लघुकथा
किस्मत
“पांच दिन पहले ही तो तू पाँच सौ रुपये एडवांस में ले गई थी, आज फिर पैसे मांगने लगी।” शोभा अपनी कामवाली से थोड़ा सख़्ती से बोल रही थी।
“हाँ भाभी क्या करूँ मुझे जरूरत है तभी तो आपके आगे हाथ फैला रही हूँ।” मौली ने पलट कर जवाब दिया।
“कैसे बात कर रही है तू ,एक तो आये दिन तुझे छुट्टी चाहिए और पैसे भी फिर भी आंख दिखा रही है।” शोभा की आवाज़ और तीखी हो गई।
“नहीं नहीं भाभी आप को कैसे आंख दिखा सकती हूँ मैं।आप लोगों के सहारे ही तो हमारी रोटी चल रही है। वो तो बेटी सुसराल वापस जा रही है कल उसकी सास के लियें साड़ी देनी है। उस दिन पाँच सौ से बेटी के ससुर का पेंट कमीज का कपड़ा लाई थी।” नरम आवाज़ में मौली बताने लगी।
‘अच्छा बेटी के सुसराल वालों का पेट भरने के लियें उधार ले रही है। मैं भी कहूँ चार हजार की तो मात्र पगार है तेरी महीने के शुरू में ही इतने पैसे ले लेगी तो अगले महीने क्या खाएगी, मना नहीं कर सकती सुसराल वालों को कि नहीं दे सकती हूँ ये सब।” शोभा बोली।
“अब कैसे मना करें भाभी, लड़की की सुसराल का मामला है हजार रुपये ही और मांग रही हूँ भाभी ।” मौली बोली। शोभा चुपचाप अपने कमरे में चली गई और मौली काम निपटाने लगी। तीन घण्टे के बाद मौली की आवाज़ सुन शोभा कमरे से बाहर आई बोली “सब काम हो गया।”
“हाँ भाभी।” निराश मौली दरवाजे की तरफ़ जाने लगी।शोभा उसे पैसे नहीं देगी वो समझ चुकी थी।
‘सुन ये ले दो हज़ार पर तू सच बोल रही है ना कि बेटी को विदा करना है झूठ बोल कर मुझे बेबकूफ तो नहीं बना रही।” शोभा ने दो हजार रुपये मौली को थमाते हुए बोला।
“कसम है भाभी मुझे अपने बेटे की कसम,कोई झूठ नहीं बोल रही। बेटी तो सब की एक सी होती हैं ना भाभी गरीब की भी अमीर की भी। जब सुसराल से पीहर आती हैं तो कुटिया हो या महल खुशियां ले आती हैं। जब जाती हैं यादें छोड़ जाती हैं। उसकी सास बहुत मेहनती है भाभी कोई परेशानी नहीं बेटी को वहां कुछ मांगती नहीं हम से, वो तो हम अपनी खुशी से दे रहे हैं।” रुपये ले मौली चली गई।
शोभा हैरान सी खड़ी थी क्या मैं भी अपनी बेटी की सास की इतनी बढ़ाई कर सकती हूँ उसे कितना भी दूँ पर वो तो हमेशा मुँह फुलाए रहती है मेरी शिखा से। काश मेरी बेटी की किस्मत भी मौली की बेटी जैसी होती और उसकी सास जैसी सास मिली होती।
गीतांजलि गुप्ता
नई दिल्ली©️®️