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अहंकार का सिर नीचा


आज की अमृत कथा🦚🌳*💐अहंकार का सिर नीचा💐 प्राचीनकाल में सुंदर नगर में अक्षय भद्र नाम का एक सेठ था | एक दिन उसका सोने में तुलादान हुआ |उस सोने को गरीबों में बांटा गया |उसने ऐलान कर दिया कि कोई भी खाली हाथ न रह जाये |उसने अपने आदमियों को यह देखने के लिये कि नगर में कौन सोने से वंचित रह गया है, दौड़ा दिया |उसके आदमियों ने पूरा नगर छान मारा, किंतु उन्हें ऐसा कोई आदमी नहीं मिला |उन्होंने यह बात आकर सेठ को बता दी |किंतु सेठ को उनकी बात से संतुष्टि नहीं हुयी | वह खुद यह देखने के लिये निकल पड़ा |चलते-चलते उनका काफिला जंगल में से गुजरा | वहां एक मुनि साधना कर रहे थे |सेठ ने मुनि का आशीर्वाद लिया और उन्हें सोना देने की बात कही |मुनि ने नकारात्मक जवाब दिया – “ सेठ जी ! यह आपने अच्छा किया कि गरीबों में सोना बटवा दिया | लेकिन मुझे इससे क्या मतलब मैं मुनी हूं, ईश्वर की साधना और उसकी कृपया ही मेरे लिए दुनिया का सबसे बड़ा धन है |”सेठ को मुनि की यह बात बुरी लगी | उसने कठोर स्वर में कहा – “ दुनिया में ईश्वर की कृपा का कोई मोल नहीं |”मुनी ! सेठ के अहंकार को तोड़ गये | बोले – “ मैं कभी दान नहीं लेता | मेरा प्रभु मुझे उतना दे देता है जितने की मुझे आवश्यकता होती है | फिर भी यदि आप आग्रह कर ही रहे है, तो इस तुलसी के पत्ते के बराबर सोना मुझे दे दे |”इतना कहकर मुनि ने तुलसी के पत्ते पर “ राम ” का नाम लिखकर सेठ को दे दिया |यह देखते ही सेठ का अहंकार बलवत हो उठा | बोला – “ आप मेरा मजाक उड़ा रहे हैं | मुनिदेव ! मेरे घर में सोने की कमी नहीं है | आप निर्धनता में रहते हैं, इसलिए मैं आपकी सहायता करना चाहता था |”“ ठीक है! आप मुझे इस पत्ते के बराबर सोना दे दे |” मुनि ने कहा |सेठ ने खोज कर तराजू मंगाई | उसके एक पलड़े में पता रख दिया और दूसरे में कुछ सोना |किंतु,वह सोना कम रहा, तो सेठ ने और सोना पल्लडे में डाल दिया |लेकिन जैसे-जैसे वह पल्लडे में सोना बढ़ता जा रहा था | वैसे ही सोना कम पड़ता जा रहा था |पन्ने वाला पलड़ा अपनी जगह से हिलाने का नाम तक नहीं ले रहा था |यह देखकर सेठ हक्का-बक्का रह गया |उसे अपनी भूल का एहसास हुआ |वह मुनि के चरणों में गिर पड़ा – “ मुनीव्वर ! मेरी आंखों पर अहंकार का पर्दा पड़ा था | वह उठ गया है, मैं आपका सच्चे दिल से आभारी हूं | सच्चे धनी तो आप ही हैं | सचमुच दुनिया में ईश्वर की कृपया का ही महत्व है, और किसी का नहीं |”इसके बाद सेठ बिल्कुल बदल गया | उसके अंदर का अहंकार बिल्कुल समाप्त हो गया |*मित्रों” “अहंकार एक ऐसा दैत्य हैं, कि जिसके सिर पर चढ़ जाता है | उसकी बुद्धि भ्रष्ट करके रख देता है | साधु-संतों, ऋषि-मुनियों के सामने अहंकार करने वाला सदा मुंह की खाता है | जैसे कि सेठ अक्षय भद्र का मुनि के सम्मुख किया गया | अहंकार ने उसे नीचा देखने पर मजबूर कर दिया |”**सदैव प्रसन्न रहिये!!**जो प्राप्त है-पर्याप्त है!!

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