Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक, प्रेरणात्मक - Inspiration, भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

“भागीरथ”वर्ष 1899-1900 में राजस्थान में एक बदनाम अकाल पड़ा था…विक्रम संवत १९५६ (1956) में ये अकाल पड़ने के कारण राजस्थान में इसे छप्पनिया-काळ कहा जाता है…एक अनुमान के मुताबिक इस अकाल से राजस्थान में लगभग पौने-दो करोड़ लोगों की मृत्यु हो गयी थी…पशु पक्षियों की तो कोई गिनती नहीं है…लोगों ने खेजड़ी के वृक्ष की छाल खा-खा के इस अकाल में जीवनयापन किया था…यही कारण है कि राजस्थान के लोग अपनी बहियों (मारवाड़ी अथवा महाजनी बही-खातों) में पृष्ठ संख्या 56 को रिक्त छोड़ते हैं…छप्पनिया-काळ की विभीषिका व तबाही के कारण राजस्थान में 56 की संख्या अशुभ मानी है….इस दौर में बीकानेर रियासत के यशस्वी महाराजा थे… गंगासिंह जी राठौड़(बीका राठौड़ अथवा बीकानेर रियासत के संस्थापक राव बीका के वंशज)….अपने राज्य की प्रजा को अन्न व जल से तड़प-तड़प के मरता देख गंगासिंह जी का हृदय द्रवित हो उठा…. गंगासिंह जी ने सोचा क्यों ना बीकानेर से पँजाब तक नहर बनवा के सतलुज से रेगिस्तान में पानी लाया जाए ताकि मेरी प्रजा को किसानों को अकाल से राहत मिले…नहर निर्माण के लिए गंगासिंह जी ने एक अंग्रेज इंजीनियर आर जी कनेडी (पँजाब के तत्कालीन चीफ इंजीनियर) ने वर्ष 1906 में इस सतलुज-वैली प्रोजेक्ट की रूपरेखा तैयार की…लेकिन….बीकानेर से पँजाब व बीच की देशी रियासतों ने अपने हिस्से का जल व नहर के लिए जमीन देने से मना कर दिया…. नहर निर्माण में रही-सही कसर कानूनी अड़चनें डाल के अंग्रेजों ने पूरी कर दी…महाराजा गंगासिंह जी ने परिस्थितियों से हार नहीं मानी और इस नहर निर्माण के लिए अंग्रेजों से एक लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी और जीती भी…बहावलपुर (वर्तमान पाकिस्तान) रियासत ने तो अपने हिस्से का पानी व अपनी ज़मीन देने से एकदम मना कर दिया…महाराजा गंगासिंह जी ने जब कानूनी लड़ाई जीती तो वर्ष 1912 में पँजाब के तत्कालीन गवर्नर सर डैंजिल इबटसन की पहल पर दुबारा कैनाल योजना बनी…लेकिन…किस्मत एक वार फिर दगा दे गई…इसी दरमियान प्रथम विश्वयुद्ध शुरू हो चुका था…4 सितम्बर 1920 को बीकानेर बहावलपुर व पँजाब रियासतों में ऐतिहासिक सतलुज घाटी प्रोजेक्ट समझौता हुआ…महाराजा गंगासिंह जी ने 1921 में गंगनहर की नींव रखी…26 अक्टूम्बर 1927 को गंगनहर का निर्माण पूरा हुआ….हुसैनवाला से शिवपुरी तक 129 किलोमीटर लंबी ये उस वक़्त दुनियाँ की सबसे लंबी नहर थी…गंगनहर के निर्माण में उस वक़्त कुल 8 करोड़ रुपये खर्च हुए…गंगनहर से वर्तमान में 30 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होती है…इतना ही नहीं…वर्ष 1922 में महाराजा गंगासिंह जी ने बीकानेर में हाई-कोर्ट की स्थापना की… इस उच्च-न्यायालय में 1 मुख्य न्यायाधीश के अलावा 2 अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति भी की…इस प्रकार बीकानेर देश में हाई-कोर्ट की स्थापना करने वाली प्रथम रियासत बनी…वर्ष 1913 में महाराजा गंगासिंह जी ने चुनी हुई जनप्रतिनिधि सभा का गठन किया…महाराजा गंगासिंह जी ने बीकानेर रियासत के कर्मचारियों के लिए एंडोमेंट एश्योरेंस स्कीम व जीवन बीमा योजना लागू की…महाराजा गंगासिंह जी ने निजी बैंकों की सुविधाएं आम नागरिकों को भी मुहैय्या करवाई…महाराजा गंगासिंह जी ने बाल-विवाह रोकने के लिए शारदा एक्ट कड़ाई से लागू किया….महाराजा गंगासिंह जी ने बीकानेर शहर के परकोटे के बाहर गंगाशहर नगर की स्थापना की….बीकानेर रियासत की इष्टदेवी माँ करणी में गंगासिंह जी की अपने पूर्व शासकों की भाँति अपार आस्था थी… इन्होंने देशनोक धाम में माँ करणी के मंदिर का जीर्णोद्धार भी करवाया…महाराजा गंगासिंह जी की सेना में गंगा-रिसाला नाम से ऊँटों का बेड़ा भी था… इसी गंगा-रिसाला ऊँटों के बेड़े के साथ महाराजा गंगासिंह जी ने प्रथम व द्वितीय विश्वयुद्ध में अदम्य साहस शौर्य वीरता से युद्ध लड़े… इन्हें ब्रिटिश हुकूमत द्वारा उस वक़्त सर्वोच्च सैन्य-सम्मान से भी नवाजा गया…गंगासिंह जी के ऊँटों का बेड़ा गंगा-रिसाला आज सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) की शान है…. व देश सेवा में गंगा-रिसाला हर वक़्त मुस्तैद है….(बीकानेर महाराजा करणीसिंह… निशानेबाजी में भारत के प्रथम अर्जुन पुरस्कार विजेता)…(वर्तमान में करणीसिंह जी की पौत्री व बीकानेर राजकुमारी सिद्धि कुमारी जी (सिद्धि बाईसा) बीकानेर से भाजपा विधायक है)….कहते हैं माँ गंगा को धरती पे राजा भागीरथ लाये थे इसलिए गंगा नदी को भागीरथी भी कहा जाता है…21 वर्षों के लंबे संघर्ष और कानूनी लड़ाई के बाद महाराजा गंगासिंह जी ने अकाल से जूझती बीकानेर/राजस्थान की जनता के लिए गंगनहर के रूप रेगिस्तान में जल गंगा बहा दी थी…गंगनहर को रेगिस्तान की भागीरथी कहा जाता है…इसलिए…महाराजा गंगासिंह जी को मैं कलयुग का भागीरथ कहूँ तो इसमें अतिशयोक्ति नहीं होगी!!!!….चित्र- गंगा नहर परियोजना की खुदाई के दुर्लभ चित्र उस समय ऊँटगाड़ो की सहायता से नहर खुदाई का कार्य सम्पन्न हुआ था। नमन है उन कामगारों को जिनकी मदद से आज वीरान राजस्थान हरा भरा हुआ है।

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. ✔ *एक प्रसंग जिंदगी का:*

✍ एक 6 साल का छोटा सा बच्चा अक्सर परमात्मा से मिलने की जिद किया करता था। उसकी चाहत थी की एक समय की रोटी वो परमात्मा के साथ खाये।

✍ 1 दिन उसने 1 थैले में 5, 6 रोटियां रखीं और परमात्मा को ढूंढने निकल पड़ा।
चलते चलते वो बहुत दूर निकल आया संध्या का समय हो गया।

✍ उसने देखा नदी के तट पर 1 बुजुर्ग बूढ़ा बैठा हैं, और ऐसा लग रहा था जैसे उसी के इन्तजार में वहां बैठा उसका रास्ता देख रहा हों।

✍ वो 6 साल का मासूम बालक, बुजुर्ग बूढ़े के पास जा कर बैठ गया। अपने थैले में से रोटी निकाली और खाने लग गया। और उसने अपना रोटी वाला हाँथ बूढे की ओर बढ़ाया और मुस्कुरा के देखने लगा, बूढे ने रोटी ले ली। बूढ़े के झुर्रियों वाले चेहरे पर अजीब सी ख़ुशी आ गई आँखों में ख़ुशी के आंसू भी थे।

✍ बच्चा बुढ़े को देखे जा रहा था, जब बुढ़े ने रोटी खा ली बच्चे ने एक और रोटी बूढ़े को दी।

✍ बूढ़ा अब बहुत खुश था। बच्चा भी बहुत खुश था। दोनों ने आपस में बहुत प्यार और स्नेह केे पल बिताये।
जब रात घिरने लगी तो बच्चा इजाज़त ले घर की ओर चलने लगा।

✍ वो बार बार पीछे मुड़ कर देखता, तो पाता बुजुर्ग बूढ़ा उसी की ओर देख रहा था।
बच्चा घर पहुंचा तो माँ ने अपने बेटे को आया देख जोर से गले से लगा लिया और चूमने लगी, बच्चा बहूत खुश था।

✍ माँ ने अपने बच्चे को इतना खुश पहली बार देखा तो ख़ुशी का कारण पूछा, तो बच्चे ने बताया !
माँ,….आज मैंने परमात्मा के सांथ बैठ कर रोटी खाई, आपको पता है उन्होंने भी मेरी रोटी खाई, माँ परमात्मा् बहुत बूढ़े हो गये हैं मैं आज बहुत खुश हूँ माँ

✍ उस तरफ बुजुर्ग बूढ़ा भी जब अपने गाँव पहूँचा तो गाव वालों ने देखा बूढ़ा बहुत खुश हैं, तो किसी ने उनके इतने खुश होने का कारण पूछा????

बूढ़ा बोलां, मैं 2 दिन से नदी के तट पर अकेला भूखा बैठा था, मुझे पता था परमात्मा आएंगे और मुझे खाना खिलाएंगे।

✍ आज भगवान् आए थे, उन्होंने मेरे साथ बैठ कर रोटी खाई मुझे भी बहुत प्यार से खिलाई, बहुत प्यार से मेरी और देखते थे, जाते समय मुझे गले भी लगाया, परमात्मा बहुत ही मासूम हैं बच्चे की तरह दिखते हैं।

एक सीख:

इस कहानी का अर्थ बहुत गहराई वाला है। असल में बात सिर्फ इतनी है की दोनों के दिलों में परमात्मा के लिए प्यार बहुत सच्चा है। और परमात्मा ने दोनों को, दोनों के लिये, दोनों में ही (परमात्मा) खुद को भेज दिया।

जब मन परमात्मा भक्ति में रम जाता है तो हमे हर एक में वो ही नजर आने लग जाते है।
🙏🏻जय जिनेन्द्र❤️पवन जैन🙏🏻

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वरिष्ठता और बुढ़ापा

इंसान को उम्र बढ़ने के साथ ‘वरिष्ठ’ बनना चाहिये ‘बूढ़ा’ नहीं|

बुढ़ापा दूसरों में आधार ढूँढता है जबकि वरिष्ठता लोगों को आधार देती है।

बुढ़ापा छुपाने का मन करता है, और वरिष्ठता उजागर करने का ।

बुढ़ापा अहंकारी हो सकता है, जबकि वरिष्ठता अनुभवसंपन्न, विनम्र और संयमशील।

बुढ़ापा नई पीढ़ी के विचारों से परेशान हो सकता है, मगर वरिष्ठता युवा पीढ़ी को, बदलते समय के अनुसार जीने की छूट देती है ।

बुढ़ापा रट लगाता है,
और वरिष्ठता बदलते समय से नाता जोड़ उसे अपना लेती है।

बुढ़ापा नई पीढ़ी पर अपनी राय थोपता है,
और वरिष्ठता नई पीढ़ी की राय को समझने का प्रयास करती है।

बुढ़ापा जीवन की शाम में अपना अंत ढूंढ़ता है मगर वरिष्ठता तो जीवन की शाम में भी एक नए सवेरे का इंतज़ार करती है।

वरिष्ठता और बुढ़ापे के अंतर को समझिए और जीवन का आनंद उठाइये।
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

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हैदराबाद से केवल सौ किमी दूर तेलंगाना के नलगोंडा जिले में स्थित 800 वर्ष प्राचीन “छाया सोमेश्वर महादेव” मंदिर की विशेषता यह है कि दिन भर इस मंदिर के शिवलिंग पर एक स्तम्भ की छाया पड़ती रहती है, लेकिन वह छाया कैसे बनती है यह आज तक कोई पता नहीं कर पाया.

प्राचीन भारतीय वास्तुकला इतनी उन्नत थी कि मंदिरों में ऐसे आश्चर्य भरे पड़े हैं. उत्तर भारत के मंदिरों पर इस्लामी आक्रमण का बहुत गहरा असर हुआ था, और हजारों मंदिर तोड़े गए, लेकिन दक्षिण में शिवाजी और अन्य तमिल-तेलुगु साम्राज्यों के कारण इस्लामी आक्रान्ता नहीं पहुँच सके थे. ज़ाहिर है कि इसीलिए दक्षिण में मुगलों की अधिक हैवानियत देखने को नहीं मिलती, और इसीलिए दक्षिण के मंदिरों की वास्तुकला आज भी अपने पुराने स्वरूप में मौजूद है.

छाया सोमेश्वर महादेव मंदिर को हाल ही में तेलंगाना सरकार ने थोड़ा कायाकल्प किया है. हालाँकि 800 वर्षों से अधिक पुराना होने के कारण मंदिर की दीवार पर कई दरारें हैं, परन्तु फिर भी शिवलिंग पर पड़ने वाली रहस्यमयी छाया के आकर्षण में काफी पर्यटक इसको देखने आते हैं.

नालगोंडा के पनागल बस अड्डे से केवल दो किमी दूर यह मंदिर स्थित है. वास्तुकला का आश्चर्य यह है कि शिवलिंग पर जिस स्तम्भ की छाया पड़ती है, वह स्तम्भ शिवलिंग और सूर्य के बीच में है ही नहीं. मंदिर के गर्भगृह में कोई स्तम्भ है ही नहीं जिसकी छाया शिवलिंग पर पड़े. निश्चित रूप से मंदिर के बाहर जो स्तम्भ हैं, उन्हीं का डिजाइन और स्थान कुछ ऐसा बनाया गया है कि उन स्तंभों की आपसी छाया और सूर्य के कोण के अनुसार किसी स्तम्भ की परछाई शिवलिंग पर आती है. यह रहस्य आज तक अनसुलझा ही है.

इस मंदिर का निर्माण चोल साम्राज्य के राजाओं ने बारहवीं शताब्दी में करवाया था. इस मंदिर के सभी स्तंभों पर रामायण और महाभारत की कथाओं के चित्रों का अंकन किया गया है, और इनमें से कोई एक रहस्यमयी स्तम्भ ऐसा है जिसकी परछाई शिवलिंग पर पड़ती है.

एक भौतिक विज्ञानी मनोहर शेषागिरी के अनुसार मंदिर की दिशा पूर्व-पश्चिम है और प्राचीन काल के कारीगरों ने अपने वैज्ञानिक ज्ञान, प्रकृति ज्ञान तथा ज्यामिती एवं सूर्य किरणों के परावृत्त होने के अदभुत ज्ञान का प्रदर्शन करते हुए विभिन्न स्तंभों की स्थिति ऐसी रखी है, जिसके कारण सूर्य किसी भी दिशा में हो, मंदिर के शिवलिंग पर यह छाया पड़ती ही रहेगी.

ऐसा था हमारा भारतीय संस्कृति ज्ञान एवं उच्च कोटि का वास्तु-विज्ञान।

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मां बूढ़ी हो गईं हैं…

बुढ़ापा के प्रति हमारे मन में विरक्ति होती है। अधिकांश मनुष्य अपने बूढ़े होने के बारे में नहीं सोचते। वे अपने यौवन के दिनों में और अधेड़ होते-होते भी समय की स्थितिज ऊर्जा में होते हैं। गोया, वह अवस्था वहीं ठहर जाने वाली हो। यों आंखों की ओट से देह का ढलान दिखाई पड़ता है पर वह नहीं देख पाते। यह केवल अपने साथ ही नहीं होता। अपनों के लिए भी होता है। अपने प्रियजनों के लिए। जैसे माता-पिता, भाई, बहन आदि।

मैंने पिछले कुछ बरसों में मां को ढलते हुए देखा। वह रह-रह कर कुछ घट रही हैं। चूंकि वह अधिक समय भैया के पास रहा करती थीं तो वह देखना किसी सीधी रेखा को देखने जैसा नहीं था। उसमें एक रुकावट या अंतराल की ठगी हो जाती। और तब उनका पूरा समय तो बाबूजी की देख-रेख में ही बीत जाता रहा। तो सारा ध्यान बाबूजी पर रहा। अब बाबूजी नहीं रहे तो मां की इकहरी काया हमारे सामने भासित हो गई है और उनके पास भी समय की बरसात है। वह पिछले साढ़े तीन महीने से मेरे पास हैं। मैं उन्हें अत्यंत निकट से देख पा रहा हूं। तभी मुझे लग रहा कि वह अपने आप से, अपने अपराजेय व्यक्तित्व से, उसके आकर्षण-आभा से चुकती जा रही हैं।

अब उनका सुन्दर साड़ियों से मोह जाता रहा है। चार को ही वह बदल-बदल कर पहनती हैं। कभी उन्हें सिल्क साड़ियां खूब भाती थीं। अब वह उनकी ओर कहां देखती हैं। हमेशा ही सूती पहनती हैं। सूती में भी उन्हें समस्या होती है। वह कहती हैं, इसे वापस कर दो। मां कहीं घूमने-फिरने नहीं जाती। कल उन्हें बाजार ले गया था। सौ मीटर पैदल चलकर जाने में भी घबराती हैं। पत्नी हाथ थामे चल रही थी। और वह किसी उत्सुक अबोध बच्चे की तरह पांव बढ़ा रही थीं। उन्हें सुनाई कम देता है। बहुत कम। हीयरिंग एड रखा है। लगाती नहीं।

वह एक दो धारावाहिक देखती हैं। टीवी म्यूट रहता है। दृश्य पढ़ती हैं। सुनना उनकी प्राथमिकता नहीं। कहती हैं, समझ लेती हूं। सुबह तीन बजे ही जाग जाती है। पूजा-पाठ चलता रहता है। सुबह जब मैं उठता हूं तो उनके नहाने के लिए गीज़र चलाता हूं। बाल्टी में पानी भरता हूं। वह नहाकर आती हैं तो मुझसे पूछती हैं; चाय बना दूं तुम्हारे लिए? मैं कई बार उनसे ही चाय बनवाता हूं। कई बार खुद बनाता हूं। उनके हाथ कांपते हैं पर चाय मुझसे बेहतर बनाती हैं। लीफ़ का फ्लेवर उनकी चाय में छाया रहता है। संतुलन बढ़िया। कभी इधर-उधर नहीं होता।

मैं नाश्ता बनाया करता हूं तो कहती हैं कि एक चम्मच पोहा या उपमा मेरे लिए रखना। दोपहर को कभी भोजन के साथ तो कभी उससे पहले खाती हैं। जैसा भी बना हो, उन्हें अच्छा ही लगता है। वह यदा-कदा पुरानी घटनाएं सुनाती हैं। अक्सर दो तीन दिन पहले सुनाई हुई घटना की पुनरावृत्ति होती है। पर उन्हें लगता है जैसे मुझे पहली बार ही सुना रही हों। पुस्तक उठा कर पढ़ती हैं। आधे घंटे में उकता जाती हैं।

अब मुझे ध्यान आता है कि मां कितनी ऊर्जा से भरी हुई स्त्री थीं। घर परिवार की धुरी थीं। साज शृंगार तो उन्होंने कभी किया नहीं। ढंग की साड़ी पहनती थीं। सुबह से शाम, देर रात तक खड़ी रहतीं। भोज भात में सबसे पीछे भोजन करतीं। अथक परिश्रम करतीं और चेहरे पर वही वैभव रहता। रात के दो बजे सोकर सुबह पांच बजे खड़ी दिखाई देती। अब उनके उन दिनों की छाया भर रह गई है। दिन में जब तब सोती रहती हैं। उठकर बैठ जाती हैं। पांच मिनट तक चुप रहती हैं। जैसे मति मंद पड़ गई हो। फिर मुझे देखकर हंसती हैं। कभी कोई फोन आया तो बात करती हैं। अक्सर भाई बहनों की मिस्ड काल पड़ी रहती है।

उनका शरीर अब हड्डियों का ढांचा रह गया है। ईश्वर की दया से कोई रोग नहीं है उन्हें ‌। किन्तु कितना कुछ ढल गया है। उन्हें फोटो खिंचवाते हुए लाज आती है। लगता है बुढ़ापा ने कुरूप कर दिया। मैं समझाता हूं कि तुम अब भी ग्रेसफुल हो। एक तरफ उनमें जीवन का विराग है। दूसरी ओर छोटी-छोटी लालसाएं पनपती रहती हैं। एक दिन पत्नी ने आलू का मजेदार भुजिया बनाया तो मां ने अपने लिए थोड़ा सा भुजिया कटोरी में अलग से रख लिया। और बोलीं, आज खाऊंगी। मुझे हंसी आई। आंखें सजल भी हो गईं। मैंने मजाक किया कि अब तुम पाथेर पांचाली की बूढ़ी पीसी मां हो गई हो! वह हंस पड़ीं।

बचपन में मैं उनसे चिपका रहता था। सातवीं आठवीं तक यह सिलसिला चलता रहा। लोग उपहास करते। अब वह दिन भर मुझे देखती रहती हैं। अंशु यह…अंशु वह। अब मैं ही उनका पालक हो गया हूं। परन्तु मेरे शरीर में छोटी सी तकलीफ होते ही न जानें कहां से वह ताड़ लेती हैं। तब मेरा माथा खाती हैं। तुम दूध नहीं पीते..दही नहीं खाते!

जैसा कि मैंने ऊपर लिखा,हम बुढ़ापा को नहीं देख पाते। मैं भी नहीं देख पाया। यह भी संभव है कि चौदह वर्ष से पिता की रुग्णता में डूबी मेरी आंखें मां को बुढ़ाते हुए नहीं देख सकीं। फिर एक दिन अचानक मैंने देखा कि मां भी घट कर आधी रह गईं। आधे से ज्यादा घटा विटप…! सारा वैभव तो चला जा रहा है। चमड़ी झूल गई है। हाथ की नसें उभर आई है। गाल धंस गए है लेकिन इन्दु की आभा का एक अंश उनके चेहरे पर रह गया है।( इन्दु उनका नाम है) वह आभा उनकी आत्मा की है। बाहर बैठी दिखाई देती है।

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आज ही के दिन,

15 जुलाई २०१०
को भारतीय रुपये को
अपना प्रतीक चिह्न मिला
था … ₹

सच मानिए

कईयों को
तभी से रुपए में
राम नजर आने लगे थे

😊

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बाँके बिहारी और पुजारी
❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️
एक राजा ने भगवान कृष्ण का एक मंदिर बनवाया
और पूजा के लिए एक पुजारी को लगा दिया. पुजारी बड़े भाव से
बिहारीजी की सेवा करने लगे. भगवान की पूजा-अर्चना और
सेवा-टहल करते पुजारी की उम्र बीत गई. राजा रोज एक फूलों की
माला सेवक के हाथ से भेजा करता था.पुजारी वह माला बिहारीजी
को पहना देते थे. जब राजा दर्शन करने आता तो पुजारी वह माला बिहारीजी के गले से उतारकर राजा को पहना देते थे. यह रोज का
नियम था. एक दिन राजा किसी वजह से मंदिर नहीं जा सका.
उसने एक सेवक से कहा- माला लेकर मंदिर जाओ. पुजारी से कहना
आज मैं नहीं आ पाउंगा. सेवक ने जाकर माला पुजारी को दे दी और
बता दिया कि आज महाराज का इंतजार न करें. सेवक वापस आ
गया. पुजारी ने माला बिहारीजी को पहना दी. फिर उन्हें विचार आया कि आज तक मैं अपने बिहारीजी की चढ़ी माला
राजा को ही पहनाता रहा. कभी ये सौभाग्य मुझे नहीं
मिला.जीवन का कोई भरोसा नहीं कब रूठ जाए. आज मेरे प्रभु ने
मुझ पर बड़ी कृपा की है. राजा आज आएंगे नहीं, तो क्यों न माला
मैं पहन लूं. यह सोचकर पुजारी ने बिहारीजी के गले से माला
उतारकर स्वयं पहन ली. इतने में सेवक आया और उसने बताया कि राजा की सवारी बस मंदिर में पहुंचने ही वाली है.यह सुनकर
पुजारी कांप गए. उन्होंने सोचा अगर राजा ने माला मेरे गले में देख
ली तो मुझ पर क्रोधित होंगे. इस भय से उन्होंने अपने गले से
माला उतारकर बिहारीजी को फिर से पहना दी. जैसे ही राजा
दर्शन को आया तो पुजारी ने नियम अुसार फिर से वह माला
उतार कर राजा के गले में पहना दी. माला पहना रहे थे तभी राजा को माला में एक सफ़ेद बाल दिखा.राजा को सारा माजरा समझ गया
कि पुजारी ने माला स्वयं पहन ली थी और फिर निकालकर
वापस डाल दी होगी. पुजारी ऐसाछल करता है, यह सोचकर राजा
को बहुत गुस्सा आया. उसने पुजारी जी से पूछा- पुजारीजी यह
सफ़ेद बाल किसका है.? पुजारी को लगा कि अगर सच बोलता हूं
तो राजा दंड दे देंगे इसलिए जान छुड़ाने के लिए पुजारी ने कहा- महाराज यहसफ़ेद बाल तो बिहारीजी का है. अब तो राजा गुस्से
से आग- बबूला हो गया कि ये पुजारी झूठ पर झूठ बोले जा रहा
है.भला बिहारीजी के बाल भी कहीं सफ़ेद होते हैं. राजा ने कहा-
पुजारी अगर यह सफेद बाल बिहारीजी का है तो सुबह शृंगार के
समय मैं आउंगा और देखूंगा कि बिहारीजी के बाल सफ़ेद है या
काले. अगर बिहारीजी के बाल काले निकले तो आपको फांसी हो जाएगी. राजा हुक्म सुनाकर चला गया.अब पुजारी रोकर
बिहारीजी से विनती करने लगे- प्रभु मैं जानता हूं आपके
सम्मुख मैंने झूठ बोलने का अपराध किया. अपने गले में डाली
माला पुनः आपको पहना दी. आपकी सेवा करते-करते वृद्ध हो
गया. यह लालसा ही रही कि कभी आपको चढ़ी माला पहनने का
सौभाग्य मिले. इसी लोभ में यह सब अपराध हुआ. मेरे ठाकुरजी पहली बार यह लोभ हुआ और ऐसी विपत्ति आ पड़ी है. मेरे
नाथ अब नहींहोगा ऐसा अपराध. अब आप ही बचाइए नहीं तो
कल सुबह मुझे फाँसी पर चढा दिया जाएगा. पुजारी सारी रात रोते
रहे. सुबह होते ही राजा मंदिर में आ गया. उसने कहा कि आज
प्रभु का शृंगार वह स्वयं करेगा. इतना कहकर राजा ने जैसे ही मुकुट
हटाया तो हैरान रह गया. बिहारीजी के सारे बाल सफ़ेद थे. राजा को लगा, पुजारी ने जान बचाने के लिए बिहारीजी के बाल रंग
दिए होंगे. गुस्से से तमतमाते हुए उसने बाल की जांच करनी
चाही. बाल असली हैं या नकली यब समझने के लिए उसने जैसे
ही बिहारी जी के बाल तोडे, बिहारीजी के सिर से खून
कीधार बहने लगी. राजा ने प्रभु के चरण पकड़ लिए और क्षमा
मांगने लगा. बिहारीजी की मूर्ति से आवाज आई- राजा तुमने आज तक मुझे केवल मूर्ति ही समझा इसलिए आज से मैं तुम्हारे
लिए मूर्ति ही हूँ. पुजारीजी मुझे साक्षात भगवान् समझते हैं.
उनकी श्रद्धा की लाज रखने के लिए आज मुझे अपने बाल सफेद
करने पड़े व रक्त की धार भी बहानी पड़ी तुझे समझाने के लिए.
यह कहानी किसी पुराण से तो नहीं है लेकिन इसका मर्म
किसी पुराण की कथा से कम भी नहीं है. कहते हैं- समझो तो देव नहीं तो पत्थर.श्रद्धा हो तो उन्हीं पत्थरों में भगवान सप्राण
होकर भक्त से मिलने आ जाएंगे ।।
श्री वृन्दावन बांके बिहारी लाल की जय हो !!!

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भगवान अंतर्यामी हैं, वह सब जानते हैं। इसीलिए हिन्दू ग्रंथो के अनुसार माना जाता है कि भगवान शिव ने 5 ऐसी बाते मां पार्वती को बताई थी, जो कलयुग के लोगो के लिए बेहद काम की हो सकती है।

आइए उन पांच बातों के विषय में जानते हैं–

  1. मां पार्वती ने शिव जी से एक सवाल किया की पृथ्वी पर सबसे बड़ा पाप और सबसे बड़ा धर्म क्या है? तब शिव जी ने बताया कि मनुष्य जाति के लिए सबसे बड़ा धर्म है, हमेशा सत्य की राह पर चलना और उसका साथ देना। इसके विपरीत मनुष्य के लिए सबसे बड़ा पाप है असत्य बोलना और उसका साथ देना। अतः आपको हमेशा सच्चाई का साथ देने वाले लोगो के साथ रहना चाहिए तथा स्वयं को भी सत्य की राह पर ही चलना चाहिए।
  2. दूसरी बात जो शिव जी ने मां पार्वती को बताई थी कि मनुष्य को हमेशा अपने कार्यों का साक्षी बनना चाहिए। जब कोई व्यक्ति बुरे कर्म करता है तथा अन्याय की राह पर चलता है तो वह यह सोचकर आगे बढ़ता जाता है कि कोई उसे नहीं देख रहा। लेकिन उसे यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि वह एक बड़ा पापी है इसका गवाह वह खुद ही है।
  3. शिव जी के अनुसार मनुष्य को हमेशा उसके कर्मों के अनुसार ही फल भोगना पड़ता है। यदि कर्म अच्छे होंगे तो परिणाम भी अच्छा होगा और अगर कर्म बुरे होंगे तो उसका परिणाम भी बुरा ही मिलेगा। इसीलिए भूलकर भी अपने मन में किसी का अहित करने के विषय में सोचना भी नहीं चाहिए।
  4. भगवान शिव ने पार्वती जी से बताया कि यदि मनुष्य किसी व्यक्ति, परिस्थिति या अपने आप से बहुत लगाव रखता है तो वह कभी जीवन में सफल नहीं हो सकता। क्योंकि इन सब के लगाव के कारण वह एक माया जाल में उलझा रहता है।
  5. भगवान शिव कहते हैं कि मनुष्य को अपने मन पर नियंत्रण रखना चाहिए। अन्यथा मनुष्य अपनी इच्छाओं को इतना बढ़ा लेता है कि उनका पूरा होना मुश्किल होता है, जिससे उसे दुख की प्राप्ति होती है। साथ ही मनुष्य को अपनी जरूरत और इच्छाओं में फर्क समझना चाहिए और एक शांतिपूर्ण जिंदगी बितानी चाहिए।
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रावण के मूर्छित होने पर क्यों रोने लगे हनुमान जी

हनुमान जी अजर और अमर हैं। हनुमान ऐसे देवता हैं जिनको यह वरदान प्राप्त है कि जो भी भक्त हनुमान जी की शरण में आएगा उसका कलियुग में कुछ भी नहीं बिगाड़ पाएगा।

जिन भक्तों ने पूर्ण भाव एवं निष्ठा से हनुमान जी की भक्ति की है, उनके कष्टों को हनुमान जी ने शीघ्र ही दूर किया है। हनुमान भक्तों को जीवन में कभी भी कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ता उनके संकटों को हनुमान जी स्वयं हर लेते हैं।

इस लेख के माध्यम से हम अपने पाठको को हनुमानजी से संबंधित एक रोचक प्रसंग बताने जा रहे हैं। क्या आपको पता है कि आमतौर पर हनुमान जी युद्ध में गदा का प्रयोग नहीं करते थे, अपितु मुक्के का प्रयोग करते थे।
रामचरितमानस में हनुमान जी को “महावीर” कहा गया है। शास्त्रों में “वीर” शब्द का उपयोग बहुतो हेतु किया गया है।

जैसे भीम, भीष्म, मेघनाथ, रावण, इत्यादि परंतु “महावीर” शब्द मात्र हनुमान जी के लिए ही उपयोग होता है। रामचरितमानस के अनुसार “वीर” वो है जो पांच लक्षण से परिपूर्ण हों
1.विद्या-वीर,
2.धर्म-वीर,
3.दान-वीर,
4.कर्म-वीर,
5.बलवीर।

परंतु “महावीर” वो है जिसने पांच लक्षण से युक्त वीर को भी अपने वश में कर रखा हो। भगवान् श्री राम में पांच लक्षण थे और हनुमान जी ने उन्हें भी अपने वश में कर रखा था।

रामचरितमानस मानस की यह चौपाई इसे सिद्ध करती है
“सुमिर पवनसुत पावननामु।
अपने वस करि राखे रामू”

तथा रामचरितमानस मानस में “महाबीर विक्रम बजरंगी” भी प्रयोग हुआ है।
शास्त्रानुसार इंद्र के “एरावत” में 10,000 हाथियों के बराबर बल होता है। “दिग्पाल” में 10,000 एरावत जितना बल होता है। इंद्र में 10,000 दिग्पाल का बल होता है। परंतु शास्त्रों में हनुमान जी की सबसे छोटी उगली में 10,000 इंद्र का बल होता है।

शास्त्रों में वर्णित इस प्रसंग के अनुसार रावण पुत्र मेघनाथ हनुमानजी के मुक्के से बहुत डरता था। हनुमान जी को देखते ही मेघनाथ भाग खड़ा होता था। जब रावण ने हनुमान के मुक्के कि प्रशंसा सुनि तो उसने हनुमान जी का सामना कर हनुमानजी से बोला,

“आपका मुक्का बड़ा ताकतवर है, आओ जरा मेरे ऊपर भी आजमाओ, मैं आपको एक मुक्का मारूंगा और आप मुझे मारना।”
फिर हनुमानजी ने कहा “ठीक है! पहले आप मारो।”

रावण ने कहा “मै क्यों मारूँ ? पहले आप मारो”।

हनुमान बोले “आप पहले मारो क्योंकि मेरा मुक्का खाने के बाद आप मारने के लायक ही नहीं रहोगे”।

अब रावण ने पहले हनुमान जी को मुक्का मारा। इस प्रकरण की पुष्टि यह चौपाई कर्ट है “देखि पवनसुत धायउ बोलत बचन कठोर। आवत कपिहि हन्यो तेहिं मुष्टि प्रहार प्रघोर”।

रावण के प्रभाव से हनुमान जी घुटने टेककर रह गए, पृथ्वी पर गिरे नहीं और फिर क्रोध से भरे हुए संभलकर उठे।

रावण मोह का प्रतीक है और मोह का मुक्का इतना तगड़ा होता है कि अच्छे-अच्छे संत भी अपने घुटने टेक देते हैं। फिर हनुमानजी ने रावण को एक घुसा मारा। रावण ऐसा गिर पड़ा जैसे वज्र की मार से पर्वत गिरा हो।

रावण मूर्च्छा भंग होने पर फिर वह जागा और हनुमानजी के बड़े भारी बल को सराहने लगा, गोस्वामी तुलसी दास जी कहते हैं कि “अहंकारी रावण किसी की प्रशंसा नहीं करता पर मजबूरन हनुमान जी की प्रशसा कर रहा है।

प्रशंसा सुनकर हनुमान जो को प्रसन्न होना चाहिए पर वे तो रो रहे हैं स्वयं को धिक्कार रहे हैं” गोस्वामी जी के अनुसार हनुमानजी ने रोते हुए कहा कि “मेरे पौरुष को धिक्कार है, धिक्कार है और मुझे भी धिक्कार है, ‘जो हे देवद्रोही! तू अब भी जीता रह गया’
हनुमान जी के लिये रावण को मारना बड़ी बात नहीं थी लेकिन उसे तो प्रभु श्री रामचन्द्रजी के हाथों से मुक्ति मिलनी थी

अर्थात हनुमान जी का मुक्का खाने के बाद भी रामद्रोही रावण जीवित है। मोह की ताकत देखो, मोह को यदि कोई मार सकता है तो केवल भगवान श्रीराम उनके अलावा कोई नहीं मार सकता। इसकी पुष्टि यह चौपाई करती है..

“मुरुछा गै बहोरि सो जागा। कपि बल बिपुल सराहन लागा धिग धिग मम पौरुष धिग मोही। जौं तैं जिअत रहेसिसुरद्रोही”।
जय सियाराम जय जय सियाराम 🙏🙏