नौ बजे के बाद हमेशा उठने वाले संजीव सिंह आज सुबह सुबह पाँच बजे घर से रात की पार्टी वाला मिठाई का एक बड़ा सा डब्बा लेकर “कुछ अर्जेंट काम है “घरवालों को बोलकर बाइक से निकल गए और वहीं पहुँचे जहाँ कल शाम उनकी कार से छोटा सा एक्सीडेंट हुआ था। पूरी रात संजीव सिंह कुछ सोच सोच कर दुखी रहे और एक पल के लिए भी सो नहीं पाए थे बार बार उस गरीब आदमी का सड़क पर बैठकर रोता चेहरा उनकी आँखों के सामने घूम रहा था। कल उनके बेटे का बर्थडे था और घर पे ही लगभग सौ लोगों के साथ पार्टी थी जिसमें उनके रिश्तेदार ,पड़ोसियों और बेटे के दोस्तों के परिवारवाले शामिल थे। अपने आफिस में संजीव सिंह ने सोचा था कि तीन बजे तक आफिस से काम ख़त्म कर निकल जाऊँगा ताकि बीबी की डाँट और एकलौते बेटे की शिकायत ना सुननी पड़े परंतु बॉस के आदेश और काम अधिक होने की वजह से उन्हें आफिस से निकलते निकलते देर हो गयी थी। जल्द से जल्द घर पहुँचने के चक्कर में स्पीड में कार चलाते हुए एक गोलगप्पे वाले के ठेले से थोड़ी सी उनकी कार की टक्कर हो गयी और उस गोलगप्पे वाले के ठेले के सारे गोलगप्पे और अन्य सामान सड़क पर बिखर कर बरबाद हो गया था ।संजीव सिंह बिना रुके कार को आगे बढ़ा दिया रियर मिरर में देखा तो गोलगप्पे वाला सड़क पे सर पकड़कर बैठकर जोर जोर से चिल्लाते हुए रोने लगा था। एक्सीडेंट वाली जगह से थोड़ी दूरी पर गरीबों की बारह पंद्रह झोपड़पट्टी वाली एक छोटी सी बस्ती थी।एक झोपड़ी के आगे उन्होंने वही गोलगप्पे वाला ठेला जिसके एक साइड का चक्का बुरी तरह डैमेज था लगा देखा संजीव सिंह ने बाइक वहीं खड़ी कर उस झोपड़े का दरवाजा खटखटाया।
एक बीमार सी और उदास आँखों वाली पतली दुबली पुरानी सी साड़ी पहने एक महिला ने दरवाजा खोला।अंदर आने की इज़ाज़त माँगने पर बड़े आश्चर्य से देखकर शर्मिदगी के साथ इजाज़ात दे दी। झोपड़ी के अंदर का हाल बहुत बुरा था एक गंदी सी चारपाई थी।ठंढे मिट्टी के चूल्हे और कोई जुठे ना बर्तन देखकर कोई भी ये समझ सकता था कि कल रात खाना न बना था।एक दस साल का हड्डियों का ढांचा वाला बच्चा किताब में कुछ पढ़ाई कर रहा था वही बगल में गोलगप्पे वाला जमीन पर ही बैठा था।गोलगप्पे वाले ने हाथ जोड़कर बोला "बोलिये साहब हमसे कौनो गलती हुई क्या?"
संजीव सिंह उसका हाथ अपने हाथों में लेकर बोले “गलती तो मुझसे हुई थी कल ,आपके सारे गोलगप्पे मेरे कारण ही बरबाद हुए मुझे माफ़ कर दीजिए” तभी वहाँ खड़ी गोलगप्पे वाली की पत्नी बोली " एक सप्ताह से बीमार पड़े थे रामू के बाबूजी कल बहुत दिन बाद दुकान लगाये थे अब तो हमलोगों के पास इतने पैसे भी ना है कि ठेले का चक्का बदलवा सकें और फिर से गोलगप्पे की दुकान लगा सके कल सवेरे दू हजार रुपया सूद पर ले के फिर दुकान खोलनी है किस्मत बहुत खराब है संजीव सिंह ने पाँच हजार रुपये देते हुए कहा "यही मेरा प्रायश्चित है आप स्वीकार करें" और फिर बेटे के जन्मदिन वाली मिठाई का पैकेट उस छोटे बच्चे की तरफ बढ़ाये पर बच्चे की आँखों मे लालच होते हुए भी शर्मिन्दगी से स्वीकृति के लिए माई बाबूजी की तरफ देखा ।स्वीकृति मिलते ही पैकेट खोलकर खुश होकर मिठाई खाने लगा और वहाँ खड़े सभी के चेहरे पर मुस्कुराहट तैर गयी और अब संजीव सिंह को लग रहा था कि उनके दिल से कोई बोझ उतर गया है....
अगर आपसे किसी गरीब का नुकसान हो जाये तो उसकी मदद जरूर करें 🙏
मोनिका उपाध्याय