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Mother Nature…Never Fails…❤️

पीत पीत हुए पात
सिकुड़ी-सिकुड़ी-सी रात
ठिठुरन का अन्त आ गया
देखो बसन्त आ गया।

मादक सुगन्ध से भरी
पन्थ पन्थ आम्र मंजरी
कोयलिया कूक कूक कर
इतराती फिरै बावरी
जाती है जहाँ दृष्टि
मनहारी सकल स्रष्टि
लास्य दिग्दिगन्त छा गया
देखो बसन्त आ गया।

शीशम के तारुण्य का
आलिंगन करती लता
रस का अनुरागी भ्रमर
कलियों का पूछता पता
सिमटी-सी खड़ी भला
सकुचायी शकुन्तला
मानो दुष्यन्त आ गया
देखो बसन्त आ गया।

पर्वत का ऊँचा शिखर
ओढ़े है किंशुकी सुमन
सरसों के फूलों भरा
बासन्ती मादक उपवन
करने कामाग्नि दहन
केशरिया वस्त्र पहन
मानों कोई सन्त आ गया
देखो बसन्त आ गया।।


सभी मित्रों को बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामना…🙏❤️🙏

वीणाधरे विपुलमङ्गलदानशीले भक्तार्तिनाशिनि विरिञ्चिहरीशवन्द्ये। कीर्तिप्रदेऽखिलमनोरथदे महार्हे विद्याप्रदायिनि सरस्वतिनौमि नित्यम्।।

भावार्थ-
हे वीणा धारण करने वाली, अपार मंगल देने वाली, भक्तों के दुःख छुड़ाने वाली, ब्रह्मा, विष्णु और शिव से वन्दित होने वाली कीर्ति तथा मनोरथ देने वाली, पूज्यवरा और विद्या देने वाली सरस्वती..! आपको नित्य प्रणाम करता हूँ।

🙏जय श्री राम🙏

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वसंत पंचमी


मत चूको चौहान

वसन्त पंचमी का शौर्य

“चार बांस, चौबीस गज, अंगुल अष्ठ प्रमाण!
ता उपर सुल्तान है, चूको मत चौहान!!”

वसंत पंचमी का दिन हमें “हिन्दशिरोमणि पृथ्वीराज चौहान” की भी याद दिलाता है। उन्होंने विदेशी इस्लामिक आक्रमणकारी मोहम्मद गौरी को 16 बार पराजित किया और उदारता दिखाते हुए हर बार जीवित छोड़ दिया, पर जब सत्रहवीं बार वे पराजित हुए, तो मोहम्मद गौरी ने उन्हें नहीं छोड़ा। वह उन्हें अपने साथ बंदी बनाकर काबुल अफगानिस्तान ले गया और वहाँ उनकी आंखें फोड़ दीं।

पृथ्वीराज का राजकवि चन्द बरदाई पृथ्वीराज से मिलने के लिए काबुल पहुंचा। वहां पर कैद खाने में पृथ्वीराज की दयनीय हालत देखकर चंद्रवरदाई के हृदय को गहरा आघात लगा और उसने गौरी से बदला लेने की योजना बनाई।

चंद्रवरदाई ने गौरी को बताया कि हमारे राजा एक प्रतापी सम्राट हैं और इन्हें शब्दभेदी बाण (आवाज़ की दिशा में लक्ष्य को भेदनाद्ध चलाने में पारंगत हैं, यदि आप चाहें तो इनके शब्दभेदी बाण से लोहे के सात तवे बेधने का प्रदर्शन आप स्वयं भी देख सकते हैं।

इस पर गौरी तैयार हो गया और उसके राज्य में सभी प्रमुख ओहदेदारों को इस कार्यक्रम को देखने हेतु आमंत्रित किया।

पृथ्वीराज और चंद्रवरदाई ने पहले ही इस पूरे कार्यक्रम की गुप्त मंत्रणा कर ली थी कि उन्हें क्या करना है। निश्चित तिथि को दरबार लगा और गौरी एक ऊंचे स्थान पर अपने मंत्रियों के साथ बैठ गया।

चंद्रवरदाई के निर्देशानुसार लोहे के सात बड़े-बड़े तवे निश्चित दिशा और दूरी पर लगवाए गए। चूँकि पृथ्वीराज की आँखे निकाल दी गई थी और वे अंधे थे, अतः उनको कैद एवं बेड़ियों से आज़ाद कर बैठने के निश्चित स्थान पर लाया गया और उनके हाथों में धनुष बाण थमाया गया।

इसके बाद चंद्रवरदाई ने पृथ्वीराज के वीर गाथाओं का गुणगान करते हुए बिरूदावली गाई तथा गौरी के बैठने के स्थान को इस प्रकार चिन्हित कर पृथ्वीराज को अवगत करवाया।

‘‘चार बांस, चैबीस गज, अंगुल अष्ठ प्रमाण।
ता ऊपर सुल्तान है, चूको मत चौहान।।’’

अर्थात् चार बांस, चैबीस गज और आठ अंगुल जितनी दूरी के ऊपर सुल्तान बैठा है, इसलिए चौहान चूकना नहीं, अपने लक्ष्य को हासिल करो।

इस संदेश से पृथ्वीराज को गौरी की वास्तविक स्थिति का
आंकलन हो गया। तब चंद्रवरदाई ने गौरी से कहा कि पृथ्वीराज आपके बंदी हैं, इसलिए आप इन्हें आदेश दें, तब ही यह आपकी आज्ञा प्राप्त कर अपने शब्द भेदी बाण का प्रदर्शन करेंगे।

इस पर ज्यों ही गौरी ने पृथ्वीराज को प्रदर्शन की आज्ञा का आदेश दिया, पृथ्वीराज को गौरी की दिशा मालूम हो गई और उन्होंने तुरन्त बिना एक पल की भी देरी किये अपने एक ही बाण से गौरी को मार गिराया।

गौरी उपर्युक्त कथित ऊंचाई से नीचे गिरा और उसके प्राण पंखेरू उड़ गए। चारों और भगदड़ और हा-हाकार मच गया, इस बीच पृथ्वीराज और चंद्रवरदाई ने पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार एक-दूसरे को कटार मार कर अपने प्राण त्याग दिये।

“आत्मबलिदान की यह घटना भी 1192 ई. वसंत पंचमी वाले दिन ही हुई थी।”

ये गौरवगाथा अपने बच्चों को अवश्य सुनाए

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. ❤️❤️निःस्वार्थ प्रेम❤️❤️
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एक डलिया में संतरे बेचती बूढ़ी महिला से एक युवक प्रायः संतरे खरीदता ।

वो युवक प्रायः, खरीदे संतरों से एक संतरा निकाल उसकी एक फाँक चखता और कहता – “ये कम मीठा लग रहा है, देखो !”

बूढ़ी महिला संतरे को चखती और प्रतिवाद करती – “ना बाबू मीठा तो है!”

वो उस संतरे को वही छोड़,बाकी संतरे ले गर्दन झटकते आगे बढ़ जाता।

युवक अपनी पत्नी के साथ होता था। एक दिन पत्नी ने पूछा “ये संतरे हमेशा मीठे ही होते हैं, पर आप ऐसे हमेशा क्यों करते हो ?

युवक ने पत्नी को एक मधुर मुस्कान के साथ बताया – “वो बूढ़ी माँ संतरे बहुत मीठे बेचती है, पर स्वयं कभी नहीं खाती, इस तरह मैं उसे संतरा खिला देता हूँ ।

एक दिन, बूढ़ी माँ से, उसके पड़ोस में सब्जी बेचने वाली महिला ने प्रश्न किया- ” ये शक्की लड़का संतरे लेते समय इतनी चख चख करता है, पर संतरे तौलते हुए मैं तेरे पलड़े को देखती हूँ, तुम हमेशा उसकी चख चख में, उसे ज्यादा संतरे तौल देती हो ।

बूढ़ी माँ ने अपने साथ सब्जी बेचने वाली से कहा – “उसकी चखकर संतरे के लिए नहीं, मुझे संतरा खिलाने को लेकर होती है, वो समझता है मैं उसकी बात समझती नहीं,लेकिन मैं बस उसका निःस्वार्थ प्रेम देखती हूँ, पलड़ों पर संतरे तो अपने आप बढ़ जाते l
……………

मेरी आर्थिक स्थिति से अधिक मेरी थाली मे तूने परोसा है।
तू लाख मुश्किलें भी दे दे प्रभु, मुझे तुझपे भरोसा है।।

एक बात तो पक्की है कि छीन कर खानेवालों का कभी पेट नहीं भरता और बाँट कर खाने वाला कभी भूखा नही मरता!!
बहुत लम्बा सफर तय करके ही यहाँ तक पहुँचे हैं। अतः अपने मानव जीवन को सार्थक बनाएं

आओ हम मिलकर णमोकार महामंत्र गाएं
णमो अरिहंताणं
णमो सिद्धाणं
णमो आइरियाणं
णमो उव्वझायाणं
णमो लोए सव्व साहू साहूणं
🌹🙏🏻जय श्री जिनेन्द्र🙏🏻🌹
🌹पवन जैन🌹

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. 🌹स्वाभिमान🌹
94 साल के एक बूढ़े व्यक्ति को मकान मालिक ने किराया न दे पाने पर किराए के मकान से निकाल दिया। बूढ़े के पास एक पुराना बिस्तर, कुछ एल्युमीनियम के बर्तन, एक प्लास्टिक की बाल्टी और एक मग आदि के अलावा शायद ही कोई सामान था। बूढ़े ने मालिक से किराया देने के लिए कुछ समय देने का अनुरोध किया। पड़ोसियों को भी बूढ़े आदमी पर दया आयी, और उन्होंने मकान मालिक को किराए का भुगतान करने के लिए कुछ समय देने के लिए मना लिया। मकान मालिक ने अनिच्छा से ही उसे किराया देने के लिए कुछ समय दिया।

बूढ़ा अपना सामान अंदर ले गया।

रास्ते से गुजर रहे एक पत्रकार ने रुक कर यह सारा नजारा देखा। उसने सोचा कि यह मामला उसके समाचार पत्र में प्रकाशित करने के लिए उपयोगी होगा। उसने एक शीर्षक भी सोच लिया, ”क्रूर मकान मालिक, बूढ़े को पैसे के लिए किराए के घर से बाहर निकाल देता है।” फिर उसने किराएदार बूढ़े की और किराए के घर की कुछ तस्वीरें भी ले लीं।

पत्रकार ने जाकर अपने प्रेस मालिक को इस घटना के बारे में बताया। प्रेस के मालिक ने तस्वीरों को देखा और हैरान रह गए। उन्होंने पत्रकार से पूछा, कि क्या वह उस बूढ़े आदमी को जानता है? पत्रकार ने कहा, नहीं।

अगले दिन अखबार के पहले पन्ने पर बड़ी खबर छपी। शीर्षक था, ”भारत के पूर्व प्रधान मंत्री गुलजारीलाल नंदा एक दयनीय जीवन जी रहे हैं”। खबर में आगे लिखा था कि कैसे पूर्व प्रधान मंत्री किराया नहीं दे पा रहे थे और कैसे उन्हें घर से बाहर निकाल दिया गया था। टिप्पणी की थी के आजकल फ्रेशर भी खूब पैसा कमा लेते हैं। जबकि एक व्यक्ति जो दो बार पूर्व प्रधान मंत्री रह चुका है और लंबे समय तक केंद्रीय मंत्री भी रहा है, उसके पास अपना ख़ुद का घर भी नहीं।

दरअसल गुलजारीलाल नंदा को वह स्वतंत्रता सेनानी होने के कारण रु. 500/- प्रति माह भत्ता मिलता था। लेकिन उन्होंने यह कहते हुए इस पैसे को अस्वीकार किया था, कि उन्होंने स्वतंत्रता सेनानियों के भत्ते के लिए लड़ाई नहीं लड़ी। बाद में दोस्तों ने उसे यह स्वीकार करने के लिए विवश कर दिया यह कहते हुए कि उनके पास उत्पन्न का अन्य कोई स्रोत नहीं है। इसी पैसों से वह अपना किराया देकर गुजारा करते थे।

अगले दिन वर्तमान प्रधान मंत्री ने मंत्रियों और अधिकारियों को वाहनों के बेड़े के साथ उनके घर भेजा। इतने वीआइपी वाहनों के बेड़े को देखकर मकान मालिक दंग रह गया। तब जाकर उसे पता चला कि उसका किराएदार, श्री. गुलजारीलाल नंदा भारत के पूर्व प्रधान मंत्री थे। मकान मालिक अपने दुर्व्यवहार के लिए तुरंत गुलजारीलाल नंदा के चरणों पर झुक गया।

अधिकारियों और वीआईपीयोंने गुलजारीलाल नंदा से सरकारी आवास और अन्य सुविधाएं को स्वीकार करने का अनुरोध किया। श्री. गुलजारीलाल नंदा ने इस बुढ़ापे में ऐसी सुविधाओं का क्या काम, यह कह कर उनके प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया। अंतिम श्वास तक वे एक सामान्य नागरिक की तरह, एक सच्चे गांधीवादी बन कर ही रहते थे। 1997 में सरकार ने उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया।

जरा उनके जीवन की तुलना वर्तमानकाल के राजनेताओं से करें।
(देहावसान की 23वीं वर्षगांठ{आज है} पर आभार)
अपने दोस्तों और रिश्तेदार तक जरूर शेयर करना!
🌹🙏🏻जय जिनेन्द्र🙏🏻🌹
🌹पवन जैन🌹

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વસંત પંચમી


વૈભવશાળી વસંત

આપણા ભૌગોલિક વાતાવરણ અને સમયને અનુલક્ષીને જુદી જુદી ઋતુઆેનું વર્ગીકરણ કરવામાં આવ્યું છે.મુખ્યત્વે આપણે ત્યાં ત્રણ ઋતુઆે જોવા મળે છે. શિયાળો, ઊનાળો અને ચોમાસું. અને અેની પેટાઋતુમાં વસંતઋતુ આવે છે જે શિયાળા અને ઊનાળાના સંધિકાળમાં આવે છે.
વસંતના આગમનથી આખા વરસ દરમિયાન વૃક્ષોની ડાળીઓ પર શુષ્ક થઇ ગયેલાં પાંદડાંની જગ્યાએ નવી કૂંપળો ફૂટે છે.આખી વનરાજી જાણે હરિયાળી બની નવોઢા સમ શોભી ઊઠે છે.ખાખરા,પલાશ અને કેસૂડાંના વૃક્ષો નવપલ્લવિત થઇ આંખને ગમે અેવું મનમોહક રૂપ ધારણ કરે છે.શાલના વૃક્ષોની મંજરીની સુવાસ અેક અજબનું આકર્ષણ ઉત્પન્ન કરે છે.આંબા પર મોર આવવાની શરુઆત થઇ જાય છે.આંબાડાળે ઝુલતી કોયલનો મીઠો મધુરો ટહુકો વાતાવરણને સંગીતમય બનાવે છે.આવા આહ્લાદક વાતાવરણમાં પ્રાકૃતિક સૌંદર્યને માણવું હોય તો વન કે જંગલમાં પર્યટન ગોઠવવું જોઈએ. જ્યાં તાજી હવા અને તડકાંછાંયાવાળું દિવ્ય વાતાવરણ મળી રહે છે મન પ્રફુલ્લિત થાય છે.
વસંતના આગમનથી ખીલતી પ્રકૃતિને જોઈ મનુષ્યમાં પણ નવો ઉમંગ અને ઉત્સાહ જળવાઈ રહે છે.કારણ મનુષ્યના વિકાસ માટે આજુબાજુનું પ્રાકૃતિક વાતાવરણ પણ ભાગ ભજવે છે.વસંતઅે પ્રણયી હૈયાઓને પોતાના પ્રણયનાં વર્ણનની વાત કરતી ઋતુ છે.

વસંતઋતુ વિશે શ્રીમદ્ભગવદ્ગીતાના દસમા અધ્યાયના ૩૫ માં શ્લોકમાં સ્વયં ભગવાન શ્રીકૃષ્ણે કીધું છે કે,
मासानां मार्गशीर्षोहमृतूनां कुसुमाकर:।।” અર્થાત્, ‘માસોમાં માગશર માસ અને ઋતુઆેમાં વસંત હું છું’.
સંસ્કૃત કવિ કાલીદાસે પણ પ્રકૃતિ વર્ણનમાં વસંતનું ઉદાત્ત વર્ણન કર્યું છે.
તો વળી કવિ ઉમાશંકર જોશી લખે છે કે,
‘કોકિલ પંચમ બોલ બોલો કે પંચમી આવી વસંતની, દખ્ખણનાં વાયરાના આ શાં અડપલા! ઉઘડ્યાં લતાઆેનાં યૌવન સપના, લાગ્યો જ્યાં અેક વાયુ ઝોલો કે પંચમી આવી વસંતની… ‘

તો વસંતને વધાવતાં
ગની દહીંવાલા લખે કે,
‘જોવા મળ્યું છે વન મહીં કાયમ વસંતમાં, પથરાઈ ગઈ છે ફૂલની જાજમ વસંતમાં…

આમ વસંતનો વૈભવ કવિઆે,લેખકો, સાહિત્યકારોની કલમમાં જોવા મળે છે.સાહિત્યમાં ભરપુર માત્રામાં વર્ણન પ્રાપ્ત થાય છે. અેટલે તો વસંતને ઋતુઆેનો રાજા ‘ઋતુરાજ’ કહેવાય છે.
આવો આપણે પણ વસંતના વધામણાંને આવકારીઅે અને પ્રકૃતિનું જતન કરીઅે.

સંજય પ્રજાપતિ સંતૃપ્ત,મુન્દ્રા કચ્છ.

Posted in संस्कृत साहित्य

પાસવૉર્ડ યાદ રાખો સહેલાઈથી


कटपयादि સંખ્યા

પાસવર્ડ કે ATM પિન યાદ ના રહેવાના કારણે આપણે ઘણી વાર તેને કોઈક જગ્યાએ લખી રાખતા હોઈએ છીએ. જો તે લખેલું કોઈના હાથમાં આવી જાય તો પ્રાઈવસી કે રૂપિયા ની સુરક્ષા સંબંધિત પ્રશ્નો ઉદભવતા હોય છે.

कटपयादि સંખ્યાથી પાસવર્ડ કે પિન સહેલાઈથી યાદ રાખી શકાય છે

क ट प य શબ્દોના રૂપમાં સંખ્યાને યાદ રાખવાનું એ પ્રાચીન ભારતીય પદ્ધતી છે

પ્રાચીન સમયમાં ભારતમાં વૈજ્ઞાનિક/ ટેકનિકલ/ ભુગોળીય ગ્રંથ પદ્ય રૂપમાં લખાતા હતા તેથી સંખ્યાઓ શબ્દના રૂપમાં લખવા કે યાદ રાખવા कटपयादि સંખ્યાનો ઉપયોગ કરતા હતા

कटपयादि સંખ્યાનો ઉપયોગ શંકરનારાયન કૃત “લઘુ ભાસ્કર્ય” અને શંકરવર્મન કૃત “સદ્રત્નમાલા” માં મળી આવે છે

नज्ञावचश्च शून्यानि संख्या: कटपयादय:।
मिश्रे तूपान्त्यहल् संख्या न च चिन्त्यो हलस्वर: ॥

अर्थ:

न, ञ तथा अ શૂન્યનું નિરૂપણ કરે છે (સ્વરોનું માન શૂન્ય છે)

બાકીના નવ અંક क, ट, प અને य થી શરૂ થનારા વ્યંજન વર્ણો દ્વારા નિરૂપિત થાય છે.

સંયુક્ત વ્યંજનોમાં અનુક્રમે આવતો વ્યંજન જ લેવામાં આવે છે અને સ્વર વિનાનું વ્યંજન છોડી દેવામાં આવે છે

कटपयादि શબ્દોથી સંખ્યાનું નિરૂપણ કરવા માટેની પદ્ધતી

૧ – क,ट,प,य
૨ – ख,ठ,फ,र
૩ – ग,ड,ब,ल
૪ – घ,ढ,भ,व
૫ – ङ,ण,म,श
૬ – च,त,ष
૭ – छ,थ,स
૮ – ज,द,ह
૯ – झ,ध
૦-ञ,न,अ,आ,इ,ई,उ,ऊ,ऋ,ॠ,लृ,ए,ऐ, ओ,औ

સ્વર શબ્દની શરૂઆત મા હોય તો ગ્રાહ્ય છે નહિતર અગ્રાહ્ય છે

ઉદાહરણ:-

એટીએમ નો પિન ધારોકે ૦૨૭૮ છે
ઘણીવાર મૂંઝવણ થતી હોય છે કે ૦૨૭૮ કે ૦૭૨૮

એટીએમ પિન યાદ રાખવા માટે કોઈ પણ સંસ્કૃત શબ્દને પાસવર્ડ તરીકે નક્કી કરી લો

ઉદાહરણ તરીકે,

इभस्तुत्यः = 0461

गणपतिः = 3516

गजेशानः = 3850

नरसिंहः = 0278

जनार्दनः = 8080

सुध्युपास्यः = 7111

शकुन्तला = 5163

सीतारामः = 7625

આ રીતે સહેલાઈથી સુરક્ષિત રીતે પાસવર્ડ સેટ કરી શકાય છે

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वसंत पंचमी


बसन्त पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं तथा आज के दिन हिन्दू धर्म रक्षा की रक्षा के लिए बलिदान हुए वीर हकीकतराय को भी शत शत नमन। भारत वह वीरभूमि है, जहाँ हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए बलिदान देने वालों में छोटे - 2 बच्चे भी पीछे नहीं रहे। 1719 में स्यालकोट (वर्त्तमान पाकिस्तान) के निकट एक ग्राम में श्री भागमल खत्री के घर जन्मा हकीकतराय ऐसा ही एक धर्मवीर था। हकीकतराय के माता-पिता धर्मप्रेमी थे। अतः बालपन से ही उसकी रुचि अपने पवित्र धर्म के प्रति जाग्रत हो गयी। उसने छोटी अवस्था में ही अच्छी संस्कृत सीख ली। उन दिनों भारत में मुस्लिम शासन था। अतः अरबी-फारसी भाषा जानने वालों को महत्त्व मिलता था। इसी से हकीकत के पिता ने 10 वर्ष की अवस्था में फारसी पढ़ने के लिए उसे एक मदरसे में भेज दिया। बुद्धिमान हकीकत वहाँ भी सबसे आगे रहता था। इससे अन्य मुस्लिम छात्र उससे जलने लगे। वे प्रायः उसे नीचा दिखाने का प्रयास करते थे; पर हकीकत सदा अध्ययन में ही लगा रहता था। एक बार मौलवी को किसी काम से दूसरे गाँव जाना था। उन्होंने बच्चों को पहाड़े याद करने को कहा और स्वयं चले गये। उनके जाते ही सब छात्र खेलने लगे; पर हकीकत एक ओर बैठकर पहाड़े याद करता रहा। यह देखकर मुस्लिम छात्र उसे परेशान करने लगे। इसके बाद भी जब हकीकत विचलित नहीं हुआ, तो एक छात्र ने उसकी पुस्तक छीन ली। यह देखकर हकीकत बोला - तुम्हें भवानी माँ की कसम है, मेरी पुस्तक लौटा दो। इस पर वह मुस्लिम छात्र बोला - तेरी भवानी माँ की ऐसी की तैसी। हकीकत ने कहा - खबरदार, जो हमारी देवी के प्रति ऐसे शब्द बोले। यदि मैं तुम्हारे पैगम्बर की बेटी फातिमा बी के लिए ऐसा कहूँ, तो तुम्हें कैसा लगेगा ? लेकिन वह तो लड़ने पर उतारू था। अतः हकीकत उसकी छाती पर चढ़ बैठा और मुक्कों से उसके चेहरे का नक्शा बदल दिया। उसका रौद्र रूप देखकर बाकी छात्र डर कर चुपचाप बैठ गये। थोड़ी देर में मौलवी लौट आये। मुस्लिम छात्रों ने नमक-मिर्च लगाकर सारी घटना उन्हें बतायी। इस पर मौलवी ने हकीकत की पिटाई की और उसे सजा के लिए काजी के पास ले गये। काजी ने इस सारे विवाद को लाहौर के बड़े इमाम के पास भेज दिया। उसने सारी बात सुनकर निर्णय दिया कि हकीकत ने इस्लाम का अपमान किया है। अतः उसे मृत्युदण्ड मिलेगा; पर यदि वह मुसलमान बन जाये, तो उसे क्षमा किया जा सकता है। बालवीर हकीकत ने सिर ऊँचा कर कहा - मैंने हिन्दू धर्म में जन्म लिया है और हिन्दू धर्म में ही मरूँगा। मौलवियों ने उसे और भी कई तरह के प्रलोभन दिये। हकीकत के माता-पिता और पत्नी भी उसे धर्म बदलने को कहने लगे, जिससे वह उनकी आँखों के सामने तो रहे; पर हकीकत ने स्पष्ट कह दिया कि व्यक्ति का शरीर मरता है, आत्मा नहीं। अतः मृत्यु के भय से मैं अपने पवित्र हिन्दू धर्म का त्याग नहीं करूँगा। अन्ततः 1734 में वसन्त पंचमी के दिन उस धर्मप्रेमी बालक का सिर काट दिया गया। जब जल्लाद सिर काटने के लिए बढ़ा, तो हकीकतराय के तेजस्वी मुखमण्डल को देखकर उसके हाथ से तलवार छूट गयी। इस पर हकीकत ने उसे अपना कर्त्तव्य पूरा करने को कहा। कहते हैं कि सिर कटने के बाद धरती पर न गिर कर आकाश मार्ग से सीधा स्वर्ग में चला गया। उसी स्मृति में वसन्त पंचमी को आज भी पतंगें उड़ाई जाती हैं।

बलिदानी_हकीकतराय

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वसंत पंचमी


बसंतोत्सव की सभी को हार्दिक शुभकामनाएं,

मां सरस्वती को आठ प्रमुख नामों से भी जाना जाता है, जो इस प्रकार हैं,
लक्ष्मी, मेधा, धरा, पुष्टि, गौरी, तुष्टि, प्रभा, धृति,
और उनका मूल मंत्र है:-
” ऐं “

मां शारदे मां शारदे,
मां शारदे मां शारदे,

छा रहा सब जग अंधेरा,
मां तमस से तार दे,
शारदे मां शारदे —————–।

कर उज़ाला भर उज़ाला,
मां तेरा उपकार दे,
शारदे मां शारदे ——————।

तू अचल सांची मां लक्ष्मी,
संपदा उपहार दे,
शारदे मां शारदे ——————।

मां तू ही सब जग की मेधा,
ज्ञान का उज़ियार दे,
शारदे मां शारदे —————–।

तू धरा तेरी गोद में मां,
अब मुझे भी प्यार दे,
शारदे मां शारदे —————-।

मां तू पुष्टि पुष्ट कर मम,
चेतना को धार दे,
शारदे मां शारदे —————–।

मां तू गौरी, सब कपट,
मम धारणा को क्षार दे,
शारदे मां शारदे —————–।

तू ही तुष्टि बनके, मां मेरी,
व्यर्थता को सार दे,
शारदे मां शारदे —————–।

तू प्रभा मां मम हृदय को,
निष्कपट संचार दे,
शारदे मां शारदे —————–।

तू धृति मम धारणा बन,
एक नया आकार दे,
शारदे मां शारदे —————-। ** कुंवर उदय ** अजमेर

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दधीचि और पिप्पलाद


श्मशान में जब महर्षि दधीचि के मांसपिंड का दाह संस्कार हो रहा था तो उनकी पत्नी अपने पति का वियोग सहन नहीं कर पायीं और पास में ही स्थित विशाल पीपल वृक्ष के कोटर में 3 वर्ष के बालक को रख स्वयम् चिता में बैठकर सती हो गयीं। इस प्रकार महर्षि दधीचि और उनकी पत्नी का बलिदान हो गया किन्तु पीपल के कोटर में रखा बालक भूख प्यास से तड़प तड़प कर चिल्लाने लगा।जब कोई वस्तु नहीं मिली तो कोटर में गिरे पीपल के गोदों(फल) को खाकर बड़ा होने लगा। कालान्तर में पीपल के पत्तों और फलों को खाकर बालक का जीवन येन केन प्रकारेण सुरक्षित रहा।

एक दिन देवर्षि नारद वहाँ से गुजरे। नारद ने पीपल के कोटर में बालक को देखकर उसका परिचय पूंछा-
नारद- बालक तुम कौन हो ?
बालक- यही तो मैं भी जानना चाहता हूँ ।
नारद- तुम्हारे जनक कौन हैं ?
बालक- यही तो मैं जानना चाहता हूँ ।

तब नारद ने ध्यान धर देखा।नारद ने आश्चर्यचकित हो बताया कि हे बालक ! तुम महान दानी महर्षि दधीचि के पुत्र हो। तुम्हारे पिता की अस्थियों का वज्र बनाकर ही देवताओं ने असुरों पर विजय पायी थी। नारद ने बताया कि तुम्हारे पिता दधीचि की मृत्यु मात्र 31 वर्ष की वय में ही हो गयी थी।

बालक- मेरे पिता की अकाल मृत्यु का कारण क्या था ?
नारद- तुम्हारे पिता पर शनिदेव की महादशा थी।
बालक- मेरे ऊपर आयी विपत्ति का कारण क्या था ?
नारद- शनिदेव की महादशा।

इतना बताकर देवर्षि नारद ने पीपल के पत्तों और गोदों को खाकर जीने वाले बालक का नाम पिप्पलाद रखा और उसे दीक्षित किया।

नारद के जाने के बाद बालक पिप्पलाद ने नारद के बताए अनुसार ब्रह्मा जी की घोर तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया। ब्रह्मा जी ने जब बालक पिप्पलाद से वर मांगने को कहा तो पिप्पलाद ने अपनी दृष्टि मात्र से किसी भी वस्तु को जलाने की शक्ति माँगी।ब्रह्मा जी से वर्य मिलने पर सर्वप्रथम पिप्पलाद ने शनि देव का आह्वाहन कर अपने सम्मुख प्रस्तुत किया और सामने पाकर आँखे खोलकर भष्म करना शुरू कर दिया।शनिदेव सशरीर जलने लगे। ब्रह्मांड में कोलाहल मच गया। सूर्यपुत्र शनि की रक्षा में सारे देव विफल हो गए। सूर्य भी अपनी आंखों के सामने अपने पुत्र को जलता हुआ देखकर ब्रह्मा जी से बचाने हेतु विनय करने लगे।अन्ततः ब्रह्मा जी स्वयम् पिप्पलाद के सम्मुख पधारे और शनिदेव को छोड़ने की बात कही किन्तु पिप्पलाद तैयार नहीं हुए।ब्रह्मा जी ने एक के बदले दो वर्य मांगने की बात कही। तब पिप्पलाद ने खुश होकर निम्नवत दो वरदान मांगे-

1- जन्म से 5 वर्ष तक किसी भी बालक की कुंडली में शनि का स्थान नहीं होगा।जिससे कोई और बालक मेरे जैसा अनाथ न हो।

2- मुझ अनाथ को शरण पीपल वृक्ष ने दी है। अतः जो भी व्यक्ति सूर्योदय के पूर्व पीपल वृक्ष पर जल चढ़ाएगा उसपर शनि की महादशा का असर नहीं होगा।

ब्रह्मा जी ने तथास्तु कह वरदान दिया।तब पिप्पलाद ने जलते हुए शनि को अपने ब्रह्मदण्ड से उनके पैरों पर आघात करके उन्हें मुक्त कर दिया । जिससे शनिदेव के पैर क्षतिग्रस्त हो गए और वे पहले जैसी तेजी से चलने लायक नहीं रहे।अतः तभी से शनि “शनै:चरति य: शनैश्चर:” अर्थात जो धीरे चलता है वही शनैश्चर है, कहलाये और शनि आग में जलने के कारण काली काया वाले अंग भंग रूप में हो गए। सम्प्रति शनि की काली मूर्ति और पीपल वृक्ष की पूजा का यही धार्मिक हेतु है।आगे चलकर पिप्पलाद ने प्रश्न उपनिषद की रचना की,जो आज भी ज्ञान का वृहद भंडार है .....

साभार

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94 साल के एक बूढ़े व्यक्ति को मकान मालिक ने किराया न दे पाने पर किराए के मकान से निकाल दिया। बूढ़े के पास एक पुराना बिस्तर, कुछ एल्युमीनियम के बर्तन, एक प्लास्टिक की बाल्टी और एक मग आदि के अलावा शायद ही कोई सामान था। बूढ़े ने मालिक से किराया देने के लिए कुछ समय देने का अनुरोध किया। पड़ोसियों को भी बूढ़े आदमी पर दया आयी, और उन्होंने मकान मालिक को किराए का भुगतान करने के लिए कुछ समय देने के लिए मना लिया। मकान मालिक ने अनिच्छा से ही उसे किराया देने के लिए कुछ समय दिया।

बूढ़ा अपना सामान अंदर ले गया।

रास्ते से गुजर रहे एक पत्रकार ने रुक कर यह सारा नजारा देखा। उसने सोचा कि यह मामला उसके समाचार पत्र में प्रकाशित करने के लिए उपयोगी होगा। उसने एक शीर्षक भी सोच लिया, ”क्रूर मकान मालिक, बूढ़े को पैसे के लिए किराए के घर से बाहर निकाल देता है।” फिर उसने किराएदार बूढ़े की और किराए के घर की कुछ तस्वीरें भी ले लीं।

पत्रकार ने जाकर अपने प्रेस मालिक को इस घटना के बारे में बताया। प्रेस के मालिक ने तस्वीरों को देखा और हैरान रह गए। उन्होंने पत्रकार से पूछा, कि क्या वह उस बूढ़े आदमी को जानता है? पत्रकार ने कहा, नहीं।

अगले दिन अखबार के पहले पन्ने पर बड़ी खबर छपी। शीर्षक था, ”भारत के पूर्व प्रधान मंत्री गुलजारीलाल नंदा एक दयनीय जीवन जी रहे हैं”। खबर में आगे लिखा था कि कैसे पूर्व प्रधान मंत्री किराया नहीं दे पा रहे थे और कैसे उन्हें घर से बाहर निकाल दिया गया था। टिप्पणी की थी के आजकल फ्रेशर भी खूब पैसा कमा लेते हैं। जबकि एक व्यक्ति जो दो बार पूर्व प्रधान मंत्री रह चुका है और लंबे समय तक केंद्रीय मंत्री भी रहा है, उसके पास अपना ख़ुद का घर भी नहीं।

दरअसल गुलजारीलाल नंदा को वह स्वतंत्रता सेनानी होने के कारण रु. 500/- प्रति माह भत्ता मिलता था। लेकिन उन्होंने यह कहते हुए इस पैसे को अस्वीकार किया था, कि उन्होंने स्वतंत्रता सेनानियों के भत्ते के लिए लड़ाई नहीं लड़ी। बाद में दोस्तों ने उसे यह स्वीकार करने के लिए विवश कर दिया यह कहते हुए कि उनके पास उत्पन्न का अन्य कोई स्रोत नहीं है। इसी पैसों से वह अपना किराया देकर गुजारा करते थे।

अगले दिन वर्तमान प्रधान मंत्री ने मंत्रियों और अधिकारियों को वाहनों के बेड़े के साथ उनके घर भेजा। इतने वीआइपी वाहनों के बेड़े को देखकर मकान मालिक दंग रह गया। तब जाकर उसे पता चला कि उसका किराएदार, श्री. गुलजारीलाल नंदा भारत के पूर्व प्रधान मंत्री थे। मकान मालिक अपने दुर्व्यवहार के लिए तुरंत गुलजारीलाल नंदा के चरणों पर झुक गया।

अधिकारियों और वीआईपीयोंने गुलजारीलाल नंदा से सरकारी आवास और अन्य सुविधाएं को स्वीकार करने का अनुरोध किया। श्री. गुलजारीलाल नंदा ने इस बुढ़ापे में ऐसी सुविधाओं का क्या काम, यह कह कर उनके प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया। अंतिम श्वास तक वे एक सामान्य नागरिक की तरह, ही रहते थे। 1997 में सरकार ने उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया।

जरा उनके जीवन की तुलना वर्तमानकाल के राजनेताओं से करें।
(देहावसान की 23वीं वर्षगांठ पर, साभार)