गए और २०१६ में चल बसे.
यहाँ दो बातें हैं, एक तो यह कि जमातियों के लिए राष्ट्र, मिट्टी और धरती कुछ नहीं होता, वे मजहब की खातिर चाँद पर भी बस जाएँगे तो धरती को गाली देंगे, धरती के खिलाफ षड्यंत्र करेंगे, मजहब के लिए गिरोहबंदी से लेकर फिदायीन हो जाने के इतर उनका कोई जीवन दर्शन नहीं है.
और दूसरा यह कि तस्वीरें भी रंग बदलती हैं, हमें तस्वीरों पर भी नजर रखनी चाहिए, उनका फॉलो अप लेना चाहिए. आपको प्रिंस याद है ! बोरवेल में गड्ढे में गिर जाने के बाद, इस लाइन का पहला सेलेब्रिटी, जिसे उस समय काफी नाम और पैसा भी मिला और अभी कहाँ है, किसी को नहीं पता. मैराथन बॉय बुधिया, जिसमें हम भारत के लिए ओलम्पिक गोल्ड मेडलिस्ट खोज रहे थे, अब कहाँ है वो?
सूटकेस के पहियों से कितने किलोमीटर की यात्रा हो सकती है ? वो बच्चा, जिसकी बाँह पकड़कर ट्रक में चढ़ाया जा रहा है, उसे चढ़ाने में कितना वक्त लगा होगा, क्या अब वो कहीं पहुंचा नहीं होगा, क्या हम उसे अपनी स्मृतियों में ऐसे ही लटकाए रहेंगे?
जो कहीं से चलता है, वो कहीं पहुँचता भी है, कोई भी यात्रा अनंत नहीं हो सकती.

