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બોબ મનરો કેનેડીયન આઇસ હોકીની નેશનલ ટીમના ખુબ સારા પ્લેયર હતા.
નેશનલ ટીમમાંથી નિવૃતિ લીધા બાદ સામાજીક સેવાઓ કરવા માટે એ યુનોમાં
જોડાયા અને આફ્રીકામાં એમની સેવાઓ આપી રહ્યા હતા.
એકદિવસ બોબ મનરો એમની કારમાં બેસીને આફ્રીકામાં આવેલી દુનિયાની
સૌથી મોટી ઝૂંપડપટ્ટી પાસેથી પસાર થઇ રહ્યા હતા. મથારે ખુબ મોટા વિસ્તારમાં
ફેલાયેલી ઝૂંપડપટ્ટી છે. બોબ મનરોએ જોયુ તો ખુબ મોટી સંખ્યામાં યુવકો
એકઠા થયેલા હતા અને બધા કંઇક પકડવા માટે મથામણ કરી રહ્યા હતા.
બોબ મનરોએ એમની ગાડી ઉભી રાખી એમણે જોયુ કે આ બધા યુવાનો
ફુટબોલ રમી રહ્યા હતા. કુટબોલ કાપડના ટુકડામાંથી બનાવેલો અને રમવાવાળાની
સંખ્યા એટલી મોટી હતી કે કોઇ
ફુટબોલને પગથી લાત માટે એ પહેલા તો
બીજો યુવક એમને લાત મારીને નીચે પાડી દે.
બોબ મનરોએ યુવાનોને પોતાની પાસે બોલાવ્યા. યુવાનો ચારે બાજુથી એમને
ઘેરી વળ્યા. બોબે પોતાની પાસેના એક પેમફલેટમાં રહેલ ફુટબોલનું ચિત્ર યુવાનોને
બતાવીને કહ્યુ, ” તમે જે બોલથી ૨મો છો એ બોલન ચાલે કુટબોલ રમવા માટે
આવો બોલ જોઇએ. હું તમારા માટે કાલે આવો બોલ વૈઇ આવીશ:
બધા યુવાનો ખુબ રાજી થયા.
બીજા દિવસે બોબ મનરો આ યુવાનો માટે થોડા કુટબોલ લઇને આવ્યા.
બોલ યુવાનોને આપતા પહેલા કહ્યુ, ” તમારે આ બોલથી રમવું હોય તો એના માટે
સારુ મેદાન જોઇએ એટલે ગંદગી સાફ કરીને મેદાન તૈયાર કરો” યુવાનોને તો
ફુટબોલથી રમવું હતું એટલે એમણે ઝૂંપડપટ્ટીની આસપાસની ગંદકી સાફ કરીને
કુટબોલ માટેના
મેદાનો બનાવ્યા.નિયમમુજબ જ કુટબોલ રમાય એ માટે
1987ની સાલમાં ‘મથારે ફુટબોલ ક્લબની સ્થાપના કરવામાં આવી.
આ ક્લબના સભ્ય બનવું હોય તો એ માટે ફરજીયાત ભણવાનું એટલે
યુવાનોએ ભણવાનું પણ શરુ કર્યું.
ધીમે ધીમે ઝૂંપડપટ્ટીની ગંદકી સાફ થવા લાગી. યુવાનોએ ભણવાનું ચાલુ કર્યું એટલે
એમના વિચારો પણ બદલાવા લાગ્યા. બોબ મનરોની નાની એવી શરુ આતથી.
ગઝલનું પરીવર્તન આવ્યું. હજારો યુવાનો મથારે ફુટબોલ ક્લબ’માં જોડાયા અને
સૌથી આશ્ચર્યની વાત એ છે કે બોબ મનરોને 1987માં આ કાર્યની શરુઆત કરી અને
4વર્ષ બાદ 1991માં કેનેડીયન ફુટબોલ ટીમના તમામ 11 ખેલાડીઓ
મથારે ઝૂંપડપટ્ટીના યુવાનો હતા.
મિત્રો, પરિવર્તન રાતો શત ન આવી જાય. પરિવર્તન તરફનું પ્રથમ પગલું
ખુબ નાનું હોય પણ સમય જતા સાચી દીશામાં ઉઠાવેલું પગલું
કલ્પના પણ ન કરી શકાય એવું મોટું પરિવર્તન લાવી દે છે.

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🌹वास्तव में सुखी कौन ?🌹

एक भिखारी किसान के घर भीख माँगने गया। किसान की पत्नीं घर में थी, उसने चने की रोटी बनायी थी। किसान जब घर आया, उसने अपने बच्चों का मुख चूमा, स्त्री ने उनके हाथ पैर धुलाये, उसके बाद वह रोटी खाने बैठ गया। स्त्री ने एक मुट्ठी चना भिखारी को दे दिया, भिखारी चना लेकर चल दिया।

रास्ते में भिखारी सोचने लगा:-
हमारा भी कोई जीवन है? दिन भर कुत्ते की तरह माँगते फिरते हैं। फिर स्वयं खानां बनाना पड़ता है। इस किसान को देखो कैसा सुन्दर घर है। घर में पत्नीं हैं, बच्चे हैं, अपने आप अन्न पैदा करता है। बच्चों के साथ प्रेम से भोजन करता है। वास्तव में सुखी तो यह किसान है।

इधर वह किसान रोटी खाते-खाते अपनी पत्नीं से कहने लगा:-
नीला बैल बहुत बुड्ढा हो गया है, अब वह किसी तरह काम नहीं देता, यदि कही से कुछ रुपयों का इन्तजाम हो जाये, तो इस साल का काम चले। साधोराम महाजन के पास जाऊँगा, वह ब्याज पर पैसे दे देगा।

भोजन करके वह साधोराम महाजन के पास गया। बहुत देर चिरौरी बिनती करने पर एक रुपये सैकड़ा सूद पर साधों ने रुपये देना स्वीकार किया। एक लोहे की तिजोरी में से साधोराम ने एक थैली निकाली। और गिनकर रुपये किसान को दे दिये।रुपये लेकर किसान अपने घर को चला, वह रास्ते में सोचने लगा :-
हम भी कोई आदमी हैं, घर में पांच रुपये भी नकद नहीं। कितनी चिरौरी विनती करने पर उसने रुपये दिये है।

साधो कितना धनी है, उसके पास सैकड़ों रुपये हैं। वास्तव में सुखी तो यह साधोराम ही है। साधोराम छोटी सी दुकान करता था, वह एक बड़ी दुकान से कपड़े ले आता था। और उसे बेचता था।

दूसरे दिन साधोराम कपड़े लेने गया, वहाँ सेठ पृथ्वीचन्द की दुकान से कपड़ा लिया। वह वहाँ बैठा ही था, कि इतनी देर में कई तार आए कोई बम्बई का था। कोई कलकत्ते का, किसी में लिखा था पांच लाख मुनाफा हुआ, किसी में एक लाख का। साधो महाजन यह सब देखता रहा, कपड़ा लेकर वह चला आया। रास्ते में सोचने लगा :-
हम भी कोई आदमी हैं, सौ दो सौ जुड़ गये महाजन कहलाने लगे। पृथ्वीचन्द कैसे हैं, एक दिन में लाखों का फायदा वास्तव में सुखी तो यह है।

उधर पृथ्वीचन्द बैठा ही था, कि इतने ही में तार आया कि पांच लाख का घाटा हुआ। वह बड़ी चिन्ता में था, कि नौकर ने कहा:-
आज लाट साहब की रायबहादुर सेठ के यहाँ दावत है। आपको जाना है, गाड़ी तैयार है। पृथ्वीचन्द गाड़ी पर चढ़ कर रायबहादुर की कोठी पर चला गया। वहाँ सोने चाँदी की कुर्सियाँ पड़ी थी, रायबहादुर जी से कलेक्टर-कमिश्नर हाथ मिला रहे थे। बड़े-बड़े सेठ खड़े थे। वहाँ पृथ्वी चन्द सेठ को कौन पूछता, वह भी एक कुर्सी पर जाकर बैठ गया। लाट साहब आये, राय बहादुर से हाथ मिलाया, उनके साथ चाय पी और चले गये।

पृथ्वी चन्द अपनी गाड़ी से लौट रहा था , रास्ते में सोचते आता है, हम भी कोई सेठ है पांच लाख के घाटे से ही घबड़ा गये। राय बहादुर का कैसा ठाठ है, लाट साहब उनसे हाथ मिलाते हैं। वास्तव में सुखी तो ये ही है।

अब इधर लाट साहब के चले जाने पर रायबहदुर के सिर में दर्द हो गया, बड़े-बड़े डॉक्टर आये,वे एक कमरे में पड़े थे। कई तार घाटे के एक साथ आ गये थे। उनकी भी चिन्ता थी, कारोबार की भी बात याद आ गई। वे चिन्ता में पड़े थे, तभी खिड़की से उन्होंने झाँक कर नीचे देखा, एक भिखारी हाथ में एक डंडा लिये अपनी मस्ती में जा रहा था। राय बहादुर ने उसे देखा और बोले:-
वास्तव में तो सुखी यही है, इसे न तो घाटे की चिन्ता न मुनाफे की फिक्र, इसे लाट साहब को पार्टी भी नहीं देनी पड़ती सुखी तो यही है।

हम एक दूसरे को सुखी समझते हैं। पर वास्तव में सुखी कौन है,इसे तो वही जानता है, जिसे आन्तरिक शान्ति है।जिसे अंतरिक् सुकून है।

आप चाहे भिखारी हो, चाहे करोड़ पति हो, लेकिन आपके मन में जब तक शांति नहीं है तब तक आपको सुकून नहीं मिल सकता।
जिसके मन मे शांति है वो सूखी है

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🌹❤️जय श्री जिनेन्द्र❤️🌹
🌹पवन जैन🌹

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महाभारत युद्ध भूमि पर महर्षि वेदव्यास ने अर्जुन को बताया भगवान शंकर कीअद्भुत महिमा


महाभारत युद्ध भूमि पर महर्षि वेदव्यास ने अर्जुन को बताया भगवान शंकर की
अद्भुत महिमा

महासमर में गाण्डीवधारी अर्जुन कौरवों का संहार कर रहे थे. जिधर श्रीकृष्ण रथ को घुमाते थे, उधर अर्जुन के बाणों से बड़े-बड़े महारथी तथा विशाल सेना मारी जाती थी. द्रोणाचार्य की मृत्यु के पश्चात कौरव सेना भाग खड़ी हुई. इसी बीच अचनाक महर्षि वेदव्यासजी स्वेच्छा से घूमते हुए अर्जुन के पास आ गए. उन्हें देखकर जिज्ञासावश अर्जुन ने उनसे पूछा – महर्षे ! शत्रुसेना का संहार जब मैं अपने बाणों से कर रहा था, उस समय मैंने देखा कि एक तेजस्वी महापुरुष हाथ में त्रिशूल लिये हमारे रथ के आगे – आगे चल रहे थे. सूर्य के समान तेजस्वी महापुरुष का पैर जमीन पर नहीं पड़ता था. त्रिशूल का प्रहार करते हुए भी वे उसे हाथ से कभी नहीं छोड़ते थे. उनके तेज से उस एक ही त्रिशूल से हजारों नये-नये त्रिशूल प्रकट होकर शत्रुओं पर गिरते थे. उन्होंने ही समस्त शत्रुओं को मार भगाया है. किंतु लोग समझते हैं कि मैंने ही उन्हें मारा और भगाया है. भगवन ! मुझे बताइये, वे महापुरुष कौन थे ?

कमण्डलु और माला धारण किये हुए महर्षि वेदव्यास ने शान्त भाव से उत्तर दिया – वीरवर ! प्रजापतियों में प्रथम, तेजः स्वरुप, अन्तर्यामी तथा सर्वसमर्थ भगवान् शंकर के अतिरक्त उस रोमांचकारी घोर संग्राम में अश्वत्थामा, कर्ण और कृपाचार्य आदि के रहते हुए कौरव सेना का विनाश दूसरा कौन कर सकता था. तुमने उन्हीं भुवनेश्वर का दर्शन किया है. उनके मस्तक पर जटाजूट तथा शरीर पर वल्कल वस्त्र शोभा देता है. भगवान भव भयानक होकर भी चंद्रमा को मुकुट रुप से धारण करते हैं. साक्षात् भगवान शंकर ही वे तेजस्वी महापुरुष हैं, जो कृपा करके तुम्हारे आगे-आगे चला करते हैं. जिनके हाथों में त्रिशूल, ढाल, तलवार और पिनाक आदि शस्त्र शोभा पाते हैं, उन शरणागतवत्सल भगवान् शिव की आराधना करनी चाहिए.

एक बार ब्रह्माजी से वरदान प्राप्त करके तीन असुर-तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली आकाश में विमान के रुप में नगर बसाकर रहने लगे. घमण्ड में फूलकर ये भयंकर दैत्य तीनों लोकों को कष्ट पहुंचाने लगे. देवराज इन्द्र उनका नाश करने में सफल नहीं हो पाये. देवातओं की प्रार्थना पर भगवान् शंकर ने उन तीनों पुरों को भस्क कर दिया, उस समय पार्वती जी भी कौतूहलवश देखने के लिए वहां आयीं. उनकी गोद में एक बालक था. वे देवताओं से पूछने लगीं – पहचानो, ये कौन हैं ? इस प्रश्न से इन्द्र के ह्रदय में असूया की आग जल उठी और उन्होंने जैसी ही उस बालक पर वज्र का प्रहार करना चाहा, तत्क्षण उस बालक ने हंसकर उन्हें स्तम्भित कर दिया. उनकी वज्रसहित उठी हुई बांह ज्यों-की-त्यों रह गई. वे इंद्र को लेकर शंकर जी के पास पहुंचे. ब्रह्माजी शंकर जी को प्रणाम करके बोले – भगवान ! आप ही विश्व को सहारा तथा सबको शरण देने वाले हैं. भूत और भविष्य के स्वामी जगदीश्वर ! ये इंद्र आपके क्रोध से पीड़ित हैं, इन पर कृपा कीजिए.

सर्वात्मा महेश्वर प्रसन्न हो गए. देवताओं पर कृपा करने के लिए वे ठठाकर हंस पड़े. सबने जान लिया कि पार्वती जी की गोद में चराचर जगत के स्वामी भगवान शंकर जी थे. वे सभी मनुष्यों का कल्याण चाहते हैं, इसलिए उन्हें शिव कहते हैं. वेद, वेदांग, पुराण तथा अध्यात्मशास्त्रों में परम रहस्य है, वह भगवान महेश्वर ही हैं. अर्जुन, यह है महादेव जी की महिमा.

ओली अमित

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🌷जरूर पढे ये कथा🌹

छोटे-से गांव में एक दरिद्र विधवा ब्राह्मणी रहती थी। छह वर्षीय बालक मोहन के अतिरिक्त उसका और कोई नहीं था।
वह दो-चार भले घरों से भिक्षा मांगकर अपना तथा बच्चे का पेट भर लेती और भगवान का भजन करती थी। भीख पूरी न मिलती तो बालक को खिलाकर स्वयं उपवास कर लेती। यह कम चलता रहा।
ब्राह्मणी को लगा कि ब्राह्मण के बालक को दो अक्षर न आए यह ठीक नहीं है। गांव में पड़ाने की व्यवस्था नहीं थी। गाँव से दो कोस पर एक पाठशाला थी।
ब्राह्मणी अपने बेटे को लेकर वहा गई। उसकी दरिद्रता तथा रोने पर दया करके वहा के अध्यापक ने बच्चे को पढ़ाना स्वीकार कर लिया।
वहां पढने वाले छात्र गुरु के घर में रहते थे किंतु ब्राह्मणी का पुत्र मोहन अभी बहुत छोटा था और ब्राह्मणी को भी अपने पुत्र को देखे विना चैन नहीं पड़ता था अत: मोहन नित्य पढ़ने जाता और सायंकाल घर लौट आता।
उसको विद्या प्राप्ति के लिए प्रतिदिन चार कोस चलना पड़ता। मार्ग में कुछ दूर जंगल था। शाम को लौटने में अंधेरा होने लगता था। उस जंगल में मोहन को डर लगता था।
एक दिन गुरुजी के यहा कोई उत्सव था। मोहन को अधिक देर हो गई और जब वह घर लौटने लगा रात्रि हो गई थी। अंधेरी रात जंगली जानवरों की आवाजों से बालक मोहन भय से थर-थर कांपने लगा।
ब्राह्मणी भी देर होने के कारण बच्चे को ढूंढने निकली थी। किसी प्रकार अपने पुत्र को वह घर ले आई।
मोहन ने सरलता से कहा : ”मां ! दूसरे लड़को को साथ ले जाने तो उनके नौकर आते हैं। मुझे जंगल में आज बहुत डर लगा। तू मेरे लिए भी एक नौकर रख दे।” बेचारी ब्राह्मणी रोने लगी। उसके पास इतना पैसा कहा कि नौकर रख सके।
माता को रोते देख मोहन ने कहा : ”मां ! तू रो मत ! क्या हमारा और कोई नहीं है ?” अब ब्राह्मणी क्या उत्तर दे ? उसका हृदय व्यथा से भर गया।
उसने कहा : ”बेटा ! गोपाल को छोड़कर और कोई हमारा नहीं है।” बच्चे की समझ में इतनी ही बात आई कि कोई गोपाल उसका है।
उसने पूछा : ”गोपाल कौन ? वे क्या लगते हैं मेरे और कहा रहते हैं ?”
ब्राह्मणी ने सरल भाव से कह दिया : ”वे तुम्हारे भाई लगते हैं। सभी जगह रहते हैं परंतु आसानी से नहीं दिखते। संसार में ऐसा कौन सा स्थान है जहां वे नहीं रहते। लेकिन उनको तो देखा था ध्रुव ने, प्रहलाद ने ओर गोकुल के गोपों ने।”
बालक को तो अपने गोपाल भाई को जानना था। वह पूछने लगा : गोपाल मुझसे छोटे हैं या बड़े अपने घर आते हैं या नहीं?
माता ने उसे बताया : ”तुमसे वे बड़े हैं और घर भी आते हैं पर हम लोग उन्हें देख नहीं सकते। जो उनको पाने के लिए व्याकुल होता है उसी के पुकारने पर वे उसके पास आते हैं।”
मोहन ने कहा : ”जंगल में आते समय मुझे बड़ा डर लगता है। मैं उस समय खूब व्याकुल हो जाता हूं। वहां पुकारू तो क्या गोपाल भाई आएंगे ?”
माता ने कहा : ”तू विश्वास के साथ पुकारेगा तो अवश्य वे आएंगे।” मोहन की समझ में इतनी बात आई कि जंगल में अब डरने की जरूरत नहीं है। डर लगने पर मैं व्याकुल होकर पुकारूंगा तो मेरा गोपाल भाई वहा आ जाएगा।
दूसरे दिन पाठशाला से लौटते समय जब वह वन में पहुचा उसे डर लगा। उसने पुकारा : ”गोपाल भाई ! तुम कहां हो ? मुझे यहा डर लगता है। मैं व्याकुल हो रहा हूं। गोपाल भाई !”
जो दीनबंधु हैं दीनों के पुकारने पर वह कैसे नहीं बोलेंगे। मोहन को बड़ा ही मधुर स्वर सुनाई पड़ा : ”भैया ! तू डर मत। मैं यहा आया।” यह स्वर सुनते ही मोहन का भय भाग गया।
थोड़ी दूर चलते ही उसने देखा कि एक बहुत ही सुंदर ग्वालबाल उसके पास आ गया। वह हाथ पकड़कर बातचीत करने लगा। साथ-साथ चलने लगा। उसके साथ खेलने लगा। वन की सीमा तक वह पहुंचाकर लौट गया। गोपाल भाई को पाकर मोहन का भय जाता रहा।
घर आकर उसने जब माता को सब बातें बताईं तब वह ब्राह्मणी हाथ जोडकर गदगद हो अपने प्रभु को प्रणाम करने लगी।
उसने समझ लिया जो दयामयी द्रोपदी और गजेंद्र की पुकार पर दौड़ पड़े थे मेरे भोले बालक की पुकार पर भी वही आए थे। ऐसा ही नित्य होने लगा..
एक दिन उसके गुरुजी के पिता का श्राद्ध होने लगा। सभी विद्यार्थी कुछ न कुछ भेंट देंगे। गुरुजी सबसे कुछ लाने को कह रहे थे।
मोहन ने भी सरलता से पूछा : “गुरुजी ! मैं क्या ले आऊं ?” गुरु को ब्राह्मणी की अवस्था का पता था। उन्होंने कहा : ‘बेटा ! तुमको कुछ नहीं लाना होगा।’
लेकिन मोहन को यह बात कैसे अच्छी लगती। सब लड़के लाएंगे तो मैं क्यों न लाऊं उसके हठ को देखकर गुरुजी ने कह दिया : ”अच्छा तुम एक लोटा दूध ले आना।”
घर जाकर मोहन ने माता से गुरुजी के पिता के श्राद्ध की बात कही और यह भी कहा” मुझे एक लोटा दूध ले जाने की आज्ञा मिली है।”
ब्राह्मणी के घर में था क्या जो वह दूध ला देती। मांगने पर भी उसे दूध कौन देता लेकिन मोहन ठहरा बालक। वह रोने लगा।
अंत में माता ने उसे समझाया : ”तू गोपाल भाई से दूध मांग लेना। वे अवश्य प्रबंध कर देंगे।”
दूसरे दिन मोहन ने जंगल में गोपाल भाई को जाते ही पुकारा और मिलने पर कहा : ”आज मेरे गुरुजी के पिता का श्राद्ध है। मुझे एक लोटा दूध ले जाना है। मां ने कहा है कि गोपाल भाई से मांग लेना। सौ मुझे तुम एक लोटा दूध लाकर दो।”
गोपाल ने कहा : ”मैं तो पहले से यह लौटा भर दूध लाया हूं । तुम इसे ले जाओ।” मोहन बड़ा प्रसन्न हुआ।
पाठशाला में गुरुजी दूसरे लड़कों के उपहार देखने और रखवाने में लगे थे। मोहन हंसता हुआ पहुंचा। कुछ देर तो वह प्रतीक्षा करता रहा कि उसके दूध को भी गुरुजी देखेंगे।
पर जब किसी का ध्यान उसकी ओर न गया तब वह बोला : ‘गुरुजी ! मैं दूध लाया हूं।’ गुरु जी ढेरों चीजें सम्हालने में व्यस्त थे। मोहन ने जब उन्हें स्मरण दिलाया तब झुंझलाकर बोले : ”जरा-सा दूध लाकर यह लड़का कान खाए जाता है जैसे इसने हमें निहाल कर दिया।
इसका दूध किसी बर्तन से डालकर हटाओ इसे यहां से।”
मोहन अपने इस अपमान से खिन्न हो गया। उसका उत्साह चला गया। उसके नेत्रों से आंसू गिरने लगे।
नौकर ने लोटा लेकर दूध कटोरे मे डाला तो कटोरा भर गया फिर गिलास में डाला तो वह भी भर गया। बाल्टी में टालने लगा तो वह भी भर गई। भगवान के हाथ से दिया वह लोटा भर दूध तो अक्षय था।
नौकर घबराकर गुरुजी के पास गया। उसकी बात सुनकर गुरुजी तथा और सब लोग वहां आए अपने सामने एक बड़े पात्र में दूध डालने को उन्होंने कहा। पात्र भर गया पर लोटा तनिक भी खाली नहीं हुआ। इस प्रकार बड़े-बड़े बर्तन दूध से भर गए।
अब गुरुजी ने पूछा : ”बेटा ! तू दूध कहां से लाया हें ?” सरलता से बालक ने कहा : ”मेरे गोपाल भईया ने दिया।” गुरुजी और चकित हुए। उन्होंने पूछा : ”गोपाल भाई कौन ? तुम्हारे तो कोई भाई नहीं।”
मोहन ने दृढ़ता से कहा : ”है क्यों नहीं। गौपाल भाई मेरा बड़ा भाई है। वह मुझे रोज वन में मिल जाते है। मां कहती हैं कि वह सब जगह रहता है पर दिखता नहीं कोई उसे खूब व्याकुल होकर पुकारे तभी वह आ जाता है। उससे जो कुछ मांगा जाए वह तुरंत दे देता है।”
अब गुरुजी को कुछ समझना नहीं था। मोहन को उन्होंने हृदय से लगा लिया। श्राद्ध में उस दूध से खीर बनी और ब्राह्मण उसके स्वाद का वर्णन करते हुए तृप्त नहीं होते थे ।
गोपाल भाई के दूध का स्वाद स्वर्ग के अमृत में भी नहीं तब संसार के किसी पदार्थ में कहां से होगा। उस दूध का बना श्राद्धान्त पाकर गुरुजी के पितर तृप्त ही नहीं हुए, माया से मुक्त भी हो गए।
श्राद्ध समाप्त हुआ। संध्या को सब लोग चले गए। मोहन को गुरुजी ने रोक लिया था। अब उन्होंने कहा : ”बेटा ! मैं तेरे साथ चलता हूं। तू मुझे अपने गोपाल भाई के दर्शन करा देगा न ?”
मोहन ने कहा : ”चलिए मेरा गोपाल भाई तो पुकारते ही आ जाता है।” वन में पहुंच कर उसने पुकारा। उत्तर में उसे सुनाई पड़ा : ”आज तुम अकेले तो हो नहीं तुम्हें डर तो लगता नहीं, फिर मुझे क्यों बुलाते ह
मोहन ने कहा : ”मेरे गुरुजी तुम्हें देखना चाहते हैं तुम जल्दी आओ !”
जब मोहन ने गोपाल भाई को देखा तो गुरुजी से कहा : ”आपने देखा मेरा गोपाल भाई कितना सुदर है ?”
गुरुजी कहने लगे : “मुझे तो दिखता ही नहीं। मैं तो यह प्रकाशमात्र देख रहा हूं।”
अब मोहन ने कहा : “गोपाल भाई ! तुम मेरे गुरुजी को दिखाई क्यों नहीं पड़ते ?
उत्तर मिला : ”तुम्हारी बात दूसरी है। तुम्हारा अत: करण शुद्ध है तुममें सरल विश्वास है, अत: मैं तुम्हारे पास आता हूं।
तुम्हारे गुरुदेव को जो प्रकाश दिख गया उनके लिए वही बहुत है। उनका इतने से ही कल्याण हो जाएगा।”
उस अमृत भरे स्वर को सुनकर गुरुदेव का हृदय गदगद हो गया। उनको अपने हृदय में भगवान के दर्शन हुए। भगवान की उन्होंने स्तुति की।
कुछ देर में जब भगवान अंतर्धान हो गए, तब मोहन को साथ लेकर वे उसके घर आए और वहां पहुंचकर उनके नेत्र भी धन्य हो गए।
गोपाल भाई उस ब्राह्मणी की गोद में बैठे थे और माता के नेत्रों की अश्रुधार उनकी काली धराली अलकों को भिगो रही थी। माता को शरीर की सुध-बुध ही नहीं थी! वह तो प्रभू में ही समा गई थी !!

🌷जय श्री राधेगोविंद जी 🙏

गौरव गुप्ता

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🌕 रोटी 🌕 *रामेश्वर ने पत्नी के स्वर्ग वास हो जाने के बाद अपने दोस्तों के साथ सुबह शाम पार्क में टहलना और गप्पें मारना, पास के मंदिर में दर्शन करने को अपनी दिनचर्या बना लिया था।* *हालांकि घर में उन्हें किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं थी। सभी उनका बहुत ध्यान रखते थे, लेकिन आज सभी दोस्त चुपचाप बैठे थे।*

एक दोस्त को वृद्धाश्रम भेजने की बात से सभी दु:खी थे” आप सब हमेशा मुझसे पूछते थे कि मैं भगवान से तीसरी रोटी क्यों माँगता हूँ? आज बतला देता हूँ। “ *कमल ने पूछा "क्या बहू तुम्हें सिर्फ तीन रोटी ही देती है ?"* *बड़ी उत्सुकता से एक दोस्त ने पूछा? "नहीं यार! ऐसी कोई बात नहीं है, बहू बहुत अच्छी है।* *असल में "रोटी, चार प्रकार की होती है।"* *पहली "सबसे स्वादिष्ट" रोटी "माँ की "ममता" और "वात्सल्य" से भरी हुई। जिससे पेट तो भर जाता है, पर मन कभी नहीं भरता।* *एक दोस्त ने कहा, सोलह आने सच, पर शादी के बाद माँ की रोटी कम ही मिलती है।" उन्होंने आगे कहा "हाँ, वही तो बात है।* *दूसरी रोटी पत्नी की होती है जिसमें अपनापन और "समर्पण" भाव होता है जिससे "पेट" और "मन" दोनों भर जाते हैं।", क्या बात कही है यार ?" ऐसा तो हमने कभी सोचा ही नहीं।* *फिर तीसरी रोटी किस की होती है?" एक दोस्त ने सवाल किया।* *"तीसरी रोटी बहू की होती है जिसमें सिर्फ "कर्तव्य" का भाव होता है जो कुछ कुछ स्वाद भी देती है और पेट भी भर देती है और वृद्धाश्रम की परेशानियों से भी बचाती है", थोड़ी देर के लिए वहाँ चुप्पी छा गई।* *"लेकिन ये चौथी रोटी कौन सी होती है ?" मौन तोड़ते हुए एक दोस्त ने पूछा-* *"चौथी रोटी नौकरानी की होती है। जिससे ना तो इन्सान का "पेट" भरता है न ही "मन" तृप्त होता है और "स्वाद" की तो कोई गारँटी ही नहीं है", तो फिर हमें क्या करना चाहिये यार?* *माँ की हमेशा पूजा करो, पत्नी को सबसे अच्छा दोस्त बना कर जीवन जिओ, बहू को अपनी बेटी समझो और छोटी मोटी ग़लतियाँ नज़रन्दाज़ कर दो बहू खुश रहेगी तो बेटा भी आपका ध्यान रखेगा।* *यदि हालात चौथी रोटी तक ले ही आयें तो भगवान का शुकर करो कि उसने हमें ज़िन्दा रखा हुआ है, अब स्वाद पर ध्यान मत दो केवल जीने के लिये बहुत कम खाओ ताकि आराम से बुढ़ापा कट जाये, बड़ी खामोशी से सब दोस्त सोच रहे थे कि वाकई, हम कितने खुशकिस्मत हैं।* *🙏🏻राधा स्वामी जी🙏🏻*

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प्रभु वही है

“स्मरण रखिए कि प्रभु वही है”

“तीन मुट्ठी चावल? यह भला कैसा उपहार हुआ सुशीला? माना कि हम दरिद्र ब्राह्मण हैं, पर वे तो द्वारिका नरेश हैं न… नरेश के लिए भला चावल कौन ले जाता है?” द्वारिका जाने को तैयार सुदामा ने चावल की पोटली बांधती पत्नी से कहा।
“उपहार का सम्बंध प्राप्तकर्ता की दशा से अधिक दाता की भावनाओं से होता है प्रभु!और एक भिक्षुक ब्राह्मण के घर के तीन मुट्ठी चावल का मूल्य श्रीकृष्ण न समझेंगे तो कौन समझेगा? आप निश्चिन्त हो कर जाइये।” सुशीला उस ब्राह्मण कुल की लक्ष्मी थीं, अपने आँचल में परिवार का सम्मान बांध कर चलने वाली देवी। वह अडिग थीं।
सुदामा की झिझक समाप्त नहीं हो रही थी। बोले, “किंतु वे नरेश हैं सुशीला! हमें उनकी पद-प्रतिष्ठा का ध्यान तो रखना ही होगा न! तुम यह सब छोड़ दो, मैं यूँ ही चला जाऊंगा।”
“मित्र को स्मरण करते समय यदि उसकी सामर्थ्य पर ध्यान जाने लगे, तो मित्रता प्रदूषित हो जाती है आर्य! भूल जाइए कि वे द्वारिकाधीश हैं, बस इतना स्मरण रखिये कि वे आपके वे मित्र हैं जिनके साथ आपने गुरुकुल के दिनों में भिक्षाटन किया था।”
“कैसी बातें करती हो देवी! वे बचपन के दिन थे। अब समय ने सबकुछ बदल दिया है। तबका माखनचोर अब विश्व का सर्वश्रेष्ठ योद्धा है। वे धर्मसंस्थापक है, इस युग के देवता हैं…” सुदामा का पुरुष-मन सांसारिक भेदों से मुक्त नहीं हो पा रहा था।
“समय सामान्य मनुष्यों को बदलता है, कृष्ण जैसे महानायकों को नहीं। वे एक शरीर के अंदर अनेक रूपों में विद्यमान हैं। वे जिससे जिस रूप में मिले, उसके लिए सदैव उसी रूप में रह गए। क्या राधिका मानेंगी कि उनका मुरली-मनोहर अब प्रेमी नहीं, योद्धा हो गया है? क्या नन्द बाबा मानेंगे कि उनका नटखट कन्हैया आज समस्त संसार का पिता हो गया है? नहीं! वे ब्रज की गोपियों के लिए अब भी माखनचोर हैं, नन्द-यशोदा के लिए अब भी नटखट बालक हैं, राधिका के लिए अब भी प्रिय सखा हैं। वे अर्जुन के लिए जो हैं, वह द्रौपदी के लिए नहीं हैं। वे गोकुल के लिए दूसरे कृष्ण हैं, द्वारिक के लिए दूसरे… हस्तिनापुर के लिए उनका रूप कुछ और है और मगध के लिए कुछ और। आप जा कर देखिये तो, वे आपको अब भी गुरुकुल वाले कन्हैया ही दिखेंगे। यही उनकी विराटता है, यही उनका सौंदर्य…” सुशीला ऐसे बोल रही थीं, जैसे कृष्ण सुदामा के नहीं, उनके सखा हों।
सुदामा मुस्कुरा उठे। बोले-” इतना कहाँ से देख लेती हो देवी?” सुशीला ने हँस कर उत्तर दिया, “पुरुष अपनी आंखों से संसार को देखता है, और स्त्री मन से… धोखा तो दोनों ही खाते हैं, पर कभी बदलते नहीं।”
सुदामा ने पोटली उठाई, ईश्वर को प्रणाम किया और निकल पड़े… वे नहीं जानते थे कि द्वारिका में बैठा उनका कन्हैया आँखों में अश्रु लिए उनकी ही प्रतीक्षा कर रहा था।

जय कन्हैयालाल की🙏🙏🙏

गौरव गुप्ता

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નીતાબહેન સવારથી મૂંઝાઇ રહ્યા હતા.એક તરફ દીકરો વહુ આવી રહ્યાના સમાચારથી ખુશ હતા.તો સાથે સાથે એક મૂંઝવણ પણ અનુભવી રહ્યા હતા.પરદેશી વહુને પોતે કેમ સાચવશે?શું બોલશે તેની સાથે?પતિનો ગુસ્સો પણ હજુ ઉતર્યો નહોતો.પંદર દિવસ પહેલાં જ જીતનો અમેરિકાથી ફોન આવ્યો હતો.જેમાં તેણે તે જ દિવસે લગ્ન કર્યાના સમાચાર આપ્યા હતા.અને આશીર્વાદ માગ્યા હતા. બાકી વાતો પોતે થોડા દિવસમાં દેશમાં આવે છે ત્યારે નિરાંતે વાત કરીશું.એમ પણ કહ્યું હતું. અને હવે આવતીકાલે જીત જેનાને લઇ ને આવતો હતો. આનંદની સાથે સાથે નીતાબહેન એક ડર પણ અનુભવતા હતા. બાજુવાળા કાંતાબેનને ત્યાં એનો દીકરો પરદેશથી થોડા દિવસો માટે આવ્યો હતો..ત્યારે તેનું વર્તન પોતે નજરે જોયું હતું. તેની વહુ તો અહીંની જ હતી..તો યે જે રૂઆબ અને રોફ બંને જણાએ મા- બાપ સાથે કર્યા હતા…તેનાથી પોતે અજાણ નહોતા. આ તો અધૂરામા પૂરુ..વહુ પરદેશી હતી.

નિખિલભાઇનો ગુસ્સાવાળો સ્વભાવ અને પોતાની જૂનવાણી રહેણી કરણી…..કેમ થશે? શું થશે? તે ડરથી નીતાબેન મનમાં મનમાં ફફડતા હતા.કયાંક બાપ દીકરા વચ્ચે ચકમક ન ઝરે તો સારું

”વહુ પહેલીવાર ઘેર આવે છે..સ્વાગત તો કરવું જ જોઇએ.પણ એ બધી વિધિઓ તેને તો જૂનવાણી જ લાગવાની.લાપસીનું આંધણ મૂકવાનું મન પણ થયું.પણ…ના,ના, એને એવું બધું નહીં ભાવે.સારી મીઠાઇ જ તૈયાર લાવી રાખવી સારી.ભાષા તો વહુ સમજશે નહીં…વાત તો શું કરશે?”આવા કેટકેટલા વિચારોથી નીતાબહેન ઉભરાતા હતા!! ઘર સાફ તો રહેતું જ હતું.તો યે જીતનો રૂમ થોડો વધુ વ્યવસ્થિત કર્યો.નિખિલભાઇ મૌન બની બધુ જોતા હતા.નહોતા સહકાર આપતા કે નહોતા વિરોધ કરતા.આમેય અંદર ગમે તેટલી લાગણી હોય તો પણ એ વ્યકત કરવી તેમને કયાં ફાવતી હતી?

નીતાબહેન જીતને ભાવતી વસ્તુઓ બનાવી રાહ જોઇ રહ્યા વહુને તો શું ભાવતું હશે…શું ખાતી હશે…કેમ ખબર પડે? યુ.એસ.થી મુંબઇ અને ત્યાંથી જામનગર.. અને પછી ત્યાંથી ટેક્ષી કરીને બંને આવવાના હતા. એટલે રાહ જ જોવાની રહી. હવે પહોંચવા જ જોઇએ.જામનગરથી નીકળી ગયાનો ફોન તો આવી ગયો હતો.બધી તૈયારી કરી નીતાબહેન આંટાફેરા કરતા હતા.પતિ તો છાપુ વાંચવાનો ડોળ કરી બેઠા હતા.!!! અને બેલ વાગવાની રાહ તો કયાં જોવાની હતી?ઘરના અને મનના બધા દરવાજ ખુલ્લા રાખી ને જ બેઠા હતા. ત્યાં જ ગાડી આવી ને ઉભી રહી.

”મમ્મી” કહેતો જીત પગે લાગીને ભેટી પડયો.એનું અનુકરણ કરતી જેના પગે લાગી ત્યારે તો નીતાબહેનને શું બોલવું..શું આશીર્વાદ આપવા એ યે ન સમજાયું. સરસ સાડી,કપાળમાં મોટો ચાંદલો અને હાથમાં બંગડીઓનો ઝૂડો પહેરેલી વહુની તો એને કલ્પનાયે કયાં હતી?

”મમ્મી, તારે આરતી…આરતી નથી ઉતારવી અમારી?’

જીત હસતા હસતા બોલ્યો..એ જ સ્ટાઇલ….એ જ હાસ્ય..એ જ નિખાલસતા..કયાં કંઇ બદલાયું હતું?ફકત આ વખતે એકલાને બદલે સાથે નાનકડી ઢીંગલી જેવી રૂપકડી છોકરી હતી! ફકત ચહેરા પરથી જ “ગોરી” લાગતી છોકરી બાકી બધી રીતે તો નખશિખ ભારતીય જ લાગતી હતી. બંને નિખિલ ભાઇને પગે લાગ્યા ત્યારે તે પણ જોઇ જ રહ્યા.

નીતાબહેન બનેને ઘરમાં અંદર લઇ ગયા.ઠાકોરજીને પગે લગાડવા.પ્રસાદ આપ્યો..જેના જે ભાવથી પગે લાગી અને પ્રસાદ લીધો તે જોઇ નીતાબહેન હરખાઇ રહ્યા. ”મમ્મી.ઘર તો બહું સરસ છે”જયારે જેનાએ શુધ્ધ ગુજરાતીમાં કહ્યુ તો નીતાબહેન તો માની જ ન શકયા. માની મૂંઝવણ સમજી જીત બોલ્યો,

”અરે,મમ્મી,ચિંતા ન કર. જેના બધુ ગુજરાતી સમજે છે અને મોટાભાગનું બોલી પણ શકે છે. ભૂલ થાય ત્યાં સુધારજે..તને ખબર છે….એક વરસથી તારી વહુ થવાની ટ્રેનીંગ લેતી હતી.હવે પાસ કે નાપાસ..એ તો તું કહીશ ત્યારે જ ખબર પડે…”

જમતી વખતે બંગાળી મીઠાઇ જોઇને જીત બોલી ઉઠયો,

”આ શું મમ્મી? મહેમાનની જેમ મીઠાઇ મંગાવી છે? તારા હાથની લાપસી કે લાડવા નથી ખવડાવવાની? મેં તો જેના આગળ કેટલા વખાણ કરી રાખ્યા છે કે મારી મમ્મી જેવી લાપસી કોઇ ન બનાવી શકે…”

”બેટા,મને એમ કે….”

”હા,તને એમ કે પરદેશી વહુ ..અને એના નખરા કેવા યે હશે…બરાબરને? સાચુ કહેજે એવું વિચારીને ચિંતા કરતી હતી ને? હું તારો દીકરો છું તને ઓળખું તો ખરો ને?

પણ…મમ્મી,જેના જન્મે જ અંગ્રેજ છે..એને આપણી સંસ્કૃતિ…આપણા રીતરિવાજ, વિગેરે બધું બહું જ ગમે છે.અને તેને આપણી રહેણી કરણી…ને બધું જ ખબર છે…તું જરાયે ચિંતા ન કર.”

અને ખરેખર સાંજ સુધીમાં નીતાબહેન તો ઠીક નિખિલભાઇને પણ થયું.

.ના,ના,પોતે ખોટા ગુસ્સે થતા હતા.જીત અને જેના સતત હસતા હતા અને હસાવતા હતા.કેવી રીતે જેના ગુજરાતી શીખતા શીખતા …કેવા કેવા છબરડા વાળતી હતી..તે જીત કહેતો હતો અને જેના હસતી હતી.જેના મૂળ તો વાતોડી હતી.થોડા કલાકમાં તો એવી ભળી ગઇ કે જાણે વરસોથી આ ઘરમાં જ ન રહેતી હોય!! એક એક વસ્તુ જોતી રહી..રસથી વખાણ કરતી રહી…મમ્મી,,પપ્પા આખો દિવસ શું કરે છે..સમય કેમ પસાર કરે છે…બધું પૂછતી રહી.એને તો જાણે પ્રશ્નો ખૂટતા નહોતા!!

નીતાબહેન ને થયું કે આટલો રસ તો પોતાનામાં કોઇએ કયારેય લીધો નથી.રાત્રે તો નીતાબહેનની સાથે પરાણે રસોડામાં ઘૂસી ગઇ.

લાપસી ખાઇને ખુશખુશાલ થઇ ગઇ,અને રાતે જમીને બધા બેઠા હતા ત્યારે તો ઘર જાણે જીવંત બની ઉઠયું.અંતે નીતાબહેને જ સમજી ને કહ્યું,

”જીત,બેટા,આજે તમે યે થાકયા હશો..કાલે વાતો કરશું..આજે તો હસી હસીને પેટમાં દુખી ગયું. હવે સુઇ જાવ”

હા,મમ્મી.અને જેના તારી સાથે સુઇ જશે”

અચાનક જીતે જાણે ધડાકો કર્યો હોય તેમ નિખિલભાઇ અને નીતાબહેન સાંભળી રહયા..”જીત આમ કેમ કહેતો હતો?” બંને પ્રશ્નાર્થ નજરે જીત સામે જોઇ રહ્યા.

“હા,મમ્મી, એ મુખ્ય વાત તો અમે હજુ તમને કરી જ નથી.’જેના જાણે ટહૂકી ઉઠી. ”એટલે?”

“એટલે એમ જ કે…મેં અને જેનાએ કાયદાની ભાષામાં લગ્નના સહી સિક્કા કર્યા છે.જેથી કોઇ કાનૂની ગૂંચવાડો ઉભો ન થાય.બાકી તમારા આશીર્વાદ વિના લગ્ન થોડા થાય?

જેના ને તો આપણા રિવાજ પ્રમાણે..ફેરા ફરી ને..બધી વિધિ પ્રમાણે લગ્ન કરવા છે.અમે હજુ સાથે રહ્યા જ નથી.લગ્નનું પવિત્ર સહજીવન તમારા આશીર્વાદ વિના થોડુ શરૂ થાય?”

નીતાબહેન કે નિખિલભાઇ તો કંઇ બોલી જ ન શકયા.
”ખરેખર?”
“હા,મમ્મી,જેનાના મમ્મી પપ્પા પણ આઠ દિવસમાં અહીં આવી જશે.અને તને જે રીતે દીકરો પરણાવવાની હોંશ હતી…છે..એની શું મને ખબર નથી?” નિખિલભાઇ અને નીતાબહેનના આશ્ર્વર્ય અને આનંદનો તો પાર ન રહ્યો. આવી તો કલ્પના પણ કયાંથી આવે?પોતે તો કાંતાબેનના દીકરા-વહુ પ્રમાણે જ વિચારતા રહ્યા.કેવા મૂરખ હતા પોતે.

અઠવાડિયા સુધી ઘરમાં મંગલ ગીતો ગવાતા રહ્યા. જેનાના મા-બાપ પણ જે રીતે બધા સાથે ભળી ગયા..તે જોઇને તો ગામવાળા…સગાવહાલા..પણ બધા નવાઇ પામી ગયા.નીતાબહેન અને નિખિલભાઇએ ગૌરવથી..ધામધૂમથી દીકરાને પરણાવ્યો. દીકરા –વહુને પોંખતા નીતાબેનની આંખો હર્ષથી છલકાઇ રહી. પણ…પણ..હજુ આશ્ર્વર્યનો આંચકો જાણે બાકી હતો.પોંખીને દીકરા વહુને અંદર લઇ ગયા ત્યારે બંનેએ પગે લાગીને મમ્મી,પપ્પાના હાથમાં એક કવર મૂકયું.
”આ શું?’ :”

તમે જ ખોલી ને જુઓ…પપ્પા.આ છે અમારી સરપ્રાઇઝ ગીફટ!!”

નિખિલભાઇ એ કવર ખોલ્યું તો એમાં જીત અને જેના બંનેની નોકરી ના એપોઇંટમેન્ટ લેટર હતા.બંનેને મુંબઇ..એક મલ્ટીનેશનલ કંપનીમાં ખૂબ સરસ નોકરી મળી ગઇ હતી. હવે તેઓ કાયમ અહીં જ રહેવાના હતા.

” મમ્મી,હવે અઠવાડિયામાં આપણે ચારેય મુંબઇ જઇએ છીએ.ત્યાં કંપનીએ સરસ બંગલો આપ્યો છે.હવે અમે કાયમ તમારી સાથે જ રહેવાના છીએ….”

”મમ્મી,રાખશોને આ પરદેશી છોકરીને કાયમ તમારી સાથે?”

જેના ટહૂકી ઉઠી.

નીતાબેનને થયું કે સંસ્કારને કોઈ સીમાડા થોડા જ હોય છે ?


उषा बा पवार

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દેશ પ્રજાથી મહાન બનતો હોય છે

આપણે ત્યાં કોઈ પણ આફત વખતે જે રીતે વસ્તુઓ, દવાઓની સંગ્રહ ખોરી થાય છે એના ઉપરથી બહુ પ્રસિદ્ધ એક પ્રસંગ યાદ આવી ગયો.👇

બીજા વિશ્વયુદ્ધ દરમ્યાન જર્મનીએ બ્રિટન આવતા ખાંડના જહાજો બોમ્બમારો કરી ડુબાડી દીધા. બ્રિટનમાં ખાંડની તીવ્ર અછત થઈ. લોકો રેશનીંગની દુકાને 100-200 ગ્રામ ખાંડ માટે લાંબી લાઇનમાં ઉભા રહેતા.

તત્કાલીન વ.પ્ર. ચર્ચિલે લોકોને અપીલ કરી “ખાંડ માપમાં મળશે. જરૂરત પૂરતી જ ખાંડ ખરીદો. સંગ્રહ ન કરશો નહિ તો ગરીબ વર્ગ સાવ ખાંડ વગર રહી જશે”

બીજે દિવસે સંસદ જવા નીકળેલા ચર્ચિલે જોયું કે સુખી દેખાતા લોકો પણ દુકાનો ઉપર લાંબી લાઈનોમાં ઉભા હતા. એ દુઃખી થઈ ગયા કે બધાને મળશે એવી જાહેરાત પછી પણ લોકોને ધીરજ નથી!

સેક્રેટરીને તપાસ કરવા મોકલ્યા. થોડીવારે પાછા આવી એણે કહ્યું:
“સર, એ લાઈનો ખાંડ લેવા નહીં પણ જેમની પાસે વધુ ખાંડ હતી એ પાછી આપવા આવ્યા છે જેથી જેમની પાસે નથી એમને ય મળી રહે!!”

ચર્ચિલે ગદગદ થઈને કહ્યું ” જ્યાં આવી પ્રજા હોય એ દેશને કોણ હરાવી શકે?”

પછી નો ઇતિહાસ જગજાહેર છે. આવુ કેરેક્ટર પ્રજાનું હોય તો દેશ મહાન થાય જ થાય…

પ્રજા દેશથી મહાન નથી બનતી, દેશ પ્રજાથી મહાન બનતો હોય છે.

👉 કોરોના કાળમાં લોકો સાથે બેફામ લૂંટ કરતા લોકો ને સમર્પિત..🙏🙏🙏

उषा बा पवार

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कर्जवालीलक्ष्मी

एक 15 साल का भाई अपने पापा से कहा “पापा पापा दीदी के होने वाले ससुर और सास कल आ रहे है” अभी जीजाजी ने फोन पर बताया।

दीदी मतलब उसकी बड़ी बहन की सगाई कुछ दिन पहले एक अच्छे घर में तय हुई थी।

दीनदयाल जी पहले से ही उदास बैठे थे धीरे से बोले…

हां बेटा.. उनका कल ही फोन आया था कि वो एक दो दिन में #दहेज की बात करने आ रहे हैं.. बोले… #_दहेज के बारे में आप से ज़रूरी बात करनी है..

बड़ी मुश्किल से यह अच्छा लड़का मिला था.. कल को उनकी दहेज की मांग इतनी ज़्यादा हो कि मैं पूरी नही कर पाया तो ?”

कहते कहते उनकी आँखें भर आयीं..

घर के प्रत्येक सदस्य के मन व चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ दिखाई दे रही थी…लड़की भी उदास हो गयी…

खैर..

अगले दिन समधी समधिन आए.. उनकी खूब आवभगत की गयी..

कुछ देर बैठने के बाद लड़के के पिता ने लड़की के पिता से कहा” दीनदयाल जी अब काम की बात हो जाए..

दीनदयाल जी की धड़कन बढ़ गयी.. बोले.. हां हां.. समधी जी.. जो आप हुकुम करें..

लड़के के पिताजी ने धीरे से अपनी कुर्सी दीनदयाल जी और खिसकाई ओर धीरे से उनके कान में बोले. दीनदयाल जी मुझे दहेज के बारे बात करनी है!…

दीनदयाल जी हाथ जोड़ते हुये आँखों में पानी लिए हुए बोले बताईए समधी जी….जो आप को उचित लगे.. मैं पूरी कोशिश करूंगा..

समधी जी ने धीरे से दीनदयाल जी का हाथ अपने हाथों से दबाते हुये बस इतना ही कहा…..

आप कन्यादान में कुछ भी देगें या ना भी देंगे… थोड़ा देंगे या ज़्यादा देंगे.. मुझे सब स्वीकार है… पर कर्ज लेकर आप एक रुपया भी दहेज मत देना.. वो मुझे स्वीकार नहीं..

क्योकि जो बेटी अपने बाप को कर्ज में डुबो दे वैसी “कर्ज वाली लक्ष्मी” मुझे स्वीकार नही…

मुझे बिना कर्ज वाली बहू ही चाहिए.. जो मेरे यहाँ आकर मेरी सम्पति को दो गुना कर देगी..

दीनदयाल जी हैरान हो गए.. उनसे गले मिलकर बोले.. समधी जी बिल्कुल ऐसा ही होगा..

शिक्षा- कर्ज वाली लक्ष्मी ना कोई विदा करें न ही कोई स्वीकार करे..

यह कहानी मेरी नही है, मैं यह भी नहीं जानती की यह किसने और कब लिखी है l मुझे अच्छी लगी तो मैने इसे समाज के साथ साझा करना अपना दायित्व समझा. आपको पसंद आये तो सारी दुआए उनके लिए ही होंगी जिन्होंने यह दिल से कागज पर उतारी है I

🙏🙏🙏

उषा बा पवार

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*एक प्रेरक प्रसंग 😗 प्रतिवर्ष माता पिता अपने पुत्र को गर्मी की छुट्टियों में उसके दादा दादी के घर ले जाते । 10-20 दिन सब वहीं रहते और फिर लौट आते। ऐसा प्रतिवर्ष चलता रहा, बालक थोड़ा बड़ा हो गया । एक दिन उसने अपने माता पिता से कहा कि अब मैं अकेला भी दादी के घर जा सकता हूं तो आप मुझे अकेले को दादी के घर जाने दो । माता पिता पहले तो राजी नहीं हुए। परंतु बालक ने जब जोर दिया तो उसको सारी सावधानी समझाते हुए अनुमति दे दी । जाने का दिन आया । बालक को छोड़ने स्टेशन पर गए।

ट्रेन में उसको उसकी सीट पर बिठाया । फिर बाहर आकर खिड़की में से उससे बात की । उसको सारी सावधानियां फिर से समझाई।
बालक ने कहा कि मुझे सब याद है। आप चिंता मत करो ।
ट्रेन को सिग्नल मिला। व्हीसिल लगी। तब पिता ने एक लिफाफा पुत्र को दिया कि बेटा अगर रास्ते में तुझे डर लगे तो यह लिफाफा खोल कर इसमें जो लिखा उसको पढ़ना
बालक ने पत्र जेब में रख लिया ।
माता पिता ने हाथ हिलाकर विदा किया। ट्रैन चलती रही। हर स्टेशन पर लोग आते रहे पुराने उतरते रहे ।
सबके साथ कोई न कोई था ।
अब बालक को अकेलापन लगा।
ट्रेन में अगले स्टेशन पर ऐसी शख्सियत आई जिसका चेहरा भयानक था।
पहली बार बिना माता-पिता के, बिना किसी सहयोगी के ,यात्रा कर रहा था।
उसने अपनी आंखें बंद कर सोने का प्रयास किया, परंतु बार-बार वह चेहरा उसकी आंखों के सामने घूमने लगा। बालक भयभीत हो गया, रुंआसा हो गया ।
तब उसको पिता की चिट्ठी याद आई।
उसने जेब में हाथ डाला। हाथ कांप रहा था। पत्र निकाला । लिफाफा खोला,
पढा –
पिता ने लिखा था तू डर मत

मैं पास वाले कंपार्टमेंट में ही इसी गाड़ी में बैठा हूं ।

बालक का चेहरा खिल उठा। सब डर काफूर हो गया।

मित्रों
जीवन भी ऐसा ही है ।
जब भगवान ने हमको इस दुनिया में भेजा उस समय उन्होंने हमको भी एक पत्र दिया है , जिसमें लिखा है , “उदास मत होना , मैं हर पल, हर क्षण , हर जगह तुम्हारे साथ हूं । पूरी यात्रा तुम्हारे साथ करता हूं । केवल तुम मुझे स्मरण रखते रहो। सच्चे मन से याद करना, मैं एक पल में आ जाऊंगा।

इसलिए चिंता नहीं करना।
घबराना नहीं । हताश नहीं होना ।
महाप्रभु जी ने लिखा है *" चिंता कोपि न कार्या "* चिंता करने से मानसिक और शारीरिक दोनों स्वास्थ्य प्रभावित होते हैं । परमात्मा पर ,प्रभु पर, अपने इष्ट पर, हर क्षण विश्वास रखें ।

वह हमेशा हमारे साथ हैं । हमारी पूरी यात्रा के दौरान…

प्रभु पर सदैव विश्वास रखें 🙏

उषा बा पवार