रामायणकाएकविलुप्तप्रायअध्याय
आज का अफगानिस्तान भगवान राम के समय केकय प्रदेश था ।
बाल्मीकि रामायण के उत्तरकाण्ड के 100वे और 101वे केवल दो अध्याय क्रमशः 25 एवः 18 मात्र 43 श्लोक है। केकय नरेश अश्वजित अपने कुल पुरोहित अंगिरा पुत्र गार्ग्य को अयोध्या भेजते हैं । श्रीराम राजेन्द्र से कहलाते है कि गंधर्व राज्य जो सिंधु नदी के दोनों ओर स्थित है, इसका अधिपति शेलशु गंधर्व है । युद्ध कला कुशल, विन्ध्वंसक शास्त्रवस्वधारी , आततायी तीन करोड़ गंधर्वगण की उसकी विशाल सेना है । आप उसे परास्त कर राज्य का विस्तार करे ।
प्रतिउत्तर में श्री राम राजेन्द्र अपने अनुज भरत की अधीनता में एक विशाल चतुरंगिणी सेना भेजते हैं , साथ मे भरत के दोनों पुत्र तक्षक और पुष्यकल भी जाते है ।
सिंधु नदी के उस ओर गंधर्वो के साथ राक्षस भी उनके समर्थन में थे । जिनसे गंधर्वो की शक्ति बढ़ गयी थी । यह राक्षस कहाँ से आये थे ?
जो निशाचर राम रावण युद्ध विमुख होने के कारण से लंका में रह गए थे, उनकी रावण भक्ति का लोप नही हुआ था । उनजे मौन आक्रोश को कहीं कुम्भकर्ण के पुत्र के मूलक तो कहीं खर पुत्र मकराक्ष ने विद्रोही स्वर दिए।
सौम्य विभीषण से जब वे पार नहीं पा सके तो रातों रात पर्याप्त मात्रा में अपनी सम्पदा समेट कर लंका से पलायन कर समुंद्री मार्ग सिंधु नदी के दूसरी ओर पहुंचे और अपनी बस्ती बनाने लगे ।
राम के प्रति इन राक्षसों का विद्रोह और घृणा राम और रावण युद्ध के समय से थी ।
अब जब केकय नरेश गंधर्व राजा शेलशु ने भगवान राम को आमंत्रित किया तो भगवान राम ने भरत को भेजते हैं की वह सेना के साथ जाए और आततायी से उस मुक्त करा लौट आये ।
जस सैन्य अभियान में भरत के दोनों पुत्र तक्षक और पुष्यकल भी जाते है। निरंतर 7 दिन तक युद्ध होता है । विजय मिलती देख कर भरत प्रलयकारी संवतस्त्र का प्रयोग कर उन तीन करोड़ गंधर्वो का अंत लर देते है ।
उनके पुत्र तक्षक और पुष्यकल दो नगर तक्षशिला और पुष्कलावती पेशावर की स्थापना करते है ।
इसके 5 वर्ष बाद भरत अगोध्या लौट आते है ।
इतिहास का एक विलुप्त अध्याय ।
- ओम प्रकाश त्रेहन