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मेंढक


किसी ने एक प्रयोग किया-

एक भगौने में पानी डाला और उसमे
एक मेढक छोड़ दिया।
फिर उस भगौने को आग में गर्म किया।
जैसे जैसे पानी गर्म होने लगा,
मेढक पानी की गर्मी के हिसाब से अपने शरीर को तापमान के अनकूल सन्तुलित करने लगा।
मेढक बढ़ते हुए पानी के तापमान के अनकूल अपने को ढालता चला जाता है और
फिर एक स्थिति ऐसी आती है कि
जब पानी उबलने की कगार पर पहुंच जाता है। इस अवस्था में मेढक के शरीर की सहनशक्ति जवाब देने लगती है और उसका शरीर इस तापमान को अनकूल बनाने में
असमर्थ हो जाता है…

अब मेढक के पास उछल कर,
भगौने से बाहर जाने के अलावा
कोई चारा नही बचा होता है और
वह उछल कर, खौलते पानी से बाहर
निकले का निर्णय करता है।
मेढक उछलने की कोशिश करता है लेकिन उछल नही पाता है।
उसके शरीर में अब इतनी ऊर्जा नही बची है कि वह कूद कर बाहर आ सके
क्योंकि उसने सारी शक्ति तो पानी के बढ़ते हुए तापमान को अपने अनुकूल बनाने में ही
खर्च कर दी…
कुछ देर हाथ पाँव चलाने के बाद,
मेढक पानी में मरणासन्न होकर पलट जाता है, और फिर अंत में मर जाता है।
यह मेढक आखिर मरा क्यों ?

सामान्य उत्तर यही होगा कि उबलते पानी ने मेढक की जान ले ली है
लेकिन यह उत्तर गलत है!
सत्य यह है कि मेढक की मृत्यु का कारण,
उसके द्वारा उछल कर बाहर निकलने के
निर्णय को लेने में हुयी देरी थी।
वह अंत तक गर्म होते माहौल में
अपने को ढाल कर
सुरक्षित महसूस कर रहा था,
और वह मर गया…

*अतः हर अपने अधिकारो के खिलाफ
उठने वाली आवाज का विरोध कीजिए ,
*अपने समाज के उपर हो रहे
अत्याचार का विरोध कीजिए,
*अपने समाज को गुमराह करने वाले
नेताओं का विरोध कीजिए,
*अपने फायदे के लिऐ आपके समाज
को ईस्तमाल करने वाले नेतृत्वकर्ता
का विरोध कीजिए,
वरना आप भी मेंढक बन जाएंगे…

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3 सितम्बर 1857 का दिन था जब…
बिठूर में एक पेड़ से बंधी 13
वर्ष की लड़की को,
ब्रिटिश सेना ने जिंदा ही
आग के हवाले किया,
धूँ धूँ कर जलती वो लड़की,
उफ़ तक न बोली और
जिंदा लाश की तरह जलती हुई,
राख में तब्दील हो गई।

ये लड़की थी नाना साहब पेशवा की
दत्तक पुत्री मैना कुमारी ,
जिसे 160 वर्ष पूर्व,
आउटरम नामक ब्रिटिश अधिकारी ने
जिंदा जला दिया था।

जिसने 1857 क्रांति के दौरान,
अपने पिता के साथ जाने से
इसलिए मना कर दिया,
कि कहीं उसकी सुरक्षा के चलते,
उसके पिता को देश सेवा में कोई
समस्या न आये।
और बिठूर के महल में रहना उचित समझा।

नाना साहब पर ब्रिटिश सरकार इनाम घोषित कर चुकी थी और जैसे ही उन्हें
पता चला नाना साहब महल से बाहर है,
ब्रिटिश सरकार ने महल घेर लिया,
जहाँ उन्हें कुछ सैनिको के साथ
बस मैना कुमारी ही मिली।

मैना कुमारी, ब्रटिश सैनिको को देख कर
महल के गुप्त स्थानों में जा छुपी,
ये देख ब्रिटिश अफसर आउटरम ने
महल को तोप से उड़ने का आदेश दिया।।
और ऐसा कर वो वहां से चला गया !
पर अपने कुछ सिपाहियों को वही छोड़ गया।‌रात को मैना को जब लगा कि
सब लोग जा चुके है, वो बाहर निकली
तो 2 सिपाहियों ने उसे पकड़ लिया और
फिर आउटरम के सामने पेश किया।

आउटरम ने पहले मैना को एक पेड़ से बाँधा, फिर मैना से नाना साहब के बारे में
और क्रांति की गुप्त जानकारी जाननी चाही
पर उसने मुंह नही खोला।

यहाँ तक की आउटरम ने मैना कुमारी को
जिंदा जलने की धमकी भी दी,
पर उसने कहा की वो एक
क्रांतिकारी की बेटी है,
मृत्यु से नही डरती।
ये देख आउटरम तिलमिला गया और
उसने मैना कुमारी को जिंदा जलने का
आदेश दे दिया।
इस पर भी मैना कुमारी, बिना प्रतिरोध के
आग में जल गई,
ताकि क्रांति की मशाल कभी न बुझे।

बिना खड्ग बिना ढाल वाली चरखा गैंग
या धूर्त वामपंथी लेखक चाहे जो लिखे –
पर हमारी स्वतंत्रता इन जैसे
असँख्य क्रांतिवीर और वीरांगनाओं के
बलिदानों का ही प्रतिफल है और
इनकी गाथाएँ हमें आगे की पीढ़ी तक
पहुँचानी चाहिए,
इन्हें हर कृतज्ञ भारतीय का
नमन पहुँचना चाहिये !

शत शत नमन है इस महान बाल वीरांगना को !

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दान की महिमा


एक भिखारी सुबह-सुबह भीख मांगने निकला। चलते समय उसने अपनी झोली में जौ के मुट्ठी भर दाने डाल दिए, इस अंधविश्वास के कारण कि भिक्षाटन के लिए निकलते समय भिखारी अपनी झोली खाली नहीं रखते। थैली देखकर दूसरों को भी लगता है कि इसे पहले से ही किसी ने कुछ दे रखा है। पूर्णिमा का दिन था। भिखारी सोच रहा था कि आज अगर ईश्वर की कृपा होगी तो मेरी यह झोली शाम से पहले ही भर जाएगी। अचानक सामने से राजपथ पर उसी देश के राजा की सवारी आती हुई दिखाई दी। भिखारी खुश हो गया। उसने सोचा कि राजा के दर्शन और उनसे मिलने वाले दान से आज तो उसकी सारी दरिद्रता दूर हो जाएंगी और उसका जीवन संवर जाएगा। जैसे-जैसे राजा की सवारी निकट आती गई, भिखारी की कल्पना और उत्तेजना भी बढ़ती गई। जैसे ही राजा का रथ भिखारी के निकट आया, राजा ने अपना रथ रूकवाया और उतर कर उसके निकट पहुंचे। भिखारी की तो मानो सांसें ही रूकने लगीं, लेकिन राजा ने उसे कुछ देने के बदले उल्टे अपनी बहुमूल्य चादर उसके सामने फैला दी और उससे भीख की याचना करने लगा। भिखारी को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करें। अभी वह सोच ही रहा था कि राजा ने पुनः याचना की। भिखारी ने अपनी झोली में हाथ डाला मगर हमेशा दूसरों से लेने वाला मन देने को राजी नहीं हो रहा था। जैसे-तैसे करके उसने दो दाने जौ के निकाले और राजा की चादर में डाल दिए। उस दिन हालांकि भिखारी को अधिक भीख मिली, लेकिन अपनी झोली में से दो दाने जौ के देने का मलाल उसे सारा दिन रहा। शाम को जब उसने अपनी झोली पलटी तो उसके आश्चर्य की सीमा न रही। जो जौ वह अपने साथ झोली में ले गया था, उसके दो दाने सोने के हो गए थे। अब उसे समझ में आया कि यह दान की महिमा के कारण ही हुआ। वह पछताया कि – काश! उस समय उसने राजा को और अधिक जौ दिए होते लेकिन दे नहीं सका, क्योंकि उसकी देने की आदत जो नहीं थी।

शिक्षा- देने से कोई चीज कभी घटती नहीं। लेने वाले से देने वाला बड़ा होता है।

🚩🔱 हर हर महादेव 🔱🚩🙏🙏

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लाचार आँखे


रजनी अपने विदेश में पढ़ रहे बेटे के जन्मदिन पर इसबार… वृद्धाश्रम गई थी। हर साल वह ऐसे ही अलग-अलग जगह जाती थी।
वृद्धाश्रम के बाहर बगीचे में बहुत से बुजुर्ग कुछ काम कर रहे थे कुछ बैठे थे, कुछ बगीचे में पानी दे रहे थे..कुछ पौधों की कटिंग में व्यस्त थे।
तभी उसकी नजर एक बहुत बुजुर्ग अम्मा जो एक कोने में अकेले बैठी कंपकपातें हाथों से अपने बालों को सुलझा रही थी।
वह उनके पास गई और बोली लाइये मैं आपके बालों को सुलझा देती हूँ कहकर कंघा उनके हाथों से ले लिया।
चेहरा झुर्रियों से भरा पर सुंदर था शायद बहुत सुंदर रही होगी वह अपने समय में।
वह अम्मा बहुत खुश हो गई शायद बहुत दिनों बाद किसी ने इस तरह उनके सिर को सहलाया था।
उनकी आँखों भर आई थी। वह उसको प्यार भरी मार्मिक निगाहों से देखने लगी। उसने भी धीरे धीरे उनके बालों को अपने हाथों से सहला दिया ,वह बहुत भावुक हो गई और उसको अपनी कहानी सुनाने लगी।
तीन बच्चों की माँ थी वह, जिनको उन्होनें पति के अचानक गुजर जाने बाद खुद के बल पर पाला था।
आज वह तीनों अपने परिवार बीबी बच्चों को संभालने बहुत व्यस्त है ।
बड़ी कम्पनियों में जॉब करते है, पत्नियां भी नौकरी करती है ।सभी व्यस्त है मुझकों कौन संभालता ।थोड़े थोड़े दिन अलग बेटों के पास रहती रहती थी।
एक दिन तीनों ने यह कहकर कि माँ आप घर में अकेली रहती हो हम लोगों को भी देर हो जाती है इस कारण आपका पूरा ध्यान नही रख पाते है,यहाँ पर तुम्हें अपने हमउम्र साथी मिलेंगे समय भी कट जायेगा तुमको अकेलापन भी नही लगेगा छोड़ गये मुझे यह पर….!
हम जब भी वक्त मिलेगा छुट्टी होगी आपसे मिलने आ जायेंगे व त्यौहार पर आपको घर ले जाया करेंगे ,और उस दिन से वह बस उनका इन्जार कर रही है।
उनकी लाचार आंखों से बहते आंसू दर्द का एहसास करा रहे थे अपने बच्चों से दूर रहने का दर्द, जिसको वह भी अंदर तक महसूस कर पा रही थी।
क्योंकि वह भी तो अपने बेटे से दूर थी…..! उन आँखों मे वह देख पा रही थी इंतजार अपने बच्चों के आने का उनसे कभी मिलने की आस में….!

मंगला श्रीवास्तव
इंदौर मध्यप्रदेश
स्वरचित मौलिक लघुकथा🙏

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लघुकथा

किस्मत

“पांच दिन पहले ही तो तू पाँच सौ रुपये एडवांस में ले गई थी, आज फिर पैसे मांगने लगी।” शोभा अपनी कामवाली से थोड़ा सख़्ती से बोल रही थी।
“हाँ भाभी क्या करूँ मुझे जरूरत है तभी तो आपके आगे हाथ फैला रही हूँ।” मौली ने पलट कर जवाब दिया।
“कैसे बात कर रही है तू ,एक तो आये दिन तुझे छुट्टी चाहिए और पैसे भी फिर भी आंख दिखा रही है।” शोभा की आवाज़ और तीखी हो गई।
“नहीं नहीं भाभी आप को कैसे आंख दिखा सकती हूँ मैं।आप लोगों के सहारे ही तो हमारी रोटी चल रही है। वो तो बेटी सुसराल वापस जा रही है कल उसकी सास के लियें साड़ी देनी है। उस दिन पाँच सौ से बेटी के ससुर का पेंट कमीज का कपड़ा लाई थी।” नरम आवाज़ में मौली बताने लगी।
‘अच्छा बेटी के सुसराल वालों का पेट भरने के लियें उधार ले रही है। मैं भी कहूँ चार हजार की तो मात्र पगार है तेरी महीने के शुरू में ही इतने पैसे ले लेगी तो अगले महीने क्या खाएगी, मना नहीं कर सकती सुसराल वालों को कि नहीं दे सकती हूँ ये सब।” शोभा बोली।
“अब कैसे मना करें भाभी, लड़की की सुसराल का मामला है हजार रुपये ही और मांग रही हूँ भाभी ।” मौली बोली। शोभा चुपचाप अपने कमरे में चली गई और मौली काम निपटाने लगी। तीन घण्टे के बाद मौली की आवाज़ सुन शोभा कमरे से बाहर आई बोली “सब काम हो गया।”
“हाँ भाभी।” निराश मौली दरवाजे की तरफ़ जाने लगी।शोभा उसे पैसे नहीं देगी वो समझ चुकी थी।
‘सुन ये ले दो हज़ार पर तू सच बोल रही है ना कि बेटी को विदा करना है झूठ बोल कर मुझे बेबकूफ तो नहीं बना रही।” शोभा ने दो हजार रुपये मौली को थमाते हुए बोला।
“कसम है भाभी मुझे अपने बेटे की कसम,कोई झूठ नहीं बोल रही। बेटी तो सब की एक सी होती हैं ना भाभी गरीब की भी अमीर की भी। जब सुसराल से पीहर आती हैं तो कुटिया हो या महल खुशियां ले आती हैं। जब जाती हैं यादें छोड़ जाती हैं। उसकी सास बहुत मेहनती है भाभी कोई परेशानी नहीं बेटी को वहां कुछ मांगती नहीं हम से, वो तो हम अपनी खुशी से दे रहे हैं।” रुपये ले मौली चली गई।
शोभा हैरान सी खड़ी थी क्या मैं भी अपनी बेटी की सास की इतनी बढ़ाई कर सकती हूँ उसे कितना भी दूँ पर वो तो हमेशा मुँह फुलाए रहती है मेरी शिखा से। काश मेरी बेटी की किस्मत भी मौली की बेटी जैसी होती और उसकी सास जैसी सास मिली होती।

गीतांजलि गुप्ता
नई दिल्ली©️®️

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मैंने सुना है, एक संन्यासी हिमालय की यात्रा पर गया था। भरी दोपहर, पहाड़ की ऊंची चढ़ाई, सीधी चढ़ाई, पसीना-पसीना, थका-मांदा हांफता हुआ अपने छोटे-से बिस्तर को कंधे पर ढोता हुआ चढ़ रहा है। उसके सामने ही एक छोटी-सी लड़की, पहाड़ी लड़की अपने भाई को कंधे पर बैठाए हुए चढ़ रही है। वह भी लथपथ है पसीने से। वह भी हांफ रही है। संन्यासी सिर्फ सहानुभूति में उससे बोला, बेटी तारे ऊपर बड़ा बोझ होगा। उस लड़की ने, उस पहाड़ी लड़की ने, उस भोली लड़की ने आंख उठाकर संन्यासी की तरफ देखा और कहा, स्वामी जी! बोझ तो आप लिए हैं यह मेरा छोटा भाई है।

बोझ में और छोटे भाई में कुछ फर्क होता है। तराजू पर तो नहीं होगा। तराजू को क्या पता कि कौन छोटा भाई है और कौन बिस्तर है! तराजू पर तो यह भी हो सकता है कि छोटा भाई ज्यादा वजनी रहा हो। साधु का बंडल था, बहुत वजनी हो भी नहीं सकता। पहाड़ी बच्चा था, वजनी होगा। तराजू तो शायद कहे कि बच्चे में ज्यादा वजन है। तराजू के अपने ढंग होते हैं मगर हृदय के तराजू का तर्क और है।

उस लड़की ने जो बात कही, संन्यासी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है–उनका नाम था भवानी दयाल–उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि मुझे ऐसी चोट पड़ी कि इस छोटी-सी बात को मैं अब तक न देख पाया? इस भोली-भाली लड़की ने कितनी बड़ी बात कह दी! छोटी-सी बात में कितनी बड़ी बात कह दी! छोटे भाई में बोझ नहीं होगा। जहां प्रेम है वहां जीवन निर्भार होता है।

तुम जरूर अप्रेम के ढंग से जी रहे हो। तुम्हारा जीवन-दर्शन भ्रांत है इसलिए तुम उदास हो। हालांकि तुमने जब प्रश्न पूछा होगा तो सोचा होगा कि मैं तुम्हें कुछ ऐसे उत्तर दूंगा जिनसे सांत्वना मिलेगी। कि मैं कहूंगा कि नहीं–पिछले जन्मों में कुछ भूल-चूक हो गयी है, उसका फल तो पाना पड़ेगा। अब निपटा ही लो। किसी तरह बोझ है, ढो ही लो, खींच ही लो।

राहतें मिलती हैं ऐसी बातों से। क्योंकि अब पिछले जन्म का क्या किया जा सकता है? जो हुआ सो हुआ। किसी तरह बोझ है, ढो लो। मैं तुमसे यह नहीं कहता कि पिछले जन्म की भूल है जिसका तुम फल अब भोग रहे हो। अभी तुम कहीं भूल कर रहे हो, अभी तुम्हारे जीवन के दृष्टिकोण में कहीं भूल है। पिछले जन्मों पर टालकर हमने खूब तरकीबें निकाल लीं। असल में पिछले जन्म पर टाल दो तो फिर करने को कुछ बचता नहीं, फिर तुम जैसे हो सो हो। अब पिछला जन्म फिर से तो लाया नहीं जा सकता। जो हो चुका सो हो चुका। किए को अनकिया किया नहीं सकता। अब तो ढोना ही होगा, खींचना ही होगा, उदास रहना ही होगा।

नहीं, उदास रहने की कोई भी जरूरत नहीं है, कोई अनिवार्यता नहीं है। मैं तुमसे यह बात कह दूं कि परमात्मा के जगत् में उधारी नहीं चलती। पिछले जन्म में कुछ गलती की होगी, पिछले जन्म में भोग ली होगी। परमात्मा कल के लिए हिसाब नहीं रखता। वह ऐसा नहीं कि आज नगद, कल उधार। नगद ही नगद है, आज भी नगद और कल भी नगद। आग में हाथ डालोगे, अभी जलेगा कि अगले जन्म में जलेगा पानी पियोगे, प्यास अभी बुझेगी कि अगले जन्म में बुझेगी? इतनी देर नहीं लगती प्यास के बुझने में न हाथ के जलने में।

मेरे देखे जब भी तुम शुभ करते हो तत्क्षण तुम पर आनंद की वर्षा हो जाती है। तत्क्षण! देर-अबेर नहीं होती। तुमने कहावत सुनी है कि उसके जगत् में देर है, अंधेर नहीं। मैं तुमसे कहता हूं कि देर हुई तो अंधेर हो जाएगा। न देर है न अंधेर है, सब नगद है।
ओशो

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મહાકાવ્ય મહાભારત


એક નવી દ્રષ્ટિ થી મુલ્યાંકન તથા અર્થઘટન . 👌
🕉
મહાકાવ્ય મહાભારત

મહાભારતમાં એવું કહેવામાં આવ્યું છે
સુમારે ૮૦ % મનુષ્યબળ
યુદ્ધના અઢારમા
દિવસે મૃત્યુમુખી પડ્યું હતું.

જ્યારે યુદ્ધ સમાપ્ત થયું
ત્યારે સંજય
યુદ્ધ થયું ત્યાં એટલે કે કુરુક્ષેત્રના
મેદાનમાં આવ્યો.

તેનાં મનમાં શંકા આવેલી હતી કે
આ યુદ્ધ ખરેખર થયું છે કે ?

સાચે જ આટલો મોટો
નરસંહાર થયેલો છે કે ?

તે આ જ જગ્યા છે કે જ્યાં
સામર્થ્યવાન પાંડવ અને ભગવાન
શ્રીકૃષ્ણ ઉભા હતા ?

આ તે જ જગ્યા છે કે જ્યાં
શ્રીમદ ભગવત્ ગીતા કહેવામાં આવી ?

આ બધું સાચે જ થયું છે કે
મને તેવો
ભ્રમ થાય છે ???

તને ક્યારેય આની સત્ય
હકીકત
મળવાંની નથી !!

એક શાંત વયોવૃદ્ધ અવાજ
તેનાં કાને પડ્યો.

સંજયે અવાજની દિશામાં જોયું તો
તેને એક સાધૂ દેખાયો.

સાધૂ હળવા
અવાજમાં ફરી બોલ્યો,

મને ખબર છે કે તું અહીં કુરુક્ષેત્રનું
યુદ્ધ થયું છે કે તે જોવાંના
માટે આવ્યો છે.

પરંતુ તને આ યુદ્ધ
બદલ સત્ય
ક્યારેય
સમજાશે નહીં.

સંજય બોલ્યો, એટલે ??

સાધૂ બોલ્યો,

*મહાભારત તે એક મહાકાવ્ય છે – *
*એક વાસ્તવિકતા છે *
*પરંતુ તેનાં કરતાં *
પણ અધિક તત્વજ્ઞાન છે.

આટલું કહીને હસવા લાગ્યો.
સાધૂનું હસવાનું જોઈ
સંજય હજુ વધારે ભ્રમિત થયો
અને વિનંતિ
કરવાં લાગ્યો કે,

*મને તમે તે તત્વજ્ઞાન *
કહી શકો છો કે ?

સાધૂ તત્વજ્ઞાન કહેવાં લાગ્યો,
પાંડવ એટલે બીજું કંઈ
નહીં ને આપણી પાંચ જ્ઞાનેંન્દ્રિયો છે :-

આંખો :- દૃશ્ય
કાન :- અવાજ
નાક :- ગંધ
જીભ :- સ્વાદ અને
ત્વચા :- સ્પર્શ

અને કૌરવ એટલે
૧૦૦ દુર્ગુણ (વિષયો) છે તે દરરોજ
આ પાંચ પાંડવો પર
આઘાત કરે છે.

પણ આપણે આ આઘાતથી
આપણાં
પાંચ પાંડવોનું
રક્ષણ કરી શકીયે છીએ.

સાધૂ બોલ્યો,

સંજય ! તું કહી શકીશ કે એનું
રક્ષણ કરવાનું ક્યારે
શક્ય હશે ?

*જ્યારે આપણાં રથના સારથી – *
આ પાંચ પાંડવોના મિત્ર

  • ભગવાન શ્રીકૃષ્ણ હશે ત્યારે ???*

સંજય બોલ્યો.

સાધૂ જવાબ
સાંભળીને ખૂબ ખુશ થયો.

તે બોલ્યો, એકદમ બરોબર !!

શ્રીકૃષ્ણ એટલે આપણો
અંદરનો અવાજ,

આપણો આત્મા, આપણો
પથદર્શી પ્રકાશ. જ્યારે
શ્રીકૃષ્ણનું આપણે સાંભળીયે
તો આપણે ચિંતા
કરવાનો કોઈ જ આવશ્યકતા નથી.

સંજયને ઘણો જ મતિતાર્થ
સમજાયો હતો. તો પણ

તેણે પાછો પ્રશ્ન કર્યો,
તો જો કૌરવ તે દુર્ગુણ જ હતા
તો તેમનાં બાજુએ

ગુરુ દ્રોણાચાર્ય અને પિતામહ ભીષ્મ લડ્યા ! તેનો શું અર્થ થાય ??

તેનો એવો અર્થ થાય કે, જેમ તમે
નાના થી મોટા થતા જાવ છો,
તમારાં કરતાં મોટા લોકો
બદલ હોવાંનો તમારો
દૃષ્ટિકોણ બદલાતો જાય છે.

જ્યારે આપણે નાના હોઈએ ત્યારે
આપણને તે લોકો
પરિપૂર્ણ લાગે છે પરંતુ જ્યારે
આપણે મોટા થતાં જઈએ
ત્યારે
તેમનામાં ત્રૂટી (ખામી) દેખાવાની
શરુઆત થાય છે અને એક દિવસ
આપણે નક્કી કરવું પડે કે
આપણે આ
મોટાઓનું સાંભળવું કે નહીં,

એટલે કે આપણે નક્કી
કરવાનું કે આપણે પોતે જ
પોતાના માટે નિર્ણય લેવાનો !!!

*( એટલે આવા ધર્મસંકટમાં *
*શ્રીમદ ભગવત્ ગીતાનો *
ઉપદેશ મહત્વનો ઠરતો હોય છે.)

સંજયને હવે બધું જ સમજાયું હતું.
તેણે છેવટનો પ્રશ્ન કર્યો,

તો કર્ણ તે પાંડવ હોવાં છતા તેનાં
વિરોધમાં કેમ

જવાબ :-
કર્ણ પાંચ જ્ઞાનેંદ્રિયો જેવો જ હોય છે.
તે આપણો જ એક ભાગ હોય
પરંતુ સાથ દે છે તે
૧૦૦ દુર્ગુણોને !!!

કર્ણ એ બીજો કોઈ નહીં પણ
આપણી પોતાની જ
વાસના હોય છે.

કર્ણને હર ઘડી
પ્રશ્ચાતાપ થતો હોય છે અને
તે દુર્ગુણોને સાથ કેમ દે છે

અને તેનાં સતત
કારણો દેતો રહે છે.

*આપણી વાસના પણ *
*આવી જ હોય છે – *
*પશ્ચાતાપ કરીએ અને પાછાં *
ત્યાં જ જઈએ…!!

હવે સંજયના આંખોમાંથી અશ્રૂ
આવી રહ્યા છે.
તેને જગતમાંનું સૌથી
મોટું “મહાકાવ્ય મહાભારત”
સાચા અર્થમાં
સમજ્યું હોય છે.

તે દૂર સુધી ફેલાંયેલાં કુરુક્ષેત્રને
જોતો ઉભો હોય છે.

તે સાધૂને નમન કરવાં માટે
પાછળ ફર્યો અને
જૂએ છે તો તે જગ્યાએ કોઈ નથી હોતું

  • તે સાધૂ દેખાયો નહિં પરંતુ
    એક ગહન તત્વજ્ઞાન
    ત્યાં રાખીને ગયો….

અસ્તુ.
🙏🙏

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कर्मो का फल


आज की कथा

(((( ))))
.
एक बार शंकर जी पार्वती जी भ्रमण पर निकले। रास्ते में उन्होंने देखा कि एक तालाब में कई बच्चे तैर रहे थे, लेकिन एक बच्चा उदास मुद्रा में बैठा था।
.
पार्वती जी ने शंकर जी से पूछा, यह बच्चा उदास क्यों है? शंकर जी ने कहा, बच्चे को ध्यान से देखो।
.
पार्वती जी ने देखा, बच्चे के दोनों हाथ नही थे, जिस कारण वो तैर नही पा रहा था।
पार्वती जी ने शंकर जी से कहा कि आप शक्ति से इस बच्चे को हाथ दे दो ताकि वो भी तैर सके।
.
शंकर जी ने कहा, हम किसी के कर्म में हस्तक्षेप नही कर सकते हैं क्योंकि हर आत्मा अपने कर्मो के फल द्वारा ही अपना काम अदा करती है।
.
पार्वती जी ने बार-बार विनती की। आखिकार शंकर जी ने उसे हाथ दे दिए। वह बच्चा भी पानी में तैरने लगा।
.
एक सप्ताह बाद शंकर जी पार्वती जी फिर वहाँ से गुज़रे। इस बार मामला उल्टा था, सिर्फ वही बच्चा तैर रहा था और बाकी सब बच्चे बाहर थे।
.
पार्वती जी ने पूछा यह क्या है ? शंकर जी ने कहा, ध्यान से देखो।
.
देखा तो वह बच्चा दूसरे बच्चों को पानी में डुबो रहा था इसलिए सब बच्चे भाग रहे थे।
शंकर जी ने जवाब दिया- हर व्यक्ति अपने कर्मो के अनुसार फल भोगता है। भगवान किसी के कर्मो के फेर में नही पड़ते हैं।
.
उसने पिछले जन्मो में हाथों द्वारा यही कार्य किया था इसलिए उसके हाथ नहीं थे।
.
हाथ देने से पुनः वह दूसरों की हानि करने लगा है।
.
प्रकृति नियम के अनुसार चलती है, किसी के साथ कोई पक्षपात नहीं।
.
आत्माएँ जब ऊपर से नीचे आती हैं तब सब अच्छी ही होती हैं,
.
कर्मों के अनुसार कोई अपाहिज है तो कोई भिखारी, तो कोई गरीब तो कोई अमीर लेकिन सब परिवर्तनशील हैं।
.
अगर महलों में रहकर या पैसे के नशे में आज कोई बुरा काम करता है तो कल उसका भुगतान तो उसको करना ही पड़ेगा।
.
कर्म तेरे अच्छे तो किस्मत तेरी दासी
नियत तेरी अच्छी तो घर मे मथुरा काशी

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नानाजी


एक पुराने दुकान मे यह फोटो दिखा, देखते ही फोटो दिल को भा गया। काली घनी दाडी और बडी बडी मुछे रखनेवाला शिकारी और अपने शिकार किया हुआ शेर के उपर पैर रखकर निकाला हुआ फोटो था.. वाह..क्या बात

मैने उस दुकानदार से उस फोटो की किमत पुछी. उसने कहा..

“दस हजार”

मै: It is so expensive..भैया कुछ कम करो ना.

दुकानदार : This is very rare pic, किमत बिलकुल कम नही होगी…

फिर मैने अपना पर्स निकाला, उसमे सिर्फ नौ हजार ही थे। और फिर मै वहा से निराश होकार लौट आया.
दुसरे दिन पुरे दस हजार लेकर उसी दुकान पर पहुचा वही तस्वीर खरीदने तो पता चला के वो फोटो कल ही बिक गया था, मै अपने नसिब को ही कोस कर घर पे चला आया.
फिर ऐसी ही एक दिन अपने दोस्त के घर पे गया तो देखा के वही फोटो उसके घर के डायनिंग हाँल मे लगाया हुआ था। यानी वह फोटो खरीदने वाला मेरा दोस्त ही था। मै टुककूर टुककूर फोटो की तरफ देखता देख मेरा दोस्त बोला…

“अबे देख क्या रहा है, मेरे नानाजी है वह, बहुत बडे शिकारी थे” मै मन ही मन बोला, बेटा उस दिन अगर एक हजार कम नही पडे होते तो आज ये मेरे नानाजी होते

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સવલી

નામ તો એના માબાપે સવિતા રાખેલું પરંતુ ઉતર ગુજરાતના એ નાનકડા ગામમાં કોઈક જ સવિતા કહીને બોલાવે.કોઈ કોઈ સવિ કહે પણ મોટેભાગે તો સવલી નામ જ ગામલોકોના મોંઢે ચડી ગયું. સવલી સામાન્ય પરિવારની દિકરી.બાપ ખેતમજૂરી અને મા આચર કુચર કામકાજ કરે,ટુંકમાં મહેનતું પરિવાર.માબાપનાં એ લક્ષણો સવલીમાં ઉતરી આવ્યાં પરંતુ સવલીની બધી જ મહેનત સેવાભાવની..... ગામમાં કોઈ પણ ઘેર માટીનો ચૂલો બનાવવો હોય, અનાજ ભરવાની માટીની કોઠી બનાવવાની હોય,ઘંટીનું થાળું બનાવવું હોય કે પછી સરસામાન મુકવાનો માટીનો કોઠો બનાવવો હોય,- એમાં સવલીની કારીગરીનો ગામમાં જોટો ના જડે.આમાંની કોઈ પણ વસ્તુ બનાવવા આટલી ખનેડી( તળાવની ચીકણી માટી),આટલી ઘોડા કે ગધેડાની લાદ,આટલી જીરાની ડાંખળી-જોઈશે એ મેળવણું તો સવલી જ કરાવી જાણે! આ બધાં કામ સવલી હોંશે હોંશે કરે.આખા ગામમાંથી ગમે તે ઘરનું કામ હોય, સવલીને કોઈથી રાગ દ્વેષ ક્યારેય નહીં.આ બધું કરતાંય ખાવાનું તો ઘેર આવીને જ.આવા કામોની મજુરીની તો કોઈ વાત જ નહીં. એનાં માબાપેય ગામનાં આ કામોમાં રોકટોક ક્યારેય ના કરી.આ બધી કળાઓમાં કુદરતે એક ઓર કળા પણ સવલીમાં ઠાંસી ઠાંસીને ભરી દીધી હતી.ઢોલના તાલે ગાણાં ગાવાં.ગામમાં લગ્ન અને તહેવારોના પ્રસંગોમાં સવલી ઢોલે રમવામાં સૌથી મોખરે હોય. એનો કોયલ જેવો મીઠો અવાજ રાત્રીના સમયે તો અડધો કિલોમીટર સુધી સંભળાય! 'વ્હાણ હાંકો મેવાસી વણઝારા'-ને અપભ્રંશ કરીને ગવાતું 'મારો વાંકો મેવાસી વણઝારો' ગાણું તો સવલી સૌથી આગળ રહીને એવા તાલ અને લહેકા સાથે ગવડાવી જાણે કે એની વાત ના પુછો!દિકરીઓ,વહુવારૂઓ અને માતાઓની તાલબદ્ધ તાળીઓ સાથે આ ગાણું ગવાતું હોય ત્યારે તો રમનાર અને જોનાર સૌમાં એક જાતનું શુરાતન ચડી જાય!બે બે ઢોલી વારાફરતી ઢોલ વગાડે પણ આ ગાણાંમાં મસ્તાન એ દિકરીઓ, વહુવારુઓ,માતાઓ ના થાકે હો! ગામમાં જેના ઘેર પેટ્રોમેક્સ ફાનસની સગવડ હોય એ ઘરના પૈસાનું ઘાસતેલ(કેરોસીન) પુરીને આ કલાવૃદને સગવડ કરી આપે.પછી તો પૂછવું જ શું? મોડી રાત સુધી આ ઢોલ ઢબુકે.... 'ખાખરે આંબો મોરાણો ભાભોલડી' ,'મેંણાંની મારેલી હું તો રાફડામાં રે'તી'- જેવાં આ વિસ્તારનાં પરંપરાગત ગાણાં મોડી રાત સુધી ગવાતાં જાય અને ઢોલે રમાતું જવાય.લગ્ન પ્રસંગ કોના ઘેર છે? એ પ્રશ્ન જ અસ્થાને!બસ,આખું ગામ ઢોલે રમવામાં સાક્ષી બને. સવલીએ યુવાનીમાં પગ માંડતાં એને પરણાવવાનો અવસર આવ્યો ત્યારે તો આખું ગામ ગમગીન થઈ ગયેલું.એનાં બે કારણો હતાં.સવલી એના માબાપનું એક માત્ર સંતાન અને બીજું આવા માયાળું સ્વાભાવની આખા ગામની લાડકી દિકરી આ ગામ છોડીને જશે એ હતાં. આખા ગામે સવલીના લગ્ન પ્રસંગને સગી દિકરીના લગ્નની જેમ પાર પડાવ્યો હતો.વેવાઈ પક્ષ તો ગામલોકોનો પ્રેમ જોઈને મોઢામાં આંગળાં નાખી ગયો હતો. લગ્ન પછી સવલીને ભાઈ ના હોવાથી વાર તહેવારે સાસરે તો જતી પરંતુ સાત વરસે આણું થયું ત્યાં સુધી તો ગામની લાડકી બનીને રહી સવલી.સાસરીમાં પણ ઢોલે રમવામાં તો સવલી જ મોખરે હોય.એની બીજી કળાઓનો લાભ સાસરીમાં પણ આપવાનું સવલી કેમ ચૂકે? સાસરે હોવા છતાંય પિયરના ગામમાં લગ્ન પ્રસંગે સવલીને આમંત્રણ ના હોય એ તો કેમ બને! આમેય સવલીની સાસરીનું ગામ એના પિયરથી માત્ર સાત કિલોમીટરના અંતરે.સવલીના ઘેર હાથોહાથ આમંત્રણ હોય અને સવલી પણ ભાણી કે ભાણા સાથે ચાલતી આવીને પ્રસંગમાં આંટો મારી જાય. થોડી ઉંમર વધી હતી સવલીની પરંતુ ઢોલે રમવામાં તો એ જ જોમ અને જુસ્સો!બીજું એક પરિવર્તન એ પણ થયું હતું કે, પિયરમાં એને હવે 'સવિ ફઈ' સંબોધન મળવાનું શરૂ થઈ ગયું હતું. સમય વહેતો ગયો.વારાફરતી સવલીનાં માબાપ સ્વર્ગે સિધાવી ગયાં.કાકા,કુટુંબમાં સવલી ક્યારેક આંટો મારી જાય.ગામલોકોનો પ્રેમ તો અકબંધ જ હતો. સવલીને બે દિકરીઓ અને એક દિકરો.દિકરીઓ પરણાવવા લાયક થતાં જ બન્ને દિકરીઓનાં લગ્ન લેવાયાં.સવલીનો પરિવાર તો એકંદરે સુખી અને હર્યોભર્યો હતો છતાંય સવલી મુંઝાઈ રહી હતી.ભગવાને સગો ભાઈ તો આપ્યો નહોતો અને કાકા કુટુંબ લાંબાં સુખી નહોંતાં એટલે મામેરાનો તો કોઈ પ્રશ્ન જ નહોતો પરંતુ પિયરમાં જઈને કંકોતરી કોને કોને આપવી એ એની મુંઝવણ હતી.કાકા કુટુંબને તો સબંધના નાતે કંકોતરી આપવી જ પડે પરંતુ આખું પિયરનું ગામ એને વહાલું હતું એમાંથી કોને કોને કંકોતરી આપવી? 'આખા ગામના દરેક ઘરને કંકોતરી આપતાં કદાચ કોઈને એવું લાગે કે કંઈક લેવાની આશાએ આપી રહી છે તો? છતાંય લાંબા વિચારને અંતે એવું લાગ્યું કે કંકોતરી તો આખા ગામને આપવી છે જ..... ગામલોકોનો પ્રેમ એના રોમરોમમાં ભર્યો હતો. પિયરના ગામમાં સવલીને ઘેર ઘેર સારો આવકાર મળ્યો.ચાર પાંચ આગેવાનોએ સવલીને હસતાં હસતાં મીઠા આવકાર સાથે કહ્યું પણ ખરુ, 'સવિ !તેં દરેક પ્રસંગોમાં આખા ગામને રસ તરબોળ કર્યું છે.આજે તો તારા ઘેર પ્રસંગ છે તો ત્યાં તો તને ઢોલે રમતી જોવા જરૂર આવીશું. બીજા દિવસે તો ગામનો ચોકિયાત ગામ વતી સવલીના ઘેર જઈને કહી આવ્યો કે, 'દોઢસો જેટલાં માણસો તને ઢોલે રમતી જોવા તારા ઘેર આવશે.દોઢસો માણસો એ દિવસે તારા ઘેર આવીને જમશે.' સવલીનો પોતાનો પરિવાર તો સમજુ હતો પરંતુ આડોશી પાડોશીમાં ચણભણ શરૂ થઈ ગઈ.'લ્યો આ સવિ વઉને તો એમનાં પિયરીયાં ઢોલે રમતી જોવા આવશે! આખા ગામની આખી જિંદગી વેઠ કરી.કો'ક સારાં મનેખ હોય તો કાંય નઈ તો પિતળ તાંબાનાં બે ચાર ઠીબડાં લઈનેય આવે! સૌને ખબર છે કે, સવિ વઉને ભઈ નથી.આ તો સૌ ઢોલે રમતાં જોવા આવવાના છે લ્યો! ' આડોશી પાડોશીઓની વાતો સવલીના કાન સુધી પહોંચી.એટલે જ દિકરીઓના લગ્નના દિવસે સવલીને માબાપ યાદ આવ્યાં.ભાઈ અને માબાપ વગરની જીંદગી કેવી હોય છે એનો અનુભવ આજે આનંદના પ્રસંગે સવલીને થઈ રહ્યો હતો.એની આંખમાં આંસુ આવી ગયાં.ત્યાંજ કોઈકે આવીને સમાચાર આપ્યા કે, 'સવિકાકી તમારા પિયરથી વીસેક જેટલાં ગાડાં સાથે ઘણાં બધાં માણસો આવી રહ્યાં છે.બે ગાડાંમાં તો એકલાં તાંબા પિતળનાં વાસણો ભરેલાં છે.' સવલીને તો આ વાત મશ્કરી જેવી લાગી રહી હતી પરંતુ થોડીવારમાં તો દારુખાનું ફુટવાનો અવાજ સૌના કાને આવ્યો.દશેક મિનિટમાં તો દિયરે દોડતાં આવીને સાદ કર્યો કે, 'સવિ ભાભી! મામેરૂ વધાવવાની તૈયારી કરો.તમારા પિયરથી મામેરૂ આવ્યું છે.' ઘડીભર પહેલાંની સવલીના મોંઢા પરની ગમગીની ગમગીની આનંદમાં પલટાઈ ગઈ. મામેરૂ ભરાયું.સવલીના પિયરના ગામના પોલીસ પટેલે સોના ચાંદીનાં એક એક ઘરેણાં દર્શાવ્યાં..... રામનામી,વેડલા, વાળી, નથણી, કડું,ઠાંસીયા,ચાર વીંટી.બે બંગડી, સડા, સાંકળાં અને કડલાં...... તાંબા પિતળનાં વાસણો તો ઘણાં બધાં... સરપંચે ઉભા થઈને બે શબ્દો કહ્યા, 'બાપ! સવિ! આ તો અમે ગામલોકોએ અમારી ફરજ નિભાવી છે, બાકી ખરેખર તો અમે સૌ તને ઢોલે રમતી જોવા આવ્યાં છીએ. '

લગ્નની સૌ વિધિઓ પુરી થયા પછી સવલી એક કલાક ઢોલે રમી. પિસ્તાળીસની ઉંમરે આજે એના પગમાં સતર અઢારની ઉંમર જેટલું જોમ હતું.સાસરિયાંએ માંડ માંડ બાથમાં ઘાલીને ઢોલે રમતી બંધ કરાવી સવલીને….

લેખન -નટવરભાઈ રાવળદેવ થરા.