Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

1973 की फ़िल्म नमक हराम में एक सीन है जिसमें राजेश खन्ना मज़दूरों को उकसा रहा होता है हड़ताल के लिए, और ए के हंगल, जो उस समय यूनियन का अध्यक्ष होता है उसे डाँटता है कि क्यूँ असम्भव माँगे उठाकर मज़दूरों को उकसा रहे हो, ऐसी माँगे जिन्हें मालिक माने तो फ़ैक्टरी ही बंद हो जाय |
राजेश खन्ना अमिताभ का दोस्त है जिसे अमिताभ ने प्लांट किया था, हंगल को हटाने के लिए, अपने अपमान का बदला लेने के लिए |
राजेश खन्ना बढ़ चढ़ कर माँगे उठाता, और अमिताभ बच्चन कुछ प्रतिरोध का ढोंग कर मान लेता। धीरे धीरे मज़दूरों में राजेश खन्ना लोकप्रिय होता गया, व अंतत ए के हंगल की यूनियन के चुनाव में राजेश खन्ना के हाथो हार हुई |
भारत को एक फ़ैक्टरी माने व फ़िल्म नमक हराम को याद करे तो सब एकदम समझ में आ जाएगा |
कोई अनुसूचित जाति/जनजाति का नेता, तो कोई इस पिछड़ी जाति का नेता व कोई उस पिछड़ी जाति का नेता, कोई पिछड़ी जाति बनने के प्रयास में जुटी जाति का नेता। किसी को प्रमोशन में आरक्षण चाहिए तो किसी को निजी क्षेत्र में | तो कोई पूरी आरक्षण व्यवस्था का विरोधी नेता। कोई किसान नेता तो कोई मज़दूर नेता, कोई GST का विरोधी व्यापारी नेता, कोई पे कमिशन से नाराज़ सरकारी कर्मचारियों का नेता | कोई पेट्रोल की क़ीमत से नाराज़ मध्यम वर्ग का नेता | हर कोई नाराज़ | रोज़ कही ये प्रदेश बंद तो कल दूसरा प्रदेश बंद | कभी पूरा भारत बंद |
सब के तार लूटीयन माफ़िया के हाथ में, सबकी फ़ंडिंग लूटीयन माफ़िया के हाथ में | सब लूटीयन माफ़ीया के दरबारी | कोई चोरी छिपे मत्था टेक आता है तो कोई खुलेआम गले लग जाता है |
अधिकतर मैंगो पीपल आज के लिए जीते है: आज मुफ़्त दो, आज आरक्षण बढ़ाओ बेटा जवान होने वाला है, आज सस्ता दो, आज फ़सल के दाम बढ़ाओ, आज टैक्स कम करो, आज वेतन बढ़ाओ, कल सरकार दिवालिया हो तो हो, और सरकार दिवालिया क्यूँ होगी भला, नोट छाप लेगी, अम्बानी पर टैक्स बढ़ाओ | हमें गणित मत पढ़ाओ, चुनाव आने वाला है देख लेंगे | बुरे नेता जानते है कि एक या दो टर्म चाहिए बस दिल्ली में बच्चों के लिए फ़ार्म हाउस की व्यवस्था करने में व स्विस विला व स्विस अकाउंट की व्यवस्था करने में | उसके बाद देश दिवालिया हो तो हो, अपने आप सोना गिरवी रखते घूमेंगे जिन्हें देश चाहिए होगा | इसलिए वे हर माँग मान लेने का वादा करते है | ये भी सोचते है कि इन राजेश खन्नाओ के तार तो अपने ही हाथ में है, थोड़ी लूट इन्हें भी दे देंगे, या फिर इन्हें मसल देंगे |
भिंडरावाले से आरम्भ हुआ ये राजेश खन्ना पालने का खेल अभी तक लूटीयन माफ़िया ने बंद नहीं किया है |
और इस जाति व उस जाति, इस वर्ग या उस वर्ग के ये असम्भव माँगे उठाने वाले नीकृष्ट व घृणित लोग, लूटीयन माफ़िया के टुकड़ों के लालच में अपने ही लोगों का जीवन नष्ट करने वाले लोग, इन्हीं में से कभी कोई भिंडरावाले निकल आता है जो लूटीयन माफ़ीया को ही निगल लेता है |
फ़िल्म में तो राजेश खन्ना की आत्मा जग गयी थी | लेकिन लूटीयन के इन राजेश खन्नाओ की आत्मा कभी नहीं जगती |
मुक्त बाज़ार व्यवस्था न हुई तो एक सौ तीस करोड़ लोगों को कोई नियंत्रण में नहीं कर पाएगा। लूटीयन माफ़िया तो भाग जाएगा | कुछेक राजेश खन्ना भी लूटीयन माफ़िया के हवाई जहाज़ के पहिए वग़ैरह पकड़ कर निकल जाएँगे | रह जाएँगे एक सौ तीस करोड़ अभागे लोग |

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मर्यादापुरूषोत्तमराम

माता शबरी बोली- यदि रावण का अंत नहीं करना होता तो राम तुम यहाँ कहाँ से आते?”

राम गंभीर हुए। कहा, “भ्रम में न पड़ो अम्मा! राम क्या रावण का वध करने आया है? छी… अरे रावण का वध तो लक्ष्मण अपने पैर से वाण चला कर भी कर सकता है। राम हजारों कोस चल कर इस गहन वन में आया है तो केवल तुमसे मिलने आया है अम्मा, ताकि हजारों वर्षों बाद जब कोई पाखण्डी भारत के अस्तित्व पर प्रश्न खड़ा करे तो इतिहास चिल्ला कर उत्तर दे कि इस राष्ट्र को क्षत्रिय राम और उसकी भीलनी माँ ने मिल कर गढ़ा था !जब कोई कपटी भारत की परम्पराओं पर उँगली उठाये तो तो काल उसका गला पकड़ कर कहे कि नहीं ! यह एकमात्र ऐसी सभ्यता है जहाँ एक राजपुत्र वन में प्रतीक्षा करती एक दरिद्र वनवासिनी से भेंट करने के लिए चौदह वर्ष का वनवास स्वीकार करता है। राम वन में बस इसलिए आया है ताकि जब युगों का इतिहास लिखा जाय तो उसमें अंकित हो कि सत्ता जब पैदल चल कर समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुँचे तभी वह रामराज्य है। राम वन में इसलिए आया है ताकि भविष्य स्मरण रखे कि प्रतिक्षाएँ अवश्य पूरी होती हैं !!!

सबरी एकटक राम को निहारती रहीं। राम ने फिर कहा- ” राम की वन यात्रा रावण युद्ध के लिए नहीं है माता! राम की यात्रा प्रारंभ हुई है भविष्य के लिए आदर्श की स्थापना के लिए। राम आया है ताकि भारत को बता सके कि अन्याय का अंत करना ही धर्म है l राम आया है ताकि युगों को सीख दे सके कि विदेश में बैठे शत्रु की समाप्ति के लिए आवश्यक है कि पहले देश में बैठी उसकी समर्थक सूर्पणखाओं की नाक काटी जाय, और खर-दूषणो का घमंड तोड़ा जाय। और राम आया है ताकि युगों को बता सके कि रावणों से युद्ध केवल राम की शक्ति से नहीं बल्कि वन में बैठी सबरी के आशीर्वाद से जीते जाते हैं।”

सबरी की आँखों में जल भर आया था। उसने बात बदलकर कहा- कन्द खाओगे राम?

राम मुस्कुराए, “बिना खाये जाऊंगा भी नहीं अम्मा…”

सबरी अपनी कुटिया से झपोली में कन्द ले कर आई और राम के समक्ष रख दिया। राम और लक्ष्मण खाने लगे तो कहा- मीठे हैं न प्रभु?

यहाँ आ कर मीठे और खट्टे का भेद भूल गया हूँ अम्मा! बस इतना समझ रहा हूँ कि यही अमृत है…

सबरी मुस्कुराईं, बोलीं- “सचमुच तुम मर्यादा पुरुषोत्तम हो राम! गुरुदेव ने ठीक कहा था…”

आर के वर्मा

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एक होस्टल कैंटीन वाले के रोज़-रोज़
नाश्ते में खिचड़ी दे देने से परेशान
80 छात्रों ने होस्टल वार्डन से
शिकायत करी, और
बदल-बदल के नाश्ता देने को कहा.100 में से सिर्फ 20 छात्र ऐसे थे, जिनको खिचड़ी बहुत पसंद थी, और वो छात्र चाहते थे, कि खिचड़ी तो रोज़ ही बने. बाकी के 80 छात्र परिवर्तन चाहते थे. *वार्डन ने वोट करके* *नाश्ता तय करने को कहा.* उन 20 ने एकजुट होकर खिचड़ी के लिए वोट किया. बाकी बचे 80 लोगों ने

आपस में कोई सामंजस्य नहीं रखा,
और कोई वार्तालाप भी नहीं किया,
और अपनी बुद्धि एवम् विवेक से
अपनी रूचि अनुसार वोट दिया.

18 ने डोसा चुना,
16 ने परांठा,
14 ने रोटी,
12 ने ब्रेड बटर,
10 ने नूडल्स , और
10 ने पूरी सब्जी को वोट दिया. 🤔 *अब सोचो* 🤔 *क्या हुआ होगा ?* *उस कैंटीन में आज भी*

वो 80 छात्र, रोज़ खिचड़ी ही खाते हैं.
क्यों – क्योंकि वो 20छात्र बहुमत में व एकजुट रहे

शिक्षा👉🏻 जब तक हिस्सों में 80 बंटे रहोगे,
तब तक 20% वालों का वर्चस्व रहेगा.

संदेश

एक बनो, संगठित रहो !!

नही तो खिचड़ी ही खानी पड़ेगी

🙏🌹 वंदेमातरम्🌹🙏

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आज का ज्ञान –

गामा पहलवान को गूगल कीजिये, तो आपको बताया जाएगा कि गामा पहलवान, जीवन में किसी से नहीं हारे, लेकिन ये सत्य नहीं है | गामा पहलवान का असली नाम ग़ुलाम मुहम्मद बख्श था | भारत विभाजन के बाद, ये पाकिस्तान में बस गए थे | बडौदा के संग्रहालय में एक पत्थर रखा है, जिसका वजन 1200 किलो है | 23 दिसम्बर 1902 को इतने भारी पत्थर को उठा कर, गामा पहलवान कुछ कदम चले थे | एक अकेले आदमी के १२०० किलो का पत्थर उठाने का अजूबा करने वाले, पहलवान का नाम था, गामा पहलवान | आज भी वो पत्थर बडौदा में रखा हुआ है लेकिन उस गामा पहलवान को जिसे दुनिया में कोई नहीं हरा सका, उसे हराया, मथुरा के प्रसिद्ध पहलवान चन्द्र सेन टिक्की वाले ने (मथुरा के प्रसिद्ध मोहन पहलवान के पिता) |

ये सारा किस्सा आपको इन्टरनेट पर नहीं मिलेगा क्योंकि इन्टरनेट पर सब कुछ उपलब्ध नहीं है | मथुरा के प्रसिद्ध बलदेव पहलवान ने, अपनी उम्र बढ़ने के कारण मथुरा के ही, चन्द्र सेन टिक्की वाले को बोला कि तुम अभी जवान हो, तुम जाकर गामा पहलवान से लड़ो | चंद्रसेन टिक्की वाले ने कहा कि मेरी तबीयत ठीक नहीं है, बुखार है | मैं नहीं जा पाऊंगा कलकत्ता लड़ने तो बलदेव जी ने कहा कि तुम्हारे लंगोट पर मैं 5000 रूपये ( उस समय के) लगाता हूँ | ये सुनकर, चंद्रसेन टिक्की वाले जोश में आ गए और बोले अब तो गुरु (गुरु, ब्रज में मित्र और गुरु या जानकार, किसी को भी कह देते हैं ) जाना ही पड़ेगा |

चन्द्र सेन टिक्की वाले, कलकत्ता पहुँच गये और गामा पहलवान से कुश्ती की बात रख दी पर खरीद फरोक्त खेलों में आज ही नहीं, पहले भी होती थी और उनको भी कहा गया कि तुम मत लड़ो (चन्द्र सेन टिक्की वाले, लम्बाई चौड़ाई में, गामा पहलवान से दुगुने नहीं तो डेढ़ गुने तो रहे ही होंगे) पर चन्द्र सेन पहलवान ने मना कर दिया कि वो जुबान दे कर आये हैं, लड़ कर ही जायेंगे |

कुश्ती शुरू हुई, अखाड़ा सजा | कुश्ती शुरू होते ही, गामा पहलवान ने ऐसा दांव खेला कि चन्द्रसेन पहलवान का अंगूठा चीर दिया (अंगूठे और हाथ को पकड़ कर, खींच दिया) और वहन दंगल में खून खून हो गया | चंद्रसेन जी को ये बात समझ नहीं आई कि कुश्ती में, ऐसा काम नहीं किया जाता है और ये कैसी कुश्ती थी ..उन्होंने फिर एक ही दांव खेला और ऐसा खेला कि गामा पहलवान उसी एक दांव में बेहोश |

लोग बड़े खुश हुए, कि जिस पहलवान को पूरे भारत में कोई नहीं हरा पाया, उसे मथुरा के एक पहलवान ने हरा दिया | पूरे कलकत्ता में जुलूस निकला | दानदाता और खेल के प्रशंसको ने पेटियां खोल दी और लाखो रूपये का इनाम चन्द्र सेन टिक्की वाले को मिला | कहते हैं, उन्होंने वापिस मथुरा आकर, 16 कोठियां या मकान खरीदे |

तो जिसने 1200 किलो का पत्थर उठा लिया और पूरे भारत और दुनिया में रुस्तमे हिन्द (कैसे ये हार छुप गयी, पता नहीं) और रुस्तमे जहाँ का खिताव जीता उसे चन्द्र सेन टिक्की वाले ने हरा दिया… तो चन्द्र सेन टिक्की वाले कौन हुए ? बली ? नहीं ! वो हुए बलिष्ठ | बालियों में भी बली, बलिष्ठ यानि महाबली आप कह सकते हैं | ऐसे ही वशिष्ठ माने क्या ? जो वशियों में (इन्द्रियों आदि को वश में करने वाले) श्रेष्ठ हैं, वो वशिष्ठ हैं | ऐसे ही धर्मिष्ठ कौन ? धर्म में जो श्रेष्ठ हों वो धर्मिष्ठ | महिष्ठ माने जो महानो में भी महान हैं वो महिष्ठ और जो ज्ञानियों में भी ज्ञानी हो वो हुए गरिष्ठ (आयुर्वेद में इसका अर्थ, न पचने वाला भी है) | अब मजेदार बात ये है कि आप गूगल करेंगे तो आपको चन्द्रसेन टिक्की वाले के बारे में एक लाइन भी नहीं मिलेगी, इसीलिए मुझे लिखना जरूरी लगा | मैंने लिख दिया, इसको शेयर करना है, नहीं करना है, वो आप जानें |

अब ये सब बातें मुझे कैसे पता चली तो इसका सार ये है कि

ज्यों केले के पात में, पात पात में पात,
त्यों संतन की बात में, बात बात में बात |

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ફુલપરી

એક ખેડૂત હતો.. સાવ નાનું કુટુંબ.. ઘરમાં પોતે , પત્ની , માં , એક દિકરી પુની અને એક નાનો દિકરો.. પોતાની સરસ વાડી હતી.. તેમાં જ નાનું મકાન બનાવેલ હતું.. ત્યાં રહે.. અને મજા કરે..
શરદ પુનમની રાત હતી.. ખેડૂત બળદોને પહર ચારવા લઈ ગયો.. ઘરથી ઘણે દુર , જંગલની નજીક એક સરોવર હતું.. તેની પાસે ઘાસની વીડી હતી.. ત્યાં બળદોને પેટ ભરીને ચારો કરાવ્યો.. સવાર પડી , એટલે એ પાછો ઘરે આવવા નિકળ્યો..
ચાલતાં ચાલતાં એ સરોવર પાસે પહોંચ્યો.. જોયું.. તો એક સુંદર ફુલ , સરોવરના કાંઠે કાદવમાં ખુંચેલું પડ્યું છે.. ફુલ સાવ નવી જાતનું હતું , એટલે વિચાર્યું કે ‘લાવ આ ફુલ પુની માટે લઈ જાઉં.. એને ગમશે..’
એણે તો ફુલ લઈ લીધું.. ઘરે આવીને પુનીને આપ્યું.. પુની તો રાજી રાજી થઈ ગઈ.. અને સાંચવીને પોતાની ઓરડીમાં મુકી દીધું..
આ ઓરડીમાં પુની રોજ દાદી સાથે સુતી.. પણ દાદી એની દિકરીને ત્યાં આંટો દેવા ગયા હતા..એટલે આજે રાતે પુની ફુલ સાથે રમતી રમતી એકલી સુઈ ગઈ..
મધરાત થઈ.. પુનીને લાગ્યું કે .. કોક એના શરીર પર દાદીની જેમ હાથ ફેરવે છે.. એણે જાગીને જોયું.. તો એક રુપાળી પરી પાસે બેઠી છે.. એને બે સફેદ પાંખો હતી.. લાંબા સોનેરી સુંદર વાળ હતા..
પરીએ કહ્યું.. ” પુની , મારાથી ડરતી નહીં.. હું ફુલપરી છું.. અમે ઘણી પરીઓ ગઈ રાતે સરોવરમાં નહાવા આવી હતી.. હું કાદવમાં ખુંચી ગઈ.. બીજી પરીઓ સવાર પહેલાં ઉડીને અમારા પરીલોકમાં જતી રહી.. ને સુરજ ઉગ્યો એટલે હું ફુલ બની ગઈ.. અને આજ મધરાત થઈ , એટલે પરી બની ગઈ..સવારે સુરજ ઉગશે એટલે પાછી ફુલ બની જઈશ.. “
પુનીએ પરી સાથે ઘણી વાતો કરી..
પરીએ કહ્યું.. ” તારે અમારું પરીલોક જોવું હોય તો મારા ખોળામાં સુઈ જા.. હું તને સપનામાં પરીલોક બતાવીશ..”
પુની તો એના ખોળામાં માથું રાખી સુઈ ગઈ.. સપનું આવ્યું.. સપનામાં એણે પરીલોકના સોના રુપાના મહેલ , હીરા મોતીની બત્તીઓ , સુંદર બાગ બગીચા જોયા .. સપનું પુરું થયું.. પુની જાગી ગઈ..
પુનીએ કહ્યું.. ” ફુલપરી.. મને પરીલોક જોવાની ખુબ મજા આવી.. ત્યાં બધું સારું સારું ને સુંદર હતું.. ક્યાંય ઉકરડા , ગંદકી કે કચરો ન હતાં.. અમારે તો અહીં ગામમાં બધે ગંદકી , ઉકરડા અને કચરો જ દેખાય..”
પરી હસી.. ” પુની .. તમે માણસ છો જ સાવ ગંધારા.. ખુબ ગંદકી કરો.. એટલે અમે તમારાથી છેટાં રહીએ.. પણ તું તો રુપાળી ને ચોક્ખી છો.. એટલે તું મને ખુબ ગમે છે..”
સવાર પડતાં જ પરી પાછી ફુલ બની ગઈ.. પુનીએ બા બાપુને પરીની વાત કરી..
પુનીએ કહ્યું.. ” બાપુ , આપણે આ ફુલને સરોવરને કાંઠે મુકી આવશું.. એટલે રાતે એ પરી બનીને બીજી પરીઓ સાથે એના પરીલોકમાં જતી રહેશે..”
સાંજ પડ્યે .. બધા ગાડામાં બેસીને ફુલને સરોવરને કાંઠે મુકી આવ્યા..
મધરાતે ફુલપરી .. પાછી પરી બનીને પરીલોકમાં જતી રહી..
નાહી ધોઈને ચોક્ખાં રહીએ , ચોક્ખા રાખીએ ગામ..
પરી રુપાળી પ્રેમ કરીને , દેખાડે નીજ ધામ..

  • જયંતીલાલ ચૌહાણ ૩૦-૫-૨૧