😖😖😖😖😖– उरियानी –😖😖😖😖😖
पटना की घटना।
पिछले सप्ताह पटना के बोरिंग रोड़ पर –जनाना कपड़ो की एक मशहूर दुकान पर – पत्नी के साथ जाना हुआ।
पत्नी को डिसप्ले के तौर पर रखा –एक पुतले को पहनाया गया –एक सुंदर वस्त्र भा गया।
पत्नी ने सेल्स मैन को उस तरह का ड्रेस दिखाने को कहा।
सेम कलर नहीं है।
सेम साइज़ नहीं है।
सेम पैटर्न नहीं है।
सेम फेब्रिक नहीं है।
जैसे नखरों के बाद पत्नी ने सुझाव दिया कि पुतले से उतार कर वह वस्त्र उसे दिया जाय।
“उसके लिये कल 11:00 बजे के बाद कभी भी आइये मैम”– सेल्स मैन विनित स्वर में बोला।
“अभी क्या प्रॉब्लम है ?”– मैं बोला।
“सर, अभी स्टोर में बहुत भीड़ है। डमी फुल लेंथ लेडीज़ साइज़ की है। अभी उसे मूव करना सम्भव नहीं है– प्लीज़, आप कल आइये। मैं ड्रेस निकाल कर पैक करके रखूँगा।”
मैंने उसे बताया कि मैं इंदौर में रहता हूँ। कल सुबह 11:00 बजे मेरी ट्रेन है। अगर ड्रेस अभी नहीं लिया तो ले ही नहीं पाऊँगा।
सेल्समैन कुछ सोचा फिर मैनेजर के पास गया।
मैनेजर सेल्समैन की पूरी बात सुना फिर स्टोर के मालिक के केबिन में चला गया। बाहर आ कर सेल्समैन को कुछ हिदायत देने लगा।
सेल्समैन को समझाने के बाद मैनेजर मेरे पास आया बोला– “सर, आपलोग कुछ और पसंद कीजिये। लड़के आधे घण्टे में ड्रेस पैक कर देंगे।”
“एक ड्रेस पैक करने में इतना टाइम लगता है?”– पत्नी उतावले स्वर में बोली थी।
“मैम”-मैनेजर विनित स्वर में बोला-“अमूनन हम लोग इस तरह सेल नहीं करते है। आप लोग बाहर से आये है और कल ही आपकी ट्रेन भी है इसलिये स्टोर के ऑनर से इज़ाज़त ले कर –आपको अभी ड्रेस दी जा रही है– प्लीज़ थोड़ा सा कॉपरेट कीजिये।”
हम पति-पत्नी वहीं स्टूल पर बैठ गए। मैनेजर के निर्देश पर – एक लड़का हमें भाँप उड़ाती कॉफ़ी का डिस्पोजल कप थमा गया। हमारे देखते ही देखते दो लड़के आये।पुतले को एक बन्द कमरे में ले गए। दस मिनट बाद पुतला नए पोशाक में अपनी जगह पर था।
अगले बीस मिनट के बाद मैनेजर ड्रेस पैक करवा लाया।
बिलिंग के दौरान मैंने मैनेजर से कह ही दिया – ” यार, दस मिनट के काम को करने में आधा घण्टा लगा दिया।पुतला मूव करने की क्या ज़रूरत थी। यहीं फटाफट चेंज कर कपड़ा हमारे हवाले कर देता।”
“सर, हम ऐसा नहीं कर सकते। स्टोर में इस समय हर तरह के हर उम्र के लेडीज़ और जेंट्स है। पुतले में भले ही जान नहीं है पर सम्पूर्ण नारी के आकार की और आकृति की है। इस समय उसे अनड्रेस करते तो लोगो को आपत्ति हो सकती है। साथ ही ड्रेस कई दिनों से डमी पर होने के कारण धूल, लोगो के बार-बार छूने से गन्दा मुचुड़ा हुआ हो जाता है –जिसे साफ करके – प्रेस करके– मेंटेन करके ही– कस्टमर को हैंडओवर किया जाता है।”
स्टोर से बाहर निकल कर मैं सोच रहा था कि कैसे-कैसे लोगों से भरा है मेरा देश!
कोई पुतले की उरियानी देखना बर्दास्त नहीं कर सकता– कोई हरामज़दगी पर उतर जाए तो चार-चार मिलकर एक युवती का अपहरण + बलात्कार + हत्या +जलाना जैसा सब कांड कर देता है।
चाहे कारण जो भी हो हैदराबादी हरामजादों का अंजाम बिल्कुल सही हुआ था।
वे उसी योग्य थे।
अगर ज़िंदा होते तो कम से कम दस साल तक युवती के घरवालों के ह्रदय पर मूंग दलते।
वैसे ही जैसे निर्भया की माँ के ह्रदय पर दला जा रहा था।
इंसाफ अगर हैदराबाद में न हुआ तो दिल्ली में भी नहीं हुआ था।
एक में प्रताड़ित बुरे मुजरिम लोग थे।
एक में प्रताड़ित अच्छे मज़लूम लोग थे।
किसे प्रताड़ित होना चाहियें ?
जबाब सबको मालूम है। अरुण कुमार अविनाश
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