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. सन्त का जूठा

भगवान के प्रति सबकी अपनी अपनी निष्ठा होती है, अपने अपने भाव होते है, एक बाबा का बड़ा प्यारा भाव ठाकुर जी के प्रति था।
सन्त नित्य ठाकुर जी को भोग लगाते और फिर उस भोग को स्वयं खाया करते थे।
एक दिन किसी मन्दिर में भण्डारा था, भण्डारे में बहुत सारा भोजन बनना था और बनने के बाद पहले सन्तो को पवाते फिर सबको मिलता इसमें बहुत देर लगती।
अब बाबा ने सोचा बहुत देर हो गई है तो ये सोचकर बाबा ने मिश्री का भोग ठाकुर जी को लगाया और मन्दिर चले गए।
फिर जब सन्तो ने पा लिया तब मन्दिर से भण्डार ग्रह से भोग लेकर घर की तरफ चले कि ठाकुर जी को भोग लगाकर हम भी पा लेंगे।
जब घर के निकट पहुँचे तो सोचने लगे मिश्री का भोग तो मैं लगाकर गया था अब इसकी क्या जरुरत है और दोने में से उठाकर एक ग्रास खा लिया।
जब निवाला मुँह में रखा तो सोचने लगे जब घर तक आ ही गया था तो भगवान को भोग लगाकर फिर खाता, पर अब तो निवाला मुख में डाल ही चुके थे।
बाबा को इस बात से बड़ा दुःख हुआ।
बाबा मन ही मन अपने को धिकारने लगे रे पापी ! ठाकुर जी को भोग लगाकर खाता तो क्या जाता, घर के बाहर तक तो आ ही चुका था।
अब तो बाबा को इतना दुःख हुआ कि वह मुँह का ग्रास उगला भी नहीं और निगला भी नहीं निगला इसलिए नहीं कि ठाकुर जो को भोग नहीं लगाया था और उगला इसलिए नहीं कि भण्डारे से लाए भोग का अनादर हो जाता।
बाबा घर के बाहर ही बैठ गए और उनके दोनों आँखों से आँसूओं कि धारा बहने लगी।
बाबा को ऐसे बैठे हुए दो दिन बीत गए तीसरे दिन रात को एक छोटा सा बालक दौड़ता हुआ आया और बाबा का मुँह अपने हाथ से खोलकर ग्रास निकाला और खुद वह ग्रास खाया और बाबा कुछ कहते इससे पहले ही वह अँधेरे में गुम हो गया।
बाबा अवाक् देखते रहे क्योंकि वे इतने दुःख में डूबे हुए थे उन्हें दीन दुनिया कि कोई खबर ही नहीं थी। कुछ देर बाद बाबा अंदर गए और ठाकुर जी के चरणों में गिर कर रोने लगे और बोले वाह प्रभु अपने तुच्छ दास के लिए तुमने मेरे मुख का जूठा स्वयं खा लिया।
सच है भक्त का भाव पूरा करने के लिए भगवन कुछ भी करने के लिए तैयार हो जाते है।
~०~ "जय जय श्री राधे"

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રાજકોટ જિલ્લાના રફાળા ગામના મૂળ વતની હંસરાજભાઈ સોજીત્રા રાજકોટની એક ફેક્ટરીમાં ભઠ્ઠીકામમાં મજૂરી કરતા હતા. હંસરાજભાઈ અને નંદુબેનને સંતાનમાં 2 દીકરીઓ અને એક દીકરો હતો. 5 સભ્યોના પરિવારનું ગુજરાન ચલાવવાની સાથે સંતાનોની સુખાકારી માટે હંસરાજભાઈ રાત-દિવસ જોયા વગર કામ કરતા હતા.

હંસરાજભાઈ પોતે અભણ હતા પણ એની સમજણ ભણેલા ગણેલાને પણ ભોંઠા પાડે એવી હતી. ઘરમાં માત્ર પુરુષ જ નિર્ણય લે એવું નહીં પણ સ્ત્રીઓને પણ નિર્ણય લેવાની સ્વતંત્રતા અને હક્ક મળવા જોઈએ એવું દ્રઢપણે માનતા હંસરાજભાઈએ દીકરાની સાથે બંને દીકરીઓને પણ એમની કારકિર્દી માટે પૂરતી સ્વતંત્રતા આપી હતી.

ઘણા લોકોએ કહેલું કે આવી મોંઘવારીમાં દીકરીઓને બહુ ન ભણાવાય પણ હંસરાજભાઈએ કોઈની વાતો કાને ધરવાને બદલે દીકરીઓની દિલની ઈચ્છા પૂરી કરવા માટે જાત ઘસી નાંખી. સંતાનો સારામાં સારી રીતે ભણી શકે એટલે તેઓ કારખાનામાં કામ કરવા માટે સાઇકલ લઈને જતા જેથી બચત થાય અને એ રકમ બાળકોના અભ્યાસ માટે વપરાય. પોતાના નાના ઘરમાં પ્લાસ્ટર કરવાનો ખર્ચ ન કરીને પ્લાસ્ટર વગરના સાદા મકાનમાં જ રહ્યા કારણકે તેઓ એવું માનતા કે મકાનને શણગારવામાં ખર્ચ કરવાને બદલે જીવનને શણગારવા માટે શિક્ષણ પાછળ ખર્ચ કરવો જોઈએ. મકાન ભલે પ્લાસ્ટર વગરનું હોય પણ જીવન શિક્ષણ વગરનું ન હોવું જોઈએ.

હંસરાજભાઈએ સંતાનોને ઉડવા માટે ખુલ્લું આકાશ આપ્યું તેના પરિણામ રૂપે મોટી દીકરી નિરલે સરકારી આયુર્વેદ કોલેજમાંથી એમ.ડી. સુધીનો અભ્યાસ કરીને પીએચડી પણ કર્યું અને અત્યારે ત્રિપુરામાં અગરતાલા ખાતે ભારત સરકારના અધિકારી તરીકે એમની સેવાઓ આપે છે. નાની દીકરીએ પઅન સરકારી કોલેજમાંથી જ ઇન્ફોર્મેશન ટેકનોલોજીમાં એન્જીનીયરીંગ કર્યું અને બેંગ્લોર બેઇઝ કંપનીમાં ઉચ્ચ હોદા પર આઈટી પ્રોફેશનલ તરીકે કામ કરે છે જ્યારે સૌથી નાના દીકરા કેયુરે એની પસંદગીના મેનેજમેન્ટ સબ્જેક્ટમાં અભ્યાસ કર્યો અને પ્રતિષ્ઠિત કંપનીમાં સારા પગારથી નોકરી પર લાગી ગયો.

હંસરાજભાઈએ એક જ કારખાનામાં 32 વર્ષ મજૂરીકામ કર્યું. પોતાના જેવું જીવન સંતાનોને ન જીવવું પડે એટલે એક અભણ પિતાએ અનેક અભાવો વચ્ચે જીવન જીવીને સંતાનોને ભણાવ્યા. સંતાનોએ પણ પિતૃઋણ અદા કરવા જુના ખખડધજ મકાનની જગ્યાએ ભૌતિક સુવિધાઓથી સભર એક આધુનિક મકાન તૈયાર કરીને પિતાને ભેટમાં આપ્યુ.

ભગવાનને પણ કંઈક જુદુ જ મંજૂર હશે. જે પિતાએ સંતાનોના સુખી જીવન માટે પોતાની જાતને ઓગળી દીધી એ સંતાનોના જીવનમાં સુખનો સુરજ ઉગતાની સાથે હંસરાજભાઈનો જીવનદીપ ઓલવાઈ ગયો. થોડા સમય પહેલા જ કોરોનાના લીધે હંસરાજભાઈનું અવસાન થયું.

એક અભણ માણસની સમજણ અને સમર્પણ સંતાનોના જીવન પુષ્પને કેવા ખીલવે છે એનું હંસરાજભાઈ ઉત્કૃષ્ટ ઉદાહરણ છે.

Vishwesh zala – sahjanand

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. 🌹कोई अपना नही🌹
🔥 इस कहानी को जरूर पढ़ना

निशा काम निपटा कर बैठी ही थी कि फोन की घंटी बजने लगी।

मेरठ से विमला चाची का फोन था, बिटिया अपने बाबू जी को आकर ले जाओ यहां से।

बीमार रहने लगे है, बहुत कमजोर हो गए हैं।
हम भी कोई जवान तो हो नहीं रहें है,अब उनका करना बहुत मुश्किल होता जा रहा है।
वैसे भी आखिरी समय अपने बच्चों के साथ बिताना चाहिए।

निशा बोली, ”ठीक है चाची जी इस रविवार को आतें हैं, बाबू जी को हम दिल्ली ले आएंगे।”

फिर इधर उधर की बातें करके फोन काट दिया।

बाबूजी तीन भाई है, पुश्तैनी मकान है तीनों वहीं रहते हैं।
निशा और उसका छोटा भाई विवेक दिल्ली में रहते हैं
अपने अपने परिवार के साथ। तीन चार साल पहले विवेक को फ्लैट खरीदने की लिए पैसे की आवश्यकता पड़ी तो बाबूजी ने भाईयों से मकान के अपने एक तिहाई हिस्से का पैसा लेकर विवेक को दे दिया था,
कुछ खाने पहनने के लिए अपने लायक रखकर।
दिल्ली आना नहीं चाहते थे इसलिए एक छोटा सा कमरा रख लिया था जब तक जीवित थे तब तक के लिए।
निशा को लगता था कि अम्मा के जाने के बाद बिल्कुल अकेले पड़ गए होंगे
बाबूजी लेकिन वहां पुराने परिचितों के बीच उनका मन लगता था।
दोनों चाचियां भी ध्यान रखती थी।
दिल्ली में दोनों भाई बहन की गृहस्थी भी मज़े से चल रही थी।

रविवार को निशा और विवेक का ही कार्यक्रम बन पाया मेरठ जाने का।
निशा के पति अमित एक व्यस्त डाक्टर है महिने की लाखों की कमाई है उनका इस तरह से छुट्टी लेकर निकलना बहुत मुश्किल है,

मरीजों की बिमारी न रविवार देखती है न सोमवार।

विवेक की पत्नी रेनू की अपनी जिंदगी है उच्च वर्गीय परिवारों में उठना बैठना है उसका, इस तरह के छोटे मोटे पारिवारिक पचड़ों में पड़ना उसे पसंद नहीं।

रास्ते भर निशा को लगा विवेक कुछ अनमना, गुमसुम सा बैठा है।
वह बोली,”इतना परेशान मत हो, ऐसी कोई चिंता की बात नहीं है, उम्र हो रही है, थोड़े कमजोर हो गए हैं ठीक हो जाएंगे।”

विवेक झींकते हुए बोला,”अच्छा खासा चल रहा था,पता नहीं चाचाजी को एसी क्या मुसीबत आ गई दो चार साल और रख लेते तो।
अब तो मकानों के दाम आसमान छू रहे हैं,तब कितने कम पैसों में अपने नाम करवा लिया तीसरा हिस्सा।”

निशा शान्त करने की मन्शा से बोली,”ठीक है न उस समय जितने भाव थे बाजार में उस हिसाब से दे दिए।
और बाबूजी आखरी समय अपने बच्चों के बीच बिताएंगे तो उन्हें अच्छा लगेगा।”

विवेक उत्तेजित हो गया, बोला,”दीदी तेरे लिए यह सब कहना बहुत आसान है। तीन कमरों के फ्लैट में कहां रखूंगा उन्हें।
रेनू से किट किट रहेगी सो अलग, उसने तो साफ़ मना कर दिया है

वह बाबूजी का कोई काम नहीं करेंगी | वैसे तो दीदी लड़कियां हक़ मांग ने तो बडी जल्दी खड़ी हो जाती हैं, करने के नाम पर क्यों पीछे हट जाती है।

आज कल लड़कियों की शिक्षा और शादी के समय में अच्छा खासा खर्च हो जाता है।
तू क्यों नहीं ले जाती बाबूजी को अपने घर, इतनी बड़ी कोठी है,जिजाजी की लाखों की कमाई है?”

निशा को विवेक का इस तरह बोलना ठीक नहीं लगा।
पैसे लेते हुए कैसे वादा कर रहा था बाबूजी से,”आपको किसी भी वस्तु की आवश्यकता हो आप निसंकोच फोन कर देना मैं तुरंत लेकर आ जाऊंगा।

बस इस समय हाथ थोड़ा तन्ग है।” नाममात्र पैसे छोडे थे बाबूजी के पास, और फिर कभी फटका भी नहीं उनकी सुध लेने।

निशा:”तू चिंता मत कर मैं ले जाऊंगी बाबूजी को अपने घर।”

सही है उसे क्या परेशानी, इतना बड़ा घर फिर पति रात दिन मरीजों की सेवा करते है, एक पिता तुल्य ससुर को आश्रय तो दे ही सकते हैं।

बाबूजी को देख कर उसकी आंखें भर आईं। इतने दुबले और बेबस दिख रहे थे,गले लगते हुए बोली,”पहले फोन करवा देते पहले लेने आ जाती।” बाबूजी बोलें,” तुम्हारी अपनी जिंदगी है क्या परेशान करता।
वैसे भी दिल्ली में बिल्कुल तुम लोगों पर आश्रित हो जाऊंगा।”

रात को डाक्टर साहब बहुत देर से आएं,तब तक पिता और बच्चे सो चुके थे।
खाना खाने के बाद सुकून से बैठते हुएं निशा ने डाक्टर साहब से कहा,” बाबूजी को मैं यहां ले आईं हूं।
विवेक का घर बहुत छोटा है,

उसे उन्हें रखने में थोड़ी परेशानी होती।” अमित के एक दम तेवर बदल गए,वह सख्त लहजे में बोला,” यहां ले आईं हूं से क्या मतलब है तुम्हारा❓
तुम्हारे पिताजी तुम्हारे भाई की जिम्मेदारी है।
मैंने बड़ा घर वृद्धाश्रम खोलने के लिए नहीं लिया था, अपने रहने के लिए लिया है। #HindiPics
जायदाद के पैसे हड़पते हुए नहीं सोचा था साले साहब ने कि पिता की करनी भी पड़ेगी।
रात दिन मेहनत करके पैसा कमाता हूं फालतू लुटाने के लिए नहीं है मेरे पास।”

पति के इस रूप से अनभिज्ञ थी निशा। “रात दिन मरीजों की सेवा करते हो मेरे पिता के लिए क्या आपके घर और दिल में इतना सा स्थान भी नहीं है।”

अमित के चेहरे की नसें तनीं हुईं थीं,वह लगभग चीखते हुए बोला,” मरीज़ बिमार पड़ता है पैसे देता है ठीक होने के लिए, मैं इलाज करता हूं पैसे लेता हूं। यह व्यापारिक समझोता है इसमें सेवा जैसा कुछ नहीं है।यह मेरा काम है मेरी रोजी-रोटी है।
बेहतर होगा तुम एक दो दिन में अपने पिता को विवेक के घर छोड़ आओ।”
निशा को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था।
जिस पति की वह इतनी इज्जत करती है वें ऐसा बोल सकते हैं।

क्यों उसने अपने भाई और पति पर इतना विश्वास किया?

क्यों उसने शुरू से ही एक एक पैसा का हिसाब नहीं रखा?

अच्छी खासी नौकरी करती थी, पहले पुत्र के जन्म पर अमित ने यह कह कर छुड़वा दी कि मैं इतना कमाता हूं तुम्हें नौकरी करने की क्या आवश्यकता है।

तुम्हें किसी चीज़ की कमी नहीं रहेगी आराम से घर रहकर बच्चों की देखभाल करो।

आज अगर नौकरी कर रही होती तो अलग से कुछ पैसे होते उसके पास या दस साल से घर में सारा दिन काम करने के बदले में पैसे की मांग करती तो इतने तो हो ही जाते की पिता जी की देखभाल अपने दम पर कर पाती।

कहने को तो हर महीने बैंक में उसके नाम के खाते में पैसे जमा होते हैं लेकिन उन्हें खर्च करने की बिना पूछे उसे इजाज़त नहीं थी।

भाई से भी मन कर रहा था कह दे शादी में जो खर्च हुआ था वह निकाल कर जो बचता है उसका आधा आधा कर दे।
कम से कम पिता इज्जत से तो जी पाएंगे।
पति और भाई दोनों को पंक्ति में खड़ा कर के बहुत से सवाल करने का मन कर रहा था, जानती थी जवाब कुछ न कुछ तो अवश्य होंगे।
लेकिन इन सवाल जवाब में रिश्तों की परतें दर परतें उखड़ जाएंगी और जो नग्नता सामने आएगी

उसके बाद रिश्ते ढोने मुश्किल हो जाएंगे।
सामने तस्वीर में से झांकती दो जोड़ी आंखें जिव्हा पर ताला डाल रहीं थीं।
अगले दिन अमित के हस्पताल जाने के बाद जब नाश्ता लेकर निशा बाबूजी के पास पहुंची तो वे समान बांधे बैठें थे।
उदासी भरे स्वर में बोले,” मेरे कारण अपनी गृहस्थी मत ख़राब कर।
पता नहीं कितने दिन है मेरे पास कितने नहीं।
मैंने इस वृद्धाश्रम में बात कर ली है जितने पैसे मेरे पास है, उसमें मुझे वे लोग रखने को तैयार है।

ये ले पता तू मुझे वहां छोड़ आ, और निश्चित होकर अपनी गृहस्थी सम्भाल।”
निशा समझ गई बाबूजी की देह कमजोर हो गई है दिमाग नहीं।

दमाद काम पर जाने से पहले मिलने भी नहीं आया साफ़ बात है ससुर का आना उसे अच्छा नहीं लगा।
क्या सफाई देती चुप चाप टैक्सी बुलाकर उनके दिए पते पर उन्हें छोड़ने चल दी। नजरें नहीं मिला पा रही थी,न कुछ बोलते बन रहा था।
बाबूजी ने ही उसका हाथ दबाते हुए कहा,” परेशान मत हो बिटिया, परिस्थितियों पर कब हमारा बस चलता है।
मैं यहां अपने हम उम्र लोगों के बीच खुश रहूंगा।”
तीन दिन हो गए थे बाबूजी को वृद्धाश्रम छोड़कर आए हुए।

निशा का न किसी से बोलने का मन कर रहा था न कुछ खाने का।

फोन करके पूछने की भी हिम्मत नहीं हो रही थी वे कैसे हैं?

इतनी ग्लानि हो रही थी कि किस मुंह से पूछे। वृद्धाश्रम से ही फोन आ गया कि बाबूजी अब इस दुनिया में नहीं रहे।
दस बजे थे बच्चे पिकनिक पर गए थे आठ नौ बजे तक आएंगे, अमित तो आतें ही दस बजे तक है।
किसी की भी दिनचर्या पर कोई असर नहीं पड़ेगा, किसी को सूचना भी क्या देना।
विवेक आफिस चला गया होगा बेकार छुट्टी लेनी पड़ेगी।

रास्ते भर अविरल अश्रु धारा बहती रही कहना मुश्किल था पिता के जाने के ग़म में या अपनी बेबसी पर आखिरी समय पर

पिता के लिए कुछ नहीं कर पायी।
तीन दिन केवल तीन दिन अमित ने उसके पिता को मान और आश्रय दे दिया होता तो वह हृदय से अमित को परमेश्वर का मान लेती।
वृद्धाश्रम के सन्चालक महोदय के साथ मिलकर उसने औपचारिकताएं पूर्ण की।

वह बोल रहे थे,” इनके बहू, बेटा और दमाद भी है रिकॉर्ड के हिसाब से।उनको भी सूचना दे देते तो अच्छा रहता।

वह कुछ सम्भल चुकी थी बोली, नहीं इनका कोई नहीं है न बहू न बेटा और न दामाद। #HindiPics
बस एक बेटी है वह भी नाम के लिए ।”

संचालक महोदय अपनी ही धुन में बोल रहे थे,” परिवार वालों को सांत्वना और बाबूजी की आत्मा को शांति मिले।”

निशा सोच रही थी ‘ बाबूजी की आत्मा को शांति मिल ही गई होगी। जाने से पहले सबसे मोह भंग हो गया था। समझ गये होंगे कोई किसी का नहीं होता,

फिर क्यों आत्मा अशान्त होगी।’

“हां, परमात्मा उसको इतनी शक्ति दें कि किसी तरह वह बहन और पत्नी का रिश्ता निभा सकें |”

ये पैसा ही है जो एक हर रिश्ते की रिश्तेदारी निभा रहा है।

मैं भी एक बाप हूँ मगर एक बात कहना चाहता हूँ कि हर इंसान को अपने हाथ नहीं काट देने चाहिए मोह, ममता मे आकर के ……..

अपने भाविष्य के लिए कुछ न कुछ रख लेना चाहिए

बाद में तो उनका ही हैं मगर जीते जी मरने से तो अच्छा है ….*🌹❤️जय जिनेन्द्र जी❤️🌹* *🌹पवन जैन🌹*

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एक बार की बात है। एक प्रदेश में एक नामी चोर रहता था।

एक दिन वो चोर चोरी करते हुए पकड़ा गया।

फ़िर उसे राजा के सामने पेश किया गया। राजा ने कहा कि तुम्हें जीने का कोई हक नहीं औऱ भरे दरबार में उसे सजा ए मौत सुनाई गई।

चोर खामोश खड़ा रहा।

आखिर में राजा ने चोर से पूछा कि तुम्हारी कोई अंतिम इच्छा हो तो बताओ।

चोर ने सिर झुका कर राजा से कहा कि हुजूर, माई-बाप गुस्ताखी माफ हो तो एक बात अर्ज करूं।

राजा ने कहा, “बोलो।”

चोर ने कहा, ” राजन, मैं चोर हूं, मैं पकड़ा भी गया हूं, और अब मुझे फांसी की सजा भी हो चुकी है।”

राजा ने कहा, ” साफ-साफ कहो, कहना क्या चाहते हो?”

चोर ने कहना शुरू किया, “राजन, मुझे इस बात का अफसोस रहेगा कि मैं घोड़े को उड़ाने की विद्या जानता हूं, मैं चाहता था कि कोई दूसरा उस विद्या को काश सीख पाता! लेकिन अफसोस कि मेरी मौत की सजा के साथ ही ये विद्या इस धरती से लुप्त हो जाएगी। मेरे बाद फिर कोई घोड़े को उड़ाने की विद्या के सच से रूबरू नहीं हो पाएगा।”

राजा ने कहा, “क्या कह रहे हो ? क्या तुम सचमुच घोड़े को हवा में उड़ाने की विद्या जानते हो? मैं तुम्हारी बात पर यकीन नहीं कर सकता। तुम झूठ बोल रहे हो। तुम्हें मरना ही होगा।”

चोर ने कहा, “हुजूर, आप ठीक ही फरमा रहे हैं, मुझे मरना ही चाहिए। छोड़िए इस घोड़े के उड़ने की विद्या का किसी को क्या करना?”

राजा, जरा दुविधा में फंसा।

राजा को दुविधा में फंसे देख महामंत्री, मंत्री, सेनापति सबने कहा, राजन इस चोर की बातों मत आइए। इसे फांसी दे दीजिए।

राजा कुछ सोचता हुआ चोर से कहने लगा कि सुनो चोर, अगर तुमने सचमुच साबित कर दिया कि तुम घोड़े को हवा में उड़ा सकते हो, तो तुम्हें हम सजा से माफी दे देंगे। लेकिन ध्यान रहे, अगर तुम झूठे साबित हुए तो फिर मैं तुम्हारे साथ क्या-क्या करूंगा, तुम अंदाजा भी नहीं लगा सकोगे।

चोर ने दोनों हाथ जोड़ कर कहा, “राजन आप मुझे साल भर का वक्त दें। साथ में एक घोड़ा और घोड़े की अच्छी खुराक के लिए कुछ धन दें। साल भर में मैं घो़ड़े को उड़ना सीखा दूंगा। और फिर आप जो चाहे फैसला करें।”

सारे दरबारी राजा को मना करते रहे, समझाते रहे। पर राजा ने कहा कि देखो इसे फांसी की सजा तो हो ही चुकी है। आज मरे या साल भर बाद मरे। लेकिन अगर इसने घोड़े को उड़ने की विद्या सिखा दी तो बहुत बड़ी बात होगी।

राजा ने इतना कह कर, उस चोर को एक शानदार घोड़ा और ढेर सारा धन देकर साल भऱ के लिए छोड़ दिया।

चोर अपने घर पहुंचा। उसकी पत्नी अपने पति को देख कर आंखें मलने लगी।

उसने पति से पूछा कि तुम तो पकड़े गए थे, फिर ये घोड़े के साथ वापस कैसे लौट आए?

चोर ने पूरी कहानी सुनाई और कहा कि अब साल भर तुम मौज करो। इतना धन साथ लाया हूं।

चोर की पत्नी हैरान थी। उसने कहा कि तुम वहां भी झूठ बोल आए? अरे घोड़े कहीं उड़ते हैं? और साल भर बाद क्या करोगे? कैसे बचोगे?

चोर ने कहा, ” मरने को तो आज ही मर जाता लेकिन साल भर के लिए मौज की मुहलत मिल गई है। ये मेरी किस्मत है। अब साल भर बाद तो कुछ भी हो सकता है। तू क्यों सोच रही है कि फांसी ही होगी? मैं चोर हूं। मेरा काम है उम्मीद और किस्मत के भरोसे रहना। हो सकता है, साल भर बाद राजा भूल जाए कि उसने मुझे सजा दी थी। हो सकता है साल भर बाद राजा ही न रहे और मैं बच जाऊं। हो सकता है साल भर बाद राजा का दिल पसीज जाए और मुझे फांसी की सजा पर फिर से विचार कर ले। कुछ भी हो सकता है भागवान। ये तो राजा को सोचना था कि घोड़े नहीं उड़ते। पर राजा विवेक, न्याय, तर्क और पुरुषार्थ से दूर है। मैं उम्मीद और किस्मत से दूर नहीं हो सकता। भागवान! ध्यान से सुन। कौन जानता है, क्या पता, साल भर बाद घोड़ा सचमुच उड़ने ही लगे?”

उम्मीद बहुत बड़ी चीज़ है औऱ उम्मीद पर ही दुनिया कायम है…….

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Courtesy

और आगे की कहानी यह है कि एक साल बाद चोर घोड़े को लेकर दरबार में पेश हुआ ।
राजा ने पूछा, क्या घोड़ा उड़ना सीख गया ।
चोर ने कहा जी हुजूर घोड़ा उड़ना सीख गया है । अब कोई भी ऐसा आदमी जिसने अपने पूरे जीवन में कभी चोरी ना की हो इस घोड़े कान में फूंक मारकर और मेरा बताया मंत्र इसके कान में पढ़कर इसे उड़ा सकता है ।
हुजूर यकीन ना हो तो ऐसा आदमी जिसने कभी भी चोरी ना की हो उसे मेरे सामने लाओ मैं उसे मंत्र बताता हूं ।
दरबार में सन्नाटा छा गया लेकिन कोई भी आगे नहीं आया ।
राजा ने जिसकी ओर भी देखा उसी ने गर्दन झुका ली ।
सारे के सारे मंत्री, प्रधानमंत्री, सेनापति,छत्रप कोई भी आगे आने को तैयार नहीं हुआ ।
काफी देर इंतजार करने के बाद चोर ने राजा को संबोधित करते हुए कहा हुजूर यदि कोई नहीं आ रहा तो मैं यह मंत्र आपको ही बता देता हूं ।
राजा को भी अपनी की हुई चोरियां एक एक करके याद आने लगी ।

राजा को भी निरुत्तर देख चोर ने राजा के पैर पकड़कर कहा हुजूर जब सभी चोर हैं तो मुझ अकेले को ही सजा क्यों ?
महाराज सभी ने खुद को चोर होना भरे दरबार में स्वीकार भी कर लिया है तो सभी को फांसी होनी चाहिए या फिर मुझे भी छोड़ दिया जाए ।
अंत में राजा ने चोर की सजा मांफ कर दी ।

अधूरी रह गयी कहानी।
एक साल बाद राजा ने चोर को बुलाया।
कहा कि घोडे को उडा कर दिखाओ।
चोर बोला राजन घोडा उडना सीख गया है।
परन्तु एक ईमानदार आदमी ही इस पर सवारी कर सकता है जिसने कभी चोरी नही की हो
राजन आप बैठे घोडे पर मै अभी उडा कर दिखाता हू।
राजा घबरा गया सोचने लगा चोरी तो बचपन मे मैने भी की है ऐसे ही बारी बारी मन्त्री सतरी सबको बोला पर कोई भी घोडे पर बैठने को राजी नही हुआ।सब के सब चोर कोई छोटा तो कोई बडा।
तब चोर बोला महाराज मुझ अकेले को ही क्यो सब को फासी पर चढा दो।
तब राजा को फासी का नियम छोड कर चोरी के हिसाब से जेल की सजा का नियम बनाना पडा।

Posted in सुभाषित - Subhasit

🌹ત્રણ સાચી વાતો છે🌹

દેવ, દરિયો, ને દાતાર.
👉🏻એ ત્રણ વિના ધન નહિં.

આધિ, વ્યાધિ, ને ઉપાધિ.
👉🏻એ ત્રણ વિના દુઃખ નહિં.

જ્ઞાન, ભક્તિ, ને વૈરાગ્ય.
👉🏻એ ત્રણ વિના ધર્મ નહિં.

ઉત્પત્તિ, સ્થિતિ, ને પ્રલય.
👉🏻એ ત્રણ વિના જગતનાં ખેલ નહિં.

શિંગ, સરિયો, ને પોપટો.
👉🏻એ ત્રણ વિના ધાન્ય નહિં.

વા, ઘા, ને ઘસરકો.
👉🏻એ ત્રણ વિના સંગીત નહિં.

ધાર, અણી, ને ધબાકો.
👉🏻એ ત્રણ વિના હથિયાર નહિં.

ચાવવું , ચૂસવું, ને સબડકો.
👉🏻એ ત્રણ વિના ભોજન નહિં.

વ્યસન, આળસ, અભીમાન.
👉🏻એ ત્રણ જીવનમા સારાં નહિં.

શ્રવણ, મનન, અભ્યાસ.
👉🏻એ ત્રણ વિના વિદ્યા નહિં.

જૂઠ, કરજ,ને કપટ.
👉🏻એ ત્રણ વિના દુઃખ નહિં.

વાત, પિત્ત, ને કફ.
👉🏻એ ત્રણ વિના રોગ નહિં.

ઇંગલા, પિંગલા, ને સુક્ષમણા.
👉🏻એ ત્રણ વિના નાડી નહિ.

સ્વપ્ન, ચિત્ર, ને સાક્ષાત.
👉🏻એ ત્રણ વિના દર્શન નહિં.

રજો, તમો અને સત્વો.
👉🏻એ ત્રણ વિના ગુણ નહિં.

ભુત, ભવિષ્ય, ને વર્તમાન.
👉🏻એ ત્રણ વિના કાળ નહિ.

સંચિત, ક્રિયમાણ, ને પ્રારબ્ધ.
👉🏻એ ત્રણ વિના ક્રિયા નહિં.

સંયમ, સંતોષ, ને સાદાય.
👉🏻એ ત્રણ વિના સુખ નહિં.

જર, જોરૂ, ને જમીન,
👉🏻એ ત્રણ વિના કજીયો નહિં.

વાંચવું, લખવું, ને શીખવું.
👉🏻એ ત્રણ વિના બુદ્ધિનાં હથિયાર નહિં.

પૂછવું, જોવું, ને દવા દેવી.
👉🏻એ ત્રણ વિના વૈદું નહિં.

ક્રૂરતા, કૃપર્ણતા, ને કૃતઘ્નતા.
👉🏻એ ત્રણ વિના મોટું કષ્ટ નહિં.

વિદ્યા, કળા, ને ધન.
👉🏻એ ત્રણ સ્વેદ વિના મળે નહિં.

દુઃખ, દરિદ્રતા, ને પરઘેર રહેવું.
👉🏻એ ત્રણ વિના મોટું દુઃખ નહિં.

પાન, પટેલ, ને પ્રધાન.
👉🏻ત્રણ કાચાં સારાં નહિં.

વૈદ, વેશ્યા, ને વકીલ.
👉🏻એ ત્રણ વિના રોકડિયા નહિં.

ઘંટી, ઘાણી, ને ઉઘરાણી.
👉🏻એ ત્રણ ફેરા ખાધાં વિના પાકે નહિં.

દુર્ગુણ, સદગુણ, ને વખત.
👉🏻એ ત્રણ સ્થિર રહેવાનાં નહિં.

વિદ્યા, હોશિયારી, ને અક્કલ.
👉🏻એ ત્રણ આળસું પાસે જાય નહિં.

વટ, વચન, ને વિવેક.
👉🏻એ ત્રણ વિના શુરવિર નહિં.

નોર, ખરી, ને ડાબલા.
👉🏻એ ત્રણ વિના પશું નહિં.
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Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक, भारतीय मंदिर - Bharatiya Mandir

मध्यप्रदेश में आगर मालवा नाम का जिला हैं। वहाँ के न्यायालय में सन 1932 ई. में जयनारायण शर्मा नाम के वकील थे। उन्हें लोग आदर से बापजी कहते थे। वकील साहब बड़े ही धार्मिक स्वभाव के थे और रोज प्रातःकाल उठकर स्नान करने के बाद स्थानीय बैजनाथ मन्दिर में जाकर बड़ी देर तक पूजा व ध्यान करते थे। इसके बाद वे वहीं से सीधे कचहरी जाते थे।

घटना के दिन बापजी का मन ध्यान में इतना लीन हो गया कि उन्हें समय का कोई ध्यान ही नहीं रहा। जब उनका ध्यान टूटा तब वे यह देखकर सन्न रह गये कि दिन के तीन बज गये थे। वे परेशान हो गये क्योंकि उस दिन उनका एक जरूरी केस बहस में लगा था और सम्बन्धित जज बहुत ही कठोर स्वभाव का था। इस बात की पूरी सम्भावना थी कि उनके मुवक्किल का नुकसान हो गया हो। ये बातें सोचते हुए बापजी न्यायालय पहुँचे और जज साहब से मिलकर निवेदन किया कि यदि उस केस में निर्णय न हुआ हो तो बहस के लिए अगली तारीख दे दें।

जज साहब ने आश्चर्य से कहा :- यह क्या कह रहे हैं। सुबह आपने इतनी अच्छी बहस की। मैंने आपके पक्ष में निर्णय भी दे दिया और अब आप बहस के लिए समय ले रहे हैं।

जब बापजी ने कहा कि मैं तो था ही नहीं तब जजसाहब ने फाइल मँगवाकर उन्हें दिखायी। वे देखकर सन्न रह गये कि उनके हस्ताक्षर भी उस फाइल पर बने थे। न्यायालय के कर्मचारियों, साथी वकीलों और स्वयं मुवक्किल ने भी बताया कि आप सुबह सुबह ही न्यायालय आ गये थे और अभी थोड़ी देर पहले ही आप यहाँ से निकले हैं।

बापजी की समझ में आ गया कि उनके रूप में कौन आया था। उन्होंने उसी दिन संन्यास ले लिया और फिर कभी न्यायालय या अपने घर नहीं आये।

इस घटना की चर्चा अभी भी आगर मालवा के निवासियों और विशेष रूप से वकीलों तथा न्यायालय से सम्बन्ध रखनेवाले लोगों में होती है। न्यायालय परिसर में बापजी की मूर्ति स्थापित की गयी है। न्यायालय के उस कक्ष में बापजी का चित्र अभी भी लगा हुआ है जिसमें कभी भगवान बापजी का वेश धरकर आये थे। यही नहीं लोग उस फाइल की प्रतिलिपि कराकर ले जाते हैं जिसमें बापजी के रूप मे आये भगवान ने हस्ताक्षर किये थे और उसकी पूजा करते हैं।

Posted in रामायण - Ramayan

રામાયણમાં જોવા મળે છે કે જ્યારે મહર્ષિ ભારદ્વાજે નિષાદરાજને રામ સાથે બેસાડ્યા ત્યારે ક્ષત્રિયનો વિરોધ ન થયો કે બ્રાહ્મણ તેનો વિરોધ કર્યો નહીં… તેમને સાથે બેસો તો શુદ્રનો આ ભ્રમ કોણે ફેલાવ્યો? રામાયણમાં ખુલાસો થયો કે નિશાદરાજ અને શ્રી રામ એક જ ગુરુ પાસેથી ગુરુકુળમાં સાથે ભણ્યા હતા. બીજું, તે એક રાજ્યનો રાજા પણ હતો. આનો અર્થ એ છે કે

  1. શુદ્રોને ભણવાનો અધિકાર હતો .

2.જ્યાં અન્ય વર્ણના લોકોએ અભ્યાસ કર્યો તે જ સ્થળે અભ્યાસ કરવો તે યોગ્ય હતું .

  1. તે જ ગુરુ પાસેથી ભણવાનો અધિકાર હતો જેમની પાસેથી બીજાઓ ભણે છે .
  2. શુદ્રોને પણ સરકાર ચલાવવાનો અધિકાર હતો. શૂદ્ર વર્ણના લોકો રાજા પણ બની શક્યા.

આ ડાબેરીઓ, ઇતિહાસ લખતી વખતે લખ્યું હતું કે સનાતન ધર્મમાં શુદ્રોને વાંચવાનો અધિકાર નથી.

આપને શું લાગે છે?

સંદર્ભ :- વાલ્મીકિ રામાયણ

विक्की महेता

Posted in रामायण - Ramayan

RAMAYANA As a PHILOSOPHY OF LIFE!

This is d best interpretation I have read about RAMA and RAMAYANA

The Interpretation of RAMAYANA
As a PHILOSOPHY OF LIFE..

RA ’ means LIGHT, ‘ MA ’ means WITHIN ME, IN MY HEART.
So,
RAMA means the LIGHT WITHIN ME..

RAMA was born to DASHARATH & KOUSALYA.

DASHARATH means ‘ TEN CHARIOTS’ ..
The ten chariots symbolize the FIVE SENSE ORGANS( GNANENDRIYA ) & FIVE ORGANS OF ACTION ( KARMENDRIYA ) ..

KOUSALYA means ‘ SKILL ’..

THE SKILLFUL RIDER OF THE TEN CHARIOTS CAN GIVE BIRTH TO RAM..

When the ten chariots are used skillfully,
RADIANCE is born within..

RAMA was born in AYODHYA.
AYODHYA means ‘ A PLACE WHERE NO WAR CAN HAPPEN ’..

When There Is No Conflict In Our Mind, Then The Radiance Can Dawn..

The RAMAYANA is not just a story which happened long ago..
It has a PHILOSOPHICAL, SPIRITUAL SIGNIFICANCE and a DEEP TRUTH in it..

It is said that the RAMAYANA IS HAPPENING IN OUR OWN BODY.

Our SOUL is RAMA,
Our MIND is SITA,
Our BREATH or LIFE-FORCE ( PRANA) is HANUMAN,
Our AWARENESS is LAXMANA and
Our EGO is RAVANA..

When the MIND (Sita),is stolen by the EGO (Ravana), then the SOUL (Rama) gets RESTLESS..

Now the SOUL (Rama) cannot reach the MIND (Sita) on its own..
It has to take the help of the BREATH – THE PRANA (Hanuman) by Being In AWARENESS(Laxmana)

With the help of the PRANA (Hanuman), & AWARENESS(Laxmana),
The MIND (Sita) got reunited with The SOUL (Rama) and The EGO (Ravana) DIED/ VANISHED..

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Peralassery Subramania Temple Pond is a serene place stationed around 15 kms from Kannur , Kerala 💓

Legend has it that this is a place Bhagwan Rama and Brother Lakshamana visited on their way to Lanka (in the epic Ramayana).

A Largest Temple pond of it’s kind in Kerala built using finely cut Laterite stone

It is believed that waters of Cauvery make their way to the stepwell on Tula Sankranti

📸 Credit : @ashikaseem sir (Instagram)

IncredibleBharat

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रामायणकाएकविलुप्तप्रायअध्याय
आज का अफगानिस्तान भगवान राम के समय केकय प्रदेश था ।

बाल्मीकि रामायण के उत्तरकाण्ड के 100वे और 101वे केवल दो अध्याय क्रमशः 25 एवः 18 मात्र 43 श्लोक है। केकय नरेश अश्वजित अपने कुल पुरोहित अंगिरा पुत्र गार्ग्य को अयोध्या भेजते हैं । श्रीराम राजेन्द्र से कहलाते है कि गंधर्व राज्य जो सिंधु नदी के दोनों ओर स्थित है, इसका अधिपति शेलशु गंधर्व है । युद्ध कला कुशल, विन्ध्वंसक शास्त्रवस्वधारी , आततायी तीन करोड़ गंधर्वगण की उसकी विशाल सेना है । आप उसे परास्त कर राज्य का विस्तार करे ।
प्रतिउत्तर में श्री राम राजेन्द्र अपने अनुज भरत की अधीनता में एक विशाल चतुरंगिणी सेना भेजते हैं , साथ मे भरत के दोनों पुत्र तक्षक और पुष्यकल भी जाते है ।

सिंधु नदी के उस ओर गंधर्वो के साथ राक्षस भी उनके समर्थन में थे । जिनसे गंधर्वो की शक्ति बढ़ गयी थी । यह राक्षस कहाँ से आये थे ?
जो निशाचर राम रावण युद्ध विमुख होने के कारण से लंका में रह गए थे, उनकी रावण भक्ति का लोप नही हुआ था । उनजे मौन आक्रोश को कहीं कुम्भकर्ण के पुत्र के मूलक तो कहीं खर पुत्र मकराक्ष ने विद्रोही स्वर दिए।
सौम्य विभीषण से जब वे पार नहीं पा सके तो रातों रात पर्याप्त मात्रा में अपनी सम्पदा समेट कर लंका से पलायन कर समुंद्री मार्ग सिंधु नदी के दूसरी ओर पहुंचे और अपनी बस्ती बनाने लगे ।
राम के प्रति इन राक्षसों का विद्रोह और घृणा राम और रावण युद्ध के समय से थी ।
अब जब केकय नरेश गंधर्व राजा शेलशु ने भगवान राम को आमंत्रित किया तो भगवान राम ने भरत को भेजते हैं की वह सेना के साथ जाए और आततायी से उस मुक्त करा लौट आये ।
जस सैन्य अभियान में भरत के दोनों पुत्र तक्षक और पुष्यकल भी जाते है। निरंतर 7 दिन तक युद्ध होता है । विजय मिलती देख कर भरत प्रलयकारी संवतस्त्र का प्रयोग कर उन तीन करोड़ गंधर्वो का अंत लर देते है ।
उनके पुत्र तक्षक और पुष्यकल दो नगर तक्षशिला और पुष्कलावती पेशावर की स्थापना करते है ।
इसके 5 वर्ष बाद भरत अगोध्या लौट आते है ।
इतिहास का एक विलुप्त अध्याय ।

  • ओम प्रकाश त्रेहन