महाभारत
यथा काष्ठं च काष्ठं च समेयातां महोदधौ |
समेत्य च व्यपेयातां तद्वद् भूतसमागम: ||
जैसे लकडी के दो टुकडे विशाल सागर में मिलते है तथा एक ही लहर से अलग हो जाते है, उसी तरह दो व्य्क्ति कुछ क्षणों के लिए सहवास में आते है फिर कालचक्र की गती से अलग हो जाते है.