एक गाँव में एक बालक रहता था , नन्हा , बेहद प्यारा सा । गोरा दूध सा रंग , बड़ी बड़ी और शहद जैसे रंग की आंखें , सुनहरे अर्धघुंघराले बाल , रक्ताभ अधर और प्यारी सी मुस्कुराहट , गालों में पड़ते गड्ढे और होंठों से झांकती मोहक श्वेत दंतपंक्ति ।
हर कोई उसे प्यार करता , माता पिता , पडो़सी , रिश्तेदार , जान – पहचान वाले । यहाँ तक कि जब अपनी निर्दोष आँखों से बिटर-बिटर करके अनजाने लोगो की ओर देखता तो वे भी उसे दुलार करके ही आगे बढ़ पाते थे ।
गाँव का अंधा कुम्हार उसके नन्हे हाथों को थाम कर बर्तन बनाने का गुर सिखाकर पुलकित हो उठता था ।
छुआछूत मानने वाला कट्टर पुरोहित तक उसे अपनी थाली मे साथ खिलाकर भी खुश होता था ,
मंदिर का पुजारी जो देव विग्रह की उतरी माला प्रसाद रूप में राजा को भी देने को तैयार नहीं होता था वह उसे खुशी खुशी पहनाकर उसके गालों को चूम लेता ।
पूरा गांव उसपर न्योछावर था । उसको तकलीफ होती तो पूरा गांव परेशान हो उठता । उसे एक बार तेज चोट लगी और उसके प्राण संकट में थे तो पूरा गांव उसके लिए मंदिर में महादेव से उसके लिये रो रोकर प्रार्थना कर उठा ।
इस प्यार दुलार भरे माहौल में वह बडा़ होने लगा । उसे भी अपने लोगों से , अपनी जमीन , अपने खेतों , पशु-पक्षियों से प्यार होने लगा । उस दुनियाँ मे सभी उसके अपने थे , कोई पराया नहीं था । उसके चारों ओर का परिवेश जैसे एक स्वर्ग था जिसमें उसका बचपन बीत रहा था ।
जितना सुघड़ उसका व्यक्तित्व था उतना ही तीव्र उसका मस्तिष्क भी इसीलिये औपचारिक शिक्षा में उसने तीव्र प्रगति की । परन्तु विद्यालय की पढ़ाई उसके मस्तिष्क की क्षमता के लिए पर्याप्त नहीं थी और जीवन के मूल प्रश्न उसे निरंतर बेचैन करते थे और यह बेचैनी उसे संगीत की ओर ले गयी । संगीत से उसे प्रेम हुआ और उसने वीणावादन में कुशलता अर्जित की ।
संगीत में डूबकर उसे तात्कालिक शांति तो मिल जाती थी परंतु भावसंसार से बाहर आने पर वही बेचैनी उसे फिर घेर लेती थी और तब उसने ज्ञान को अपने जीवन का लक्ष्य बनाया , पर जैसे जैसे वो जानता गया उसे अहसास होता गया कि सत्य को पुस्तकों से नहीं जाना जा सकता है । उसकी बेचैनी और ज्यादा बढ़ती गयी । उसे लगा इन प्रश्नों के उत्तर ढूंढना ही उसके जीवन का उद्देश्य है ।
पर जीवन के इस संक्रमण काल में , उसके चारों ओर कुछ अजीब घटित होने लगा । उसके चारों ओर के जाने पहचाने प्यार करने वाले चेहरे उसके सामने अचानक से एक अपरिचित कठोर भाव के साथ आने लगे और तब उसका परिचय प्यार के अलावा एक दूसरे शब्द से हुआ –
‘ अपेक्षा ‘
वो सबके प्यार की खातिर अपने प्रश्नों को भूल गया । अपने जीवन के मूल उद्देश्य को भुला दिया उसने । सोचा कि उन सबके प्यार का कर्ज उतारकर ही अपने मूल गंतव्य की यात्रा पर निकलेगा ।
वो अपनी पूरी शक्ति से उनकी अपेक्षाओं को पूरा करने में जुट गया । पर नियति उसे किसी और ही दिशा में ले गयी । उसके स्वप्न छिन्न – भिन्न होने लगे । न तो वो विरक्त संन्यासी बन सका और ना ही व्यवहारिक गृहस्थ । उसका जीवन त्रिशंकु की करुण कहानी बन कर रह गया । और तब उसका परिचय एक और भाव से हुआ
‘ उपेक्षा ‘
उसकी असफलतायें उसे हर किसी की निगाहों में अनजाना और उपेक्षणीय बनाने लगीं । यहाँ तक कि उपेक्षा का ये भाव उसके अपने नीड़ , अपने घर में भी पहुँच गया । उसके जीवन में एक के बाद एक तूफान आने लगे और हर आपदा के लिये उसे ही जिम्मेदार माना जाने लगा । माता – पिता , भाई – बहिन , पत्नी – संतान सबकी निगाहों मे उसे अपने लिये अजनबीपन झाँकता दिखाई देता । जीवन के कई वर्ष गंवाकर उसने एक कटु सत्य को पहचाना कि इस संसार में ज्ञान की कोई कीमत नहीं , कीमत है तो सफलता की और सफलता का पैमाना था – धन । जब तक उसने इस सत्य को जाना तब तक देर हो चुकी थी और तब…..
…..तब उसने जाना एक और भाव , एक नया शब्द
‘ नफरत ‘
उसे अब संसार में हर किसी से नफरत थी , यहाँ तक कि अपने ही अस्तित्व से भी । उसे अपने अस्तित्व की आवश्यकता में ही संदेह होने लगा । उसे बार बार गृहत्याग और जीवन मुक्ति का विचार आता पर उसकी जिजीविषा उसके विचार को हर बार हरा देती ।
इस गहन तिमिर में उसके जीवन में सहसा रोशनी की एक किरण चमकी । एक सितारे सी ।
चंपक वर्ण , सीधी छरहरी देह , सुराहीदार गर्दन , मनोहारी चिबुक , बिना अधरराग लगाये हुए भी सुर्ख लाल होंठ , तीखी नासिका , गहरी काली आंखें , कमान जैसी भौं और कमर तक लहराते बाल . वो सब कुछ जो काव्यशास्त्र में वर्णित नायिका में होता है । परंतु उसकी मेधा , उसका मस्तिष्क , उसके विचार उसकी देहयष्टि से भी ज्यादा सुंदर थे । बेहद ‘ सरल ‘ और बेहद संवेदनापूर्ण ह्रदय । किसी का भी दुख वह नहीं देख पाती थी और जब उसका दुख बांटने में असहाय महसूस करती तो खुद रो पड़ती थी ।
वो पडौ़सी देश के राजा की लड़की थी ।
उसे लगा कि संसार में कोई तो है जो उसे बिना स्वार्थ के चाहता है और वैसा ही जैसा कि वो है । उसे लगा मानो मरुस्थल में भटकते हुये उसे अमृत का झरना मिल गया । राजकुमारी भी शायद कुछ उसके संगीत से , कुछ उसके ज्ञान से और कुछ उसके व्यक्तित्व से आकर्षित थी ।
जीवन एक बार फिर नृत्य कर उठा । उसके ह्रदय में वही उल्लास और उत्साह छलकने लगा जिसे वह सुदूर बचपन में पीछे छोड़ आया था । लालसापूर्ण आंखों में छिपे उसके प्रेम का प्रतिउत्तर राजकुमारी के होठों पर शरारतपूर्ण ‘ ना ‘ और आँखों मे ‘ हाँ ‘ के रूप में होता था ।
पर नियति जैसे अभी भी उससे रूठी हुई थी । जल्दी ही उसे पता लग गया कि ‘ प्रेम ‘ उसके जीवन मे हमेशा के लिये विदा हो चुका था और ये रिश्ता भी उसके जीवन के अन्य रिश्तों की तरह एक मृ्गमरीचिका ही था । हुआ यूँ कि लोगों में बात फैली और पडौ़सी राजा तक पहुँची । राजा ने इस गाँव पर धावा बोल दिया और माँग रखी कि हमें सिर्फ वो चाहिये जिसने हमारी बेटी की तरफ देखने की हिम्मत की है वरना हम पूरे गाँव को जलाकर राख कर देंगे ।
पूरा गांव उसके घर के चारों ओर इकट्ठा हो गया और उससे आत्मसमर्पण की मांग करने लगा यहां तक कि खुद उसके परिवार ने उसे दोषी माना और राजा को सौंप दिया ।
राजा फिर भी न्यायप्रिय था । उसने खुले दरबार में सुनवाई की और कड़कती आवाज में पूछा ,
” क्या तुम मेरी बेटी से प्रेम करते थे ? “
” जी हाँ ” – उसने संक्षिप्त उत्तर दिया ।
” क्या मेरी बेटी भी तुम्हें ….. “
” मुझे नहीं पता ” उसने जवाब दिया ।
” इसका क्या मतलब ? ” राजा और क्रुद्ध हो उठा ।
उसकी स्वयं की , जनसामान्य की और स्वयं राजा की आंखें राजकुमारी की तरफ उठ गयीं । सभी की आंखें खुदपर पड़ती देख राजकुमारी कुछ घबरा सी गयी ।
” मेरे मन में इनके प्रति कोई ऐसा भाव नहीं था । यही मुझे अनावश्यक निकटता दिखाकर परेशान करते थे ।” राजकुमारी हड़बड़ा कर बोली ।
राजा जैसे सबकुछ समझ गया और उग्र स्वर में बोल उठा , ” तो फिर फैसला हो गया , तुमने अपनेी आयु , पद , मर्यादा और हैसियत का ध्यान रखे बिना एक भोली भाली राजकुमारी को अपने जाल में फाँसने की कोशिश की है , जिसके लिये तुम्हे मृत्युदंड दिया जाता है ।”
” कल इसका सिर धड़ से अलग कर दिया जाये । ” राजा ने कड़कते हुये स्वर में कहा और उठकर चला गया ।
उस रात कैदखाने में गुप्तद्वार से दो साये निकले और उनमें से एक ने प्रहरी को अपनी अंगूठी दिखाई और एक थैली उसके हाथ में रख दी ।
” अगर किसी को पता लगा तो तुम्हारे शव का भी पता नहीं लगेगा ” साये ने प्रहरी के कान में फुसफुसाकर कहा ।
” अभी कैदी के साथ हमें अकेला छोड़ दो “
प्रहरी ने सिर झुकाया और आगे मुख्य द्वार की ओर चला गया ।
अब पीछे वाली छाया आगे आई ,
” धाय मां ,कोई आये तो बता देना ।” कहते हुये राजकुमारी ने अपने चेहरे पर से अवगुंठन उतार दिया और अंदर कोठरी में पहुंची । वह दीवार के सहारे बैठा हुआ था और मुंह ऊपर किये हुये छत की ओर ताक रहा था । कपाटों के खुलने की आवाज से उसका ध्यान भंग हुआ और उसने अपना सिर घुमाया ।
” राजकुमारी अब तो मैं सब कुछ सिखा चुका या अभी भी कुछ सीखने को बचा है ? ” उसके चेहरे पर व्यंग्य की मुस्कुराहट थी ।
राजकुमारी निःशब्द कुछ देर तक खड़ी रह गयी और फिर उसकी क्रुद्ध आवाज गूंजी –
” मैने कब तुम्हें कहा कि मैं तुम्हें प्यार करती हूँ । तुम्हें मेरे और अपने बीच की खाई को तो देख लेना चाहिये था । मैं तुम्हारा सम्मान करती थी और तुम्हारी हालात पर तरस खाकर तुमसे हँस बोल लेती थी तो इसका ये मतलब तो नहीं कि मैं तुमसे प्यार करने लगी थी । क्या मैंने तुम्हें नहीं कहा था कि मेरे मन मे कभी भी प्रेम जैसा भाव पैदा नहीं हो सकता , कि मैं इस काम के लिये नहीं हूँ , कि मुझे अपने पिता से बहुत प्रेम है और मैं तुमसे जुड़कर उन्हें दुःख नहीं पहुँचा सकती । इस सबके बावजूद तुम…. ” राजकुमारी अपनी पीड़ा में जैसे हांफ उठी ।
” तो मैंने कब कहा कि तुम मुझे प्यार करती हो ? ” उसने शांतिपूर्वक प्रतिप्रश्न किया ।
” तो सार्वजनिक रूप से इनकार क्यों नहीं किया कि तुम्हें मुझसे कोई प्रेम नहीं है ? ” राजकुमारी दबी आवाज में क्रोधपूर्वक बोली ।
” जिस प्रेम को मैंने ईश्वर का रूप माना , झूठ बोलकर उसका तिरस्कार कर देता ? “
” मन करता है कि कल से पहले ही मैं खुद तुम्हें अपने हाथों से मार डालूं । ” राजकुमारी ने अपने दाँत पीसे ।
” इससे बड़ा मेरा सौभाग्य और क्या होगा कि तुम्हारे हाथों ही मुझे मुक्ति मिले । ” गंभीर स्वर में वह बोला ।
राजकुमारी अपने क्रोध को पीती मौन हो रही ।
” तो आखिर इस अंतिम वेला में तुम मुझसे चाहती क्या हो ? ” – फीकी मुस्कान के साथ उसने पूछा ।
” यही कि यहाँ से भाग जाओ ” राजकुमारी बोली ।
” अब इसका मतलब मैं क्या निकालूँ ? ” उसके चेहरे पर एक हल्की सी वक्र मुस्कान खेल गई ।
” सिर्फ पश्चाताप , अपनी गलती पर पश्चाताप । अगर मैंने तभी तुम्हे थप्पड़ मार दिया होता जब तुमने मुझे प्रेम निवेदन किया था तो आज ये स्थिति नहीं आती और ना ही तुम्हारा बेवजह कत्ल मेरे माथे आता । ” राजकुमारी झुँझुलाकर बोली ।
” तो क्या फर्क पड़ता , मुझसे दुनियाँ को थोडा़ और पहले ही मुक्ति मिल जाती । ” – वो खाली से स्वर में बोला , ” अब तुम यहाँ से जाओ वर्ना मेरे जेीने के साथ मेरा मरना भी बेकार हो जायेगा । “
” आखिर तुम चाहते क्या हो ? ” – राजकुमारी हताश होकर रो पडी़ ।
” राजकुमारी अगर तुम मुझे नहीं चाहतीं थीं तो मेरी मृत्यु मेरा प्रायश्चित्त है और अगर सिर्फ समय बिताने के लिये मेरी भावनाओं से खिलवाड़ किया है तो मेरी मृत्यु मेरा प्रतिशोध है । “
उसकी आवाज में अप्रत्याशित कठोरता थी जो राजकुमारी ने पहले कभी नहीं सुनी थी ।
अब राजकुमारी में उसकी जलती हुई आँखों का सामना करने की ताकत नहीं थी । वह थकी हुई चाल से धीरे – धीरे उस कोठरी से बाहर चली गयी । राजकुमारी के आँखों से ओझल होने तक वो उसे निर्निमेष नेत्रों से देखता रहा और फिर ऊपर देखा और सहसा खिलखिलाकर हँस पडा़ और हँसता चला गया और हँसते – हँसते सहसा अपनी हथेलियों से अपना मुँह ढँक लिया और फफक – फफक कर रो पड़ा ।
अगले दिन स्नानादि के बाद भारी भीड़ के बीच उसे बाँध कर वधस्थल पर लाया गया । बिना किसी कंपन के वो सधी हुई चाल से जल्लाद के पास तिखटी पर पहुँचा और जल्लाद को देखकर बहुत ही आकर्षक ढँग से मुस्कुराया ठीक वैसे ही जैसे वो अपने बचपन में मुस्कुराया करता था । भावहीन और कठोर चेहरे वाला जल्लाद भी उस मुस्कान से विचलित होकर इधर उधर देखने लगा । जो भीड़ एक चीखते चिल्लाते व्यक्ति की मौत का तमाशा देखने आयी थी वह भी उसके व्यक्तित्व को देखकर स्तंभित थी । आज जैसे वह फिर से अपने बचपन में लौट चुका था , वैसी ही स्वच्छ , निर्दोष आँखें , वही मुस्कुराहट और चेहरे पर एक अनोखी चमक ।
राजा आ पहुँचा । जयजयकार के बीच उसने अपना स्थान ग्रहण किया । राजा की आज्ञा से मंत्री ने अभियोग और दंड का फैसला एक बार उच्च स्वर में पढ़ कर सुनाया ।
भीड़ की उग्रता का स्थान अब ना जाने क्यूँ सहानुभूति ने ले लिया था और वह उसकी तरफ करुणा भरी नजरों से देख रही थी ।
” अपराधी से उसकी अंतिम इच्छा पूछी जाये ” — राजा ने मंत्री को आदेश दिया ।
” क्या तुम्हारी कोई अंतिम इच्छा है ? ” मंत्री ने उससे पूछा ।
” हाँ ” उसने जवाब दिया , ” मेरी दो इच्छायें है “
मंत्री ने राजा की तरफ देखा , राजा ने स्वीकृति दी । मंत्री ने पुनः उसकी ओर देखा ।
” मेरी प्रथम इच्छा है कि राजकुमारी मेरी मृत्यु को अपनी आँखों से देखे । ” वह निर्विकार भाव से बोला ।
राजा का चेहरा तमतमा उठा पर फिर भी इच्छा पूरी करने का संकेत किया । राजकुमारी के आने तक का समय जैसे पहाड़ हो गया था । राजकुमारी झुका हुआ चेहरा लेकर राजा के बगल के एक आसन पर बैठ गयी ।
अब मंत्री ने पुनः उसकी ओर देखा , ” तुम्हारी दूसरी इच्छा क्या है ? “
” मेरे लिये तीन बोरी रेत लायी जाये और मुझे थोडा़ सा समय दिया जाये । ” उसने कहा ।
तीन बोरी रेत लाया गया और उसके हाथ खोल दिये गये । वह आगे बढा़ और रेत की बोरियों को खोल कर रेत की तीन ढेरियाँ बनायीं ।
उसने हाथ धोये और पहली ढेरी के सामने घुटनों के बल झुका और हाथ जोड़ कर आँखें बंद कर प्रार्थना की और फिर साष्टांग प्रणाम किया ।
सारी भीड़ उसके क्रियाकलाप को आश्चर्य से देख रही थी ।
फिर वो उठा और उसने रेत के ढेर मे लात मारकर उसे बिखेर दिया ।
इसके बाद वह दूसरी ढेरी के सामने गया , घुटनों के बल झुककर प्रणाम किया और उठकर उसे भी लात मारकर तोड़ दिया ।
राजा समेत पूरी भीड़ उसके काम को बडे़ कौतूहल से देख रही थी पर किसी की समझ में कुछ नहीं आ रहा था ।
इसी बीच वह तीसरी ढेरी के पास पहुँच गया था और उसे भी साष्टांग प्रणाम किया परंतु उसे लात मारकर बिखेरने की बजाय मंत्री से बोला , ” मेरी मृत्यु के पश्चात इस ढेरी को लात मारकर बिखेर देना । “
अब राजा का कौतूहल चरम पर पहुँच चुका था , वह सिंहासन से उतरा और उसके पास आकर पूछा , ” इस सबका क्या मतलब था ? “
परंतु वह मौन खड़ा रहा ।
राजा निराश होकर मुडा़ ही था कि राजकुमारी को देख कर वह ना जाने क्या सोचकर पुनः बोला , ” रुकिये महाराज , अब जाते – जाते भला किसी को क्या निराश करूँ ?
” आप जानना चाहते हैं तो सुनिये , आप सभी सुनिये । पहला ढेर प्रतीक था मेरे समस्त बंधु-बांधवों का जिन्होंने मुझे प्रेम किया पर क्षणिक स्वार्थ के लिये मुझे उतनी ही बेरहमी से त्याग भी दिया . उनके प्रेम के लिये मैने आभार हेतु उन्हें प्रणाम किया पर अब इन मानवीय संबंधों पर मुझे विश्वास नहीं रहा , इसलिये मैंने उसे सदैव के लिये तोड़ दिया ।”
” दूसरा ढेर प्रतीक था , मेरे कर्मों का । मैने कभी भी जान बूझ कर किसी का दिल नहीं दुखाया , पर पूर्वजन्म के कर्मफल में मुझे सदैव दुख ही मिले । कर्मफल पर मेरी आस्था के प्रतीक के रूप में मैने उसे प्रणाम किया पर मेरे वे दुःख , अब कभी किसी पर उनकी छाया भी ना पड़े , इसी कामना के प्रतीक में मैंने उस ढेर को तोड़ दिया । ” सारी भीड़ स्तब्ध होकर सुन रही थी ।
” और तीसरा ढेर ? उसे तुमने क्यों नहीं तोडा़ ?? ” — विस्मित राजा ने पूछा ।
उसने गहरी साँस ली और राजकुमारी की तरफ देखा और तनिक गूँजती आवाज में बोला – ” प्रेम धरती पर ईश्वर का निराकार रूप है और राजकुमारी के रूप में मैंने उसी ईश्वर को साकार रूप में जाना , चाहा और पूजा .. “
वह अपनी बोझिल साँसों के बीच रुका और साथ ही उसके शब्दों के मध्य मानों ब्रह्मांड भी थम गया ।
” …..तीसरा ढेर प्रतीक है उसी प्रेम रूपी ईश्वर का जिस पर मेरी आस्था अभी भी बनी हुई है इसीलिये मैंने उसे प्रणाम किया , परंतु मेरी मृ्त्यु के बाद मेरी उस पर भी आस्था टूट जायेगी , इसीलिये मैने मंत्रिवर को मेरे मरने के बाद उस ढेरी को तोड़ने की कामना व्यक्त की थी । “
काल को चुनौती देते उसके अंतिम शब्द हवा में गूँजे और समय मानो उसी कालखंड में ठहर गया ।
एक चुनौती एक कहानी जो समय के उसी कालखंड में रुकी हुई है , अपने पूर्ण होने की प्रतीक्षा में ।
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