
राम-चरित आदर्श श्रेष्ठतम
पुरुषों में जो पुरुषोत्तम,
पिता,बन्धु,पत्नी अरु जनता-
प्रति कर्तव्य किये शुभतम!!
उनसा पहले हुआ, न हो फिर
सर्व काल में उच्च महान,
मित्रों सदा सुभक्ति,प्रेम से
करो राम-प्रभु का आह्वान!!
DG Gyan Chandra
राम-चरित आदर्श श्रेष्ठतम
पुरुषों में जो पुरुषोत्तम,
पिता,बन्धु,पत्नी अरु जनता-
प्रति कर्तव्य किये शुभतम!!
उनसा पहले हुआ, न हो फिर
सर्व काल में उच्च महान,
मित्रों सदा सुभक्ति,प्रेम से
करो राम-प्रभु का आह्वान!!
DG Gyan Chandra
नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा।।
कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाव के लिए लॉकडाउन में श्रीरामभक्त हनुमानजी की अमोघ चालीसा का पाठ करें।
श्रीरघुनाथ मन्दिर पाण्डुलिपि पुस्तकालय, जम्मू में संगृहीत, गोस्वामी तुलसीदासजी (1497-1623)-विरचित श्रीहनुमानचालीसा की एक प्राचीन पाण्डुलिपि (5510-घ)
एक ऐसे राम भक्त जिनकी सिर्फ दो माह की उम्र में आंख की रोशनी चली गई, आज 22 भाषाएं आती हैं, 80 ग्रंथों की रचना कर चुके हैं
सनातन धर्म को दुनिया का सबसे पुराना धर्म कहा जाता है. वेदों और पुराणों के मुताबिक सनातन धर्म तब से है जब ये सृष्टि ईश्वर ने बनाई. जिसे बाद में साधू और संन्यासियों ने आगे बढ़ाया. ऐसे ही आठवीं सदी में शंकराचार्य आए, जिन्होंने सनातन धर्म को आगे बढ़ाने में मदद की. आज हम आपके एक ऐसे संन्यासी के बारे में बताएंगे जिसने अपनी दिव्यांगता को हराकर जगद्गुरू बने.
जय सियाराम जी
A Must read
This 1400 yrs old beautiful “Ramayana Sthambha” is from Virupaksha Temple, Pattadakal, Karnataka.
This small portion of temple pillar holds volumes of information in it.
This intricately carved Ramayana episode is from “Aranya Kanda”.
Important things to understand from these stories on Temple walls & pillars are:
Pattadakal Heritage Site (Temples)
From
Lost temples
The first confrontation after Seetha Apaharan.. Ravana trying to cut short the braver attempt of Jatayu. PATTADAKALLU. Badami Chalukya. 7th CE.
रामायण में एक घास के तिनके का भी रहस्य है, जो हर किसी को नहीं मालूम क्योंकि आज तक हमने हमारे ग्रंथो को
सिर्फ पढ़ा, समझने की कोशिश नहीं की।
रावण ने जब माँ सीता जी का हरण करके लंका ले गया तब लंका मे सीता जी वट वृक्ष के नीचे बैठ कर चिंतन करने लगी। रावण बार बार आकर माँ सीता जी को धमकाता था, लेकिन माँ सीता जी कुछ नहीं बोलती थी। यहाँ तक की रावण ने श्री राम जी के वेश भूषा मे आकर माँ सीता जी को
भ्रमित करने की भी कोशिश की लेकिन फिर भी सफल नहीं हुआ,
रावण थक हार कर जब अपने शयन कक्ष मे गया तो मंदोदरी ने उससे कहा आप तो राम का वेश धर कर गये थे, फिर क्या हुआ?
रावण बोला- जब मैं राम का रूप लेकर सीता के समक्ष गया तो सीता मुझे नजर ही नहीं आ रही थी ।
रावण अपनी समस्त ताकत लगा चुका था लेकिन जिस जगत जननी माँ को आज तक कोई नहीं समझ सका, उन्हें रावण भी कैसे समझ पाता !
रावण एक बार फिर आया और बोला मैं तुमसे सीधे सीधे संवाद करता हूँ लेकिन तुम कैसी नारी हो कि मेरे आते ही घास का तिनका उठाकर उसे ही घूर-घूर कर देखने लगती हो,
क्या घास का तिनका तुम्हें राम से भी ज्यादा प्यारा है? रावण के
इस प्रश्न को सुनकर माँ सीता जी बिलकुल चुप हो गयी और उनकी
आँखों से आसुओं की धार बह पड़ी।
इसकी सबसे बड़ी वजह थी कि
जब श्री राम जी का विवाह माँ सीता जी के साथ हुआ,तब सीता जी का बड़े आदर सत्कार के साथ गृह प्रवेश भी हुआ। बहुत उत्सव मनाया गया। प्रथानुसार नव वधू विवाह पश्चात जब ससुराल आती है तो उसके हाथ से कुछ मीठा पकवान बनवाया जाता है, ताकि जीवन भर घर में मिठास बनी रहे।
इसलिए माँ सीता जी ने उस दिन अपने हाथों से घर पर खीर बनाई और समस्त परिवार, राजा दशरथ एवं तीनों रानियों सहित चारों भाईयों और ऋषि संत भी भोजन पर आमंत्रित थे।
माँ सीता ने सभी को खीर परोसना शुरू किया, और भोजन शुरू होने ही वाला था की ज़ोर से एक हवा का झोका आया। सभी ने अपनी अपनी पत्तलें सम्भाली,सीता जी बड़े गौर से सब देख रही थी।
ठीक उसी समय राजा दशरथ जी की खीर पर एक छोटा सा घास का तिनका गिर गया, जिसे माँ सीता जी ने देख लिया। लेकिन अब खीर मे हाथ कैसे डालें? ये प्रश्न आ गया। माँ सीता जी ने दूर से ही उस तिनके को घूर कर देखा वो जल कर राख की एक छोटी सी बिंदु बनकर रह गया। सीता जी ने सोचा ‘अच्छा हुआ किसी ने नहीं देखा’।
लेकिन राजा दशरथ माँ सीता जी
के इस चमत्कार को देख रहे थे। फिर भी दशरथ जी चुप रहे और अपने कक्ष पहुचकर माँ सीता जी को बुलवाया ।
फिर उन्होंने सीताजी से कहा कि मैंने आज भोजन के समय आप के चमत्कार को देख लिया था ।
आप साक्षात जगत जननी स्वरूपा हैं, लेकिन एक बात आप मेरी जरूर याद रखना।
आपने जिस नजर से आज उस तिनके को देखा था उस नजर से आप अपने शत्रु को भी कभी मत देखना।
इसीलिए माँ सीता जी के सामने जब भी रावण आता था तो वो उस घास के तिनके को उठाकर राजा दशरथ जी की बात याद कर लेती थी।
तृण धर ओट कहत वैदेही
सुमिरि अवधपति परम् सनेही
यही है उस तिनके का रहस्य !
इसलिये माता सीता जी चाहती तो रावण को उस जगह पर ही राख़ कर
सकती थी, लेकिन राजा दशरथ जी को दिये वचन एवं भगवान श्रीराम को रावण-वध का श्रेय दिलाने हेतु वो शांत रही !
ऐसी विशलहृदया थीं हमारी जानकी माता !
🌺🙏🌺जय श्री राम 🌺🙏🌺
निरंजना भारती
देवीसीताके_भाई
श्रीराम और देवी सीता का विवाह कदाचित महादेव एवं माता पार्वती के विवाह के बाद सबसे प्रसिद्ध विवाह माना जाता है।
इस विवाह की एक और विशेषता ये थी कि इस विवाह में त्रिदेवों सहित लगभग सभी मुख्य देवता किसी ना किसी रूप में उपस्थित थे।
कोई भी इस विवाह को देखने का मोह छोड़ना नहीं चाहता था। श्रीराम सहित ब्रह्महर्षि वशिष्ठ एवं राजर्षि विश्वामित्र को भी इसका ज्ञान था।
कहा जाता है कि उनका विवाह देखने को स्वयं ब्रह्मा एवं रूद्र ब्राह्मणों के वेश में आये थे।
चारो भाइयों में श्रीराम का विवाह सबसे पहले हुआ। विवाह का मंत्रोच्चार चल रहा था और उसी बीच कन्या के भाई द्वारा की जाने वाली विधि आयी।
इस विधि में कन्या का भाई कन्या के आगे-आगे चलते हुए लावे का छिड़काव करता है। उत्तर भारत, विशेषकर बिहार एवं उत्तर प्रदेश में आज भी ये प्रथा देखने को मिलती है।
विवाह पुरोहित ने जब इस प्रथा के लिए कन्या के भाई का आह्वान किया तो ये विचार किया जाने लगा कि इस प्रथा को कौन पूरा कर सकता है।
समस्या ये थी कि उस समय वहाँ ऐसा कोई नहीं था जो माता सीता के भाई की भूमिका निभा सके।
अपनी पुत्री के विवाह में इस प्रकार विलम्ब होता देख कर पृथ्वी माता भी दुखी हो गयी।
चर्चा चल ही रही थी कि अचानक एक श्यामवर्ण का युवक उठा और उसने इस विधि को पूरा करने के लिए आज्ञा माँगी।
वास्तव में वो स्वयं मंगलदेव थे जो वेश बदलकर नवग्रहों सहित श्रीराम का विवाह देखने को वहाँ आये थे।
देवी सीता का जन्म पृथ्वी से हुआ था और मंगल भी पृथ्वी के पुत्र थे। इस नाते वे देवी सीता के भाई भी लगते थे। इसी कारण पृथ्वी माता के संकेत से वे इस विधि को पूर्ण करने के लिए आगे आये।
इस प्रकार एक अनजान व्यक्ति को इस रस्म को निभाने को आता देख कर राजा जनक दुविधा में पड़ गए।
जिस व्यक्ति के कुल, गोत्र एवं परिवार का कुछ पता ना हो उसे वे कैसे अपनी पुत्री के भाई के रूप में स्वीकार कर सकते थे।
उन्होंने मंगल से उनका परिचय, कुल एवं गोत्र पूछा।
इसपर मंगलदेव ने मुस्कुराते हुए कहा – हे महाराज जनक ! मैं अकारण ही आपकी पुत्री के भाई का कर्तव्य पूर्ण करने को नहीं उठा हूँ। आपकी आशंका निराधार नहीं है किन्तु आप निश्चिंत रहें, मैं इस कार्य के सर्वथा योग्य हूँ।
अगर आपको कोई शंका हो तो आप महर्षि वशिष्ठ एवं विश्वामित्र से इस विषय में पूछ सकते हैं।
ऐसी तेजयुक्त वाणी सुनकर राजा जनक ने महर्षि वशिष्ठ एवं विश्वामित्र से इसके बारे में पूछा। वे दोनों तो सब जानते ही थे अतः उन्होंने सहर्ष इसकी आज्ञा दे दी।
इस प्रकार गुरुजनों से आज्ञा पाने के बाद मंगल ने देवी सीता के भाई के रूप में सारी रस्में निभाई।
रामायण के सारे संस्करणों में तो नहीं किन्तु कम्ब रामायण एवं रामचरितमानस में इसका उल्लेख है। ये कथा अपनी बहन के प्रति एक भाई के उत्तरदायित्वों के निर्वाह का एक मुख्य उदाहरण है।
निरंजन भारती ओझा
राजा राम ने नहीं, देवी सीता ने भी चलाए थे बाण…जानिए पौराणिक गाथा
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भगवान श्रीराम द्वारा ढांढस बंधाए जाने और पूरी बात बताए जाने पर विभीषण ने बताया कि कुंभकर्ण का एक बेटा मूल नक्षत्र में पैदा हुआ था इसलिए उस का नाम मूलकासुर रखा गया। इसे अशुभ जान कुंभकर्ण ने जंगल में फिंकवा दिया था। जंगल में मधुमक्खियों ने मूलकासुर को पाल लिया।
मूलकासुर जब बड़ा हुआ तो उसने कठोर तपस्या करके ब्रह्माजी को प्रसन्न कर लिया। अब उनके दिए वर और बल के घमंड में भयानक उत्पात मचा रखा है। जब जंगल में उसे पता चला कि आपने उसके खानदान का सफाया कर लंका जीत ली और राजपाट मुझे सौंप दिया है, तो वह भन्नाया हुआ है।
भगवन्, आपने जिस दिन मुझे राजपाट सौंपा उसके कुछ दिन बाद ही उसने पातालवासियों के साथ लंका पहुंचकर मुझ पर धावा बोल दिया। मैंने 6 महीने तक मुकाबला किया, पर ब्रह्माजी के वरदान ने उसे इतना ताकतवर बना दिया है कि मुझे भागना पड़ा तथा अपने बेटे, मंत्रियों तथा स्त्री के साथ किसी प्रकार सुरंग के जरिए भागकर यहां पहुंचा हूं।
उसने कहा कि ‘पहले धोखेबाज भेदिया विभीषण को मारूंगा फिर पिता की हत्या करने वाले राम को भी मार डालूंगा। वह आपके पास भी आता ही होगा। समय कम है, लंका और अयोध्या दोनों खतरे में हैं। जो उचित समझते हों तुरंत कीजिए।’
भक्त की पुकार सुन श्रीरामजी हनुमान तथा लक्ष्मण सहित सेना को तैयार कर पुष्पक यान पर चढ़ झट लंका की ओर चल पड़े।
मूलकासुर को श्रीरामचन्द्र के आने की बात मालूम हुई, वह भी सेना लेकर लड़ने के लिए लंका के बाहर आ डटा। भयानक युद्ध छिड़ गया। 7 दिनों तक घोर युद्ध होता रहा। मूलकासुर भगवान श्रीराम की सेना पर अकेले ही भारी पड़ रहा था।
अयोध्या से सुमंत्र आदि सभी मंत्री भी आ पहुंचे। हनुमानजी संजीवनी लाकर वानरों, भालुओं तथा मानुषी सेना को जिलाते जा रहे थे। पर सब कुछ होते हुए भी युद्ध का नतीजा उनके पक्ष में जाता नहीं दिख रहा था। भगवान भी चिंता में थे।
विभीषण ने बताया कि इस समय मूलकासुर तंत्र-साधना करने गुप्त गुफा में गया है। उसी समय ब्रह्माजी वहां आए और भगवान से कहने लगे- ‘रघुनंदन! इसे तो मैंने स्त्री के हाथों मरने का वरदान दिया है। आपका प्रयास बेकार ही जाएगा।
श्रीराम, इससे संबंधित एक बात और है, उसे भी जान लेना फायदेमंद हो सकता है। जब इसके भाई-बिरादर लंका युद्ध में मारे जा चुके तो एक दिन इसने मुनियों के बीच दुखी होकर कहा, ‘चंडी सीता के कारण मेरा समूचा कुल नष्ट हुआ’। इस पर एक मुनि ने नाराज होकर उसे शाप दे दिया- ‘दुष्ट! तूने जिसे ‘चंडी’ कहा है, वही सीता तेरी जान लेगी।’ मुनि का इतना कहना था कि वह उन्हें खा गया बाकी मुनि उसके डर से चुपचाप खिसक गए। तो हे राम! अब कोई दूसरा उपाय नहीं है। अब तो केवल सीता ही इसका वध कर सकती हैं। आप उन्हें यहां बुलाकर इसका वध करवाइए, इतना कहकर ब्रह्माजी चले गए।
भगवान श्रीराम ने हनुमानजी और गरूड़ को तुरंत पुष्पक विमान से सीताजी को लाने भेजा।
इधर सीता देवी-देवताओं की मनौती मनातीं, तुलसी, शिव-प्रतिमा, पीपल आदि के फेरे लगातीं, ब्राह्मणों से ‘पाठ, रुद्रीय’ का जप करातीं, दुर्गाजी की पूजा करतीं कि विजयी श्रीराम शीघ्र लौटें। तभी गरूड़ और हनुमानजी उनके पास पहुंचे।
पति के संदेश को सुनकर सीताजी तुरंत चल दीं। भगवान श्रीराम ने उन्हें मूलकासुर के बारे में सारा कुछ बताया। फिर तो भगवती सीता को गुस्सा आ गया। उनके शरीर से एक दूसरी तामसी शक्ति निकल पड़ी, उसका स्वर बड़ा भयानक था। यह छाया सीता चंडी के वेश में लंका की ओर बढ़ चलीं।
इधर श्रीराम ने वानर सेना को इशारा किया कि मूलकासुर जो तांत्रिक क्रियाएं कर रहा है उसको उसकी गुप्त गुफा में जाकर तहस-नहस करें। वानर गुफा के भीतर पहुंचकर उत्पात मचाने लगे तो मूलकासुर दांत किटकिटाता हुआ सब छोड़-छाड़कर वानर सेना के पीछे दौड़ा। हड़बड़ी में उसका मुकुट गिर पड़ा। फिर भी भागता हुआ वह युद्ध के मैदान में आ गया।
युद्ध के मैदान में छाया सीता को देखकर मूलकासुर गरजा, तू कौन? अभी भाग जा। मैं औरतों पर मर्दानगी नहीं दिखाता।
छाया सीता ने भी भीषण आवाज करते हुए कहा, ‘मैं तुम्हारी मौत चंडी हूं। तूने मेरा पक्ष लेने वाले मुनियों और ब्राह्मणों को खा डाला था, अब मैं तुम्हें मारकर उसका बदला चुकाऊंगी।’ इतना कहकर छाया सीता ने मूलकासुर पर 5 बाण चलाए। मूलकासुर ने भी जवाब में बाण चलाए। कुछ देर तक घोर युद्ध हुआ, पर अंत में ‘चंडिकास्त्र’ चलाकर छाया सीता ने मूलकासुर का सिर उड़ा दिया और वह लंका के दरवाजे पर जा गिरा।
राक्षस हाहाकार करते हुए इधर-उधर भाग खड़े हुए। छाया सीता लौटकर सीता के शरीर में प्रवेश कर गई। मूलकासुर से दुखी लंका की जनता ने मां सीता की जय-जयकार की और विभीषण ने उन्हें धन्यवाद दिया। कुछ दिनों तक लंका में रहकर श्रीराम सीता सहित पुष्पक विमान से अयोध्या लौट आए।
©️ Follow Webdunia Hindi
जय राज सिंह जाला
🌴🌾🍀ગામડાનું સરળ જીવન🌿🌵🌳
આમ તો અમે બે ભાઈઓ ખાતરના ગાડા
ફેરવા વાળી કંપની!!!
પાંત્રીસેક વીઘા જમીન પણ ખેતી માં એવું કે એક વરહ હારુ તો ત્રણ વરહ માઠાં જાય વર્ષો વર્ષ બિયારણ જ લેવું
એટલે હું ગામની ભજન મંડળીમાં જાવ ભગવાન ની ક્રુપા થી બે ચાર ભજન કિર્તી ગાતા આવડતું એટલે આપણી ભગતી હાલી લગન તો હજી કર્યા નોતા કારણે એક તો અભણ અને પાછું હું ભજનીક એટલે કોઈ છોકરી દેખાડે નય…
બસ કોઈ રોકવા કે ટોકવા વાળું નહીં બસ દિવસે ખેતી કરી અને રાત્રે પાછાં ભજન મંડળીમાં પોચી જાવાનું હોય…
પણ થાય એવું કે રાતે ઉજાગરો થાય એટલે સવારે ઊઠા તું નય એટલે ખેતી માં ધ્યાન દેવાય નય પણ થાય શું?
આ વર્ષ ચોમાસામાં માંડવી નું વાવી તો ખરી પણ વાડીએ જાય કોણ પંદર વીસ દિ પછી જ્યારે હું વાડીએ ગ્યો ત્યાં તો હે ય ને તાજરીયો લીલકાય છે ત્યાં તો તાજરીયો પણ કેવાં મંડ્યો કહે
આવો આવો કલાકાર
મે કિધુ કે ઈ તો ઠીક પણ મે માંડવી વાવી તી ઈ ક્યાં ગઈ?
અરે ભજનીક તમે આટલાં બધા ભગતી ભાવ વાળા માણસ કેહવાવ તમારી માંડવી ને અમે કાય ન થવા દય
આ રહી મારે ઓથે મનમાં ને મનમાં હું પણ હસ્યો
એમાં ઈ વર્ષ ઠીક ઠીક ઉપજ થયું
એક સગાએ મારી સગાઈ ની વાત હાંકી હું જોવા ગયો અને હાં નાં હાં કરતા ઈ ગોઠવાય ગ્યું!!!
એ સમયે માણસોમાં બોવ ભોળપણ હતું
ગામમાં નવી વહવારુ આવેલી લાજુ કાઢવાનો રિવાજ હોય એમાં ત્યારે લાઈટુ તો હતી નહિ એટલે દીવા નાં અંજવાળે બધા રહેતા કોઈ સત્યનારાયણ ભગવાનની પ્રસાદ લય ને આવ્યું બધાં ને પ્રસાદ આપી છેલ્લે વહુને પ્રસાદ આપી
બે પડારીયુ મકાન વચ્ચે થાંભલી હતી લાજમાથી હાથ લાંબો કરીને ખોબો ધરીયો પણ થાંભલી વચારે આવી હવે કરવું શું હાથ કાઢવા જાય તો પ્રસાદ ઢોળાય જાય બધાં વીચાર કે હવે કરવું શું
કોઈ એ કહ્યું કે મોભારે ચડો અને થાંભલી કાઢો
એ થાંભલી કાઢી ત્યારે વહુએ પ્રસાદ ખાધી
કોઈ પ્રસાદ લય લધી હોત તો થાંભલી ન કાઢવી પડત પણ ભોળપણુ હતું
પછી મેં એ મંડળી છોડીને નાટક કંપની માં જોડાઈ ગયો
ખેતરમાં ઉભા ઉભા કહું કે એ બલુન જાય પણ બેહવાનો વારો આવ્યો નય
એ સમયે છોકરાવ નો બુસકટ પણ કેવો અઠવાડિયે ધોવે તો પણ એમને એમ બુસકટ ઉભો રહે કારણ કે ઈ મટીરીયલ જ એવું નાકમાં હરખમ ચાલુ જ હોય નાકમાંથી ઈર,શરદી, સરેખમ નીકળે રાખે નાકથી નીચે આવે તો જીભ ખેંચી લ્યે ઉપર નાક ખેંચી લ્યે!!!
બુસકોટનો કોલર નો આખો રંગ બદલાય જાય આજનો યુગ સારો છે કે આજની પેઢી થોડીક ભણી ગણીને નિરિક્ષક બની થોડું વિજ્ઞાન આગળ વધ્યું એટલે આ મટીરીયલ બોહુ ઓછું જોવા મળે છે
શ્રાવણ માસમાં નાટકો ખુબ રમાવા જાય
નાટક કંપનીમાં અમે પંદર વીસ જણ આજુબાજુ ના ગામડા માં જવાનું થાય એટલે એ સમયે મારી પાસે ચોવીસ્યુ સાઇકલ ભાગે ય બોવ કારણ કે ઘરાના દુધ છાસ ખાધેલા અને તાકાત પુરી હતી તણ તણ સવારી રણકાવ્યે જાય તો પણ થાક ન લાગતો!!!
જુદા-જુદા વેશ ભજવતા એમાં મારે પાત્ર ભર્તૃહરિ નું હતું પોશાક પહેરવાં માટે જુદી જુદી મંડળી માંથી માગી લાવતા એક વખત બાજુના ગામમાં બીજા મંડળીઓ વારા નું હતું એનો નાયકે અમારી મંડળી વાળાઓને આમંત્રણ આપ્યું કે તમે બધા આવો રાજા ભર્તૃહરિ નું પાત્રો કેમ ભજવાય તે જોવું હોય તો
એ મંડળી તરફથી બોવ આમંત્રણ હતું એટલે અમે બધા ગયાં જોવા માટે
એ ગામમાં જે રાજા ભર્તૃહરિ નું પાત્ર ભજવે તેનાં સાસરાનુ ગામ હતું!!!
અમારો ઉતારો એનાં સસરાના ઘરે હતો અમે બધા તો એનાં સસરાની ઘરે ખાટલે બેઠાં હતાં રાત નાં આઠ થવા આવ્યા એટલે મેં કીધું કે હાલો હવે પળમાં જાય નહીતર પછી ગામ લોકો બધા સુય જાશે!!!
એટલે પેલાં વ્યક્તિ એ એનાં સસરાને કીધું કે બાપુજી તમે પણ આવજો જોવા માટે બોવ તાણ કરી એટલે એના સસરાએ કીધુ કે રહેવા દો જમાય મારા થી બેહાય નહીં
એટલે રહેવા દો
નાના બાપુજી તમે આવો હું તમારા માટે ખુરશી ની વ્યવસ્થા કરી આપીશ હું આ મંડળી નો નાયક છું,
મે કિધુ કે આવો આવો મજા આવશે
બોવ મથામણ પછી એ આવવા રાજી થયા
અમે બધા ઉભા થયને ગામને ચોરે આવવા માટે હલતા થાય…
એ મંડળી વાળા બધા ચોરા ઉપર મેક-અપ કરવા ગ્યાં અને અમારૂં ટોળુ નીચે આગળની લાઇનમાં બેસવા માટે વ્યવસ્થા કરી હતી કારણ કે એમને અમન દેખાડવું હતું કે કેમ પાત્રો ભજવાય…
એક જણ આવ્યો ટુટેલો તેલનો ડબ્બો લય ને
કારણકે સારો ડબ્બો કોઈ આપે નહિ
એક પતરાની ખુરશી મુકી…
ઘડીક ડબ્બો વગાડ્યો એટલે ગામનાં ચોરાના પગથિયાં પરથી ટક-ટક-ટક-ટક કરતા રાજા ભર્તૃહરિ નીચે ઉતરે પળમાં આવી ને હેનટર પછાડી ને એ પતરાની ખુરશી પર બેઠા એટલામાં પ્રધાનજી ને ઈશારો કર્યો
કે ઉભા થાવ…
કઠણાઈ ઈ હતી જે પ્રધાન બને એ હાજર નહીં એટલે બીજા ને પ્રધાનનું પાત્ર આપ્યું હતું એ થોડક હાજો-માદો એટલે આવાજ બાઈ માણસ જેવો પ્રધાનજી હાથમાં માઇક લયને ઉભાં થયાં એટલે માઇકમાં કીધુ એ જુવો આપણાં આ મહારાજ રાજા ભર્તૃહરિ આપને કહે છે કે એમનાં રાજમાં છે કોઈ દુખી
હોય તો કહી દો…
આ બાજુ ફરીને કીધુ છે કોઈ દુખી
બીજી બાજુ ફરીને કીધુ કે છે કોઈ દુખી
કોણ બોલે
એટલે કોઈ ન બોલીયુ એટલે હરવેક થી કીધુ કે છેલ્લી વાર પુછો ફરી પ્રધાનજી એ કીધું કે છે કોઈ દુખી તો કોઈ ન બોલ્યું કોણ બોલે આમાં
એટલે અમને દેખાડવા માટે પ્રધાનજને કીધુ કે બેસી જાવ
પોતે માઇક હાથમાં લયને પતરાની ખુરશી પર જોરથી પગ પછાડીને હુકમ કર્યો
હું કોણ બાણું લાખ માળવાનો ધણી મારાં નગરમાં કોઈ દુખ હોય એ હું જોય ન શકું
છે કોઈ દુખી કે, છે કોઈ દુખી, છે કોઈ દુખી
એટલામાં તો એનાં સસરાનો મગજ ફાટ્યું અને હાથ ઉંચા કરીને કીધુ મહારાજ હું દુખી છું…
ત્યાં તો આને પરસેવો છૂટી ગયો અરર આ ખોટું થયું બાપુજી ક્યાં વચારે બોલ્યા હવે થાય શું
એટલે હવે થુકેલુ ગળાય નહીં ભારે કરી બાપુજીએ
એટલે મેં કીધું કે બાપુજી આ નાટક છે એટલે તમારાં જમાય બોલ્યા
જમાય હોય તો શું એક વાર બોલય બે વાર બોલય…
ઘળીએ વળીએ શું મંડાય પડ્યો છે
ત્યાં તો માઇક માંથી ફરી અવાજ આવ્યો કે બોલો નગરજનો કંઈ વાત પર શું દુખી છોવો
એટલે એના સસરાએ કહ્યું આ નગરમાં બે વ્યક્તિઓ દુખી છે
એક તો મારી વેવાણ દુખી છે
બીજું મારી દીકરી દુખી છે
પછી મેં એનાં સસરાને સમજાવ્યું કે
આ નાટક છે….
તમે એને કેવી મુંજવણમાં નાખો છો
બધાં છુટા પડ્યા
પછી મેં આ નાટકો રમવાનાં બંધ કરીને ભગવાનની કૃપા થકી બે ચાર ભજન કરતા આવળુયુ એટલે દેશ વિદેશમાં ફરવાનું થયુ અને બલુનમા બેઠાં બાકી આમ તો ખાતરના ગાડા ફેરવા વાળી કંપની
કોણે કીધું ગરીબ છીએ ? કોણે કીધું રાંક ?
કાં ભૂલી જા મન રે ભોળા ! આપણા જુદા આંક.
થોડાક નથી સિક્કા પાસે,..થોડીક નથી નોટ,
એમાં તે શું બગડી ગયું ? એમાં તે શી ખોટ ?
ઉપરવાળી બેંક બેઠી છે. આપણી માલામાલ,
આજનું ખાણું આજ આપે ને. કાલની વાતો કાલ.
ધૂળિયે મારગ કૈંક મળે જો આપણા જેવો સાથ,
સુખદુઃખોની વારતા કે’તા ..બાથમાં ભીડી બાથ.
ખુલ્લાં ખેતર અડખે પડખે…માથે નીલું આભ,
વચ્ચે નાનું ગામડું બેઠું…ક્યાં છે આવો લાભ ?
સોનાની તો સાંકડી ગલી,…હેતું ગણતું હેત,
દોઢિયાં માટે દોડતાં એમાં જીવતાં જોને પ્રેત !
માનવી ભાળી અમથું અમથું આપણું ફોરે વ્હાલ;
નોટ ને સિક્કા નાખ નદીમાં, ધૂળિયે મારગ ચાલ !
~ મકરંદ દવે.
ભીખાભાઈ વડાળા વાળાની મુખેથી
સાંભળેલ વાત પર થી
✍️: ટાઈપીંગ કણબી ની કટારી એથી
(જયંતિ પટેલ)
તસ્વીરો પ્રતિકારક છે