एक बार एक संत सोने की भगवान भोलेनाथ की प्रतिमा बेचने के लिए एक स्वर्णकार के पास गए…
चूँकि, भगवान भगवान की प्रतिमा… भीतर से खोखली थो तो वो दस ग्राम की थे…. पर, उनका सांप ठोस था इसीलिए, वो साढ़े ग्यारह ग्राम का था.
तो…. स्वर्णकार ने भगवान की प्रतिमा की कीमत 45 हजार बताई और सांप के 50 हजार.
इस पर संत ने कहा – अरे भाई…!
तेरी नजर में भोलेनाथ की कीमत कम है और सांप की कीमत ज्यादा है..?
इस पर स्वर्णकार बोला – महाराज..! मुझे आकार से क्या लेना है ?
मैं तो वजन देखता हूँ…. आकार चाहे जो भी हो…!
कहने का मतलब है कि….आभूषण का आकार कैसा भी हो…कीमत उसके आकार की नहीं बल्कि उसकी धातु की होती है.
आप आकार की कीमत करो तो करो…
पर, बाजार तो धातु की ही कीमत देगा.
यही आपके उस सवाल का जबाब है कि…. पालघर में साधुओं की हत्या का मामला दो-तीन महज 2-3 महीनों में ही शांत कैसे पड़ जाता है.
और… 5 अगस्त को श्रीराम जन्मभूमि के पूजन के दिन बंगाल में लॉक डाउन और बकरीद में मार्केट खुला कैसे रहता है.
ऐसा इसीलिए होता है क्योंकि… आपके ही शब्दों में… कश्मीर से “”हिन्दू नहीं बल्कि… पंडित”” भगाए गए थे.
विकास दूबे… एक गैंगेस्टर नहीं बल्कि ब्राह्मण था.
लालू और मुल्ला-यम … हिन्दू द्रोही नहीं बल्कि…. जादो हैं.
दलित समुदाय… हमारे भाई नहीं बल्कि अछूत हैं.
ऐसे वक्तव्य और सोच हमें अंदर से खोखला बनाते हैं.
और… ये बात दुबारा बताने की जरूरत नहीं है कि…
आप आकार की कीमत करो तो करो…
पर, बाजार तो धातु की ही कीमत देगा.
याद रखें कि ये लोकतंत्र (भीड़तंत्र) है और लोकतंत्र में सिर्फ मुंडी की गिनती होती है.
इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि… वो मुंडी किसी पंचरवाले की है, मदरसा छाप मौलवी की या फिर IAS, IPS अथवा किसी वेदज्ञ की.
अर्थात…जिसकी मुंडी की गिनती ज्यादा होगी… वो ज्यादा महत्वपूर्ण होगा.
शायद …. अब आपको समझ आ गया होगा कि….
भारतीय राजनीति में हम भोलेनाथ के भक्तों की कीमत कम क्यों लगाई जाती है और … सांपों की ज्यादा क्यों ???
जय महाकाल…!!!