एक छोटी सी लघुकथा
एक राज्य में एक युवराज रहता था उसके पुर्वजों का राज्य में शासन चलता था एक समय राजा भ्रमण करने गये थे तो विद्रोहियों के हमले में मारे गए उसके बाद राज्य पर उन्हीं के मंत्रियों ने शासन व्यवस्था संभाल ली और रानी अपरोक्ष रूप से शासन पर नियंत्रण करने लगी ।
समय बदला तो राज्य की बागडोर जनता के प्रतिनिधि ने संभाल ली और राज्य को उन्नति की ओर ले जाने लगा
अब रानी और युवराज की मनमानी नहीं चलती तो वह और उनके गुलाम बहुत व्यथित रहने लगे
युवराज शरीर से तो परिपक्व हो गया था पर मानसिक रूप से नहीं ।
देखते देखते दस साल होने को आए पर युवराज को राज्य की बागडोर संभालने के लिए नहीं मिली वह जनता द्वारा चुने गए प्रधान पर अर्नगल आरोप लगाने लगा और अपशब्दों का प्रयोग करता रहा ।
पर प्रधान अपने कार्यों से जनता के बीच और लोकप्रिय हो गया
तब युवराज ने अपने गुरु जी को अपना हाथ दिखाया और अपना भविष्य जानने की इच्छा जताई ।
गुरु जी ने हाथ देखकर कहा
तुम्हारे संतान प्राप्ति के बाद ही तुम्हारे प्रधान बनने के योग प्रबल हो सकते हैं ।
इस लिए तुम्हें मंदिरों में जाकर दर्शन करने होंगे और ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त करना होगा ।
ये सुनकर युवराज बहुत खुश हुआ और मंदिरों के दर्शन करने लगा ।
समय बीतता गया पर कुछ लाभ नहीं हुआ तब युवराज अपने गुरु जी के पास फिर पहुंचा और
गुरु जी पर नाराज़ हो कर उल्टा सीधा कहने लगा, तुम भी धूर्त हो धोखे बाज हो
तुम्हारे कहने पर मंदिरों में भटका पर कोई फायदा नहीं हुआ ।
गुरु जी ने कहा शांत युवराज शांत पूरी बात बताओं
युवराज बोला समय बीतता जा रहा है और मुझे संतान प्राप्ति नहीं हुई फिर मैं प्रधान कैसे बनूंगा ?
गुरु जी ने कहा अपनी पत्नी को भी साथ लेकर आना उसके भाग्य रेखा भी देखूंगा
युवराज बोला मेरी तो अभी शादी भी नहीं हुई है तो पत्नी कहा से लाऊ ?
गुरु जी ने अपना सर पीट लिया और बोले तुम्हारा कुछ नहीं हो सकता तुम इस जन्म में तो क्या सात जन्मों तक प्रधान नहीं बन सकते ।।
मौलिक रचना
संतोष कुमार
लखनऊ
22,12,2021