महान जासूस शरलक होम्स अपने मित्र डाक्टर वाटसन के साथ सिनेमा देखने गए थे। फिल्म में घुड़दौड़ का एक दृश्य था। शरलक होम्स ने कहा, वाटसन, देखो यह जो पीले रंग वाला घोड़ा है न, यही रेस में जीतेगा।
नहीं-नहीं, डाक्टर वाटसन बोले, मेरे खयाल से तो काला घोड़ा ही जीतेगा, वही सबसे आगे भी है।
कुछ ही समय में रेस के अंत होतेऱ्होते पीला घोड़ा वाकई तेज दौड़ कर आगे आ गया और जीत गया। डाक्टर वाटसन बोले–आश्चर्यविमुग्ध होकर बोले–मेरे मित्र, मुझे तुम पर नाज है। माना कि तुम विश्व के सर्वश्रेष्ठ ख्यातिनाम जासूस हो, मगर तुमने यह कैसे पता लगाया कि पीला घोड़ा ही जीतेगा जब कि वह दौड़ में सबसे पीछे था?
यह कोई कठिन मामला नहीं, वाटसन–शरलक होम्स ने मुस्कुरा कर भेद खोला–मैं यह फिल्म पहले भी कई बार देख चुका हूं।
इस संसार की फिल्म को तुम कितनी बार देख चुके हो, अभी भी तुम्हें पता नहीं कि पीला घोड़ा जीतेगा! अभी भी तुम आशा बांधे हो कि काला घोड़ा जीतेगा, क्योंकि काला घोड़ा आगे है। यहां पीले घोड़े ही जीतते हैं।
जीसस का प्रसिद्ध वचन है: वे जो सबसे अंत में हैं, मेरे प्रभु के राज्य में प्रथम होंगे। पीले घोड़ों की बात हो रही है। पीछे था सबसे। और जो यहां प्रथम हैं, वे मेरे प्रभु के राज्य में अंतिम होंगे।
यहां कौन है अंतिम? जिसने जीवन से सारी आशा छोड़ दी, दौड़ ही छोड़ दी, दौड़ ही नहीं रहा है। वह घोड़ा जीतेगा। जो दौड़ ही नहीं रहा है, उसी का नाम संन्यासी है। जो घुड़दौड़ छोड़ कर किनारे बैठ कर विश्राम कर रहा है, आंख बंद कर ली हैं, भीतर डुबकी मार गया है। जिसका लक्ष्य अब बाहर नहीं है कहीं; जिसका लक्ष्य अब भीतर है। जो अंतर्मुखी हो गया है। जिसने एक नई यात्रा पकड़ ली है–अंतर्यात्रा। वही जीतेगा।
जग की आसा करै न कबहूं, पानी पिवै न मांगी हो।
तुम तो क्या-क्या मांग रहे हो, पानी भी पीने को मत मांगना! क्योंकि इस जगत में प्यास ही नहीं मिटती। कितना ही पानी पीओ, प्यास बढ़ती चली जाती है। इस जगत में प्यास मिटाने के उपाय ही नहीं। प्यास तो मिटती है केवल परमात्मा को पीने से।
और परमात्मा मांगने से नहीं मिलता, परमात्मा मांग छोड़ देने से मिलता है। इस गणित को खयाल रख लो। कुछ भी न मांगो। परमात्मा को भी मत मांगना। मोक्ष भी मत मांगना। मांगना ही मत! जिस क्षण तुम उस घड़ी में आ जाओगे, जहां तुम्हारे चित्त में कोई मांग की रेखा भी न रही, उसी घड़ी सब मिल जाएगा। उसी क्षण तुम्हारी गागर सागर से भर जाएगी।
भूख पियास छुटै जब निंद्रा, जियत मरै तन त्यागी हो।
ओशो