कहानी -जूही
बोलो जूही, जो मैंने समझाया, वो तुम समझ रही हो ना, गुड टच और बैड टच क्या होता है? ममता अपनी 7 साल की बेटी जूही को समझा रही थी।
” देखो बेटा, कोई भी आपको चॉकलेट, आइसक्रीम या किसी और चीज का लालच दे, आप उसकी बातों में मत आना और जूही भी समझने की कोशिश कर रही थी और गर्दन हिला रही थी।
थोड़ी देर बाद खेलते खेलते जूही अपनी सहेली मुनमुन के घर चली गई। मुनमुन की मम्मी खाना बना रही थी और उसके दादाजी बाहर वाले कमरे में टीवी देख रहे थे।
तभी मुनमुन की मम्मी ने कहा,”तुम दोनों घर के अंदर ही खेलना, मैं बाजार से होकर थोड़ी देर में आती हूं।”जूही और मुनमुन खेल रही थीं। दादा जी उठ कर अंदर कमरे में चले गए। उन्होंने अंदर से मुनमुन को आवाज लगाई,”मुनमुन आओ देखो, मैं तुम्हारे लिए क्या लाया हूं।”
दोनों लड़कियां अंदर गई तो दादाजी ने मुझे चॉकलेट दी। दोनों ने चॉकलेट खा ली, तो दादा जी ने मुनमुन से कहा,”मुनमुन, यह लो पैसे जाकर एक अच्छी सी गेंद ले आओ, हम बाद में मिलकर खेलेंगे और चॉकलेट के कागज भी ले जाओ, इन्हें फेंक देना।”
मुनमुन पैसे लेकर चली गई और दादा जी जूही के पास आकर बैठ गए और उसके कंधे,हाथ और फिर धीरे-धीरे उसके पूरे शरीर पर हाथ घुमाने लगे। साथ-साथ वह बोलते भी जा रहे थे,”देखो जूही, किसी से कुछ मत कहना, मैं तुम्हें रोज चॉकलेट खिलाऊंगा, आइसक्रीम और खिलौने भी लाकर दूंगा।”
जूही को उनका स्पर्श बहुत गंदा सा लग रहा था, तभी उसे अपनी मां की बात याद आ गई कि किसी भी चीज की लालच में मत आना और कोई बैड टच करे तो उसे जोर से धक्का देकर गिरा देना और शोर मचा देना, डरना बिल्कुल भी मत।”
यह बात याद आते ही जूही ने दादाजी को जोर से धक्का दिया और शोर मचाते हुए बाहर की तरफ भाग गई।
वह चिल्ला रही थी,”मुनमुन के दादाजी गंदे हैं, वह बैड टच करते हैं।”
जूही की मां और बाकी पड़ोसी उसका चिल्लाना सुनकर इकट्ठे हो गए और पूछने लगे कि क्या हुआ? जूही ने पूरी बात बता दी।
इतने में दादाजी बाहर आकर कहने लगे,”बित्ते भर की छोरी कितना झूठ बोलती है, मैं तो इसे अपनी पोती की तरह मानता हूं। मुनमुन और यह छोरी मेरे लिए एक समान है।”
तभी मुनमुन बोल पड़ी,”आंटी, मैंने भी देखा था दादा जी को क्योंकि मैं चॉकलेट के कागज फेंक कर, गेंद लेने गई ही नहीं थी, मैं वापस कमरे की तरफ आ रही थी, तब मैंने देखा और सुना। दादाजी जूही को कह रहे थे कि किसी से कुछ मत कहना और उसे छू रहे थे।”
तब सब ने सोचा कि इतनी छोटी बच्चियां झूठ क्यों बोलेगी? फिर भी इन से अकेले में एक बार पूछते हैं। दो औरतों ने उनसे सारी बात पूछी और सब कुछ स्पष्ट हो गया। तब मोहल्ले वालों ने उस बुड्ढे के मुंह पर
कालिख पोत दी और जूते चप्पलों की माला पहना कर पूरे मोहल्ले में घुमाया और फिर पुलिस के हवाले कर दिया।
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
गीता वाधवानी दिल्ली
Day: August 25, 2021
लागी लगन 📝
यह कहानी लगभग साठ साल पहले प्रारंभ हुई थी। कुसुम की बहुत कम उम्र में शादी हो गई । वह घर की एकलौती बहू थी। उसकी सासू मां उससे बहुत ही स्नेह करती थी। उन्होंने कुसुम को सारे काम सिखाए। कुसुम शादी से पहले अपने गांव में केवल कक्षा दूसरी तक ही पढ़ पायी थी। शादी होने के बाद धीरे धीरे परिवार की पूरी जिम्मेदारी उसके ऊपर आ गई थी।उसके दो बेटे साकेत ,निकेत और दो बेटियां रिद्धि, सिद्धि हुए। उनके लालन पालन में वह बहुत ही व्यस्त रहती थी। उसके पति सरकारी नौकरी में थे। कुसुम के बच्चे अब स्कूल जाने लगे थे ।कुसुम उनकी रंग बिरंगी पुस्तकें देखती थी। उन्होंने दीवार पर वर्णमाला के चार्ट भी लगाए थे ।जब उसे समय मिलता तो वह बच्चों की पुस्तक निकाल कर अक्षरों को जोड़ जोड़ कर पढ़ने की कोशिश करती। जो शब्द उससे पढ़ते नहीं बनते हैं उसे बच्चों से पूछती और बच्चे बड़े प्रेम से अपनी मां को बता देते।उसकी सासू माँ मुंह जबानी बहुत सारी शिक्षाप्रद और धार्मिक कहानियां सुनाती रहती थी। बात-बात में घर गृहस्थी से लेकर जीवन की बहुत सारी बातें बताती थीं। वह उन सब बातों को बहुत ही जल्दी ग्रहण कर लेती थी। कुसुम में सीखने की ललक बहुत ज्यादा थी ।वह काम करते करते दोहे ,कविताएं दोहराते रहती थी जिसे सुनकर बच्चों का भी अभ्यास हो जाता था।
कुसुम की सासू मां ने उसे कर्मावती की कहानी बताई जिसमें कर्मावती जगन्नाथपुरी जाकर भगवान की भक्ति में लीन हो जाती है।कुसुम ने अपने पति से जगन्नाथ पुरी जाने की इक्छा व्यक्त की।उनके पति सपरिवार जग्गनाथ पूरी गए और उन्हें दर्शन करवाए ।वहां की संस्कृति और परंपराओं को देखकर और भगवान जगन्नाथ की महिमा जानकर कुसुम बहुत ही प्रभावित हुई।उसे उड़िया भाषा सुनकर बहुत ही अच्छा लगा।
यहां भी उसके घर के पास दो चार लोग थे जो उड़ीसा के थे और वह लोग उड़िया में बात भी करते थे और पढ़ते लिखते भी थे ।कुसुम ने भी सोचा ” मुझे कोई दूसरी भाषा भी सीखनी चाहिए। उड़िया में कितने अच्छी भक्ति कथाएं हैं ।मैं अगर इसे सीख जाऊंगी तो उन कथाओं को भी पढ़ पाऊंगी।”उसने उड़िया वर्णमाला की पुस्तक मंगवाई और अभ्यास करने लगी।इसी बीच उसकी सासूमाँ परलोक चली गई।चारों बच्चे भी बड़े हो गए थे। अपने अपने काम करने लगे थे ।अब कुसुम को कुछ समय मिलने लगा था । वह उड़िया वर्णमाला की पुस्तक से उड़िया भाषा के शब्दों को जोड़ जोड़ कर पढ़ने लगी। यह उसके लिए बहुत बड़ी उपलब्धि थी। बिना गुरु के ही उसने अपने दृढनिश्चय और लगन से उड़िया भाषा सीख ली। जो भी यह बात सुनते उन्हें बहुत ही आश्चर्य होता था। कुसुम सरल स्वभाव की थी। उसको यह कार्य विशेष नहीं लगता था ।
उसने रामचरित मानस पढ़ना शुरू किया और धीरे-धीरे उसे भी पढ़ लिया ।अब उसे भगवत गीता पढ़ना था। गीता के संस्कृत के श्लोकों को जब वह पढ़ती तो कुछ शब्द बहुत ही लंबे होते। इनका संधि विच्छेद करके पढ़ना होता तो अपने बच्चों को कहती “इसे कैसे पढ़ते हैं मुझे बता दो।” बच्चे भी उन्हें छोटे-छोटे टुकड़ों में पढ़ने का अभ्यास करवाते और वह उसे बार-बार दोहराती ।
जब सब स्कूल और आफिस चले जाते तो दोपहर को वो आराम नहीं करती ,नियमित कुछ न कुछ नया पढ़ती। साकेत अपनी माँ के लिए नियमित कल्याण पत्रिका मंगवाते ।उसकी धार्मिक कथाओं और प्रवचनों को पढ़कर कुसुम आत्मसात करती और दूसरों को सुनाती थी ।समय आने पर उनके बेटे बेटियों के विवाह होते गए।उनके नाती नातिन हो गए। नानी के साथ सबको बहुत अच्छा लगता।छुट्टियों में जब वे आते तो कुसुम नानी उन्हें ढेर सारी कहानियां सुनाती थी।
उसने भगवद गीता न जाने कितनी बार पढ़ ली ।उसे बहुत से श्लोक कंठस्थ हो गए थे। उनकी सुनाई कहानियां उनकी नातिनों को अभी भी याद हैं। वह हमेशा उन्हें छोटे-छोटे मंत्र भी सिखाती थी ।
सुबह उठकर बाहर झाड़ू लगाते और अन्य कार्य करते समय वह प्रभाती गाते रहती थी। जिससे घर का वातावरण बहुत अच्छा रहता था ।हमेशा भगवान का नाम लेती थी ।उसमें सीखने की लगन कभी भी कम नहीं हुई।
उन्होंने बहुत सारे धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन कर लिया और उनमें से बहुत सारी शिक्षाओं को अपने जीवन में उतार लिया।उनके पति भी परलोक चले गए। तब उन्होंने अपने जीवन की दिशा मोड़ ली और अपना जीवन ज्यादा से ज्यादा भगवान की भक्ति में समर्पित कर दिया ।बहुओं के काम में यथासम्भव सहयोग करती। अपने खाली समय में भगवान का नाम लेते लेते बाती बनाती। प्रतिदिन कुछ न कुछ अच्छा पढती।गीता के श्लोकों का पाठ करती। उनकी नातिनों ने तो उन्हें हमेशा पढ़ते हुए देखा था लेकिन उनकी कहानी उन्हें मालूम नहीं थी कि उन्होंने किस प्रकार पढ़ने का अभ्यास किया। जब उनकी मां उन्हें अपनी मां की इस उपलब्धि के बारे में बताती “तुम्हारी नानी ने इस प्रकार से पढ़ाई की। उन्होंने स्वयं प्रयत्न करके एक नई भाषा सीखी है ।हम नहीं सीख पाए ।हम तो केवल स्कूल में पढ़ाई गई हिंदी और अंग्रेजी ही सीख पाए।”नातिनें नानी से पूछती आपने ऐसा कैसे कर लिया। नानी उनसे कहती ” किसी भी कार्य को करने के लिए लगन होना चाहिए फिर भगवान भी हमारी सहायता करते हैं। “
आज कितने लोग ऐसे होंगे जिन्होंने इस तरह स्वयं प्रयत्न करके अपने जीवन की दिशा बदली होगी। इसमें एक पक्ष अच्छा था कि उनके परिवार के सभी लोगों ने उनका साथ दिया और उन्हें प्रोत्साहित किया ।गुरु पूर्णिमा के दिन वह अपने सभी बच्चों का आभार व्यक्त करती और कहती” तुम सभी मेरे गुरु हो तुम लोगों ने मेरी पढ़ने में आने वाली कठिनाइयों को दूर किया। मुझे कुछ ना कुछ सिखाया है। जिससे हम कोई भी चीज सीखते हैं वह हमारे गुरु होते हैं।” उनका स्वभाव बहुत ही विनम्र था। उनके जैसा व्यक्तित्व मिलना आज के समय में बहुत ही मुश्किल है।
(यह कथा हमारी नानी माँ कुसुम जी के जीवन पर आधारित है)
स्वरचित
नीरजा नामदेव
એક યુવાને એના પિતાને
પૂછ્યું કે પપ્પા :
આ માનવજીવનનું મૂલ્ય શુ છે ?
પિતાએ જવાબમાં દીકરાના હાથમાં એક પથ્થર મુક્યો અને કહ્યું, “તું આ પથ્થર લઈને શાકભાજી વેંચવા વાળા પાસે જા.
એ લોકો ભાવ પૂછે તો બે આંગળી ઊંચી કરજે.”
યુવાન પથ્થર લઈને શાકમાર્કેટમાં ગયો.
એક શાકભાજીવાળાને પથ્થર ગમ્યો. એને થયું કે પથ્થર સારો છે તો વજનિયા તરીકે ઉપયોગ કરીશ.
એમણે પથ્થરનો ભાવ પૂછ્યો એટલે છોકરાએ બે આંગળી બતાવી. વેપારીએ મોઢું બગાડીને કહ્યું,
“આવા નાના પાણાના તે કંઈ બે રૂપિયા હોતા હશે ?”
છોકરાએ ઘરે આવીને એના પિતા ને બધી વાત કરી.
પિતાએ આ જ પથ્થર સાથે દીકરાને હવે એન્ટીક વસ્તુઓના વેપારી પાસે મોકલ્યો.
છોકરાએ જૂની પૂરાણી વસ્તુઓના વેપારીને પેલો પથ્થર બતાવ્યો એટલે વેપારીએ યુવાનને પથ્થરનો ભાવ પૂછ્યો. યુવાને પોતાની બે આંગળી બતાવી. વેપારીએ કહ્યું,
“બે હજાર રૂપિયામાં મને કોઈ વાંધો નથી”
છોકરાએ ઘરે આવીને બનેલી ઘટના પિતાને સંભળાવી. પિતાજીએ યુવાનને એક ઝવેરી પાસે મોકલ્યો.
યુવાને ઝવેરીને પેલો પથ્થર બતાવી તે પથ્થર વેંચવાની ઈચ્છા દર્શાવી.
ઝવેરીએ ભાવ પૂછ્યો એટલે યુવાને બે આંગળી બતાવી. ઝવેરીએ એના મુનિમને કહ્યું, “આ યુવાનને બે લાખ રૂપિયા આપી દો અને પથ્થર લઇ લો”
યુવાનને ખૂબ આશ્વર્ય થયું. કોઈને પથ્થર બે રૂપિયામાં પણ મોંઘો લાગ્યો તો કોઈ બે લાખ આપવા તૈયાર થયા.
પિતાજીએ કહ્યું,”બેટા, માનવજીવનનું પણ આ પથ્થર જેવું જ છે.
કેટલું મૂલ્ય મેળવવું એ દરેકના પોતાના હાથની વાત હોય છે.
તમે કઈ જ્ઞાતિમાં જન્મ્યા છો ? તમે અમીર છો કે ગરીબ ?
રૂપાળા છો કે કાળા ?
આ કોઈ વાતો મહત્વની નથી. સૌથી વધુ મહત્વનું એ છે કે તમે તમારી જાતને કોની પાસે લઈ જાવ છો.
મિત્રો, આપણો સંગ આપણું મૂલ્ય નક્કી કરવામાં બહુ મહત્વનો ભાગ ભજવે છે.
મૂલ્યવાન બનવા માંગતા હોય તો ઝવેરી જેવા લોકોનો સંગ આવશ્યક છે.
સંકલન
કર્દમ મોદી
પાટણ