एक पण्डित जी किसी राजा को भागवत की कथा सुनाने जाया करते थे। वे बड़े प्रकाण्ड विद्वान थे। शास्त्रज्ञ थे।
राजा भी बड़ा भक्त और निष्ठावान था। पण्डित जी कथा सुनाते हुए बीच−बीच में राजा से पूछ लिया करते, यह जानने के लिए कि राजा का ध्यान कथा में है या नहीं “राजा कुछ समझ रहे हो?”
तब राजा ने कहा “महाराज! पहले आप समझिये।”
पण्डित जी राजा का यह उत्तर सुनकर आश्चर्यचकित हो गये। वे राजा के मन की बात नहीं जान पाये।
एक दिन फिर पण्डित जी ने राजा से पूछा “राजा कुछ समझ रहे हो?”
“महाराज पहले आप समझें” राजा ने उतर दिया। पण्डित जी असमंजस में थे कि आखिर इस भागवत में क्या है जो मेरी समझ से बाहर है।
जब−जब पण्डित जी पूछते राजा उसी प्रकार कहता।
एक दिन पण्डित जी घर पर भागवत की पुस्तक लेकर एकाग्र चित्त हो पढ़ने लगे। आज पंडित जी को बड़ा आनन्द आ रहा था कथा में।
पंडित जी ने समझा कि राजा ठीक कहता है। वे मनोयोगपूर्वक कथा पढ़ने लगे। खाना पीना सोना नहाना सब भूल गये। कथा में ही मस्त हो गये।
पंडित जी की आँखों से अश्रु बहने लगे। कई दिन बीत गये, पंडित जी राजा को कथा सुनाने नहीं पहुँचे।
वे वहीं पर कथा पढ़ते रहते। बहुत दिन हुए। राजा ने सोचा पंडित जी नहीं आ रहे। उसे सन्देह हुआ।
वेश बदलकर राजा पंडित जी के घर पहुँचे और जहाँ कथा पढ़ रहे थे वहाँ बैठकर कथा सुनने लगे।
राजा के मन में पंडित जी का भाव देखकर भक्ति भावना प्रबल हो गई। पंडित जी पाठ पूरा करके उठे तो राजा को पहचान लिया। राजा ने उन्हें साष्टांग प्रणाम किया। पंडित ने कहा
“राजन्! आपने तो मुझे मार्गदर्शन देकर कृतार्थ किया।”
अतः पढ़ने से नही उसके भाव समझने से हृदय परिवर्तन होता है ।
तुलसीतुलसीसब_कहे
तुलसीवनकी_घास
कृपाभईरघुनाथ_की
तोबनगएतुलसीदास।।
🌹🌹जय श्री राम🌹🌹