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गृह क्लेश क्यों होता है ।
बहुत प्रेरक कहानी

संत कबीर रोज सत्संग किया करते थे। दूर-दूर से लोग उनकी बात सुनने आते थे। एक दिन सत्संग खत्म होने पर भी एक आदमी बैठा ही रहा। कबीर ने इसका कारण पूछा तो वह बोला, ‘मुझे आपसे कुछ पूछना है।

मैं गृहस्थ हूं, घर में सभी लोगों से मेरा झगड़ा होता रहता है । मैं जानना चाहता हूं कि मेरे यहां गृह क्लेश क्यों होता है और वह कैसे दूर हो सकता है ?

कबीर थोड़ी देर चुप रहे, फिर उन्होंने अपनी पत्नी से कहा,‘ लालटेन जलाकर लाओ’ । कबीर की पत्नी लालटेन जलाकर ले आई। वह आदमी भौंचक देखता रहा। सोचने लगा इतनी दोपहर में कबीर ने लालटेन क्यों मंगाई ।

थोड़ी देर बाद कबीर बोले, ‘ कुछ मीठा दे जाना। ’इस बार उनकी पत्नी मीठे के बजाय नमकीन देकर चली गई। उस आदमी ने सोचा कि यह तो शायद पागलों का घर है। मीठा के बदले नमकीन, दिन में लालटेन। वह बोला, ‘कबीर जी मैं चलता हूं।’

कबीर ने पूछा, आपको अपनी समस्या का समाधान मिला या अभी कुछ संशय बाकी है ? वह व्यक्ति बोला, मेरी समझ में कुछ नहीं आया।

कबीर ने कहा, जैसे मैंने लालटेन मंगवाई तो मेरी घरवाली कह सकती थी कि तुम क्या सठिया गए हो। इतनी दोपहर में लालटेन की क्या जरूरत। लेकिन नहीं, उसने सोचा कि जरूर किसी काम के लिए लालटेन मंगवाई होगी।

मीठा मंगवाया तो नमकीन देकर चली गई। हो सकता है घर में कोई मीठी वस्तु न हो। यह सोचकर मैं चुप रहा। इसमें तकरार क्या ? आपसी विश्वास बढ़ाने और तकरार में न फंसने से विषम परिस्थिति अपने आप दूर हो गई।’ उस आदमी को हैरानी हुई । वह समझ गया कि कबीर ने यह सब उसे बताने के लिए किया था।

कबीर ने फिर कहा, गृहस्थी में आपसी विश्वास से ही तालमेल बनता है। आदमी से गलती हो तो औरत संभाल ले और औरत से कोई त्रुटि हो जाए तो पति उसे नजर अंदाज कर दे। यही गृहस्थी का मूल मंत्र है।

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एक व्यक्ति की बीवी के साथ कोई जबरदस्ती कर रहा था

तो वो भागकर अंदर गया और चरखा उठा लाया

और चलाने लगा

बीवी को गुस्सा आया और वो चिल्लाई :

तुम पागल हो क्या ये गुंडा मेरे साथ गलत कर रहा है

और तुम चरखा चला रहे हो ?? व्यक्ति : चरखे से तो अंग्रेज भाग गए फिर ये किस खेत की मूली है

ये भी भाग जाएगा!

ये कहकर व्यक्ति चरखा और जोर से चलाने लगा

जब तक वो गुंडा उस नारी के साथ और ज्यादा बदतमीजी करता रहा!

बीवी रोती हुई गुस्से में पति से बोली

छोडो ये चरखा और pls मुझे बचाओ!

ये सुनकर व्यक्ति ने चरखा side में पटका

और उठकर बलात्कारी के निकट गया

और पूरी विनम्रता से बोला मेरी पत्नी को छोड़ दीजिये!

इतना सुनते ही उस गुंडे ने व्यक्ति के एक खेंचके झाँपट मार दिया!

तो पति ने दूसरा गाल आगे कर दिया

और फिर बोला pls मेरी बीवी को छोड़

दीजिये उस गुंडे ने दूसरे गाल पे भी एक कसके झाँपट मार दिया

व्यक्ति बेहोश हो गया!

इतने में एक भगत सिंह नाम का वीर वहाँ से गुजरा,

उसने जब चीख पुकार सुनी तो वो अंदर गया

और उस महिला को बचाने के लिए गुंडे से भिड़ गया

और आखिर में उस गुंडे को भगा दिया!

उस औरत ने भगत सिंह को धन्यवाद दिया,

तभी पुलिस वहाँ पहुंच गयी

तो पत्नी ने सारा क्रेडिट अपने पति को दे दिया

और दोनों लाल गाल दिखा कर पति ने बहादुरी के सबूत दिखा दिए,

पुलिस ने उस पति को
“वीरता चक्र दिया और भगत सिंह को पकड़ के
गुंडा गर्दी करने के आरोप में जेल में डाल दिया !”

व्यंग्य :- “इस घटना का इतिहास से कोई
लेना देना नही है”..

कितने झूले थे फाँसी पर ,

और कितनों ने गोली खाई थी,

क्यों झूठ बोलते हो साहब ,

कि चरखा चलाने से आजादी पाई थी..!👊🏻🔥😡

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. “गुरु की कृपा” गुरु-कृपा अथवा सन्त-कृपा का बहुत विशेष माहात्म्य है। भगवान् की कृपा से जीव को मानव शरीर मिलता है और गुरु-कृपा से भगवान् मिलते हैं। लोग समझते हैं कि हम गुरु बनायेंगे, तब वे कृपा करेंगे। परन्तु यह कोई महत्त्व की बात नहीं है। अपने-अपने बालकों का सब पालन करते हैं। कुतिया भी अपने बच्चों का पालन करती है। परन्तु सन्त-कृपा बहुत विलक्षण होती है। दूसरा शिष्य बने या न बने, उनसे प्रेम करे या वैर करे-इसको सन्त नहीं देखते। दीन-दु:खी को देखकर सन्त का हृदय द्रवित हो जाता हैं। तो इससे उसका काम हो जाता है। जगाई-मधाई प्रसिद्ध पापी थे और साधुओं से वैर रखते थे, पर चैतन्य महाप्रभु ने उन पर भी दया करके उनका उद्धार कर दिया। सन्त सब पर कृपा करते हैं, पर परमात्मतत्त्व का जिज्ञासु ही उस कृपा को ग्रहण करता है; जैसे-प्यासा आदमी ही जल को ग्रहण करता है। वास्तव में अपने उद्धार की लगन जितनी तेज होती हैं, सत्य तत्त्व की जिज्ञासा जितनी अधिक होती है, उतना ही वह उस कृपा को अधिक ग्रहण करता है। सच्चे जिज्ञासु पर सन्त-कृपा अथवा गुरु-कृपा अपने-आप होती है। गुरु कृपा होने पर फिर कुछ बाकी नहीं रहता। परन्तु ऐसे गुरु बहुत दुर्लभ होते हैं। पारस से लोहा सोना बन जाता है, पर उस सोने में यह ताकत नहीं होती कि दूसरे लोहे को भी सोना बना दे। परन्तु असली गुरु मिल जाय तो उसकी कृपा से चेला भी गुरु बन जाता है, महात्मा बन जाता है- पारस में अरु संत में, बहुत अंतरौ जान। वह लोहा कंचन करे, वह करै आपु समान॥ यह गुरुकृपा की ही विलक्षणता है! यह गुरुकृपा चार प्रकार से होती है-स्मरण से, दृष्टि से, शब्द से और स्पर्श से। जैसे कछवी रेत के भीतर अण्डा देती है, पर खुद पानी के भीतर रहती हुई उस अण्डे को याद करती रहती है तो उसके स्मरण से अण्डा पक जाता है, ऐसे ही गुरु के याद करने मात्र से शिष्य को ज्ञान हो जाता है-यह ‘स्मरण-दीक्षा' है। जैसे मछली जल में अपने अण्डे को थोड़ी-थोड़ी देर में देखती रहती है तो देखने मात्र से अण्डा पक जाता है, ऐसे ही गुरु की कृपा-दृष्टि से शिष्य को ज्ञान हो जाता है-यह 'दृष्टि-दीक्षा' है। जैसे कुररी पृथ्वी पर अण्डा देती है और आकाश में शब्द करती हुई घूमती रहती है तो उसके शब्द से अण्डा पक जाता है, ऐसे ही गुरु अपने शब्दों से शिष्य को ज्ञान करा देता है-यह 'शब्द-दीक्षा' है। जैसे मयूरी अपने अण्डे पर बैठी रहती है तो उसके स्पर्श से अण्डा पक जाता है, ऐसे ही गुरु के हाथ के स्पर्श से शिष्य को ज्ञान हो जाता है—यह 'स्पर्श-दीक्षा' है। ईश्वर की कृपा से मानव-शरीर मिलता है, जिसको पाकर जीव स्वर्ग अथवा नरक में भी जा सकता है तथा मुक्त भी हो सकता हैं। परन्तु गुरुकृपा या सन्तकृपा से मनुष्य को स्वर्ग अथवा नरक नहीं मिलते, केवल मुक्ति ही मिलती है। गुरु बनाने से ही गुरुकृपा होती है-ऐसा नहीं है। बनावटी गुरु से कल्याण नहीं होता। जो अच्छे सन्त-महात्मा होते हैं, वे चेला बनाने से ही कृपा करते हों-ऐसी बात नहीं है। वे स्वत: और स्वाभाविक कृपा करते हैं। सूर्य को कोई इष्ट मानेगा, तभी वह प्रकाश करेगा यह बात नहीं है। सूर्य तो स्वत: और स्वाभाविक प्रकाश करता है, उस प्रकाश को चाहे कोई काम में ले ले। ऐसे ही गुरु की, सन्त-महात्मा की कृपा स्वतः स्वाभाविक होती है। जो उनके सम्मुख हो जाता है, वह लाभ ले लेता है। जो सम्मुख नहीं होता, वह लाभ नहीं लेता। जैसे, वर्षा बरसती है तो उसके सामने पात्र रखने से वह जल से भर जाता है। परन्तु पात्र उलटा रख दें तो वह जल से नहीं भरता और सूखा रह जाता है। सन्तकृपा को ग्रहण करने वाला पात्र जैसा होता है, वैसा ही उसको लाभ होता है। सतगुरु भूठा इन्द्र सम, कमी न राखी कोय। वैसा ही फल नीपजै, जैसी भूमिका होय॥ वर्षा सब पर समान रूप से होती है, पर बीज जैसा होता है, वैसा ही फल पैदा होता है। इसी तरह भगवान् की और सन्त-महात्माओं की कृपा सब पर सदा समान रूप से रहती है। जो जैसा चाहे, लाभ उठा सकता है।

गौरव गुप्ता

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बालू के गोपाल ब्रज के पास एक गांव में मंदिर के बाहर एक महाराज कृष्ण भगवान की कथा सुनाते हुए कृष्ण भगवान के सुंदर बाल रूप का वर्णन कर रहे थे। उसी समय एक ठग बालू वहां से गुजर रहा था। वह भी थोड़ी देर कथा सुनने के लिए रुक गया। उस समय महाराज कृष्ण भगवान के आभूषणों का वर्णन करते हुए कह रहे थे "उस बालक के सिर पर हीरे मोती जड़े मोर मुकुट,गले में मोतियों की माला,कानों में रत्नजड़ित कुंडल,बाहों में बाजूबंद,उंगलियों में अंगूठियां,कमर में छोटी छोटी घंटियों वाला कमरबंद,पैरों में नूपुर वाले सुंदर पायल थे।यशोदा माता प्रतिदिन उनका श्रृंगार करती थीं।बालक अपने साथियों के साथ गाय चराने जाते थे ।' बालू ने यह सुनकर सोचा कि अगर यह बालक मुझे मिल जाए तो मुझे किसी को ठगने की जरूरत नहीं पड़ेगी ।परंतु यह बालक मिलेगा कहाँ। जरूर महाराज यह जानते होंगे।

वह कथा समाप्त होने की प्रतीक्षा करने लगा ।जब कथा समाप्त हुई और सारे भक्त चले गए तब बालू महाराज के पास पहुंचा और कहने लगा ‘ अभी आप जिस बालक का वर्णन कर रहे थे वह मुझे कहां मिलेगा।’
महाराज उसकी बात सुनकर मुस्कुराने लगे और यूँ ही कह दिया यहीं पास में वृंदावन के जंगल में यह बालक गाय चराते तुम्हें मिलेगा।’ बालू उसी दिन अपने मन में संकल्प करके निकला कि इस बालक से तो मुझे मिलना ही है और इसके सारे आभूषण में ठग कर ले लूंगा ।वह महाराज द्वारा बताए गए स्थान में पहुंचकर बालक की प्रतीक्षा करने लगा।
कुछ समय बाद उसने देखा कि गाय के झुंड आ रहे हैं और पीछे पीछे एक बालक बांसुरी बजाता हुआ आ रहा है ।बालू ने देखकर सोचा ‘यह बालक तो छोटा सा है, इसे तो पकड़ना और ठगना आसान है।’
जैसे ही बालक पास आया बालू ने उसका हाथ पकड़ लिया और कहा ‘अपने सारे आभूषण निकाल कर मुझे दे दो ।’
बालक बालू से नहीं डरा ।उसने मुस्कुराते हुए सारे आभूषण बालू को उतारने दिए। बालू ने सारे आभूषण अपने गमछे में बांध लिये।हीरे मोती जड़े हुए स्वर्ण आभूषण थे। बालू तो इन आभूषणों को देखकर बहुत ही खुश हो गया।
उसने बालक से कहा ‘तुमने इतनी आसानी से सारे आभूषण दे दिये।तुम्हारे माता पिता तुमसे कुछ नहीं कहेंगे।’
बालक ने भोलेपन से कहा’ मेरे पास ऐसे ही और आभूषण हैं ।मैं दूसरे पहन लूंगा।’
बालू ने मन ही मन सोचा वाह ऐसे ही और आभूषण मिल जाएं तो क्या कहना।उसने बालक से कहा ‘ठीक है कल फिर आना ‘और अपनी राह ली।
रास्ते में वह सोचने लगा कि उस महाराज के कारण ही मुझे इतने कीमती आभूषण मिले हैं। कथा सुनने के बाद भक्तजन महाराज को दक्षिणा दे रहे थे ।मुझे भी कुछ दक्षिणा देनी चाहिए । मुझे भी महाराज को कुछ आभूषण दे देना चाहिए । वह महाराज के पास गया और गमछा खोल कर कहने लगा ‘महाराज आप इसमें से कुछ आभूषण ले लीजिए।”
महाराज आभूषणों कोई देखकर आश्चर्यचकित रह गए ।उन्होंने बालू से पूछा ‘तुम यह सब कहां से लेकर आ रहे हो?’
बालू ने बताया ‘ आपने सुबह मुझे उस बालक के मिलने का जो स्थान बताया था, मैं उसी स्थान पर गया और उस बालक से मिला । उसने अपने पहने हुए आभूषण मुझे आसानी से दे दिए।’
महाराज पहले तो विश्वास नहीं कर पाए ।फिर उन्होंने आभूषणों को उलट पलट के देखा तो उन्हें मोर मुकुट दिखाई दिया ।उन्होंने बालू से कहा ‘मुझे भी उस बालक के दर्शन करने थे ।’
बालू ने कहा ‘वह कल फिर आएगा। आप कल मेरे साथ चलिएगा और उसे देख लीजिएगा।’
दूसरे दिन महाराज बालू के साथ उसी स्थान पर जाकर एक पेड़ के पीछे छिपकर बालक की प्रतीक्षा करने लगे ।थोड़ी देर की प्रतीक्षा के बाद काल के जैसे ही गायों के झुंड के पीछे पीछे बांसुरी बजाता हुआ सुंदर बालक दिखाई दिया। बालू ने महाराज से कहा ‘आप यहीं छिपे रहिए। पहले मुझे बालक के आभूषण लेने दीजिये।’
महाराज तो उस सुंदर बालक के रूप को देखकर ही मोहित हो गए थे। उनकी आंखों से आंसुओं की धारा बह रही थी।
बालू बालक से बात करते करते एक एक आभूषण निकालते जा रहा था। बालक भी मुस्कुराते हुए आभूषणों को देते जा रहा था।
सारे आभूषण निकालने के बाद बालू ने बालक से कहा ‘ एक महाराज भी मेरे साथ में आए हैं । तुमसे मिलना चाहते हैं। ‘
बालक ने कहा ‘ठीक है,उन्हें बुला लो।’
बालू ने महाराज को आवाज दी । महाराज जी तो मूर्ति के समान खड़े थे।बालू ने उनके पास आकर उनको हिलाया और कहा चलिए।
महाराज बालक के सामने आए और उसके चरणों में गिरकर अपने आंसुओं से उनके चरण धोने लगे ।बालू यह देख कर आश्चर्यचकित हो गया कि महाराज जी तो स्वयं इतने विद्वान हैं ,सब लोग तो इनके चरण छूते हैं । यह छोटे से बालक के चरण क्यों छू रहे हैं ।बालक ने बड़े प्रेम से महाराज जी को उठाया उनके आंसू पोंछे। बालू ने महाराज से पूछा
‘ आप इसके चरण क्यों छू रहे हैं? यह तो छोटा सा बालक है।’
तब महाराज ने उसे बताया कि ‘यह तो परमानंद भगवान
जगत के स्वामी गोपाल हैं, जिनकी मैं जीवन भर आराधना करता रहा और कथा सुनाता रहा। इन्होंने कभी मुझे दर्शन नहीं दिए। आज तुम्हारे कारण मुझे अपने आराध्य गोपाल जी के दर्शन हो गए । तुम्हारे विश्वास के कारण ही आज गोपाल जी ने तुम्हें दर्शन दिए हैं ।’
गोपाल जी ने दोनों को ही आशीर्वाद दिया और अपने लोक चले गए। बालू को यह सब सुनकर पश्चाताप होने लगा कि मैंने भगवान को ही ठग लिया । महाराज ने उसे समझाया कि तुम्हारे कारण आज मुझे भी उनके दर्शन हुए हैं ।
बालू की आंखें खुल गई। वह महाराज जी के साथ ही रहने लगा और गोपालजी की भक्ति में अपना शेष जीवन बिताने लगा।

संकलित
नीरजा नामदेव

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💪💪💪💪 💪💪–हड़ताल–💪💪💪💪💪💪

एक सच्ची घटना।

उन दिनों मेरी पोस्टिंग एक छोटे से पर समृद्ध गाँव में थी। इंदौर के करीब, रेल और सड़क मार्ग की सुबिधा से सम्पन्न।

गाँव में एक प्लास्टिक शीट का कारखाना था। जो कई लोगों के रोज़गार का साधन था। कारखाने का मालिक चूँकि उसी गाँव का निवासी था– इसलिये इंदौर में खुद की हवेली होने के बावजूद –अपने पिता की इच्छा से रात्रि विश्राम गाँव में ही करना पसंद करता था। दिन में इंदौर चला जाता और अपने दूसरे कारोबार की देख-रेख करता।

प्लास्टिक फैक्टरी दक्ष मैनेजर और कर्मचारियों के सहारे चल रहा था।

कारखानेदार ने देखा कि गाँव के कई युवा बेरोज़गार बैठे है। दिन भर शतरंज और ताश खेलने में सर्फ कर रहे है। इनमें से कई उसके बाल मित्र थे। उन्हें रोज़गार देने की नीयत से कारखानेदार ने टॉर्च असेम्बलिंग का एक यूनिट अपने प्लास्टिक कारखाने के पास डाल दिया।

पार्ट्स इंदौर से आते।टॉर्च की शक्ल अख्तियार कर –पैक हो कर वापस इंदौर।
पचासों छोकरो को नोकरी मिल गयी।
सेठ भी सन्तुष्ट था कि बिना विशेष हानि के अपने गाँव के प्रति कर्तब्य का निर्वाहन कर रहा है।
कच्चा माल लाने एवम तैयार माल इंदौर पहुँचाने में जो ट्रक का किराया लगता था वह सस्ती मज़दूरी में समायोजित हो जाता था।

फिर एक दिन अज़ाब आ गया।
सेठ ने किसी कर्मचारी को डाँटा।
कर्मचारियों का स्वाभिमान जाग उठा।
सेठ लिखित में माफी माँगो से लेकर– इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाते हुवे –कारखाने से सेठ के आवास तक रैली निकाली गयी।
सयाने-होशियारचंदो ने मांगों की लंबी फेहरिस्त बनायी। कुछ अनोखे असम्भव जैसे मांग भी जोड़े गए।
सरकारी नोकरी में मिलने वाले लाभ एवम सुबिधा से मिलता-जुलता ड्राफ्ट तैयार किया गया।

कल तक जो बेरोज़गार थे। जिन पर अहसान करने की नीयत से ये असेम्बलिंग यूनिट खोला गया था।अब सबको कम से कम तीन गुना वेतन वृद्धि, मेडिकल सुबिधा, गाँव के गाँव मे आने-जाने के लिये यात्रा भत्ता–यहाँ तक कि 20 साल नोकरी करने के बाद निश्चित और नियमित पेंशन की लिखित गैरन्टी भी चाहियें थी।

सेठ माँगो की लिस्ट पढ़ कर दंग रह गया।
लिस्ट सोंपने वाले से दो टूक पूछा “काम करना है या नहीं?”
जोश में अगले ने कहा –“नहीं। जब तक हमारी मांगे पूरी नहीं होती – आप लिखित में माफी नहीं मांगते तब तक नहीं।”
सेठ ने गहरी साँस ली। प्लास्टिक फैक्टरी के मैनेजर को तलब किया और टॉर्च यूनिट को स्थायी तौर से बन्द कर दिया।

पन्द्रह दिन बाद जोशीले जवानों को अहसास हुआ कि वे फिर से बेरोज़गार हो भी चुके है।
सात दिन बाद ही दो ट्रकों में भर कर टार्च यूनिट इंदौर पहुँच भी गयी और वहाँ खुद असेम्बल हो कर असेम्बलिंग का काम चालू कर दी।

जोशीले जवान जो अब तक नियमित कमाई होने के कारण कई तरह के शौक पाल चुके थे। सिगरेट से बीड़ी पर आ गए। पाउच और गुटका छोड़ कर तंबाकू मसलने लगे।

कुछ लोग गाँव के बड़े-बूढ़े लोगो को साथ ले जा कर– अनुनय-विनय करने पहुँचे कि गाँव में फिर से टार्च यूनिट चालू हो सके।
अपनी गरीबी मज़बूरी और बेरोजगारी का हवाला देकर गिड़गिड़ाने लगे।
सेठ द्रवित हो कर उन्हें इंदौर के प्लांट में गाँव वाली तनख्वाह पर नोकरी देने को तैयार हुआ।
गाँव के गाँव में जिन्हें यात्रा भत्ता चाहियें था–अब वे रोज़ 30 km प्रति दिन अप-डाउन अपने खर्चे पर कर रहे थे।

इंक़लाब ज़िंदाबाद । हमारी मांगे पूरी करो। हड़ताल । जब तक सूरज चाँद रहेगा नेताजी तेरा नाम रहेगा।

उपरोक्त नारों से कर्मचारियों का नहीं नेताओं का ही भला हुआ है।

बामियों के कदम जहाँ भी पड़े लोगो का भविष्य लुभावने नारों , सुनहरे सपने , नयी उम्मीद की भेंट चढ़ गया।

कानपुर जो भारत का मैनचेस्टर कहलाता था। आज खुद गुजरात महाराष्ट्र से कपड़े मंगवाता है।

बामियों जहाँ-जहाँ तुम्हारें कदम पड़े। तुम्हारें मनभावन नारों से मन में दबी छुपी इच्छाओं को भड़काने की कला से, मेरा हक़ मारा जा रहा है कि उकसाऊ सोच के कारण लोगो का भला कम नुकसान ज़्यादा हुआ है।
उधोग धंधे निपट गए।
तुम्हारी नज़रें इनायत कृषि पर पड़ चुकी है।
20 साल बाद अन्य वस्तुओं की तरह कृषि उत्पाद भी चाइना से ही आयात होगा

टाटा बिड़ला अम्बानी अडानी बियानी रामदेव की चाहें लाख बुराई कर लो पर इन्हें कोसने की जगह तुम खुद भी तो इनके जैसा बिज़नेस एम्पायर खड़ा कर सकते हो। तुम्हें बड़ा सेठ बनने से किसने रोका है ?

धीरूभाई अंबानी ने गाड़ियों में ईंधन भरा है।
बाबा रामदेव ने साइकिलों से जड़ी बूटियां ढोयी है।
बहुत से लोगों ने धक्के खा- खा कर ज़िन्दगी में कोई मुकाम हासिल की है।

तभी तो कहते है कि ठोकर खा-खा कर ठाकुर होना।

नोट:-मुझें अहसास है कि आलेख पढ़ने के बाद बहुत से लोग रुष्ट होंगे। मुझें कोसेंगे। गालियां भी देंगे। पर क्या करूँ! लगभग 25 साल तक नोकरी करने –ट्रेड यूनियनों को चंदा देने –उनका झंडा उठाने के बाद –यही अनुभव हुआ कि हमनें अजगर पाले है।

तभी तो दास मलूका कह गये है कि :-

अजगर करे न चाकरी पंक्षी करें ना काम
दास मलूका कह गये सबके दाता राम आपका अरुण कुमार अविनाश

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🙏🏻जय श्री कल्याण🙏🏻

मांस का मूल्य

मगध सम्राट बिंन्दुसार ने एक बार अपनी सभा मे पूछा :

देश की खाद्य समस्या को सुलझाने के लिए

सबसे सस्ती वस्तु क्या है ?

मंत्री परिषद् तथा अन्य सदस्य सोच में पड़ गये ! चावल, गेहूं, ज्वार, बाजरा आदि तो बहुत श्रम के बाद मिलते हैं और वह भी तब, जब प्रकृति का प्रकोप न हो, ऎसी हालत में अन्न तो सस्ता हो ही नहीं सकता !

तब शिकार का शौक पालने वाले एक सामंत ने कहा :
राजन,

सबसे सस्ता खाद्य पदार्थ मांस है,

इसे पाने मे मेहनत कम लगती है और पौष्टिक वस्तु खाने को मिल जाती है । सभी ने इस बात का समर्थन किया, लेकिन प्रधान मंत्री चाणक्य चुप थे ।

तब सम्राट ने उनसे पूछा :
आपका इस बारे में क्या मत है ?

चाणक्य ने कहा : मैं अपने विचार कल आपके समक्ष रखूंगा !

रात होने पर प्रधानमंत्री उस सामंत के महल पहुंचे, सामन्त ने द्वार खोला, इतनी रात गये प्रधानमंत्री को देखकर घबरा गया ।

प्रधानमंत्री ने कहा :
शाम को महाराज एकाएक बीमार हो गये हैं, राजवैद्य ने कहा है कि किसी बड़े आदमी के हृदय का दो तोला मांस मिल जाए तो राजा के प्राण बच सकते हैं, इसलिए मैं आपके पास आपके हृदय 💓 का सिर्फ दो तोला मांस लेने आया हूं । इसके लिए आप एक लाख स्वर्ण मुद्रायें ले लें ।

यह सुनते ही सामंत के चेहरे का रंग उड़ गया, उसने प्रधानमंत्री के पैर पकड़ कर माफी मांगी और

उल्टे एक लाख स्वर्ण मुद्रायें देकर कहा कि इस धन से वह किसी और सामन्त के हृदय का मांस खरीद लें ।

प्रधानमंत्री बारी-बारी सभी सामंतों, सेनाधिकारियों के यहां पहुंचे और

सभी से उनके हृदय का दो तोला मांस मांगा, लेकिन कोई भी राजी न हुआ, उल्टे सभी ने अपने बचाव के लिये प्रधानमंत्री को एक लाख, दो लाख, पांच लाख तक स्वर्ण मुद्रायें दीं ।

इस प्रकार करीब दो करोड़ स्वर्ण मुद्राओं का संग्रह कर प्रधानमंत्री सवेरा होने से पहले वापस अपने महल पहुंचे और समय पर राजसभा में प्रधानमंत्री ने राजा के समक्ष दो करोड़ स्वर्ण मुद्रायें रख
दीं ।

सम्राट ने पूछा :
यह सब क्या है ?
तब प्रधानमंत्री ने बताया कि दो तोला मांस खरिदने के लिए

इतनी धनराशि इकट्ठी हो गई फिर भी दो तोला मांस नही मिला ।

राजन ! अब आप स्वयं विचार करें कि मांस कितना सस्ता है ?

जीवन अमूल्य है, हम यह न भूलें कि जिस तरह हमें अपनी जान प्यारी है, उसी तरह सभी जीवों को भी अपनी जान उतनी ही प्यारी है। लेकिन वो अपना जान बचाने मे असमर्थ है।

और मनुष्य अपने प्राण बचाने हेतु हर सम्भव प्रयास कर सकता है । बोलकर, रिझाकर, डराकर, रिश्वत देकर आदि आदि ।

पशु न तो बोल सकते हैं, न ही अपनी व्यथा बता सकते हैं ।

तो क्या बस इसी कारण उनसे जीने का अधिकार छीन लिया जाय ।
शुद्ध आहार, शाकाहार ।।
मानव आहार, शाकाहार ।।

Posted in रामायण - Ramayan

सन 1558 में अमृतसर में पवित्र स्वर्ण मंदिर बनने जा रहा था ..लाहौर के एक साईं मियां मीर नामक मुस्लिम को यह बात पता चली… वह लाहौर से ननकाना साहिब यानी गुरु गुरु नानक देव जी के जन्म स्थान की मिट्टी लेकर पैदल चलकर आया और अमृतसर के स्वर्ण मंदिर के नींव में डाल दिया

आजादी के बाद जब जवाहरलाल नेहरू ने इतिहास को लिखने का काम वामपंथियों को सौंपा तब वामपंथियों ने यह लिख दिया स्वर्ण मंदिर की नींव एक मुस्लिम साईं मियां मीर ने रखी थी और आज इतिहास की किताबों में यही पढ़ाया जाता है कि स्वर्ण मंदिर की नींव साईं मियां मीर ने रखी थी

अब यह फैज खान जो भगवान राम के ननिहाल से मिट्टी लेकर निकला है यदि उसने यही काम राम मंदिर में किया तब भगवान ना करें यदि इस देश पर फिर से कांग्रेसी कुत्तों का शासन होगा तब कांग्रेसी कुत्ते वामपंथी इतिहासकारों के माध्यम से आज के सौ दो सौ साल बाद आने वाली पीढ़ियों को यही पढ़ाएंगे कि अयोध्या में भगवान श्री राम के मंदिर की नींव एक मुस्लिम फैज खान ने रखी थी

मुझे आश्चर्य होता है कि यदि फैज खान को सनातन धर्म से इतना प्यार है तब वह अलतकिया क्यों कर रहे हैं वह इस्लाम छोड़कर हिंदू धर्म क्यों नहीं स्वीकार कर लेते

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पहाड़ी को छूने पर रिसता है जल : पत्थर पर बने पदचिन्ह रामायण


पहाड़ी को छूने पर रिसता है जल : पत्थर पर बने पदचिन्ह रामायण कालीन*****************************************************************************झारखंड की राजधानी रांची से 20 किलोमीटर दूर स्थित है एडचोरो। यहां की पहाड़ी पर महादेव का एक मंदिर बना हुआ है जिसे लादा महादेव टंगरा के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर दो कारणों से भक्तों की आस्था का केंद्र है।^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^पहला कारण मंदिर परिसर में एक चट्टान स्थित है। ऐसी मान्यता है की अगर सच्चे दिल से महादेव टंगरा की चट्टान पर हाथ फेरा जाये तो यहां से जल का रिसाव होने लगता है और आपकी मांगी हुई हर मुराद पूरी होती है।~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~दूसरा कारण यहां एक पत्थर पर बने हुए पदचिन्ह जो की रामायण कालीन… जाते है। ऐसा माना जाता है की यहां पर राम और सीता अपने वनवास के दौरान आए थे और ये पद चिन्ह उनके ही है। भक्त लोग इन पद चिन्हों को छूकर भी मुरादे मांगते है। ये परम्पराए यहां पर सदियों से चली आ रही है। यहां हर दिन बड़ी संख्या में लोग पहुंचते है। इसके अलावा यहां पर राम नवमी, शिवरात्रि और सावन में भक्तों का हुजूम उमड़ता है।

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और राजा (कहानी)


चोर और राजा (कहानी)

किसी जमाने में एक चोर था। वह बडा ही चतुर था। लोगों का कहना था कि वह आदमी की आंखों का काजल तक उडा सकता था। एक दिन उस चोर ने सोचा कि जबतक वह राजधानी में नहीं जायगा और अपना करतब नहीं दिखायगी, तबतक चोरों के बीच उसकी धाक नहीं जमेगी। यह सोचकर वह राजधानी की ओर रवाना हुआ और वहां पहुंचकर उसने यह देखने के लिए नगर का चक्कर लगाया कि कहां कया कर सकता है।

उसने तय कि कि राजा के महल से अपना काम शुरू करेगा। राजा ने रातदिन महल की रखवाली के लिए बहुतसे सिपाही तैनात कर रखे थे। बिना पकडे गये परिन्दा भी महल में नहीं घुस सकता था। महल में एक बहुत बडी घडीं लगी थी, जो दिन रात का समय बताने के लिए घंटे बजाती रहती थी।

चोर ने लोहे की कुछ कीलें इकठटी कीं ओर जब रात को घडी ने बारह बजाये तो घंटे की हर आवाज के साथ वह महल की दीवार में एकएक कील ठोकता गया। इसतरह बिना शोर किये उसने दीवार में बारह कीलें लगा दीं, फिर उन्हें पकड पकडकर वह ऊपर चढ गया और महल में दाखिल हो गया। इसके बाद वह खजाने में गया और वहां से बहुत से हीरे चुरा लाया।

अगले दिन जब चोरी का पता लगा तो मंत्रियों ने राजा को इसकी खबर दी। राजा बडा हैरान और नाराज हुआ। उसने मंत्रियों को आज्ञा दी कि शहर की सडकों पर गश्त करने के लिए सिपाहियों की संख्या दूनी कर दी जाय और अगर रात के समय किसी को भी घूमते हुए पाया जाय तो उसे चोर समझकर गिरफतार कर लिया जाय।

जिस समय दरबार में यह ऐलान हो रहा था, एक नागरिक के भेष में चोर मौजूद था। उसे सारी योजना की एक एक बात का पता चल गया। उसे फौरन यह भी मालूम हो यगा कि कौन से छब्बीस सिपाही शहर में गश्त के लिए चुने गये हैं। वह सफाई से घर गया और साधु का बाना धारण करके उन छब्बीसों सिपाहियों की बीवियों से जाकर मिला। उनमें से हरेक इस बात के लिए उत्सुक थी कि उसकी पति ही चोर को पकडे ओर राजा से इनाम ले।

एक एक करके चोर उन सबके पास गया ओर उनके हाथ देख देखकर बताया कि वह रात उसके लिए बडी शुभ है। उसक पति की पोशाक में चोर उसके घर आयेगा; लेकिन, देखो, चोर की अपने घर के अंदर मत आने देना, नहीं तो वह तुम्हें दबा लेगा। घर के सारे दरवाजे बंद कर लेना और भले ही वह पति की आवाज में बोलता सुनाई दे, उसके ऊपर जलता कोयला फेंकना। इसका नतीजा यह होगा कि चोर पकड में आ जायगा।

सारी स्त्रियां रात को चोर के आगमन के लिए तैयार हो गईं। अपने पतियों को उन्होंने इसकी जानकारी नहीं दी। इस बीच पति अपनी गश्त पर चले गये और सवेरे चार बजे तक पहरा देते रहे। हालांकि अभी अंधेरा था, लेकिन उन्हें उस समय तक इधर उधर कोई भी दिखाई नहीं दिया तो उन्होंने सोचा कि उस रात को चोर नहीं आयगा, यह सोचकर उन्होंने अपने घर चले जाने का फैसला किया। ज्योंही वेघर पहुंचे, स्त्रियों को संदेह हुआ और उन्होंने चोर की बताई कार्रवाई शुरू कर दी।

फल वह हुआ कि सिपाही जल गये ओर बडी मुश्किल से अपनी स्त्रियों को विश्वास दिला पाये कि वे ही उनके असली पति हैं और उनके लिए दरवाजा खोल दिया जाय। सारे पतियों के जल जाने के कारण उन्हें अस्पताल ले जाया गया। दूसरे दिन राजा दरबार में आया तो उसे सारा हाल सुनाया गया। सुनकर राजा बहुत चिंतित हुआ और उसने कोतवाल को आदेश दिया कि वह स्वयं जाकर चोर पकड़े।

उस रात कोतवाल ने तेयार होकर शहर का पहरा देना शुरू किया। जब वह एक गली में जा रहा रहा था, चोर ने जवाब दिया, ‘मैं चोर हूं।″ कोतवाल समझा कि लड़की उसके साथ मजाक कर रही है। उसने कहा ″मजाक छाड़ो ओर अगर तुम चोर हो तो मेरे साथ आओ। मैं तुम्हें काठ में डाल दूंगा।″ चोर बाला, ″ठीक है। इससे मेरा क्या बिगड़ेगा!″ और वह कोतवाल के साथ काठ डालने की जगह पर पहुंचा।

वहां जाकर चोर ने कहा, ″कोतवाल साहब, इस काठ को आप इस्तेमाल कैसे किया करते हैं, मेहरबानी करके मुझे समझा दीजिए।″ कोतवाल ने कहा, तुम्हारा क्या भरोसा! मैं तुम्हें बताऊं और तुम भाग जाओं तो ?″ चोर बाला, ″आपके बिना कहे मैंने अपने को आपके हवाले कर दिया है। मैं भाग क्यों जाऊंगा?″ कोतवाल उसे यह दिखाने के लिए राजी हो गया कि काठ कैसे डाला जाता है। ज्यों ही उसने अपने हाथ-पैर उसमें डाले कि चोर ने झट चाबी घुमाकर काठ का ताला बंद कर दिया और कोतवाल को राम-राम करके चल दिया।

जाड़े की रात थी। दिन निकलते-निकलते कोतवाल मारे सर्दी के अधमरा हो गया। सवेरे जब सिपाही बाहर आने लगे तो उन्होंने देखा कि कोतवाल काठ में फंसे पड़े हैं। उन्होंने उनको उसमें से निकाला और अस्पताल ले गये।

अगले दिन जब दरबार लगा तो राजा को रात का सारा किस्सा सुनाया गया। राजा इतना हैरान हुआ कि उसने उस रात चोर की निगरानी स्वयं करने का निश्चय किया। चोर उस समय दरबार में मौजूद था और सारी बातों को सुन रहा था। रात होने पर उसने साधु का भेष बनाया और नगर के सिरे पर एक पेड़ के नीचे धूनी जलाकर बैठ गया।

राजा ने गश्त शुरू की और दो बार साधु के सामने से गुजरा। तीसरी बार जब वह उधर आया तो उसने साधु से पूछा कि, ″क्या इधर से किसी अजनबी आदमी को जाते उसने देखा है?″ साधु ने जवाब दिया कि “वह तो अपने ध्यान में लगा था, अगर उसके पास से कोई निकला भी होगा तो उसे पता नहीं। यदि आप चाहें तो मेरे पास बैठ जाइए और देखते रहिए कि कोई आता-जाता है या नहीं।″ यह सुनकर राजा के दिमाग में एक बात आई और उसने फौरन तय किया कि साधु उसकी पोशाक पहनकर शहर का चक्कर लगाये और वह साधु के कपड़े पहनकर वहां चोर की तलाश में बैठे।

आपस में काफ बहस-मुबाहिसे और दो-तीन बार इंकार करने के बाद आखिर चोर राजा की बात मानने को राजी हो गया ओर उन्होंने आपस में कपड़े बदल लिये। चोर तत्काल राजा के घोड़े पर सवार होकर महल में पहुंचा ओर राजा के सोने के कमरे में जाकर आराम से सो गया, बेचारा राजा साधु बना चोर को पकड़ने के लिए इंतजार करता रहा। सवेरे के कोई चार बजने आये। राजा ने देखा कि न तो साधु लौटा और कोई आदमी या चोर उस रास्ते से गुजरा, तो उसने महल में लौट जाने का निश्चय किया; लेकिन जब वह महल के फाटक पर पहुंचा तो संतरियों ने सोचा, राजा तो पहले ही आ चुका है, हो न हो यह चोर है, जो राजा बनकर महल में घुसना चाहता है। उन्होंने राजा को पकड़ लिया और काल कोठरी में डाल दिया। राजा ने शोर मचाया, पर किसी ने भी उसकी बात न सुनी।

दिन का उजाला होने पर काल कोठरी का पहरा देने वाले संतरी ने राजा का चेहरा पहचान लिया ओर मारे डर के थरथर कांपने लगा। वह राजा के पैरों पर गिर पड़ा। राजा ने सारे सिपाहियों को बुलाया और महल में गया। उधर चोर, जो रात भर राजा के रुप में महल में सोया था, सूरज की पहली किरण फूटते ही, राजा की पोशाक में और उसी के घोड़े पर रफूचक्कर हो गया।

अगले दिन जब राजा अपने दरबार में पहुंचा तो बहुत ही हताश था। उसने ऐलान किया कि अगर चोर उसके सामने उपस्थितित हो जायगा तो उसे माफ कर दिया जायगा और उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कीह जायगी, बल्कि उसकी चतुराई के लिए उसे इनाम भी मिलेगा। चोर वहां मौजूद था ही, फौरन राजा के सामने आ गया ओर बोला, “महाराज, मैं ही वह अपराधी हूं।″ इसके सबूत में उसने राजा के महल से जो कुछ चुराया था, वह सब सामने रख दिया, साथ ही राजा की पोशाक और उसका घोड़ा भी। राजा ने उसे गांव इनाम में दिये और वादा कराया कि वह आगे चोरी करना छोड़ देगा। इसके बाद से चोर खूब आनन्द से रहने लगा।

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” પાંચી “ કોઈ કારણસર હાઈવે ટ્રાફિક માટે બંધ હતો. ડાયવર્ઝનનું બોર્ડ મારેલું હતું. ડ્રાઇવરે ગાડી કાચા રસ્તે લીધી. રસ્તામાં ભરવાડ ઘેટાં-બકરા લઈને નીકળ્યો, સાંકડો રસ્તો હોય ગાડી થોભાવી પડી. માલવિકામેડમની નજર નજીકના એક કાચા ગાર માટીના ઘર પર પડી. એક યુવતી દિવાલ પર સુંદર મજાના મોર, પોપટ અને ફૂલવેલનું ચિતરામણ ગળીથી કરી રહી હતી. ચિતરામણ પૂરું થયું એટલે આંગણું સાફ કરી શાકભાજી વાવેલા તે ક્યારા સાફ કરવા લાગી. માલવિકામેડમને તે છોકરી પોતાના એકના એક હાવર્ડ યુનિવર્સિટીમાંથી હમણાં જ એમબીએ થઈને આવેલા અને પિતાના બિઝનેસમાં લાગેલ યુવાન પુત્ર મૌલિક માટે ગમી ગઈ.તેની પારખું નજરે જોયું કે આ છોકરી પાસા પાડ્યાં વગરનો હીરો છે. રસ્તો ખાલી થતાં ડ્રાઈવરે ગાડી આગળ લીધી. સાંજે કામ પતાવી પાછા ફરતાં પણ તે ઘર આગળથી નીકળ્યા ત્યારે પણ તે છોકરી કંઈક ભરત ભરી રહી હતી અને લોકગીત ગાઈ રહી હતી. ઘરે આવીને તેમણે બધી વાત તેમના પુત્ર અને પતિને કરી. આપણા મૌલિક માટે મને તે છોકરી ગમી ગઈ છે. તે છોકરી આપણો બિઝનેસ અને ઘર બંને સંભાળી લેશે. બીજે દિવસે માલવિકામેડમ તે છોકરી માટે પોતાના પુત્રનું માંગુ લઈને ગયા. તેનું નામ પાંચી હતું. તે ગરીબ ખેત મજુરની દીકરી હતી અને ચાર ધોરણ જ ભણેલી હતી. પાંચીના મા-બાપને થયું આટલા મોટા શેઠના એકના એક દીકરાને તો છોકરીવાળા માથે પડે. અમ ગરીબની ચાર ચોપડી ભણેલી પાંચી માટે સામું માગું લઈને આવ્યા છે. દીકરીના મા-બાપ તરીકે ચિંતા થઈ કંઈ આડું અવળું તો નહીં હોયને? માલવિકામેડમે ધરપત આપી કે તમે અમારા માટે તપાસ કરી લો પછી જવાબ આપજો. પાંચીના પિતાને કંઇ બનાવટ જેવું ન લાગ્યું. તેમણે આ સંબંધ માટે હા પાડી પણ શરત રાખી લગન તો મારા આંગણે મારી ત્રેવડ પ્રમાણે થશે. જાનમાં વીસ માણસો લઈને આવજો. માલિકામેડમે હા પાડી. દેશના અતિ ધનાઢ્યના દીકરાના લગ્ન એક ખેત મજુરની દીકરી સાથે તેના જ આંગણામાં સાવ સાદાઈથી થયાં. માલવિકામેડમે પાંચીને ક્યારેય કોઈ જાતની રોકટોક ન કરી.ત્રણ વર્ષમાં પાંચી એટલી તૈયાર થઈ ગઈ કે આજે બોર્ડ ઓફ ડિરેક્ટરની મિટિંગમાં બિઝનેસની, દેશ-વિદેશની સ્ટ્રેટેજી વિશે, ભાવિ આયોજન, નવા પરિવર્તન, સરકારી નીતિનિયમો વિશે વિદેશી મહેમાનોની સામે જ્યારે પોતાની વાત વિદેશી ભાષામાં તથા ફરાટેદાર અંગ્રેજીમાં કરી ત્યારે બધાએ ઊભા થઈને તાળીઓથી વધાવી. પાંચીમેડમની દૂરંદેશી અને કુનેહના ખૂબ વખાણ કર્યા. માલવિકામેડમની પસંદગી માટે શેઠ અને મૌલિકને તો ક્યારેય કંઇ કહેવાપણું ન લાગ્યું. રાત્રે સેવન સ્ટાર હોટલમાં ડિનર પાર્ટીમાં ચાંદીના ડિનર સેટમાં જમ્યા. છુટા પડતી વખતે એક વિદેશી મહેમાને પાંચીના માતા-પિતાને મળવાની ઇચ્છા દર્શાવી. પાંચીએ કહ્યું," ભલે, કાલે ચાર વાગ્યે જઇશું." બીજે દિવસે પાંચીએ તેમની માતાએ આપેલા સાવ સાદા કપડાં પહેર્યાં, હાથમાં બંગડીઓ પહેરી,કપાળમાં મોટો ચાંદલો કર્યો બી એમ ડબલ્યુ ગાડી ડ્રાઇવ કરીને પોતાના પિતાના ઘરે વિદેશી મહેમાનને લઈ ગઈ. એક કાચા ઘર આગળ ગાડી ઉભી રહી. પાંચીના માતા-પિતા વેવાઈને સામા આવ્યા, બે હાથ પકડી રામરામ કર્યા. ખાટલો ઢાળી માથે ગોદડું પાથરી બેસાડ્યાં, ખબર-અંતર પૂછ્યાં. એક ગરીબ ખેત મજૂર પાસે દુનિયાની કઈ વાત હોય! તે ઉમળકાથી ખેતરની, પોતાની ગાયની, વાડામાં વાવેલ ચીભડાં વગેરેની વાતો કરી.એક એલ્યુમિનીયમની કિટલીમાં ચા લાવી હાથમાં રકાબી આપી તેમાં ચા રેડી.ચા લીંબુના પાંદડાં અને લીલી ચા ઉકાળીને બનાવેલ.ગાયતો વસુકી ગયેલ હોય દૂધતો ઘરમાં ક્યાંથી હોય! વાતો કરતાં હતાં ત્યાં ગાય સુરાવા મંડી. ગાય વિંયાણી. પાંચીએ કછોટો વાળી અને ગાયને દોહી .બાજરાની ઘઉંરી ખવડાવી. ઓર ઉકરડે નાંખી આવી.ગમાણ સાફ કરી.ગાયને ધુમાળી કરી પછી પોતે નાહી ધોઇને તૈયાર થઈ ગઈ. મહેમાન તો જોતાં જ રહી ગયા.તેને થયું ક્યાં કાલની પાંચીમેડમ અને કયા આજની! તેને અહીં કશો નવો જ આધ્યાત્મિક અહેસાસ થતો હતો. તેને પોતાના વૈભવ સુખ વામણા લાગવા મંડ્યા . પાંચીના પિતાએ કહ્યું,"વાળુંનો ટેમ થઈ ગયો છે તો વાળું કરીને જજો." કોઈ કાંઈ બોલે તે પહેલાં જ મહેમાને કહ્યું, " હા... હા.. જમીને જઈશું." જમવામાં બાજરીના રોટલા, તુરીયાનું શાક અને ડુંગળી જ હતાં. પતરાવળીમાં જમીન ઉપર બેસીને જમ્યાં. મહેમાને આવો જમવાનો અમૃતનો સ્વાદ તેની જિંદગીમાં ક્યારેય નો'તો ચાખ્યો. જવા સમયે પાંચીના પિતાએ મહેમાન અને વેવાઈને 'ધડકી' ભેટ આપી. પાંચીને ફાળિયાના છેડેથી 10 ની નોટ કાઢીને આપી. વિદેશી મહેમાને પાંચીના નાના ભાઈને બે હજારની પાંચ નોટ કાઢીને મોકલાણી આપવા ગયા તો પાંચીના પિતા કહે," દીકરીના ઘરનું ન લેવાય, અમારામાં અગરજ હોય." ત્યારે વિદેશી મહેમાનને થયું સાચા શ્રીમંત તો આ લોકો છે. જ્યારે મારા વેવાયને ૫૦૦ કરોડની સહાય કરી, બેન્કમાંથી ૩૦૦ કરોડની લોન મારી શાખે અપાવી દીધી તોય વેવાઈને વાકું પડ્યું. જ્યારે અહીં દીકરીના ઘરનું અગરજ હોય. જતી વખતે એક વિદેશી મહેમાન જે અરબપતિ હતો તે એક સાવ ગરીબ ખેત મજુર એવા પાંચીના પિતાને ભેટીને રડી પડ્યાં અને બોલ્યા," સાચા સુખી તો તમે જ છો."

અમર પાઠક