ज्ञानवापी
लखनऊ का प्रो रविकान्त गिरफ़्तार कर लिया गया है। काशी विश्वनाथ के बारे में उसने जो फर्जी कहानी सुनाई है वो मनगढ़ंत कहानी मुस्लिम हमेशा सुनाते हैं। संक्षेप में वह कहानी यूँ है कि औरंगजेब के बंगाल जाते समय लश्कर में साथ चल रहे हिन्दू राजाओं के अनुरोध पर बनारस के निकट पड़ाव डाला गया ताकि हिन्दू रानियाँ गंगा स्नान कर काशी विश्वनाथ के दर्शन कर सकें। दर्शन के दौरान एक रानी गायब हो गयी। खोजबीन करने पर वो रानी काशी विश्वनाथ मन्दिर के तहख़ाने में मिली। उसके साथ बलात्कार किया गया था। जिस से मंदिर अपवित्र हो गया था। इसीलिए औरंगजेब ने अपवित्र काशी विश्वनाथ मंदिर को तुड़वा कर कहीं और बनाने का आदेश दिया लेकिन बलात्कार की शिकार हिन्दू रानी अड़ गई कि इस जगह पर तो मस्जिद ही बननी चाहिए। इस तरह से रानी की जिद पर काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर मस्जिद बना दी गयी।
अपनी इस कहानी के समर्थन में मुस्लिम कहते हैं कि इस ऐतिहासिक सच को पट्टाभि सीतारमैय्या ने अपनी पुस्तक में दस्तावेजों के आधार पर प्रमाणित किया है।
मैंने इतिहास की पड़ताल की और पाया कि…….
पट्टाभि सीतारमैय्या कोई साधारण शख्सियत नहीं थे। वो इतने महान थे कि 1939 में जब वो कांग्रेस के अध्यक्ष पद के चुनाव में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस से हार गए तो महात्मा गाँधी ने सार्वजनिक कहा कि पट्टाभि सीतारमैय्या की हार मेरी हार है। इस हार को जवाहरलाल नेहरु ने प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया और नेहरु ने 1948 में जिस साल गाँधी जी की हत्या हुई पट्टाभि सीतारमैया को जयपुर अधिवेशन में कांग्रेस का अध्यक्ष बनवा कर के ही दम लिया और गाँधी जी की आत्मा को शांति पहुँचाई। पट्टाभि कांग्रेस के नेता होने के साथ-साथ इतिहासकार भी थे। कई पुस्तकों के साथ-साथ 1935 में इन्होंने The History of the Congress नाम से कांग्रेस का इतिहास भी लिखा है। अब काँग्रेस के नेता सह इतिहासकार पर तो कोई ऊँगली उठा ही नहीं सकता।
1942 से 1945 तक तीन साल जेल में रहने के दौरान सीतारमैया रोज डायरी लिखा करते थे। यही डायरी 1946 में उन्होंने ‘Feathers and Stones: My Study Windows’ नाम से पुस्तक के रूप में प्रकाशित करवाई। इसी पुस्तक के पृष्ठ संख्या 177 और 178 पर मंदिर के तहखाने में पुजारी द्वारा रानी के बलात्कार पर मंदिर तोड़े जाने के बारे में का जिक्र है।
इस दस्तावेजी सबूत पर लेख के अंत में खुलासा होगा। उस से पहले इतिहास की पड़ताल……
औरंगजेब के कालखंड की खास बात ये थी कि लगभग प्रतिदिन की उल्लेखनीय घटनाओं का दस्तावेजीकरण किया गया था।
– औरंगजेब के समकालीन सकी मुस्तईद खान की लिखी मासिर ए आलमगीरी में हज़ारों मंदिरों को तोड़े जाने के बारे में गर्व से लिखा गया है। विश्वनाथ मंदिर को भी तोड़े जाने वाले फ़रमान का जिक्र है लेकिन हिन्दू रानी से बलात्कार वाली घटना का कोई जिक्र नहीं है।
– औरंगजेब के ही समकालीन हमीद्दुदीन खान बहादुर की लिखी अहकाम-ए-आलमगीरी में इस घटना को कोई जिक्र नहीं है।
-इतिहासकार जमशेद एच बिलिमोरिया के अनुसार औरंगजेब के लिखे अहदनामों, फरमानों और निशानों के चार संकलन हैं जो औरंगजेब के दरबार से जुड़े चार अलग अलग लोगों ने किए थे।
1. रुकात ए आलमगीरी जिसका संकलन और प्रकाशन औरंगजेब के वजीर इनायतुल्लाह खान कश्मीरी ने किया।
2. रकैम ए करीम जिसका संकलन दूसरे वजीर अब्दुल करीम अमीर खान के बेटे ने किया।
3. दस्तूर उल अमल आगाही जिसका संकलन अयामल जयपुरी ने किया।
4. अदब ए आलमगीरी जिसके पत्रों का अंग्रेजी अनुवाद ऑस्ट्रेलिया के विंसेंट जॉन एडम फ्लिन ने किया है। इन चारों में भी इस घटना का जिक्र नहीं है।
औरंगजेब से जुड़ी अन्य किसी भी पुस्तक में भी इस इस घटना का जिक्र नहीं है। इतना ही नहीं औरंगजेब द्वारा की गयी बंगाल और बनारस की किसी यात्रा का कोई भी जिक्र इतिहास में नहीं है, तो सवाल ये है कि पट्टाभि सीतारमैया को ये सब किसने बताया।
सीतारमैय्या ने इसी किताब में लिखा है कि लखनऊ के किसी नामचीन मौलाना के पास एक हस्तलिखित पाण्डुलिपि थी जिसमें से पढ़ कर ये घटना मौलाना ने सीतारमैया के किसी दोस्त को बतायी और वादा किया कि जरुरत पड़ने पर पाण्डुलिपि दिखा भी देंगे। बाद में मौलाना मर गए। साथ में पाण्डुलिपि भी मर गयी😉। दस्तावेज मर गया, पट्टाभि भी मर गए लेकिन अपने फ़र्जीवाड़े का सबूत पेश नहीं कर पाए। मरते दम तक अपने उस दोस्त और लखनऊ के नामचीन मौलाना का नाम नहीं बता पाए।
ऐसे ही फर्जीवाड़ों के आधार पर रोमिला थापर, के एम पणिक्कर और बी एन पाण्डे जैसे इतिहासकारों ने औरंगजेब को महान बताया है और हिन्दुओं के आस्था केंद्र काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़े जाने को सही ठहराया है। आज भी हिंदुओं को बलात्कारी और मंदिरों को बलात्कार का अड्डा बताया जा रहा है। कठुआ काण्ड में भी यही दुष्प्रचार किया गया था। जो बाद में झूठ साबित हुआ।
अब पट्टाभि को तो कोई गलत कह ही नहीं सकता क्योंकि वो ठहरे कांग्रेस के अध्यक्ष। साथ साथ कांग्रेस के इतिहासकार। हमें लगता है कि पट्टाभि से ये बात खुद औरंगजेब के भूत ने बताई थी क्योंकि अहमदनगर किले की जिस जेल में तीन साल रह कर पट्टाभि ने ये किताब लिखी थी, उसी किले में 1707 में औरंगजेब की मौत हुई थी।
Govind Sharma भैया
गोविन्द शर्मा
संगठन मन्त्री, श्रीकाशी विद्वत्परिषद