(((((पवित्रता)))))
एक आदमी बहुत बड़े संत-महात्मा के पास गया और बोला- ‘हे मुनिवर! मैं राह भटक गया हूँ, कृपया मुझे बताएँ कि सच्चाई, ईमानदारी, पवित्रता क्या है? और कैसे प्राप्त हो..?’
संत ने एक नज़र आदमी को देखा, फिर कहा- ‘अभी मेरा साधना करने का समय हो गया है। सामने उस तालाब में एक मछली है, उसी से तुम यह सवाल पूछो, वह तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दे देगी।’
वह आदमी तालाब के पास गया। वहाँ उसे वह मछली दिखाई दी, मछली आराम कर रही थी। जैसे ही मछली ने उसकी ओर देखा उस आदमी ने अपना सवाल पूछा।
मछली बोली- ‘मैं तुम्हारे सवाल का जवाब अवश्य दूँगी किन्तु मैं सोकर उठी हूँ, इसलिए मुझे प्यास लगी है। कृपया पीने के लिए एक लौटा जल लेकर आओ।’
वह आदमी बोला- ‘कमाल है! तुम तो जल में ही रहती हो फिर भी प्यासी हो?’
मछली ने कहा- ‘तुमने सही कहा। यही तुम्हारे सवाल का जवाब भी है। सच्चाई, ईमानदारी, पवित्रता तुम्हारे अंदर ही है। तुम उसे यहाँ-वहाँ खोजते फिरोगे तो वह सब नही मिलेगी, अतः स्वयं को पहचानो।
उस आदमी को अपने सवाल का जवाब मिल गया।
“दोस्तों..!! सुख-शांति, ईमानदारी, पवित्रता व सच्चाई इत्यादि की खोज में मानव कहाँ-कहाँ नही भटकता… क्या-क्या जतन नही करता, फिर भी उसे निराशा ही हाथ लगती है। वह नही जानता, जिसकी खोज में वह भटक रहा है, वह तो उसके भीतर ही मौजूद है। उसकी स्थिति ‘पानी में रहकर मीन प्यासी’ जैसी हो जाती है।
किसी को पवित्रता लानी नहीं है, न ईमानदार बनना है… वास्तव में आपकी आत्मा स्वयं पवित्र, सच्ची और ईमानदार है…. जो बुरा या गलत या मैल है वह ऊपर ही है… इस ऊपर से ओढे हुए को हटा दीजिए तो सब स्वतः स्वच्छ और पवित्र प्राप्त हो जाएगा…।
देव कृष्णा