कहानी – लाल बिंदी
लम्बे अंतराल के बाद आज अचानक, फोन पर रागिनी भाभी की आवाज सुन कर रिया खुशी से झूम उठी। उनकी खनकती हुई आवाज अभी भी कानों में मिश्री-सी घोल रही थी। एकाएक वह ठिठक पड़ी! ओह ! ये क्या किया उसने? बिना सोचे समझे ही झट उनसे मिलने के लिए हामी भी भर दी। वह सोच में पड़ गयी, अगर कहीं शरद को पता चल गया तो … फिर वही हँगामा … ! वह भीतर ही भीतर काँप उठी। मगर अगले ही पल अपना सिर झटक कर, शरद का लंच बाॅक्स तैयार करने में जुट गयी। उधर घड़ी की सुइयाँ भी अपनी रफ्तार से भागी चली जा रही थी।
बारह बजे का टाइम दिया था भाभी ने मिलने का और लंच साथ लेने का वादा भी। उसका तो मन हुआ था कि वह उन्हें घर पर ही बुला ले। मगर शरद को तो उनका चेहरा तक देखना पसंद नहीं था। उनके लिए तो वह … छी-छी! इतने गंदे शब्द बोलना तो दूर, वह स्वप्न में भी नहीं सोच सकती। क्या पुरुष की सोच, किसी स्त्री के लिए इतने नीचे तक गिर सकती है! वह इसी उधेड़बुन के साथ काम करती जा रही थी।
उसने स्टडी रूम में झाँक कर देखा। शरद अभी भी, कुछ कागज-पत्तर उठा-धर रहा था। ओह! ऐसा तो नहीं कि आज फिर वह आॅफिस न जाए और घर पर ही बैठकर, लैपटॉप पर अपना काम करे? उसने एक गहरी साँस ली। उससे कुछ भी पूछने का मतलब था कि उसका मूड फ्लकचुएट करना। वैसे भी उसके मूड का कोई ठिकाना नहीं। कितना भी, कुछ भी उसके लिए कर दो, मगर … । वह खीज उठी, ये आदमी की जात भी ना …! भगवान ने भी न जाने क्यों, इतने कठोर हृदय वाले प्राणी को रच कर धरती पर भेज दिया।
सारा काम निपटा कर वह, शीशे के सामने तैयार होने लगी। माथे पर बिंदी लगाने के लिए ड्रार खोला ही था कि रागिनी भाभी का मुस्कुराता चेहरा सामने आ गया। ऊँचे माथे पर, बड़ी-सी सुर्ख लाल बिंदी, ढ़ीला-सा जूड़ा, कितना फबता था उन पर। उसने भी बड़ी-सी लाल बिंदी निकाल कर झट अपने माथे पर लगा ली।
भैया के न रहने पर, आस-पड़ोस की बड़ी-बूढ़ीयाँ कहने लगी थीं, बहू की इस बिंदी को ही तो सबकी नजर लग गयी। दुःख की उस घड़ी में भला उन सबको कौन समझाता कि भैया एक आर्मी आॅफिसर थे, और देश से प्रेम करने वाले सिपाही की ज़िंदगी तो उसके देश की अमानत होती है। रस्मोरिवाज के बीच एक माँ ही तो थी, जिसने भाभी के माथे से उसकी बिंदी नहीं उतरने दी थी।
अचानक दरवाजे के खुलने की आहट पाकर, उसने धीरे से बाहर झाँका। शरद आॅफिस के लिए निकल रहा था। उसने राहत की साँस ली और उसके जाने के कुछ मिनट बाद ही, वह भी जल्दी से दरवाजा लाॅक करके, लिफ्ट से नीचे उतर कर कार में जा बैठी।
कार सड़क पर दौड़ी जा रही थी। अनगिनत विचार घुमड़-घुमड़ कर मस्तिष्क पर छाने लगे। क्या भाभी पहले की ही तरह खुश होंगी? कैसी दिखती होंगी अब वह? उन्होंने जो फैसला लिया, क्या सचमुच वह सही था? भैया के न रहने पर अब उनकी जिंदगी कितनी बदल गयी होगी …। बहुत सारी बातें याद करके उसकी आँखें भर आईं।
भैया जब फील्ड पर होते तो भाभी कुछ दिनों के लिए माँ के पास रहने आ जाती थीं। कितना अच्छा लगता था सबको। घर गुलजार हो जाता था। भैया का लेटर आते ही, फिर तो भाभी का चेहरा और भी खिल उठता था। फोन पर तो कुछ पलों के लिए ही बात हो पाती थी।
विचारों के अंतर्द्वंद के साथ, होटल भी आ चुका था। दूर से ही हाथ हिलाती हुई भाभी दिख गयीं। जल्दी से कार से उतर कर रिया दौड़ती हुई, उनके गले से जा लिपटी । “हाय भाभी!” आप तो बिल्कुल भी नहीं बदलीं।”
“अरे मेरी बिन्नो! भला मैं कैसे बदल सकती हूँ। तुम्हारे लिए तो मैं वही, तुम्हारी भाभी हूँ। कहते-कहते उनका स्वर भीग गया।”
बिन्नो! ओह! इस नाम को तो वह कब का भूल चुकी थी। ये नाम उसे भाभी का ही तो दिया हुआ था। सचमुच! भाभी जरा भी नहीं बदली थीं। वही खिलखिलाहट, ऊँचे माथे पर आज भी बड़ी-सी वही लाल बिंदी दमक रही थी। और चेहरे पर परिपक्वता, पहले से अब और भी ज्यादा झलकने लगी थी। शायद ये उनके जीवन के अनुभवों से मिला उनका उपहार था।
“चलो बिन्नो! पहले तुम्हें एक अच्छा-सा गिफ्ट तो दिलवा दूँ। फिर हम लंच करेंगे।”
“नहीं-नहीं! असली गिफ्ट तो बस आप ही हैं मेरे लिए। कहते-कहते रिया की आँखें फिर भर आईं। मगर अपने जज्बातों को जब्त किये हुए वह मुस्कुरा उठी। “आज तो मुझे सिर्फ आपसे बातें ही बातें करनी हैं, वो भी ढ़ेर सारी।”
भाभी हमेशा की तरह खिलखिला पड़ीं। हाथ में हाथ डाले दोनों होटल के अंदर दाखिल हो गयीं।
पहले से ही अपनी रिजर्व्ड टेबिल के सामने जा कर बैठ गयीं। खाने का ऑर्डर देने के बाद, रिया बोल उठी, “और भाभी, आप कैसी हैं?”
भाभी की आँखों की चमक, उनकी खुशहाल जिंदगी को बयां कर रही थीं।
“पहले तू बता बिन्नो, बच्चे कैसे हैं और तेरे पति …?”
“जैसा सब कुछ पहले था, वैसा ही आज भी है। बदला है तो सिर्फ इतना ही, कि बच्चे बड़े हो गये हैं और बड़ी क्लासेज में पहुँच गये हैं। और आप अपनी सुनाइए।” कहते हुए उसने भी खिलखिलाने की एक कोशिश की।
“तुझे तो मालूम ही होगा, रिनी न्यूजीलैंड में है। और मैं, आई एम सो हैप्पी!” कहते-कहते भाभी के चेहरे पर मानो दुनिया भर की खुशियाँ खिल आईं।
रिया, भाभी को देखे जा रही थी। बड़ी मुश्किल से वह बोल पाई, “और भाभी, आपके वो, आई मीन … वो कैसे हैं?”
भाभी समझ गई कि रिया उसके बारे में सब कुछ जानना चाहती है।” वह बोल पड़ी, “बिन्नो, ही इज अ वंडरफुल मैन!”
“रियली भाभी!” रिया अब खुलने की कोशिश करने लगी।
“यस डियर!”
“क्या मेरे संजू भैया से भी ज्यादा?” रिया उत्सुक हो उठी।
भाभी फिर खिलखिला पड़ीं। “न कम, न ज्यादा। बस संजू की कम बोलने की आदत थी, और, रजत की बहुत …। इतना ही अंतर है दोनों में …।” कहते-कहते वह कुछ पलों के लिए गम्भीर हो गयीं। शायद संजू भैया की याद उन्हें उद्वेलित कर गयी थी।
रिया उनके चेहरे के हर एक भाव को पढ़ने की कोशिश कर रही थी। वह भी रिया को ध्यान से देख रही थीं। शायद उसके भीतर जो चल रहा था, उसे पढ़ने की कोशिश कर रही थीं।
रिया फिर बोल पड़ी, “सचमुच भाभी! आप खुश तो हैं न?”
अचानक उन्होंने उसका हाथ थाम लिया और उसकी आँखों में झाँक कर बोलीं, “जब तेरे भैया थे, तब भी रजत अक्सर हमारे घर आया करते थे। भैया की आत्मा तो बस उन्हीं में बसती थी।”
“और रजत जी की …?”
“उनकी तेरे भैया में। यूँ समझ बिन्नो, दोनों सोलमेट थे।“
रिया शांत-सी उनके हृदय की गहराई में गोते लगाने लगी थी।
“तेरे भैया की डेथ के दस महीने बाद, रजत ने जब मेरे सामने प्रपोजल रखा था, तब एक बार तो मैं चौंकी थी और डरी भी थी।”
“डर …? किस बात का डर भाभी?”
यही कि ऐसा न हो कहीं ये भी दूसरे पुरुषों की तरह हो। आई मीन, जैसा कि मैं लोगों के संबंधों में सुनती आई थी । वैसे भी बिन्नो, मैंने संजू के अलावा अपने जीवन में, कभी किसी दूसरे पुरुष की कल्पना ही नहीं की थी।
“फिर भाभी …!”
“मगर, एक दिन संजू की अलमारी का लाॅकर खोला तो जरूरी कागजों के बीच उसकी हैंडराइटिंग में लिखा एक लेटर मिला।
रिया की उत्सुकता अपनी चरम सीमा पर पहुँच गयी। “क्या लिखा था भैया ने, भाभी?”
“यही, कि यदि मैं न रहूँ तो तुम कभी अकेले मत रहना। अपना जीवन साथी खोज लेना। और सच कहूँ, तो तुम्हारे माथे पर ये लाल बिंदी बहुत अच्छी लगती है मुझे …।” कहते हुए उनकी आँखें भर आईं।
रिया का ध्यान अपनी बिंदी की ओर चला गया। मगर वह भाभी के अंदर रिस रही संवेदना को भी महसूस कर रही थी।
“मैं तो इंतजार में बैठी थी कि कब संजू ड्यूटी से लौट कर आए और मैं उसकी अच्छी तरह से खबर लूँ। मगर खबर तो वहाँ से आई थी, वो भी उसके शहीद होने की खबर …।” कहते हुए भाभी का स्वर काँपने लगा। “कितना रोई थी उस लेटर को थाम कर। उसमें, उसके चेहरे को ढूँढती रही थी। मगर एक प्रश्न आज भी बार-बार मन को कुरेदता है, तो क्या उसे पहले से ही अपने जाने का अहसास हो गया था?”
“ओह! भाभी, भैया के न रहने की खबर सुन कर तो माँ भी …। सचमुच! आज माँ होती तो आपको खुश देखकर कितनी खुश होती।”
दोनों एक दूसरे का हाथ थामे, एक दूसरे को महसूस कर रही थीं।
“मालूम है बिन्नो! रजत से मेरी शादी को तेरह साल बीत चुके हैं। शादी के बाद ही मैंने उसे अच्छी तरह से जाना। मेरी ढ़लती उम्र में उसने मुझसे साथ तो जोड़ा, मगर संजू के अहसास को भी जिंदा बनाए रखा।”
रिया ने चौंक कर रागिनी की ओर देखा।
“वही अहसास तेरे भैया का, हर पल मेरे साथ रहता है।”
रिया ने कसकर रागिनी भाभी का हाथ थाम लिया। भीतर ही भीतर अब उसका मन भी भीगने लगा था।
रागिनी ने घड़ी की ओर देखा, फिर बोल उठी, “सच कहूँ, अब तो मुझे लगता है कि सारे पुरुष, संजू और रजत जैसे ही होते हैं।” मुस्कुराते हुए उन्होंने रिया का हाथ धीमे से दबा दिया।
“भाभी को खुश देखकर, अब रिया पूरी तरह से आश्वस्त हो गयी थी। मगर उसकी आँखों के सामने एकाएक शरद का कठोर चेहरा उभर कर आ गया। और उसके भीतर ईर्ष्या का भाव उपजने लगा, उसने फौरन उसे कसकर झटक दिया। वह बोलना तो चाह रही थी, काश! मगर मुँह से फूट पड़ा, “आमीन!”
कुछ सेकंड की चुप्पी के बाद भाभी फिर बोल पड़ी, “आई एम लकी, आई मेट टू वंडरफुल मैन इन माय लाइफ !” कहते हुए उनकी लाल बिंदी की लालिमा उनके गालों तक उतर आई।
इस बार रिया भी उन्हीं की तरह खिलखिला उठी, “रि य ली!”
भाभी भी उसकी आँखों में झाँककर मुस्कुराते हुए बोली, “रि य ली!”
“एक बात मैं भी सच-सच कहूँ भाभी! रिया की आवाज में ढ़ेर सारा प्यार छलकने लगा और अपनी रागिनी भाभी को गले से लगा कर बोली, “यू आर आलसो अ वंडरफुल वुमन्!”
प्रेरणा गुप्ता – कानपुर
मौलिक रचना
रचनाकाल : 28 – 4 – 2019
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