Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

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(संदेश देती एक भावनात्मक कहानी)

कोरोना को किसने हराया?…

मैं एक प्रायवेट कम्पनी मे बाबू हूँ हमेंशा की तरह कम्पनी मे मे काम कर रहा था। मुझे हल्का बुखार आया शाम तक सर्दी भी हो गई पास ही के मेडिकल स्टोर से दवाइया मंगा कर खाई।

3-4 दिन थोडा ठीक रहा एक दिन अचानक साँस लेने मे दिक्कत हुई ओक्सिजन लेवल कम होने लगा मेरी पत्नी ने तत्काल रिक्शा कर मुझे अस्पताल लेकर पहुंची। सरकारी अस्पताल में पलंग फुल चल रहे थे, मैं देख रहा था मेरी पत्नी मेरे इलाज के लिये डाक्टर के सामने गिड़गिड़ा रही थी। अपने परिवार को असहाय सा बस देख ही पा रहा था मेरी तकलीफ बढती जा रही थी मेरी पत्नी मुझे हौसला दिला रही थी कह रही थी, कुछ नही होगा हिम्मत रखो, ( यह वही औरत थी जिसे मे हमेशा कहता था की तुम बेवकूफ औरत हो तुम्हे क्या पता दुनिया मे क्या चल रहा हे)।

उसने एक प्राइवेट अस्पताल मे लड़ झगड कर मुझे भर्ती करवाया। फिर अपने भाई याने मेरे साले को फोन लगाकर सारी बातें बताई उसकी उम्र होगी 20 साल करीबन जो मेरी नजर मे आवारा और निठल्ला था जिसे मेरे घर आने की परमीशन नही थी। वह अक्सर मेरी गैर हाजरी मे ही मेरे घर आता जाता था। फिर, अपने देवर को याने मेरे छोटे भाई को फोन लगा कर उसने बुलाया जो मेरे साले की उम्र का ही था जो बेरोजगार था और मैं उसे कहता था “काम का ना काज का दुश्मन अनाज का” दोनो घबराते हुए अस्पताल पहुंचे दोनो की आंखो मे आंसू थे दोनो कह रहे थे की आप घबराना मत आपको हम कुछ नही होने देंगे।

डॉक्टर साहब कह रहे थे की हम 3-4 घन्टे ही ओक्सिजन दे पायेंगे फिर आपको ही ओक्सिजन के सिलेंडर की व्यवस्था करनी होगी। मेरी पत्नी बोली डाक्टर साहब ये सब हम कहा से लायेंगे।

तभी मेरे भाई और साला बोले हम लायेंगे सिलेंडर आप इलाज शुरु किजीये दोनो वहा से रवाना हो गये। मुझ पर बेहोशी छाने लगी और जब होश आया तो मेरे पास ओक्सिजन सिलेंडर रखा था। मैंने पत्नी से पूछा ये कहा से आया उसने कहा तुम्हारा भाई और मेरा भाई दोनो लेकर आये है। मेने पूछा कहा से लाये , उसने कहा ये तो वो ही जाने।

अचानक मेरा ध्यान पत्नी की खाली कलाइयो पर गया मैंने कहा तुम्हारे कंगन कहा गये? कितने साल से लड़ रही थी कंगन दिलवाओ कंगन दिलवाओ अभी पिछ्ले महीने शादी की सालगिरह पर दिलवाये थे ( बोनस मिला था उस समय)। वह बोली आप चुपचाप सो जाइये कंगन यही हे कही नही गये मुझे उसने दवाइया दी और मैं आराम करने लगा, नींद आ गई।

जैसे ही नींद खुली क्या देखता हू मेरी पत्नी कई किलो वजनी सिलेंडर को उठा कर ले जा रही थी जो थोडा सा भी वजनी सामान उठाना होता था मुझे आवाज देती थी आज कैसे कई किलो वजनी सिलेंडर तीसरी मंजिल से नीचे ले जा रही थी और नीचे से भरा हुआ सिलेंडर ऊपर ला रही थी। मुझे गुस्सा आया मेरे साले और मेरे भाई पर ,ये दोनो कहा मर गये फिर सोचा आयेंगे तब फटकारुंगा।

फिर पडौस के बैड पर भी एक सज्जन भर्ती थे उनसे बाते करने लगा मैंने कहा की अच्छा अस्पताल है नीचे सिलेंडर आसानी से मिल रहे हैं, उन्होने कहा क्या खाक अच्छा अस्पताल है, यंहा से 40 किलोमिटर दूर बड़े शहर मे 7-8 घन्टे लाइन मे लगने के बाद बडी मुश्किल से एक सिलेंडर मिल पा रहा है। आज ही अस्पताल मे ओक्सिजन की कमी से 17 मौते हुई है। मैं सुनकर घबरा गया और सोचने लगा की शायद मेरा साला और भाई भी ऐसे ही सिलेंडर ला रहे होंगे पहली बार दोनो के प्रती सम्मान का भाव जागा था ।

कुछ सोचता इससे पहले पत्नी बड़ा सा खाने का टिफ़िन लेकर आती दिखी पास आकर बोली उठो खाना खा लो। उसने मुझे खाना दिया एक कोल खाते ही मैने कहा ये तो माँ ने बनाया है, उसने कहा हां माँ ने ही बनाया है। माँ कब आई गांव से, उसने कहा कल रात को। अरे वो कैसे आ गई, अकेले तो वो कभी नही आई शहर। पत्नी बोली बस से उतर कर आटो वाले को घर का पता जो एक पर्चे मे लिखा था वह दिखा कर घर पहुंच गई।

मेरी माँ शायद बाबुजी के स्वर्गवास के बाद पहली बार ही अकेले सफर किया होगा। गाव की जमीन मां बेचने नही दे रही थी तो मेरा मेरी माँ से मन मुटाव चल रहा था कहती थी मेरे मरने के बात जैसा लगे वैसा, करना जीते जी तो नही बेचने दूंगी।

पत्नी बोली मुझे भी अभी मेरी मां ने बताया की आपकी माँ रात को आ गई थी, वो ही घर से खाना लेकर आई है, जो आपकी मां ने बनाया है। मैंने कहा पर तुम्हारी मां को तो पैरों मे तकलीफ है उन्हे चलते नही बनता है। मेरे ससुर के स्वर्गवास के बाद बहुत कम ही घर से निकलती है, पत्नी बोली आप आराम से खाना खाइये मैं खाना खाने लगा।

कुछ देर बाद मेरे फटीचर दोस्त का फोन आया बोला हमारे लायक कोई काम हो तो बताना। मैंने मन मे सोचा जो मुझसे उधार ले रखे हे 3000 रुपये वही वापस नही किया, काम क्या बताऊ तुझे। फिर भी मैंने कहा ठीक हे जरुरत होगी तो बता दूगा और मुह बना कर फोन काट दिया ।

16 दिंनों तक मेरी पत्नी सिलेंडर ढोती रही मेरा भाई और साला लाईन मे लगकर सिलेंडर लाते रहे, फिर हालत मे सुधार हुआ फिर 18 वे दिन मेरी अस्पताल से छुट्टी हुई ।

मुझे खुद पर गर्व था की मैंने कोरोना को हरा दिया मैं फूला नही समा रहा था।

घर पहुंच कर असली कहानी पता चली की, मेरे इलाज मे बहुत सारा रुपया लगा है। शहर के बड़े अस्पताल का बिल कई लाख था, कितना ये तो नही पता पर मेरी पत्नी के सारे जेवर जो उसने मुझ से लड़ लड़ कर बनवाये थे बिक चुके थे।

मेरे साले के गले की चेन बिक चुकी थी जो मेरी पत्नी ने मुझसे साले की जनोई मे 15 दिन रूठ कर जबरजस्ती दिलवाई थी, मेरा भाई जिस बाइक को अपनी जान से ज्यादा रखता था वो भी घर मे दिखाई नही दे रही थी।

मेरी माँ जिस जमीन को जीतेजी नही बेचना चाहती थी मेरे स्वर्गीय बाबूजी की आखरी निशानी थी वो भी मेरे इलाज मे बिक चुकी थी ।

मेरी पत्नी से लड़ाई होने पर मे गुस्से मे कहता था की जाओ अपनी माँ के घर चली जाओ वो मेरा ससुराल का घर भी गिरवी रखा जा चुका था, मेरे निठल्ले दोस्त ने जो मुझसे 3000 रुपये लिए थे वो 30,000 वापस करके गया था।

जिन्हे मे किसी काम का नही समझता था वे मेरे जीवन को बचाने के लिये पूरे बिक चुके थे मैं अकेला रोये जा रहा था बाकी सब लोग खुश थे।

क्योकी मुझे लग रहा था सब कुछ चला गया, और उन्हे लग रहा था की मुझे बचा कर उन्होने सब कुछ बचा लिया।

अब मुझे कोई भ्रम नहीं था की मैंने कोरोना को हराया है, क्योकी कोरोना को तो मेरे अपनो ने, मेरे परिवार ने हराया था ।

सब कुछ बिकने के बाद भी मुझे लग रहा था की आज दुनिया मे मुझसे अमीर कोई नही है।

यह कहानी किसी एक व्यक्ति की नही है अपितु हर उस इंसान की है जिसने कोरोना को नजदीक से देखा है।

तो आइए हम सब मिलकर प्रार्थना करे कि हे ईश्वर बहुत हो गया अब और नहीं,… बस और नहीं।

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बहुत सुंदर कथा ..🖋आप भाउक हो कर रो पड़ेगें
जी तो ध्यान से पढिये..

एक साधु महाराज श्री रामायण कथा सुना रहे थे। लोग आते और आनंद विभोर होकर जाते। साधु महाराज का नियम था रोज कथा शुरू करने से पहले “आइए हनुमंत जी बिराजिए” कहकर हनुमान जी का आह्वान करते थे, फिर एक घण्टा प्रवचन करते थे।

एक वकील साहब हर रोज कथा सुनने आते। वकील साहब के भक्तिभाव पर एक दिन तर्कशीलता हावी हो गई।
उन्हें लगा कि महाराज रोज “आइए हनुमंत जी बिराजिए” कहते हैं तो क्या हनुमान जी सचमुच आते होंगे!

अत: वकील साहब ने महात्मा जी से पूछ ही डाला- महाराज जी, आप रामायण की कथा बहुत अच्छी कहते हैं।
हमें बड़ा रस आता है परंतु आप जो गद्दी प्रतिदिन हनुमान जी को देते हैं उसपर क्या हनुमान जी सचमुच बिराजते हैं?

साधु महाराज ने कहा… हाँ यह मेरा व्यक्तिगत विश्वास है कि रामकथा हो रही हो तो हनुमान जी अवश्य पधारते हैं।

वकील ने कहा… महाराज ऐसे बात नहीं बनेगी।
हनुमान जी यहां आते हैं इसका कोई सबूत दीजिए ।
आपको साबित करके दिखाना चाहिए कि हनुमान जी आपकी कथा सुनने आते हैं।

महाराज जी ने बहुत समझाया कि भैया आस्था को किसी सबूत की कसौटी पर नहीं कसना चाहिए यह तो भक्त और भगवान के बीच का प्रेमरस है, व्यक्तिगत श्रद्घा का विषय है । आप कहो तो मैं प्रवचन करना बंद कर दूँ या आप कथा में आना छोड़ दो।

लेकिन वकील नहीं माना, वो कहता ही रहा कि आप कई दिनों से दावा करते आ रहे हैं। यह बात और स्थानों पर भी कहते होंगे,इसलिए महाराज आपको तो साबित करना होगा कि हनुमान जी कथा सुनने आते हैं।

इस तरह दोनों के बीच वाद-विवाद होता रहा।
मौखिक संघर्ष बढ़ता चला गया। हारकर साधु महाराज ने कहा… हनुमान जी हैं या नहीं उसका सबूत कल दिलाऊंगा।
कल कथा शुरू हो तब प्रयोग करूंगा।

जिस गद्दी पर मैं हनुमानजी को विराजित होने को कहता हूं आप उस गद्दी को आज अपने घर ले जाना।
कल अपने साथ उस गद्दी को लेकर आना और फिर मैं कल गद्दी यहाँ रखूंगा।
मैं कथा से पहले हनुमानजी को बुलाऊंगा, फिर आप गद्दी ऊँची उठाना।
यदि आपने गद्दी ऊँची कर दी तो समझना कि हनुमान जी नहीं हैं। वकील इस कसौटी के लिए तैयार हो गया।

महाराज ने कहा… हम दोनों में से जो पराजित होगा वह क्या करेगा, इसका निर्णय भी कर लें ?…. यह तो सत्य की परीक्षा है।

वकील ने कहा- मैं गद्दी ऊँची न कर सका तो वकालत छोड़कर आपसे दीक्षा ले लूंगा।
आप पराजित हो गए तो क्या करोगे?
साधु ने कहा… मैं कथावाचन छोड़कर आपके ऑफिस का चपरासी बन जाऊंगा।

अगले दिन कथा पंडाल में भारी भीड़ हुई जो लोग रोजाना कथा सुनने नहीं आते थे,वे भी भक्ति, प्रेम और विश्वास की परीक्षा देखने आए।
काफी भीड़ हो गई।
पंडाल भर गया।
श्रद्घा और विश्वास का प्रश्न जो था।

साधु महाराज और वकील साहब कथा पंडाल में पधारे… गद्दी रखी गई।
महात्मा जी ने सजल नेत्रों से मंगलाचरण किया और फिर बोले “आइए हनुमंत जी बिराजिए” ऐसा बोलते ही साधु महाराज के नेत्र सजल हो उठे ।
मन ही मन साधु बोले… प्रभु ! आज मेरा प्रश्न नहीं बल्कि रघुकुल रीति की पंरपरा का सवाल है।
मैं तो एक साधारण जन हूँ।
मेरी भक्ति और आस्था की लाज रखना।

फिर वकील साहब को निमंत्रण दिया गया आइए गद्दी ऊँची कीजिए।
लोगों की आँखे जम गईं ।
वकील साहब खड़ेे हुए।
उन्होंने गद्दी उठाने के लिए हाथ बढ़ाया पर गद्दी को स्पर्श भी न कर सके !

जो भी कारण रहा, उन्होंने तीन बार हाथ बढ़ाया, किन्तु तीनों बार असफल रहे।

महात्मा जी देख रहे थे, गद्दी को पकड़ना तो दूर वकील साहब गद्दी को छू भी न सके।
तीनों बार वकील साहब पसीने से तर-बतर हो गए।
वकील साहब साधु महाराज के चरणों में गिर पड़े और बोले महाराज गद्दी उठाना तो दूर, मुझे नहीं मालूम कि क्यों मेरा हाथ भी गद्दी तक नहीं पहुंच पा रहा है।

अत: मैं अपनी हार स्वीकार करता हूं।
कहते है कि श्रद्घा और भक्ति के साथ की गई आराधना में बहुत शक्ति होती है। मानो तो देव नहीं तो पत्थर।

प्रभु की मूर्ति तो पाषाण की ही होती है लेकिन भक्त के भाव से उसमें प्राण प्रतिष्ठा होती है तो प्रभु बिराजते है।
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रुप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥

🙏🙏जय श्री राम🙏🙏

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. ज्ञान का अहंकार

महाकवि कालिदास के कंठ में साक्षात सरस्वती का वास था. शास्त्रार्थ में उन्हें कोई पराजित नहीं कर सकता था. अपार यश, प्रतिष्ठा और सम्मान पाकर एक बार कालिदास को अपनी विद्वत्ता का #अहंकार हो गया.
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उन्हें लगा कि उन्होंने विश्व का सारा ज्ञान प्राप्त कर लिया है और अब सीखने को कुछ बाकी नहीं बचा. उनसे बड़ा #ज्ञानी संसार में कोई दूसरा नहीं. एक बार पड़ोसी राज्य से शास्त्रार्थ का निमंत्रण पाकर कालिदास विक्रमादित्य से अनुमति लेकर अपने घोड़े पर रवाना हुए.
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गर्मी का मौसम था. धूप काफी तेज़ और लगातार यात्रा से कालिदास को प्यास लग आई. थोङी तलाश करने पर उन्हें एक टूटी झोपड़ी दिखाई दी. पानी की आशा में वह उस ओर बढ चले. झोपड़ी के सामने एक कुआं भी था.
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कालिदास ने सोचा कि कोई झोपड़ी में हो तो उससे पानी देने का अनुरोध किया जाए. उसी समय झोपड़ी से एक छोटी बच्ची मटका लेकर निकली. बच्ची ने कुएं से पानी भरा और वहां से जाने लगी.
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कालिदास उसके पास जाकर बोले- बालिके ! बहुत प्यास लगी है ज़रा पानी पिला दे. बच्ची ने पूछा- आप कौन हैं ? मैं आपको जानती भी नहीं, पहले अपना परिचय दीजिए. कालिदास को लगा कि मुझे कौन नहीं जानता भला, मुझे परिचय देने की क्या आवश्यकता ?
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फिर भी प्यास से बेहाल थे तो बोले- बालिके अभी तुम छोटी हो. इसलिए मुझे नहीं जानती. घर में कोई बड़ा हो तो उसको भेजो. वह मुझे देखते ही पहचान लेगा. मेरा बहुत नाम और सम्मान है दूर-दूर तक. मैं बहुत #विद्वान व्यक्ति हूं.
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कालिदास के बड़बोलेपन और घमंड भरे वचनों से अप्रभावित बालिका बोली-आप असत्य कह रहे हैं. संसार में सिर्फ दो ही बलवान हैं और उन दोनों को मैं जानती हूं. अपनी प्यास बुझाना चाहते हैं तो उन दोनों का नाम बाताएं ?
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थोङा सोचकर कालिदास बोले- मुझे नहीं पता, तुम ही बता दो मगर मुझे पानी पिला दो. मेरा गला सूख रहा है. बालिका बोली- दो बलवान हैं \’अन्न\’ और \’जल\’. भूख और प्यास में इतनी शक्ति है कि बड़े से बड़े #बलवान को भी झुका दें. देखिए प्यास ने आपकी क्या हालत बना दी है.
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कलिदास चकित रह गए. लड़की का तर्क अकाट्य था. बड़े-बड़े विद्वानों को पराजित कर चुके कालिदास एक बच्ची के सामने निरुत्तर खङे थे. बालिका ने पुनः पूछा- #सत्य बताएं, कौन हैं आप ? वह चलने की तैयारी में थी.
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कालिदास थोड़ा #विनम्र होकर बोले-बालिके ! मैं बटोही हूं. मुस्कुराते हुए बच्ची बोली- आप अभी भी झूठ बोल रहे हैं. संसार में दो ही #बटोही हैं. उन दोनों को मैं जानती हूं, बताइए वे दोनों कौन हैं ? तेज़ प्यास ने पहले ही कालिदास की बुद्धि क्षीण कर दी थी पर लाचार होकर उन्होंने फिर से अनभिज्ञता व्यक्त कर दी.
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बच्ची बोली- आप स्वयं को बङा विद्वान बता रहे हैं और ये भी नहीं जानते ? एक स्थान से दूसरे स्थान तक बिना थके जाने वाला बटोही कहलाता है. बटोही दो ही हैं, एक #सूर्य और दूसरा #चंद्रमा जो बिना थके चलते रहते हैं. आप तो थक गए हैं. भूख प्यास से बेदम हैं. आप कैसे बटोही हो सकते हैं ?
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इतना कहकर बालिका ने पानी से भरा मटका उठाया और झोपड़ी के भीतर चली गई. अब तो कालिदास और भी दुखी हो गए. इतने अपमानित वे जीवन में कभी नहीं हुए. प्यास से शरीर की शक्ति घट रही थी. दिमाग़ चकरा रहा था. उन्होंने आशा से झोपड़ी की तरफ़ देखा. तभी अंदर से एक वृद्ध स्त्री निकली.
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उसके हाथ में खाली मटका था. वह कुएं से पानी भरने लगी. अब तक काफी विनम्र हो चुके कालिदास बोले- माते पानी पिला दीजिए बङा #पुण्य होगा.
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स्त्री बोली- बेटा मैं तुम्हें जानती नहीं. अपना परिचय दो. मैं अवश्य पानी पिला दूंगी. कालिदास ने कहा- मैं मेहमान हूँ, कृपया पानी पिला दें. स्त्री बोली- तुम मेहमान कैसे हो सकते हो ? संसार में दो ही मेहमान हैं. पहला #धन और दूसरा #यौवन. इन्हें जाने में समय नहीं लगता. सत्य बताओ कौन हो तुम ?
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अब तक के सारे तर्क से पराजित हताश कालिदास बोले- मैं सहनशील हूं. अब आप पानी पिला दें. स्त्री ने कहा- नहीं, सहनशील तो दो ही हैं. पहली, #पृथ्वी जो #पापी औऱ # पुण्यात्मा सबका बोझ सहती है. उसकी छाती चीरकर बीज बो देने से भी अनाज के भंडार देती है.
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दूसरे, #वृक्ष जिनको पत्थर मारो फिर भी मीठे फल देते हैं. तुम सहनशील नहीं. सच बताओ तुम कौन हो ? कालिदास लगभग मूर्च्छा की स्थिति में आ गए और तर्क-वितर्क से झल्लाकर बोले- मैं #हठी हूं.
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स्त्री बोली- फिर #असत्य. हठी तो दो ही हैं- पहला नख और दूसरे केश, कितना भी काटो बार-बार निकल आते हैं. सत्य कहें #ब्राह्मण कौन हैं आप ? पूरी तरह अपमानित और #पराजित हो चुके कालिदास ने कहा- फिर तो मैं #मूर्ख ही हूं.
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नहीं तुम मूर्ख कैसे हो सकते हो. मूर्ख दो ही हैं. पहला #राजा जो बिना योग्यता के भी सब पर शासन करता है, और दूसरा #दरबारी पंडित जो राजा को प्रसन्न करने के लिए ग़लत बात पर भी तर्क करके उसको सही सिद्ध करने की चेष्टा करता है.
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कुछ बोल न सकने की स्थिति में कालिदास वृद्धा के पैर पर गिर पड़े और पानी की याचना में गिड़गिड़ाने लगे. वृद्धा ने कहा- उठो वत्स ! आवाज़ सुनकर कालिदास ने ऊपर देखा तो साक्षात माता सरस्वती वहां खड़ी थी. कालिदास पुनः #नतमस्तक हो गए.
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माता ने कहा- #शिक्षा से ज्ञान आता है न कि अहंकार. तूने शिक्षा के बल पर प्राप्त मान और #प्रतिष्ठा को ही अपनी उपलब्धि मान लिया और अहंकार कर बैठे इसलिए मुझे तुम्हारे चक्षु खोलने के लिए ये #स्वांग करना पड़ा.
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कालिदास को अपनी गलती समझ में आ गई और भरपेट पानी पीकर वे आगे चल पड़े.