Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

अमरीका की कौन सी बड़ी गलती के कारण उन्हें “अफगानिस्तान” में हार का सामना करना पड़ा?

आपको मैं एक कहानी सुनाता हूँ …

यह कहानी उस समय की है,
जब भारत पर अंग्रेजों का शासन
हुआ करता था।
उस समय दिल्ली के आसपास
कोबरा सांप की आबादी
बहुत ज्यादा बढ़ गई थी,
ऐसे में एक नौजवान अंग्रेज अफसर को
यह लगा, की इससे लोगों को
जान का खतरा हो सकता है,
और कोबरा की बहुतायत आबादी को
काबू में करना जरूरी है…

उस अंग्रेज अफसर ने एक तरकीब लगाई
और यह घोषणा की,
कि जो कोई भी मुझे कोबरा सांप का
सर ला के देगा मैं उसे नगद इनाम दूंगा,
और यह राशि उस व्यक्ति द्वारा लाए गए
सांपो की संख्या से तय होगी…

आस-पास के लोगों में यह बात
तेजी से फैली, और वह बड़ी संख्या में
कोबरा सांप का शिकार करने लगे।
शुरुआत में तो उन्हें अच्छा-खासा लाभ हुआ परंतु बाद में जब सांपों की संख्या घटने लगी
तब उनकी आय भी कम हो गई।
ऐसे में लोगों को यह अहसास हुआ कि
इस योजना का लाभ लेने के लिए
अच्छी खासी संख्या में सांपों का होना
आवश्यक है, और उन्होंने सर्प पालन
शुरू कर दिया…

जब यह बात अंग्रेज अफसर तक पहुंची,
तो वह भौंचक्का रह गया।
उसने तुरंत ही इस योजना को
बंद करने का ऐलान किया।
जब लोगों को पता चला कि
अब सांपो को पालने से कोई
फायदा नही होने वाला है,
तो उन्होंने सारे सांप जंगल में छोड़ दिए,
जिससे सांपो की संख्या और बढ़ गई…

इस घटना को बाद में
कोबरा इफेक्ट का नाम दिया गया,
जो विकृत प्रोत्साहन का
सबसे बेहतरीन उदाहरण है…

अमरीका ने भी अफगानिस्तान में
यही गलती की…

उसने आतंकवाद से लड़ने के लिए
उस देश का साथ लिया,
जो ख़ुद आतंकवाद फैलाने के लिए
विश्व भर में कुख्यात है…

(ओमप्रकाश शर्मा )

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स्वभाव न छोड़ें
एक बार गधा और एक आदमी रास्ते से जा रहे थे। रास्ते में गधा किसी गहरे
गड्ढे में गिर जाता है। आदमी अपने पसंदीदा गधे को गड्डे से निकालने का हर
भरसक प्रयास करता है, लेकिन काफी प्रयत्न करने के बाद वो भी असफल
हो जाता है। वह बहुत दुखी होता है, लेकिन उसको ऐसी दशा में छोड़कर जाना
| भी नही चाहता। तभी उसके मन में एक विचार कौंधता है और वह उसे उसी
गड्ढे में जिंदा गाड़ने का निश्चय करता है, जिससे वह आसानी से मर सके।
| इसलिए वह उस पर मिट्टी डालना कर देता है। जैसे ही गधे पर मिट्टी
गिरती है, वो उसे वजन के हिलाकर हटा देता है और उसी मिट्टी पर
चढ़ । प्रत्येक
गिरती है। अंत में बार यही कार्य करता है, जब जब मिट्टी उसके ऊपर |
से गड्ढा भर जाता है और वह सुरक्षित बाहर आ जाता
है। कथा का आशय यह है कि हमारी आंतरिक वृत्ति हमें ताकत देती है। संकट
में उसे नहीं भूलना चाहिए।

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” सोने के कंगन “

मेरी दादी जमींदार घराने की बेटी थीं , बहुत सारे गहने हैं उनके पास ! सभी गहनों में सबसे सुंदर है सोने का कंगन _ जिसे हमेशा दोनों हाथ में पहनतीं हैं, दूसरा है ” जड़ाऊ सीता हार “। सोना का कंगन है तो बहुत ही भारी , बीस बीस तोले का और सीता हार उससे भी भारी है ।
दादी मुझे बहुत प्यार करती है , मां से कहती रहतीं , प्रिया की शादी में उसको सारा गहना दूंगी, सोने का कंगन छोटी बहू को और सीता हार बड़ी बहू को । ( मेरी मां बड़ी बहू है )
यह बात सुनकर चाची के छाती पर सांप लोटता? , प्रिया भी नहीं फूटी आंख सुहाती है उन्हें ? हमेशा चाचा के कान भरतीं रहती कि जब देखो मां केवल बड़ी भाभी व प्रिया पर सब लुटाना चाहती हैं, हमलोग को एक ढेला नहीं देंगी और बड़े भैया को घर का मालिक बना जाएंगी ।पर चाचा कभी भी चाची के अनर्गल बातों को सुनते , पर सुनकर एक कान से दूसरे कान निकाल देते हैं।
पापा और चाचा में आपसी विश्वास व आपसी सामंजस्य है , चाची कान फोड़ती रही चाचा के ? परंतु वही “ढाक के तीन पात!”
दादी बीमार पड़ गईं है, लकवा मार गया है , उनकी सारी सेवा – सुश्रुषा अकेले मां ही करती है, नहलाना, तेल मालिश , खाना खिलाना, दवा देना वगैरह। दादी के तबियत में सुधार हो रहा है , इधर चाची सशंकित है कि सारा जेवर कहीं भाभी न हथिया ले , ? ।
दादी के पास उनके पिता का दिया हुआ अंग्रेज के जमाने का चांदी की सौ अशर्फियां भी है, जिसमें महारानी विक्टोरिया की तस्वीर अंकित है, बहुत महंगी,•••••• पुरातत्व विभाग के अनुसार ।
एक दिन दादी ने सबको अपने कमरे में बुलवाया ,•••••• पापा , चाचा- चाची, मां , चाचा का बेटा गोलू और मैं। दादी अपने पलंग पर सभी गहने फैलाकर रखी हुईं हैं ••••• आराम से बोली दादी जिसको जो जो चाहिए, उठा ले।
मेरे जीवन का कोई भरोसा नहीं , कब आँखे बंद हों जाए मेरी ? हम सब कुछ समझते इतने में झटपट चाची लपक सोने का कंगन, सीता हार उठा लेती है और चाचा से बोली -‐ आप अशर्फी ले लीजिए जल्दी से , एक अशर्फी का दाम एक लाख से भी ज्यादा है ।
चाची की कुटिल चाल सबके समक्ष आ गई है , लोभ भी प्रत्यक्षत: –
सब कोई हैरान!
दादी बोली , छोटी बहू रोज आती रही है मेरे कमरे में •••• यह कहने कि सब गहनों को आप अपने जीते जी आपस में बांट दीजिए मां ! इसलिए सबको इकट्ठा कर अपने गहनों को बांट रही हूं , यह भी बताने के लिए कि छोटी बहू का आचरण और स्वभाव कितना पानी में है?
अब “दूध का दूध पानी का पानी” करने का क्षण आ गया है, जब बीमार थी मैं तो छोटी बहू जब भी आती , उस समय गहने- पैसे , घर के बंटवारे की बात करती , सेवा करना तो दूर की बात है , ऐसे भी कभी झांकने भी नहीं आई?

खैर !! दादी के माथे पर शिकन झलकी ।
छोटी बहू बता रही हूं एक बात, जब लकवाग्रस्त हो गई थी , मैंने बड़ी बहू से कहा भी कि गहनों को अपने पास रख लो , दो तीन गहने छोटी को दे देना और बाकी तुम रख लेना , पर बड़ी बहु का बड़प्पन देखो जरा -‘ नहीं मां वो भी आपकी बहू है , उसे भी दीजिए । , बल्कि मैं सारा गहना सौंप रही थी बड़ी बहू को पर मना कर दिया ।

अब बोलो रमेश, (छोटे चाचा) क्या कहना है बंटवारा कर देती हूं , पर मेरे मरने के बाद ही आंगन के बीच दीवार खींचना तुमलोग!
जीते जी तो कतई नहीं!
छोटी बहू के लक्ष्ण उसी वक्त ताड़ गई थी मैं , जब पहली बार बहू बनकर आई है। आने के कुछ ही दिन के बाद मुझसे पूछ रही थी कि यह मकान किसके नाम से है? पालने में ही पूत के लक्षण दिखाई देते है न! वही छोटी बहू में देख रही पर रमेश को बरगला न पाई?

हम सब स्तंभित खड़े हैं, बिचारे चाचा शर्म से पानी पानी हो गए ।
चाची के चेहरे पे हवाईयां उड़ रही है।, गहना पलंग पर रखकर जाने लगी है ।कलई जो खुल गई उनकी ?
दादी ने अपनी सूझबूझ से घर का बंटवारा होने से रोक दिया है और चाचा व पापा एक दूसरे के साथ एक छत के नीचे एक साथ ही रहने लगे।
चाची का स्वभाव नहीं बदला है , चाचा कभी भी नहीं सुने , ना अब सुनते हैं।
वो आदत से लाचार हैं?

अंजू ओझा
मौलिक स्वरचित,
२२•८•२१

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मैंगोलीचलानेकाआदेशनहींदूँगा , सरकार जानी है तो जाए।

ऐ शब्द है माननीय कल्याण सिंह जी के । आज अत्यंत ही दुखद समाचार मिला कि कल्याण सिंह अब हमारे बीच नहीं हैं ।

कल्याण सिंह जी के साहसिक प्रयास को भुलाया नही जा सकता…

भारत के इतिहास में 2 नवंबर 1990 का दिन एक काले अध्याय के समान है। यही वो खून से रंगी तारीख है जिस दिन अयोध्या में कारसेवकों पर पुलिस ने मुलायम सिंह यादव के आदेश पर गोलियां बरसाईं थी।

एक कारसेवक पुलिस द्वारा फेंके गए आंसू गैस के गोले को उठा कर दोबारा उन्ही (पुलिस) पर ही फेंक रहा था। आंसू गैस के प्रभाव से बचने के लिए उस शख्स ने अपनी आंखों के आस-पास चूना लगा रखा था, हालांकि थोड़ी देर बाद ही वह व्यक्ति पुलिस की गोली का शिकार हो कर सड़क पर गिर जाता है। जिसके बाद सड़क पर वह अपने खून से ‘सीताराम’ लिख देता है।

इस भयावह गोलीकांड में 40 कारसेवकों की मौत हो गई थी, हालांकि सरकारी आदेश का पालन करने वाले सुरक्षाकर्मियों की आंखों से कारसेवकों पर गोली चलाते वक्त आंसू बह रहे थे, 2 नवंबर के गोलीकांड से पहले 30 अक्टूबर को भी कारसेवकों पर गोलियां चलाई गई थीं, जिसमें 11 कारसेवक मारे गए थे। इसके बाद मुल्ला मुलायम सरकार गिर जाती हैं।

फिर नब्बे के दशक में कल्याण सिंह पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री बने…भाजपा ने अयोध्या में राम मंदिर को लेकर पूरे भारत में रथ यात्राएं निकाली थी। उत्तर प्रदेश की जनता ने पूर्ण बहुमत के साथ कल्याण सिंह को उत्तर प्रदेश की सत्ता दी…यानी खुल के कहा की जाओ मंदिर बनाओ…?

कल्याण सिंह बहुत भावुक नेता थे , सरकार बनने के बाद तुरंत विश्व हिन्दू परिषद को बाबरी ढ़ांचे से सटी जमीन कार सेवा के लिए दे दी…संघ के हज़ारों कार सेवक साधु संत दिन रात उस जमीन को समतल बनाने में लगे रहते…

सुप्रीम कोर्ट ये सब देख के बहुत परेशान हो रहा था । सर्वोच्च न्यायालय ने कल्याण सिंह से स्पष्ट शब्दों में पूछा कि आपको पक्का यकीन हैं ना,ये हाफ पैंट वाले सिर्फ यहाँ की जमीन समतल करने आये हैं..? मतलब की कोई गडबड नहीं होनी चाहिए.।..आपके लोगों ने अगर बाबरी मस्जिद को हाथ लगाया तो अच्छा नहीं होगा.।..यही लोग दो साल पहले मस्जिद के गुम्बद पर चढ़ गए थे फावड़ा ले के…अबकी बार अगर फिर ऐसा हुवा तो…?

कल्याण सिंह ने मिलाॅड को समझाया कि हुजुर अब कुछ नहीं होगा…आप भरोसा रखिये…! लेकिन मिलाॅड नहीं माने… बोले, हमें तुम संघियों पर भरोसा नहीं, इसलिए लिख कर दो कि कुछ नहीं करोगे…?

कल्याण सिंह ने मिलाॅड को बाकायदा लिख के एक हलफनामा दिया कि हम लोग सब कुछ करेंगे लेकिन मस्जिद को हाथ नहीं लगायेंगे.!

तो साहब अयोध्या में कार सेवा के लिए दिन रखा गया। छह दिसंबर 1992 ,केंद्र की कांग्रेसी सरकार से कहा कि साहब केवल दो लाख लोग आयेंगे कार सेवा के लिए, लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार ने पांच लाख लोगों को कारसेवा के लिए बुला लिया प्रशाशन को ख़ास हिदायत थी की भीड़ कितनी भी उग्र हो कोई गोली लाठी नहीं चलाएगा…?

पांच लाख लोग एक जगह जुट गए जय श्री राम और मंदिर वही बनायेगे के नारे लगने लगे। लोगों को जोश आ गया और लोग गुम्बद पर चढ़ गए…पांच घंटे में उस चार सौ साल पुराने ढ़ांचे का अता पता नहीं था ।

एक-एक ईंट कार सेवकों ने उखाड़ दी…बस फिर क्या था,…केंद्र सरकार के गृह मंत्री का फोन कल्याण सिंह के CM ऑफिस में आया…गृह मंत्री ने कल्याण सिंह से पूछा ये सब कैसे हुआ…?

कल्याण सिंह ने कहा कि जो होना था वो हो गया,…अब क्या कर सकते हैं…? एक गुम्बद और बचा है कारसेवक उसी को तोड़ रहे हैं, लेकिन आप जान लीजिये कि मै गोली नहीं चलाऊंगा।

उधर सुप्रीम कोर्ट के मिलाॅड कल्याण सिंह से बहुते नाराज हो गए थे…! छह दिसंबर की शाम कल्याण सिंह ने इस्तीफा दे दिया और उधर काँग्रेस ने भाजपा की चार राज्यों की सरकारों को बर्खास्त कर दिया, कल्याण सिंह को जेल हो गयी…!

उत्तर प्रदेश में दुबारा चुनाव हुए, बीजेपी को यही लगा कि हिंदुओं के लिए इतनी बड़ी कुर्बानी देने के बाद उत्तर प्रदेश की जनता उन्हें फिर से चुनेगी, लेकिन हुआ उलटा, बीजेपी उत्तर प्रदेश चुनाव हार गयी और एक बार फिर मुल्ला मुलायम की सरकार बन गई।

कल्याण सिंह जैसे बड़े और साहसिक फैसले लेने वाले नेता का कैरियर बाबरी मस्जिद विध्वंस ने खत्म कर दिया 400 साल से खड़े किसी विवादित ढांचे को पांच लाख की भीड़ से गिरवाने के लिए 56 इंच का सीना चाहिए होता है, जो वाकई में कल्याण सिंह के पास था।

कल्याण सिंह जी को भावभीनी श्रद्धांजलि 💐🙏🙏