(((( बिहारी जी की कृपा ))))
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बहुत पुरानी घटना नहीं है। मार्च 2020 के लॉकडाउन की बात है।
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दिल्ली के विवेक विहार में एक छोटा खुशी से भरा परिवार है। इस परिवार के मुखिया है पवन कुमार जी उनके दो बच्चे एक बेटा और एक बेटी।
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बेटा बारहवीं की पढ़ाई कर रहा है और बेटी इंजीनियर की पढ़ाई वाराणसी उत्तर प्रदेश में कर रही है।
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पूरा परिवार महीने में एक बार तो बिहारी जी के दर्शन करने जाते ही थे। जीवन बहुत अच्छा चल रहा था पर कोरोना आ गया।
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वाराणसी में उनकी लड़की आशा एक कमरा किराए पर लेकर रहती थी, पर अब आशा लॉकडाउन के चलते उस कमरे में अकेली पड़ गई थी।
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इंटरनल एग्जाम चल रहे थे इसलिए वह घर नहीं गई। जब एग्जाम खत्म हुए तो लॉक डाउन लग गया।
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एक दिन आशा को बुखार आ गया घर वालों को चिंता हो गई कि कहीं कोरोना ना हो पर आशा किसी के संपर्क में तो आई नहीं थी।
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ऐसी हालत में वह खाना भी नहीं बना सकती थी वह मैगी खाती फिर दवाई लेती यह सुनकर उसकी मम्मी परेशान हो गई। उसकी मम्मी की बिहारी जी के प्रति अटूट श्रद्धा थी, उसकी मम्मी ने मन ही मन बिहारी जी को ओळावना देते हुए बिहारी जी से कहती–देख रहे हो अपनी बेटी की हालत कैसी हो रही है, अब तू ही राखजो उसका ध्यान, ऐसे लाॅकडाउन घर से बहार जाने नही देते। इस समय बिमारी में तो पङौसी व अपने भी नजदीक आने से डरते हैं। अब हम तेरे अलावा किससे आशा रखें।
सच्चे ह्रदय की पुकार व की हुई भक्ति का ऐसा असर की ………..
दूसरे दिन बेटी कमरे में बैठी थी और किसी ने दरवाजा बजाया। दरवाजा खोला तो देखा कि सूट-बूट में एक पुरुष खड़े हैं।
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उनके साथ एक महिला भी है, आशा ने उनसे पूछा कि आप कौन हैं तो उन्होंने कहा–’हम सोशल वर्कर है लोगो की मदद करते हैं..
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हमें जानकारी मिली है कि आप यहाँ फंस गए हैं और आप दिल्ली में रहते हैं। उन्होंने कहा कि वह दिल्ली ही जा रहे हैं अगर आशा चाहे तो वह चल सकती है।’
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आशा ने घर पर फोन किया पर नम्बर मिला ही नहीं, बहुत प्रयास किया मम्मी के, भाई के, पापा के, सब के नम्बर पर फोन लगाया पर संपर्क नहीं हो पाया।
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कलयुग में तो किसी पर विश्वास भी नहीं किया जा सकता, आशा बहुत परेशान थी।
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वह महिला और पुरुष उसे देख रहे थे….. उन्होंने कहा–’बहन चिंता मत करो बिहारी जी के मंदिर में मैं तुम्हारे पिताजी से कई बार मिल चुका हूँ।’
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आशा ने उनका नाम पूछा तो उन्होंने कहा सब हमें बिहारी बाबू कहते हैं।
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अब आशा का मन भी गवाही दे रहा था कि वह उन पर विश्वास कर सकती है।
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उनके साथ जो महिला थी वह इतनी गोरी, सुन्दर और नाजुक थी ऐसा लग रहा था उनको हाथ लगाने से भी मैली हो जायेंगी। उनकी आवाज भी बहुत मीठी थी।
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आशा ने जरूरत का सामान लिया कमरे में ताला लगाया और उनके साथ चल पड़ी।
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नीचे उनकी गाड़ी खड़ी थी, आशा गाड़ी में बैठी और वह सब दिल्ली के लिए निकले, गाड़ी में उन्होंने राधा नाम का प्यारा भजन लगा रखा था।
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गाड़ी में उसे कब नींद लग गई पता ही नहीं चला।
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उसकी नींद खुली तब वह दिल्ली पहुँच भी गए थे..
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आशा का घर थोड़ा गली के अन्दर था तो लड़के ने कहा–’बहन आप यही उतर जाइए।’
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आशा ने उन्हें खूब कहा कि आप मेरे घर चलिए।
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उन्होंने कहा फिर कभी आएंगे अभी थोड़ा जल्दी में हैं और पिता जी को कहना जल्दी ही मन्दिर में मिलेंगे।
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आशा अपने घर की तरफ चली तभी उसका फोन बजा.. उसकी मम्मी का फोन था..
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उसने जैसे ही हेलो बोला उसकी मम्मी बोली, कहाँ थी सुबह से फोन नहीं उठाया। हम सब परेशान हो गए तेरे मकान मालिक को फोन करा तो बोले कमरे पर तो ताला लगा है।’
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आशा तो मानो अभी भी सदमे में ही है उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था।
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उसने अपनी माँ से कहा–माँ! दरवाजा खोलो मैं बाहर ही खड़ी हूँ।’
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उसकी माँ भागती हुई आई और दरवाजा खुला सब आशा को सामने खड़े देख कर सब हैरान हो गए।
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मन में सवालों की बौछार आई हुई थी। कैसे आई, किसके साथ आई, लॉकडाउन में तो पुलिस वाले किसी गाड़ी को आने-जाने भी नहीं देते।
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सुबह तो तुझ से फोन पर बात हुई थी और शाम को तो घर पर भी आ गई।
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वाराणसी से दिल्ली का रास्ता 13 घंटे का है। इस समय आशा 10:30 बजे घर भी पहुँच गई थी।
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आशा ने कहा–’पिताजी जिनके साथ में आई हूँ वह आप से मन्दिर में मिलते ही रहते हैं और उन्होंने कहा फिर जल्दी ही मिलेंगे।’
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बस यह सुनकर उनके पिताजी जोर-जोर से रोने लगे और समझ गए कि बिहारी जी महाराज खुद आए थे उनकी राधा रानी के साथ।
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आप खुद ही सोचिए कि इतने कम समय में आशा को उन्होंने घर पर पहुँचा दिया उन्हें घर का एड्रेस कैसे पता चला। लॉकडाउन में बॉर्डर कैसे पार कर ली।
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।।जय जय श्री राधे राधे जी।।
।।जय श्री राधे कृष्णा जी।।
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((((((( जय जय श्री राधे )))))))