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“मायके की टीस “
स्निग्धा चहकती हुई अपने मायके फोन लगाती है , मायके का बेसफोन उठाते हैं स्नेहा के बड़े भैया ……आवाज सुन , हेलो भैया , सादर प्रणाम, स्निग्धा बोल रही हूँ । कैसे हैं आपलोग? माँ – पापा और भाभी का क्या हाल है ?सब ठीक है बहना , तुम अपना कहो। कैसी हो तुम? जी भैया , हम सब ठीक-ठाक हैं । चार दिन के बाद रक्षाबंधन है इसलिये इस बार आ रही हूँ आपको और गौरव को राखी बाँधने ।, मेरी शादी के पुरे नौ बरस के बाद संजोग जुटा है राखी में आने का ! इतनी ज्यादा उतावली हूँ और उत्साहित भी , मेरा वश चलता न तो उड़कर आप सबके पास आ जाती मैं । अच्छा है स्निग्धा आओ न , हम सब भाई बहन राखी का त्योहार एक साथ सेलिब्रेट करते हैं, इधर भैया भी कह रहे हैं फोन पर । ठीक है भैया , पर आप माँ पापा को मत बताईयेगा ? उन्हें मैं आकर सरप्राइज दूंगी अपने आने का ।ओ के कहकर फोन रख दिया गया दोनों की ओर से।
यूँ स्निग्धा को लगा मायके में कुछ ठीक नहीं चल रहा है क्योंकि मेरे आने की खबर से भैया खासा उत्साह नहीं दिखाए हैं? पता नहीं क्यूं उनके आवाज से औपचारिकता का आभास लगा।
राखी के दिन सुबह सुबह ही स्निग्धा पहुंचती है ।
स्निग्धा अपने माँ पापा से मिलने उनके कमरे में जाती है । अरे बेटा तु कब आई? माँ बेटी को देख खुश होती हैं , अभी आयी हूँ , आपको और पापा को सरप्राइज देना चाहती थी इसलिए बताया नहीं? पापा कहाँ हैं ।
पहले बैठ तो सही, पापा भी आ जायेंगे ।
तब तक स्निग्धा की बड़ी भाभी आ जाती हैं , भाभी ननद गले मिलते हैं । भैया कहाँ हैं, वो फल मिठाई लेने बाजार गए हैं आते ही होंगे ।
चलिए भाभी राखी की थाली सजा लेते हैं । हाँ चलो , मैं भी तुम्हारी मदद करती हूँ भाभी बोली।
भाभी छोटे भाई भौजाई नहीं दिख रहे , थाली में राखी कुमकुम दीया मिठाई सजाकर रखते हुए स्निग्धा पूछ बैठी है । वो लोग ऊपर वाले तल्ले में रहते हैं उनके साथ में पापा भी रहते हैं । यह सुनते ही स्निग्धा के हाथ से थाली छूटते छूटते बचा ?
भाभी, ये सब कब हुआ? मतलब आपलोग अलग अलग हो गए हैं , माँ नीचे आपलोग के साथ रहती है और पापा ऊपर छोटे भाई के साथ!
हाँ ,स्निग्धा चार महीने पहले ही ऊपर नीचे फ्लोर को हम दोनों आपस में बाँट लिए हैं ।
यह किसके द्वारा।किया गया है , इसके पीछे आप हैं या छोटी भाभी का किया धरा है ? बाजार से आने दीजिए भैया को , पूछती हूँ कि माँ पापा के जीते जी घर भी बाँट लिया है और दोनों को भी बाँट दिया है ? स्निग्धा जोर जोर से रोने लगी , हे भगवान ! भाभियाँ का तो अलग खून है भिन्न भिन्न घर से संबंधित संस्कार हैं इनके । लेकिन दोनों भाई तो अपने हैं एक ही कोख के जने?
गौरव गौरव!उच्च स्वर से पुकार रही है स्निग्धा,
अरे दीदी , आप कब आईं ? ,
आज राखी के दिन दीदी के दर्शन हो गए , खुशी से गौरव बोल पड़ा है । स्निगधा के आवाज की गुंज से पापा और गौरव की पत्नी भी आ जाती है ।
पापा को देख कर स्निग्धा की आंखें नम हो गई हैं, ये वही पापा हैं जिनके छांव के तले हम पले बढ़े हैं।पापा के गले लग फफक कर रो पड़ी है स्निग्धा , ये सब क्या हो गया है पापा ? आपका घर है ये , यह निर्णय आपका है कौन कहाँ रहेगा ? ये सब कैसे होने दिया आपने ।
बेटा , तू बैठ तो सही !थोड़ी देर सांस ले ले , फिर बात करते हैं । पापा स्निग्धा को अपने ही समीप बिठा लेते हैं और उसके सिर पर स्नेहपूर्वक हाथ फेरने लगते हैं।
देख बेटा , तू पूरे दो साल पर आयी है मायके । जब से गौरव की शादी हुई है बड़ी बहू को ऐसा लगने लगा कि हमने छोटी बहू को ज्यादा गहना कपड़ा लत्ता दिया है । बड़ी बहू पिछले चौदह साल से इस घर की बहू है , इतने सालों में यदि हमने तुम्हारे माँ के लिए पांच हजार की साड़ी खरीदी है तो बड़ी बहू के लिए भी खरीदी है। समभाव से सब कुछ किया है , फिर कौन सी कमी रही है उसके लिए ?
कुछ महीनों से गौरव की वाइफ का जीना हराम कर रखा था इसने । इसलिए घर की शांति सुकून के लिए हम लोग ऊपर नीचे शिफ्ट हो गए हैं । रोज की कलह से तेरी माँ का बी पी बढ़ जाता था ।
यह सुनकर स्तब्ध रह गई स्निग्धा ! भैया भी आ गए, भैया आप भी भाभी के गलत सोच पर चल रहे हैं , पर भैया चुप खड़े हैं!
आज राखी का त्योहार है और मैं अपने दोनों भाई के कलाई पर राखी नहीं बांध सकती जब तक आपदोनों माँ पापा को तकलीफ देने के लिए माफी नहीं मांगते?
फिर पापा बोल पड़े कि एक और फैसला किया है मैंने कि इस घर का तीन हिस्सा होगा , एक तुमदोनों का और एक हिस्सा स्निग्धा का है ।
पापा के निर्णय से दोंनो भाई सकते में है और अपनी अपनी बीबी के चेहरे देख रहे हैं मतलब बड़े भैया भाभी के चेहरे पर हवाईयाँ उड़ रही है !
जो फैसला करना है आज ही कर लो दोनों भाई मेरे सामने ,
माँ पापा को इस तरह अलग थलग रखकर वापस नहीं जा सकती । यह घर पापा के मेहनत की कमाई का है और माँ ने भी एक एक पाई जोड़ा तब जाके यह मकान बना ।
,मेरा दोनों भाई में से जो मेरे साथ निष्छल स्नेह जतलाएगा , उसे मैं अपना हिस्सा सौंप दूंगी ।
पापा ने अल्टीमेटम देकर भाई यों के नाक में नकेल डाला है । अपनी बेटी को देख हिम्मत बंधी है पापा में , कहते हैं न कि बेटी परायी होती है लेकिन बेटा भी शादी के बाद पराया बन रोबोट पति बन जाते हैं ।
खैर !मुझे क्या करना है संपति का ? जिसके हृदय में माँ पापा के सेवा करने की श्रद्धा है , उसे ही मैं अपना भाई मानती हूँ और राखी भी बाँधूगी। गौरव आगे बढ़ अपना कलाई बढ़ाता है , राखी बाँध देती है स्निग्धा । भैया मौनी बाबा बने खड़े हैं जैसा बीबी ने नचाया वैसा नाचते रहे ।अभी भी इगो है इनमें कि बड़ा हूँ , छोटी है बहन, खुद आकर बाँधे मुझे।
खैर !
भैया आप भाभी से ही राखी बंधवा लो , ठीक है न! तंज कसते हुए स्निग्धा बोल पड़ी है और भैया मेरे पास आकर अपनी कलाई बढ़ा देते हैं और आज हमारा भाई बहन का अनमोल रिश्ता रक्त का जीत जाता है ।राखी बाँधने के बाद भैया उपहार स्वरूप पाँच हजार रूपया मेरे हाथ में रख देते हैं और छोटा भाई भी दो हजार का नोट थमाता है । दोनों भाई भावविहल हो बोल पड़ते हैं बहना ऐसे ही हरेक साल राखी में आती रहना।
अंजूओझा पटना
मौलिक स्वरचित
१७•८•२१