यादें शेष …
जैसे जैसे रक्षाबंधन का त्यौहार पास आ रहा है ,वैसे वैसे रूपा का मन बेचैन होता जा रहा था !
अपने मन को बहुत इधर उधर करने कि कोशिश करती, लेकिन मन है कि , यादों में डूबता जा रहा था , जिन्हें अब याद करने से भी दिल का कोना ओर आँखे भीग जाती !
याद आ रहे थे पुराने दिन, जब राखी का त्यौहार मन में उल्लास ओर उमंग भर देता था ।
राखी पर क्या उपहार खरीदना है ,उसे क्या मिठाई पसन्द है ! कैसा शर्ट उस पर खिलेगा ! छोटी बहनों कि भी पूरी जिम्मेदारी रहती थी कि ,पीहर में राखी का त्यौहार इस तरह मनाऐं कि, माँ पिताजी ,बेटियों के जाने के बाद भी महीनों बीते हुए सुंदर पलों को याद कर खुश होते रहें !
पीहर में राखी मनाकर मीठी मीठी यादें ! ले दे कर सब अपने घर चली आती !
तब रूपा और छोटी बहनों ने सोचा भी नही था कि , जिस त्यौहार का कई दिनों पहले से इन्तजार रहता था ! वही त्यौहार इतना सुना और बेरंग हो जाएगा ओर ,पूरे घर की खुशियों में ग्रहण लगा देगा ! वक्त ने ऐसा खेल किया कि, जिस प्यारे राजा भैया जो ,सच मे भी किसी राजकुमार से कम नही था, बहनों की आंखों का तारा !
जिसकी हर फ़रमाइश पूरी करने के लिए माँ पिताजी और बहनें हरदम तैयार रहती , एक दिन घर से ऐसे निकला कि ,घर वापस आ ही नही पाया ! बाईक एक्सीडेंट में रक्षाबंधन के दिन हमेशा के लिए चला गया । और छोड़ गया माँ पिताजी का आँगन ,और सुनी पथराई आँखे। ऐसा सुंदर और पवित्र त्यौहार ! लेकिन , रूपा और छोटी बहनों के लिए अर्थहीन हो गया!
माँ बाबूजी अकेले रहकर दुःखी न हो , वह पीहर जरूर जाती हैं ! बाबूजी कहते हैं ,अभी हम तो जीवित हैं !
भाई के दुर्घटना होने के बाद डॉक्टर ने जब उसके ना बचने कि खबर दी ,तब वह टूट गए थे ,और बड़े ही भारी मन से उन्होंने उसकी आँखे दान करने का मन बना लिया था !
“कि किसी के जीवन में उनके बेटे की आँखो से उजाला हो सके” !
सभी बहनें भाई के साथ जो सुनहरी “यादें” हैं , उन्हें ही उस दिन जीने की कोशिश करती हैं ! और अपने भाई के मरणोपरांत बाबूजी द्वारा किए गए अंग दान से यह सोचकर भावुक हो उठती हैं कि, उनके भाई कि आँखो से कोई तो ईस सुंदर संसार को निहार रहा होगा ! और प्यारे भाई के वजूद को जिंदा रख रहा होगा !!
किरण केशरे ✍