—– अहसास ——
रेवती व उनके पति ने नाश्ता ख़त्म ही किया था कि, बहू ने आकर पूछा, “मम्मी जी आज खाने में क्या बनवा लूँ?”
“ओह कमला आ गयी क्या?” रेवती ने पूछा।
“जी मम्मी जी ।” बहू ने बताया ।
“बहू तुम्हारे ससुर जी कल कढ़ी खाने का बोल रहे थे, वो बनवा लो और सब्ज़ी जो तुम्हारा मन हो बनवा लो ।” रेवती बोली ।
“तो फिर मम्मी जी गोभी की सब्ज़ी बनवा लेती हूँ, रोटी और चावल तो बनेंगे ही, और हाँ मम्मी जी कमला कुछ रुपए बढ़ाने का बोल रही थी, आप कहें तो २०० रुपए बढ़ा दूँ?” बहू बोली ।
“हाँ बहू बढ़ा दो, महँगाई कितनी बढ़ गयी है।” रेवती ने कहा।
“अच्छा मम्मी जी, मैं खाने का कमला को बताती हूँ, व आपके लिए व पापा जी के लिए दूध भिजवाती हूँ ।” ऐसा कह कर बहू चली गयी ।
बहू के जाते ही अब तक चुप बैठे रेवती के पति बोले, “ये बहू रोज़ खाने के लिए तुमसे क्यों पूछती है, बोल क्यों नहीं देती उससे, इतने अच्छे से सब संभालें है, खाना भी सबकी पसंद का बनवा लेगी !“
“मैं उसे इसलिए मना नहीं करती, क्योंकि उसका मुझसे पूछना मुझे घर में मेरे वजूद का अहसास करा जाता है ।” रेवती बोली ।
“तुम्हारी बातें तो मुझे समझ में ही नहीं आती ।” पति बोले ।
“हम स्त्रियों को इन छोटी-छोटी बातों में जो ख़ुशी मिलती है, उसे आप पुरुष कभी नहीं समझोगे ।” रेवती मुस्कुरा कर बोली ।
“तुम्हारी बातें तुम्हीं जानो।” ये कह कर पति ने अख़बार उठा लिया। ----- बरखा शुक्ला