Author:जयप्रकाश भारती
दो भाई थे । अचानक एक दिन पिता चल बसे । भाइयों में बंटवारे की बात
चली-“यह तू ले, वह मैं लूं, वह मैं लूंगा, यह तू ले ले ।” आए दिन दोनों बैठे
सूची बनाते, पर ऐसी सूची न बना सके, जो दोनों को ठीक लगे । जैसे-तैसे
बंटवारे का मामला सुलझने लगा, तो एक खरल पर आकर उलझ गया ।
“पिता जी अपने लिए इस खरल में दवाइयां घुटवाते थे । उसे तो मैं ही अपने
पास रखूगा ।” बड़े ने कहा । छोटा तुनककर बोला-“यह तो कभी हो नहीं
सकता । दवाइयां घोट-घोटकर तो उन्हें मैं ही देता था । उनकी निशानी के तौर
पर मैं इसे रखूगा ।”
बात बढ़ गयी और सारा किया-धरा चौपट । अब पंचों से फैसला कराना तय
हुआ। पंच चुने गए । उन्होंने सबसे पहले दोनों को घर से बाहर निकाला और
दो ताले द्वार पर डाल दिये । तय हुआ-बंटवारा दो दिन बाद करेंगे । दोनों में से
अब कोई भाई अकेला भीतर नहीं जा सकता था । पर हमारे समाज में वे भी
तो है, जो द्वार से घर में नहीं घुसते । रात हुई, चोर दीवार लांघकर भीतर घुसे
और सारा माल समेटकर गायब हो गये।
दो दिन बाद घर खोला गया । अब बांटने को धन बचा ही नहीं था । दोनों भाई
खड़े-खड़े हाथ मल रहे थे । एक कोने में पड़ा खरल उन्हें चिल्ला रहा था।
दोनों भाइयों ने पंचों के हाथ जोड़े । कहा-” अब बंटवारा नहीं होगा । हम
साथ-साथ ही रहेंगे।”
खरल के झगड़े ने धन गंवा दिया । मेल से रहना और प्रेम बांटना ही सुखी
जीवन बिताने का सूत्र है।
अनमोल वचनों घृत