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ગોંડલ રાજાના કુંવર, સંગ્રામજીના દિકરા, નામ એનુ પથુભા. નાની ઉંમર એમની. કોઈ કામ સબબ એમને કુંભાજીની દેરડી કેવાય એ તરફ જવાનુ બનેલું. એટલે ૨૫-૩૦ ઘોડેસવારોની સાથે પોતે નીકળ્યા.

એમા કુકાવાવના પાદરમા પહોચ્યા. ઘોડાઓ નદિમા પાણી પીએ છે.

કુંવર (માણસોને) : હવે દેરડી કેટલુ દુર છે?

માણસો : કેમ કુંવરસાબ?

કુંવર : મને ભુખ બહુ લાગી છે.

માણસો : બાપુ, હવે દેરડી આ રહ્યુ, અહિથી ૪ માઇલ દેરડી આઘુ છે, આપણે ઘોડા ફેટવીએ એટલે હમણા આપણે ન્યા પોગી જાઈ અને ત્યા ડાયરો ભોજન માટે આપણી વાટ જોતો હશે.

કુંવર : ના, મારે અત્યારે જ જમવુ છે.

આ તો રાજાનો કુંવર એટલે બાળહઠ ને રાજહઠ બેય ભેગા થ્યા.

એટલામા કુકાવાવનો એક પટેલ ખેડુત પોતાનુ બળદગાડું લઈને નીકળ્યો ને એણે કુંવરની વાત સાંભળી એટલે આડા ફરીને રામ રામ કર્યા ને કિધુ કે, “ખમ્મા ઘણી બાપુને, આતો ગોંડલનું જ ગામ છે ને, પધારો મારા આંગણે.”

કુંવર અને માણસો પટેલની ઘરે ગ્યા.

ઘડિકમા આસન નખાઇ ગ્યા, આ બાજુ ધિંગા હાથવાળી પટલાણીયુ એ રોટલા ઘડવાના શરૂ કરી દિધા, રિંગણાના શાક તૈયાર થઈ ગ્યા, મરચાના અથાણા પીરસાણા અને પોતાની જે કુંઢિયુ બાંધેલી એની તાજી માખણ ઉતારેલી છાશું પીરસાણી.

કુંવર જમ્યા ને મોજના તોરા મંડ્યા છુટવા કે શાબાશ મારો ખેડુ, શાબાશ મારો પટેલ અને આદેશ કર્યૌ કે બોલાવો તલાટીને, ને લખો, “કે હુ કુવર પથુભા કુકાવાવમા પટેલે મને જમાડ્યો એટલે હું પટેલને ચાર સાતીની ઉગમણા પાદરની જમીન આપુ છું.” ને નિચે સહિ કરી ને ઘોડે ચડિને હાલતા થ્યા.

કુંવર ગયા પછી તલાટી જે વાણિયો હતો તે ચશ્મામાંથી મરક મરક દાંત કાઢવા લાગ્યો ને પટેલને કિધુ કે, “પટેલ, આ દસ્તાવેજને છાશમા ઘોળીને પી જાવ. આ ક્યા ગોંડલનુ ગામ છે કે કુંવર તમને જમીન આપી ને વ્યા ગ્યા.”આ તો કાઠી દરબાર જગા વાળા નુ ગામ છે.

પટેલને બિચારાને દુઃખ બહુ લાગ્યુ અને આખુ ગામ પટેલની મશ્કરી કરવા લાગ્યુ.

પટેલને ધરતી માર્ગ આપે તો સમાઈ જવા જેવુ થ્યુ. પણ એક વાત નો પોરસ છે કે કુંવરને મે જમાડ્યા.

ઉડતી ઉડતી એ વાત જેતપુર દરબાર જગાવાળાને કાને પડી.

એમણે ફરમાન કીધુ
કે -“બોલાવો પટેલને અને એને કેજો કે સાથે દસ્તાવેજ પણ લાવે.”

પટેલ બીતા-બીતા જેતપુર કચેરીમા આવે છે.

જગાવાળા : પટેલ, મે સાંભળ્યુ છે કે મારા દુશ્મન ગોંડલના કુંવર પથુભા કુકાવાવ આવ્યાતા ને તમે એને જમાડ્યા. સાચું ?

પટેલ : હા બાપુ, એમને ભુખ બહુ લાગીતી એટલે મે એને જમાડ્યા.

જગાવાળા : હમ્મ્મ્મ અને એણે તમને ચાર સાતીની જમીન લખી આપી એય સાચું ?

પટેલ : હા બાપુ એને એમ કે આ ગોંડલનુ ગામ છે એટલે આ દસ્તાવેજ લખી આપ્યો.

ત્યારે જગાવાળાએ પોતાના માણસોને કિધુ કે – તાંબાના પતરા પર આ દસ્તાવેજમા જે લખેલ છે એ લખો અને નીચે લખો કે, “મારા પટેલે મારા દુશ્મનને જમાડ્યો એટલે મારી વસ્તીએ મને ભુંડો નથી લાગવા દિધો. એટલે હું જગાવાળો, જેતપુર દરબાર, પટેલને બીજી ચાર સાતીની જમીન આપુ છુ અને આ આદેશ જ્યા સુધી સુર્યને ચાંદો તપે ત્યા સુધી મારા વંશ વારસોએ પાળવાનો છે અને જે નહિ પાળે એને ગૌહત્યાનુ પાપ છે”
એમ કહીને નીચે જગાવાળાએ સહિ કરિ નાખી,

અને એક પત્ર ગોંડલ લખ્યો કે, “સંગ્રામજીકાકા તારો કુંવર તો દેતા ભુલ્યો, કદાચ આખુ કુકાવાવ લખી દિધુ હોત ને તોય એય પટેલ ને આપી દેત.”

આ વાતની ખબર સંગ્રામસિંહજીને પડતા એને પણ પોરસના પલ્લા છુટવા માંડ્યા કે “વાહ જગાવાળા શાબાશ બાપ! દુશ્મન હોય તો આવો. જા બાપ તારે અને મારે કુકાવાવ અને બીજા ૧0 ગામનો જે કજિયો ચાલે છે
તે તને માંડિ દવ છું…!”

આનુ નામ દુશ્મન કેવાય, આને જીવતરના મુલ્ય કેવાય.
વેરથી વેર ક્યારેય શમતુ નથી એને આમ મિટાવી શકાય,
આવા અળાભીડ મર્દો આ ધરતિમા જન્મ્યા.

ધન્ય છે…

” આપણી સંસ્કૃતિ અને આપણો વારસો ” :- અજ્ઞાત

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मजबूरी

प्रदीप देर शाम को ऑफिस से लौटा तो रसोईघर में खटर पटर की आवाज सुनाई दी। उसने झांका तो देखा कि उसकी मां बर्तन मांज रही थी। मां की उम्र हो चली है वो घुटनों के दर्द से परेशान रहती है। जनवरी का महीना मौसम बहुत ठंडा था वातावरण में धुंध थी इतनी ठंड महसूस हो रही थी कि उसके कान सुन्न हो ग‌ए थे। वह चुपके से आगे बढ़ गया। अपने बैग को उसने कमरे में रखा और हाथ मुंह धोने बाथरूम में चला गया उसने गीजर ऑन किया फिर बेडरूम का जायजा लिया उसकी पत्नी इंदु रजाई में बैठी टीवी देख रही थी। इंदु एक नंबर की नकचढी, सुंदर और बेहद तेज मिजाज की है। उसे देखते ही इंदु चहक उठी अरे! आज तो आपने देर कर दी। उसने प्रश्नवाचक निगाहों से उसे देखा और कपड़े बदलने लगा इंदु ने पीछे से आकर उसके गले में बाहें डाल दी।

“पता है, मैं कितनी देर से आपका इंतजार कर रही थी।”

उसने पूछा क्यों???

ये भी कोई बात है। इन्दु शरमाते हुए बोली।

चलो चाय तो पिलाओ।

बहुत ठंड है।

अरे! कामवाली पंन्द्रह दिन की छुट्टी मांग कर गांव चली गई है। उसके देवर की डेथ हो गई है।

मुझसे तो ये काम-धाम नहीं होगा आपको कुछ इंतजाम करना पड़ेगा।

मां कहां है??? प्रदीप ने गंभीर स्वर में पूछा।

पता नहीं इंदु ने कंधे उचकाए मुझसे उनकी ज्यादा बातचीत होती कहां है?? मेरे बस का नहीं है उनकी फालतू बातें सुनना।

प्रदीप सोच में डूब गया। चलो ये तो बहू है पर मां का बेटा भी कहां उसका हो गया??? पिताजी को गुजरे बीस साल हो गए हैं। मां हमेशा से चुपचाप सारे दुखों को खुद में समेटे कर खामोशी से जी रही है। दस साल का था पिताजी की मृत्यु हुई थी पर मां ने उसे कभी भी किसी चीज की कमी महसूस नहीं होने दी थी। पच्चीस बीघे जमीन की खेती अकेले संभाल ली थी इस बात को उसके चाचा और ताऊ जी कभी बर्दाश्त नहीं कर पाए थे कि एक औरत उनकी बराबरी कैसे कर सकती है?? जिसकी जुबान भी कभी उनके सामने नहीं खुलती थी। उन्होंने मां को परेशान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।

पर मां ने अपने आप को बेहद मजबूती से अपने बेटे के लिए खड़ा कर दिया था।

मां कभी भी उससे इंदु की शिकायत नही करती है। क्योंकि वो इंदु के स्वभाव से अच्छी तरह परिचित है।
जब वह कुछ पूछता है तो मुस्कुरा देती है।

आज जब वह कामयाब है तब भी वो अपनी मां के लिए कुछ नहीं कर सकता।

इंदु को समझाने का मतलब पत्थर पर सिर मारना है।

वह रसोई घर में आया मां चाय चढ़ा चुकी थीं। उसके लिए पीने का पानी गर्म कर दिया था।

उसने खामोशी से पानी पिया पर आज मां का हाल-चाल नहीं पूछा।

वह वहीं से तेजी से चिल्लाया कि इंदु जल्दी से बाहर आओ।

इंदु झल्लाते हुए बाहर आ कर खड़ी हो गई।

ये बुढ़िया मुझे पूरे मोहल्ले में बदनाम करना चाहती है।

प्रदीप ने चिल्ला कर कहा।

इंदु आश्चर्य से उसे देखने लगी।

क्या हुआ???

मां के पैरों तले जमीन खिसक गई। उसके हाथ कांपने लगे।

अभी बाहर पड़ोस वाली काकी मिली थी कह रही थी कि प्रदीप तुमने तो अपनी मां को नौकरानी बना कर रख दिया है।

अभी आज ही कामवाली गई और देखो पूरे मोहल्ले में चर्चा हो गई कि प्रदीप की मां नौकरानी है।

इसलिए ही तो मैं तुम्हें कहती हूं कि चलो अलग रहेंगे पर तुम मेरी सुनते कहां हो???

मां की आंखों से आंसू गिरने लगे। उसने कोई सफाई नहीं दी चुपचाप भारी कदमों से अपने कमरे में चली गई।

प्रदीप ने इंदु को कहा जा कर जल्दी से खाना बनाओ इस बुढ़िया से कोई काम मत करवाना।

इंदु ने मन मार कर जैसे तैसे सब्जी रोटी बनाई अपना और प्रदीप का खाना कमरे में ले आई।

मां को दिया तुमने खाना।

बना कर रख दिया है अपने आप ले लेंगी। तुम इतनी चिंता मत करो।

अलग रहने पर विचार करो।

इंदु तुम्हारा दिमाग खराब है क्या??? इतनी जमीन, जायदाद घर सब कुछ है??? सब कुछ मां के नाम पर है तुमने अगर यहां से अलग होने की बात की तो हमारे हाथ से सब कुछ निकल जाएगा।

पर वो तुमसे बेहद प्यार करती हैं। वो ऐसा कुछ नहीं करेंगी।

तुम बेवकूफ हो इंदु सारे रिश्तेदार ताक में रहते हैं इसलिए तुम कम से कम मां के साथ अपने मतलब के लिए तो सही रहने का ढोंग कर सकती हो।

इंदु लालची है ।इसलिए चुप रह कर सोचने लगी।

तुम खाना खाओ मैं जरा अभी आया। मां को खाना दे कर आता हूं कहीं मोहल्ले में चुगली कर दी तो हम दोनों की बहुत बदनामी होगी।

वह रसोई घर में गया उसने खाना गर्म किया दो रोटी और सब्जी थी प्लेट लगाई और मां के कमरे में चला गया।
मां खाना बहुत कम खाती है। शरीर कमजोर है। आज तो मन भी टूट गया होगा।

मां बत्ती बुझाकर लेट गई थी वो जानता था कि वो सोई नहीं है बल्कि रो रही है। आज उसे बहुत पीड़ा पहुंची है।

उसने लाइट जलाई मां! उठो खाना खा लो।

मुझे भूख नहीं है बेटा तुम लोग खाओ।

मैं सोऊंगी।

उसने प्लेट मेज पर रखी और मां के पैरों में सिर रख कर फूट फूट कर रो पड़ा।

मां हड़बड़ा कर उठ कर बैठ गई।

क्या हुआ तुझे???

मुझे माफ कर दो मां तुम्हें ठंड से बचाने का मेरे पास और कोई रास्ता नहीं था।

तुम्हारा बेटा बहुत बुरा है।

काश! इंदु मां बेटे का रिश्ता समझ सकती। शायद तब समझेगी जब वह खुद मां बनेगी।

मां मेरी मजबूरी तुम समझोगी मैं नहीं चाहता कि कि इस उम्र में मेरी मां को कोई अपशब्द कहे पास पड़ोस में बदनाम करे।

चलो उठो खाना खाओ नहीं तो मैं भी नहीं खाऊंगा।

उसने झटपट से निवाला तोड़ कर मां के मुंह में डाल दिया।

मेरा बुद्धू बेटा मां ने प्यार से उसके बालों पर हाथ फेरते हुए उसका माथा चूम लिया।

वो सोच रहा था कि मां का प्यार उसका साथ दुनिया की सबसे बड़ी दौलत है। हे ईश्वर इसे मेरे ऊपर हमेशा बनाए रखना।

© रचना कंडवाल 🙏

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हनुमानजी की चुटकी सेवा!!!!!!!

अपने आराध्य प्रभु श्रीराम की निष्काम सेवा के कठोर व्रत का पालन करने में हनुमानजी अद्वितीय हैं । हनुमानजी का एक-एक श्वास, उनका जीवन केवल ‘राम काज’ के लिए है । उनकी वाणी ‘राम-राम’ के उच्चारण से निरंतर गूँजती रहती है । सीताजी की खोज के लिए हनुमानजी जब समुद्र-पार कर रहे थे उस समय जलमग्न मैनाक पर्वत ऊपर उठा और उसने उनसे विश्राम कर लेने की प्रार्थना की तब हनुमानजी ने उसे उत्तर दिया—‘राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहां विश्राम ।।’

हनुमानजी सेवा की मानो साकार प्रतिमा हैं । प्रभु श्रीराम के प्रति उनकी सेवा-निष्ठा के सम्बन्ध में यह कह सकते हैं कि—

जैसे बाण को चाहिए धनुष और धनुष को बाण ।
ऐसे हनुमान को चाहिए राम और राम को हनुमान ।। (श्रीगिरीशचन्दजी श्रीवास्तव)

इसी बात को स्पष्ट करती एक रोचक कथा– हनुमानजी की चुटकी सेवा!!!!

अयोध्या में प्रभु श्रीराम का राज्याभिषेक होने के बाद हनुमानजी वहीं रहने लगे । उन्हें तो श्रीराम की सेवा का व्यसन (नशा) था । सच्चे सेवक का लक्षण ही है कि वह आराध्य के चित्त की बात जान लिया करता है । उसे पता रहता है कि मेरे स्वामी को कब क्या चाहिए और कब क्या प्रिय लगेगा ? श्रीराम को कोई वस्तु चाहिए तो हनुमानजी पहले से लेकर उपस्थित । किसी कार्य, किसी पदार्थ के लिए के लिए संकेत तक करने की आवश्यकता नहीं होती थी।

हनुमानजी की सेवा का परिणाम यह हुआ कि भरत आदि भाइयों को श्रीराम की कोई भी सेवा प्राप्त करना कठिन हो गया। इससे घबराकर सबने मिलकर एक योजना बनाई और श्रीजानकीजी को अपनी ओर मिला लिया । प्रभु की समस्त सेवाओं की सूची बनाई गयी । कौन-सी सेवा कब कौन करेगा, यह उसमें लिखा गया । जब हनुमानजी प्रात:काल सरयू-स्नान करने गए तब अवसर का लाभ उठाकर तीनों भाइयों ने सूची श्रीराम के सामने रख दी । प्रभु ने देखा कि सूची में कहीं भी हनुमानजी का नाम नहीं है । उन्होंने मुसकराते हुए उस योजना पर अपनी स्वीकृति दे दी । हनुमानजी को कुछ पता नहीं था।

दूसरे दिन प्रात: सरयू में स्नान करके हनुमानजी जब श्रीराम के पास जाने लगे तो उन्हें द्वार पर भाई शत्रुघ्न ने रोक दिया और कहा–’आज से श्रीराम की सेवा का प्रत्येक कार्य विभाजित कर दिया गया है। जिसके लिए जब जो सेवा निश्चित की गयी है, वही वह सेवा करेगा । श्रीराम ने इस व्यवस्था को अपनी स्वीकृति दे दी है।’

हनुमानजी बोले—‘प्रभु ने स्वीकृति दे दी है तो उसमें कहना क्या है ? सेवा की व्यवस्था बता दीजिये, अपने भाग की सेवा में करता रहूंगा।’

सेवा की सूची सुना दी गयी, उसमें हनुमानजी का कहीं नाम नहीं था । उनको कोई सेवा दी ही नहीं गयी थी क्योंकि कोई सेवा बची ही नहीं थी । सूची सुनकर हनुमानजी ने कहा—‘इस सूची में जो सेवा बच गयी, वह मेरी।’

सबने तुरन्त सिर हिलाया ’हां, वह आपकी।’ हनुमानजी ने कहा—‘इस पर प्रभु की स्वीकृति भी मिलनी चाहिए ।’ श्रीराम मे भी इस बात पर अपनी स्वीकृति दे दी ।

स्वामी श्रीराम का जिस प्रकार कार्य सम्पन्न हो, हनुमानजी वही उपाय करते हैं, उन्हें अपने व्यक्तिगत मान-अपमान की जरा भी चिन्ता नहीं रहती ।

हनुमानजी बोले—‘प्रभु को जब जम्हाई आएगी, तब उनके सामने चुटकी बजाने की सेवा मेरी ।’ यह सुनकर सब चौंक गये। इस सेवा पर तो किसी का ध्यान गया ही नहीं था लेकिन अब क्या करें ? अब तो इस पर प्रभु की स्वीकृति हनुमानजी को मिल चुकी है ।

चुटकी सेवा के कारण हनुमानजी राज सभा में दिन भर श्रीराम के चरणों के पास उनके मुख की ओर टकटकी लगाए बैठे रहे क्योंकि जम्हाई आने का कोई समय तो है नहीं । रात्रि हुई, स्नान और भोजन करक श्रीराम अंत:पुर में विश्राम करने पधारे तो हनुमानजी उनके पीछे-पीछे चल दिए । द्वार पर सेविका ने रोक दिया—‘आप भीतर नहीं जा सकते ।’ हनुमानजी वहां से हट कर राजभवन के ऊपर एक कंगूरे पर जाकर बैठ गए और लगे चुटकी बजाने।

पर यह क्या हुआ ? श्रीराम का मुख तो खुला रह गया । न वे बोलते हैं, न संकेत करते हैं, केवल मुख खोले बैठे हैं । श्रीराम की यह दशा देखकर जानकीजी व्याकुल हो गईं । तुरन्त ही माताओं को, भाइयों को समाचार दिया गया । सब चकित और व्याकुल पर किसी को कुछ सूझता ही नहीं । प्रभु का मुख खुला है, वे किसी के प्रश्न का कोई उत्तर नहीं दे रहे हैं ।

अंत में गुरु वशिष्ठ बुलाए गये । प्रभु ने उनके चरणों में मस्तक रखा; किन्तु मुंह खुला रहा, कुछ बोले नहीं ।

वशिष्ठजी ने इधर-उधर देखकर पूछा—‘हनुमान कहां हैं, उन्हें बुलाओ तो ?’

जब हनुमानजी को ढूंढ़ा गया तो वे श्रीराम के कक्ष के कंगूरे पर बैठे चुटकी बजाए जा रहे हैं, नेत्रों से अश्रु झर रहे हैं, शरीर का रोम-रोम रोमांचित है, मुख से गद्गद् स्वर में कीर्तन निकल रहा है—‘श्रीराम जय राम जय जय राम ।’

भाई शत्रुघ्न ने हनुमानजी से कहा—‘आपको गुरुदेव बुला रहे हैं ।’ हनुमानजी चुटकी बजाते हुए ही नीचे पहुंचे।

गुरुदेव ने हनुमानजी से पूछा—‘आप यह क्या कर रहे हैं ?’

हनुमानजी ने उत्तर दिया—‘प्रभु को जम्हाई आए तो चुटकी बजाने की सेवा मेरी है । मुझे अन्तपुर में जाने से रोक दिया गया । अब जम्हाई का क्या ठिकाना, कब आ जाए, इसलिए मैं चुटकी बजा रहा हूँ, जिससे मेरी सेवा में कोई कमी न रह जाए ।’

वशिष्ठजी ने कहा—‘तुम बराबर चुटकी बजा रहे हो, इसलिए श्रीराम को तुम्हारी सेवा स्वीकार करने के लिए जृम्भण मुद्रा (उबासी की मुद्रा) में रहना पड़ रहा है । अब कृपा करके इसे बंद कर दो।’

श्रीराम के रोग का निदान सुनकर सबकी सांस में सांस आई । हनुमानजी ने चुटकी बजाना बंद कर दिया तो प्रभु ने अपना मुख बंद कर लिया।

अब हनुमानजी हंसते हुए बोले—‘तो मैं यहीं प्रभु के सामने बैठूँ ? और सदैव सभी जगह जहां-जहां वे जाएं, उनके मुख को देखता हुआ साथ बना रहूँ, क्योंकि प्रभु को कब जम्हाई आएगी, इसका तो कोई निश्चित समय नहीं है।’

प्रभु श्रीराम ने कनखियों से जानकीजी को देखकर कहा, मानो कह रहे हों—‘और करो सेवा का विभाजन ! हनुमान को मेरी सेवा से वंचित करने का फल देख लिया।’

स्थिति समझकर वशिष्ठजी ने कहा—‘यह सब रहने दो, तुम जैसे पहले सेवा करते थे, वैसे ही करते रहो ।’

अब भला, गुरुदेव की व्यवस्था में कोई क्या कह सकता था । उनका आदेश तो सर्वोपरि है ।

यही कारण है कि श्रीराम-पंचायतन में हनुमानजी छठे सदस्य के रूप में अपने प्रभु श्रीराम के चरणों में निरन्तर उनके मुख की ओर टकटकी लगाए हाथ जोड़े बैठे रहते हैं ।

हनुमानजी की सेवा के अधीन होकर प्रभु श्रीराम ने उन्हें अपने पास बुला कर कहा—
कपि-सेवा बस भये कनौड़े, कह्यौ पवनसुत आउ ।
देबेको न कछू रिनियाँ हौं, धनिक तूँ पत्र लिखाउ ।। (विनय-पत्रिका पद १००।७)

‘भैया हनुमान ! तुम्हें मेरे पास देने को तो कुछ है नहीं; मैं तेरा ऋणी हूँ तथा तू मेरा धनी (साहूकार) है । बस इसी बात की तू मुझसे सनद लिखा ले ।’

मानस अमृत

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નદી કીનારા પર બેઠેલો એક સાધુ જોરજોરથી બરાડા પાડી રહ્યો હતો કે ” આપની ઇચ્છા મુજબનું ફળ પ્રાપ્ત કરી શકો એવી જડ્ડીબુટ્ટી મારી પાસે છે જેને જોઇતી હોય તે મારી પાસે આવો.” આસપાસથી પસાર થતા લોકો સાધુની ગાંડા જેવી વાત સાંભળીને હસતા હસતા ત્યાંથી જતા રહેતા.

એક યુવક ત્યાંથી પસાર થયો અને સાધુની વાત સાંભળીને જીજ્ઞાશાવશ એ સાધુ પાસે ગયો. એમણે સાધુને જઇને પુછ્યુ , ” મહારાજ, સાચે જ આપની પાસે એ જડીબુટ્ટી છે જેનાથી માણસ જે ઇચ્છે એ પ્રાપ્ત કરી શકે ? ” સાધુએ ગંભીર સ્વરે કહ્યુ , ” હા બેટા, મારી પાસે એ જડીબુટ્ટી છે જ પણ લોકોને મારા શબ્દો પર વિશ્વાસ નથી એટલે એ એમ જ જતા રહે છે. “

યુવાને કહ્યુ , ” સાધુ મહારાજ , મારે એ જડીબુટ્ટી જોઇએ છે. આપ મને એ આપી શકો ? “
સાધુએ કહ્યુ , ” બીલકુલ આપી શકુ હું આપવા માટે તો બેઠો છુ. પણ પહેલા તું મને એ કહે કે તારી ઇચ્છા શું છે ? તારે શું જોઇએ છે ? “
યુવકે કહ્યુ , ” મહારાજ , મારે ખુબ હીરા અને મોતી જોઇએ છે.”

સાધુએ યુવકને પોતાની નજીક બોલાવ્યો. થેલામાં હાથ નાંખીને મુઠીમાં કંઇક લઇને યુવાનની એક હથેળી પર એ બંધ મુઠી મુકી અને કહ્યુ , ” બેટા હું તને આ એક હીરો આપુ છું. આ હીરો ખુબ જ મુલ્યવાન છે. તું ઇચ્છે તો આ હીરાનો ઉપયોગ કરીને તું બીજા અનેક હીરાઓ કમાઇ શકીશ. આ હીરાને બરોબર કસીને તારી મુઠીમાં પકડી રાખજે અને ધ્યાન રાખજે એ પડી ન જાય. આ હીરાનું નામ છે ‘ સમય ‘ જો એકવખત તારા હાથમાંથી જરો રહ્યો તો તને ફરીથી એ નહી મળે. “

યુવક કંઇ વિચારે એ પહેલા જ સાધુએ યુવકના બીજા હાથની હથેળીમાં પોતાની બંધ મુઠી રાખીને કહ્યુ , ” આ દુનિયાનું સૌથી કીમતી મોતી છે. આ મોતીને સતત ધારણ કરી રાખજે. જ્યારે સમય રુપી હીરો કામ ન આપે તો આ મોતીની જરુર પડશે અને તું આ મોતી તારી પાસે રાખીશ તો તે થકી બીજા અનેક મોતી પણ તને પ્રાપ્ત થશે. આ મોતીનું નામ છે ‘ ધીરજ ‘ “

યુવાનનો ચહેરો ખીલી ઉઠ્યો કારણ કે એને ઇચ્છાપૂર્ણ કરનારી જડીબુટ્ટી મળી ગઇ હતી.

મિત્રો , જોયેલા સપનાઓને સાકાર કરવા માટે ‘સમય’ રુપી ‘હીરો’ અને ‘ધીરજ’ રુપી ‘મોતી’ની ખુબ જરુર છે. સમયને બરબાદ કર્યા વગર તેનો સમજણપૂર્વક પુરેપુરો ઉપયોગ કરવામાં આવે અને સમયના યોગ્ય ઉપયોગ છતા પરિણામ ન મળે તો ધીરજ રાખીને પ્રયાસો ચાલુ
રાખવામાં આવે તો લક્ષ સુધી પહોંચવું અધરુ નથી.
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♦️♦️♦️ रात्रि कहांनी ♦️♦️♦️

👉 दुकान 🏵️ 🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅 🌹🙏एक दिन मैं सड़क से जा रहा था, रास्ते में एक जगह बोर्ड लगा था, ईश्वरीय किराने की दुकान…

🌹🙏मेरी जिज्ञासा बढ़ गई क्यों ना इस दुकान पर जाकर देखूं इसमें बिकता क्या है?

🌹🙏जैसे ही यह ख्याल आया दरवाजा अपने आप खुल गया, जरा सी जिज्ञासा रखते हैं तो द्वार अपने आप खुल जाते हैं, खोलने नहीं पड़ते, मैंने खुद को दुकान के अंदर पाया…

🌹🙏मैंने दुकान के अंदर देखा जगह-जगह देवदूत खड़े थे, एक देवदूत ने मुझे टोकरी देते हुए कहा, मेरे बच्चे ध्यान से खरीदारी करना, यहां सब कुछ है जो एक इंसान को चाहिए है…

🌹🙏देवदूत ने कहा एक बार में टोकरी भर कर ना ले जा सको, तो दोबारा आ जाना फिर दोबारा टोकरी भर लेना…

🌹🙏अब मैंने सारी चीजें देखी, सबसे पहले “धीरज” खरीदा, फिर “प्रेम”, फिर “समझ”, फिर एक दो डिब्बे “विवेक” के भी ले लिए…

🌹🙏आगे जाकर “विश्वास” के दो तीन डिब्बे उठा लिए, मेरी टोकरी भरती गई…

🌹🙏आगे गया “पवित्रता” मिली सोचा इसको कैसे छोड़ सकता हूं, फिर “शक्ति” का बोर्ड आया शक्ति भी ले ली..

🌹🙏“हिम्मत” भी ले ली सोचा हिम्मत के बिना तो जीवन में काम ही नहीं चलता…

🌹🙏*थोड़ा और आगे “सहनशीलता” ली फिर “मुक्ति” का डिब्बा भी ले लिया…

🌹🙏*मैंने वह सब चीजें खरीद ली जो मेरे प्रभुजी मालिक को पसंद है, फिर एक नजर “प्रार्थना” पर पड़ी मैंने उसका भी एक डिब्बा उठा लिया..

🌹🙏वह इसलिए कि सब गुण होते हुए भी अगर मुझसे कभी कोई भूल हो जाए तो मैं प्रभु से प्रार्थना कर लूंगा कि मुझे भगवान माफ कर देना…

🌹🙏आनंदित होते हुए मैंने बास्केट को भर लिया, फिर मैं काउंटर पर गया और देवदूत से पूछा, सर.. मुझे इन सब समान का कितना बिल चुकाना होगा…

🌹🙏देवदूत बोला मेरे बच्चे यहां बिल चुकाने का ढंग भी ईश्ववरीय है, अब तुम जहां भी जाना इन चीजों को भरपूर बांटना और लुटाना, जो चीज जितनी ज्यादा तेजी से लूटाओगे, उतना तेजी से उसका बिल चुकता होता जाएगा और इन चीजों का बिल इसी तरह चुकाया किया जाता है…

🌹🙏कोई- कोई विरला इस दुकान पर प्रवेश करता है, जो प्रवेश कर लेता है वह माला-माल हो जाता है, वह इन गुणों को खूब भोगता भी है और लुटाता भी है…

🌹🙏प्रभू की यह दुकान का नाम है “सत्संग की दुकान”
🌹🙏सब गुणों के खजाने हमें ईश्वर से मिले हुए हैं, फिर कभी खाली हो भी जाए तो फिर सत्संग में आ कर बास्केट भर लेना…
🌹🙏हे प्रभू ! इस दुकान से एक चीज भी ग्रहण कर सकूं ऐसी कृपा करना।

🌹🌹🌹🙏🌹🌹🌹

सदैव प्रसन्न रहिये।
जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।

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Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

. 💐अपने ❤️ पराये** 💐

फ़ोन की घंटी तो सुनी मगर आलस की वजह से रजाई में ही लेटी रही। उसके पति राहुल को आखिर उठना ही पड़ा। दूसरे कमरे में पड़े फ़ोन की घंटी बजती ही जा रही थी ।

इतनी सुबह कौन हो सकता है जो सोने भी नहीं देता, इसी चिड़चिड़ाहट में उसने फ़ोन उठाया। “हेल्लो, कौन” तभी दूसरी तरफ से आवाज सुन सारी नींद खुल गयी।

“नमस्ते पापा।” “बेटा, बहुत दिनों से तुम्हे मिले नहीं सो हम दोनों ११ बजे की गाड़ी से आ रहे है। दोपहर का खाना साथ में खा कर हम ४ बजे की गाड़ी वापिस लौट जायेंगे। ठीक है।” “हाँ पापा, मैं स्टेशन पर आपको लेने आ जाऊंगा।”

फ़ोन रख कर वापिस कमरे में आ कर उसने रचना को बताया कि मम्मी पापा ११ बजे की गाड़ी से आ रहे है और दोपहर का खाना हमारे साथ ही खायेंगे ।

रजाई में घुसी “रचना” का पारा एक दम सातवें आसमान पर चढ़ गया। “कोई इतवार को भी सोने नहीं देता, अब सबके के लिए खाना बनाओ। पूरी नौकरानी बना दिया है।” गुस्से से उठी और बाथरूम में घुस गयी। राहुल हक्का बक्का हो उसे देखता ही रह गया।

जब वो बाहर आयी तो राहुल ने पूछा “क्या बनाओगी।” गुस्से से भरी रचना ने तुनक के जवाब दिया “अपने को तल के खिला दूँगी।” राहुल चुप रहा और मुस्कराता हुआ तैयार होने में लग गया, स्टेशन जो जाना था।

थोड़ी देर बाद ग़ुस्सैल रचना को बोल कर कि वो मम्मी पापा को लेने स्टेशन जा रहा है वो घर से निकल गया।

रचना गुस्से में बड़बड़ाते हुए खाना बना रही थी।

दाल सब्जी में नमक, मसाले ठीक है या नहीं की परवाह किए बिना बस करछी चलाये जा रही थी। कच्चा पक्का खाना बना बेमन से परांठे तलने लगी तो कोई कच्चा तो कोई जला हुआ। आखिर उसने सब कुछ ख़तम किया ।

फुरसत की सांस लेते हुए सोफे पर बैठ मैगज़ीन के पन्ने पलटने लगी। उसके मन में तो बस यह चल रहा था कि सारा संडे खराब कर दिया। बस अब तो आएँ , खाएँ और वापिस जाएँ ।

थोड़ी देर में घर की घंटी बजी तो बड़े बेमन से उठी और दरवाजा खोला। दरवाजा खुलते ही उसकी आँखें हैरानी से फटी की फटी रह गयी और मुँह से एक शब्द भी नहीं निकल सका।

सामने राहुल के नहीं उसके अपने मम्मी पापा खड़े थे जिन्हें राहुल स्टेशन से लाया था।

मम्मी ने आगे बढ़ कर उसे झिंझोड़ा “अरे, क्या हुआ। इतनी हैरान परेशान क्यों लग रही है।

क्या राहुल ने बताया नहीं कि हम आ रहे हैं।” जैसे मानो रचना के नींद टूटी हो “नहीं, मम्मी इन्होंने तो बताया था पर…. रर… रर। चलो आप अंदर तो आओ।” राहुल तो अपनी मुस्कुराहट रोक नहीं पा रहा था।

कुछ देर इधर उधर की बातें करने में बीत गया। थोड़ी देर बाद पापा ने कहाँ “रचना, गप्पे ही मारती रहोगी या कुछ खिलाओगी भी।” यह सुन रचना को मानो साँप सूँघ गया हो। क्या करती, बेचारी को अपने हाथों ही से बनाए अध पक्के और जले हुए खाने को परोसना पड़ा। मम्मी-पापा खाना तो खा रहे थे मगर उनकी आँखों में एक प्रश्न था जिसका वो जवाब ढूँढ रहे थे। आखिर इतना स्वादिष्ट खाना बनाने वाली उनकी बेटी आज उन्हें कैसा खाना खिला रही है।

रचना बस मुँह नीचे किए बैठी खाना खा रही थी। मम्मी-पापा से आँख मिलाने की उसकी हिम्मत नहीं हो पा रही थी। खाना ख़तम कर सब ड्राइंग रूम में आ बैठे। राहुल कुछ काम है अभी आता हुँ कह कर थोड़ी देर के लिए बाहर निकल गया।

राहुल के जाते ही मम्मी, जो बहुत देर से चुप बैठी थी बोल पड़ी “क्या राहुल ने बताया नहीं था की हम आ रहे हैं।”

तो अचानक रचना के मुँह से निकल गया “उसने सिर्फ यह कहाँ था कि मम्मी पापा लंच पर आ रहे हैं, मैं समझी उसके मम्मी पापा आ रहे हैं।”

फिर क्या था रचना की मम्मी को समझते देर नहीं लगी कि ये मामला है।

बहुत दुखी मन से उन्होंने रचना को समझाया “बेटी, हम हों या उसके मम्मी-पापा तुम्हे तो बराबर का सम्मान करना चाहिए। मम्मी-पापा क्या, कोई भी घर आए तो खुशी खुशी अपनी हैसियत के मुताबिक उसकी सेवा करो। बेटी, जितना किसी को सम्मान दोगी उतना तुम्हे ही प्यार और इज़्ज़त मिलेगी।

जैसे राहुल हमारी इज़्ज़त करता है उसी तरह तुम्हे भी उसके माता-पिता और सम्बन्धियों की इज़्ज़त करनी चाहिए। रिश्ता कोई भी हो, हमारा या उसका, कभी फर्क नहीं करना।”

रचना की आँखों में ऑंसू आ गए और अपने को शर्मिंदा महसूस कर उसने मम्मी को वचन दिया कि आज के बाद फिर ऐसा कभी नहीं होगा ।

निश्चित ही हमे विचार करना होगा क्या यह ठीक है क्या यह घटना 10 में से 8 घरों में होती है ?..

हम ही अपने बड़े-बुजुर्गों माता-पिता का सम्मान नही करेंगे तो हमारा सम्मान कौन करेगा हम और आप भी तो एक दिन बूढ़े होंगे तब अगर यही काम हमारे बच्चे हमारे साथ करेंगे तो क्या हमें अच्छा लगेगा ?..

नही न ..!

तो आओ हम सब मिलकर समाज,राष्ट्र,देश ही नही पूरी दुनियां को एक नई दिशा दें जो कि हमारी संस्कृति है ।

अपने दोस्तों और रिश्तेदार तक जरूर शेयर करना!

🙏🏻🌹जय श्री जिनेन्द्र🌹🙏🏻
❤️पवन जैन❤️