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हनुमान कथा


हनुमान कथा :-एक दिन हनुमानजी जब सीता जी की शरण में आए, नैनों में जल भरा हुआ है बैठ गए शीश झुकाए,सीता जी ने पूछा उनसे कहो लाडले बात क्या है, किस कारण ये छाई उदासी, नैनों में क्यों नीर भरा है………हनुमान जी बोले मैया आपनें कुछ वरदान दिए हैं, अजर अमर की पदवी दी है, और बहुत सम्मान दिए हैं, अब मैं उन्हें लौटानें आया, मुझे अमर पद नहीं चाहिए, दूर रहूं मैं श्री चरणों से, ऐसा जीवन नहीं चाहिए………..सीता जी मुस्काकर बोली बेटा ये क्या बोल रहे हो, अमृत को तो देव भी तरसे, तुम काहे को डोल रहे हो……….इतने में श्रीराम प्रभु आ गए और बोले, क्या चर्चा चल रही है मां बेटे में………….तब सीताजी बोली सुनो नाथ जी, ना जाने क्या हुआ हनुमानको, पदवी अजर-अमर लौटानें आया है ये मुझको………राम जी बोले क्यों बजरंगी ये क्या लीला नई रचाई, कौन भला छोड़ेगा , अमृत की ये अमर कमाई………हनुमानजी रोकर बोले, आप साकेत पधार रहे हो, मुझे छोड़कर इस धरती से, आप वैकुंठ सिधार रहे हो, आप बिना क्या मेरा जीवन अमृत का विष पीना होगा, तड़प-तड़प कर विरह अग्नि में जीना भी क्या जीना होगा………..हनुमान जी बोले प्रभु अब आप ही बताओ, आप के बिना मैं यहां कैसे रहूंगा………….तब इस पर प्रभु श्रीराम बोले………….हनुमान सीता का यह वरदान सिर्फ आपके लिए ही नहीं है, बल्कि यह तो संसार भर के कल्याण के लिए है,, तुम यहां रहोगे, और संसार का कल्याण करोगे……….मांगो हनुमान वरदान मांगो:- इस पर श्री हनुमानजी बोले……..जहां जहां पर आपकी कथा हो, आपका नाम हो,, वहां-वहां पर मैं उपस्थित होकर हमेशा आनंद लिया करूं,सीताजी बोलीं देदो प्रभु देदो,तब भगवान राम नें हंसकर कहा, तुम नहीं जानती सीता ये क्या मांग रहा है, ये अनगिनत शरीर मांग रहा है, जितनी जगह मेरा पाठ होगा उतनें शरीर मांग रहा है,तब सीताजी बोलीं, तो दे दो फिर क्या हुआ, आपका लाडला है……..तब इस पर प्रभु श्रीराम बोले……….. तुम्हरी इच्छा पूर्ण होगी, वहां विराजोगे बजरंगी, जहां हमारी चर्चा होगी, कथा जहां पर राम की होगी, वहां ये राम दुलारा होगा, जहां हमारा चिंतन होगा, वहां पे जिक्र तुम्हारा होगा……….कलयुग में मुझसे भी ज्यादा पूजा हो हनुमान तुम्हारी, जो कोई तुम्हरी शरण में आए, भक्ति उसको मिले हमारी,, मेरे हर मंदिर की शोभा बनकर आप विराजोगे, मेरे नाम का सुमिरन करके सुधबुध खोकर नाचोगे………….नाच उठे ये सुन बजरंगी, चरणन शीश नवाया,, दुख-हर्ता सुख-कर्ता प्रभु का, प्यारा नाम ये गाया…………जय सियाराम जयजय सियाराम, जय सियाराम जयजय सियाराम………………..।। जय श्रीराम ।।

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अहंकार का सिर नीचा


आज की अमृत कथा🦚🌳*💐अहंकार का सिर नीचा💐 प्राचीनकाल में सुंदर नगर में अक्षय भद्र नाम का एक सेठ था | एक दिन उसका सोने में तुलादान हुआ |उस सोने को गरीबों में बांटा गया |उसने ऐलान कर दिया कि कोई भी खाली हाथ न रह जाये |उसने अपने आदमियों को यह देखने के लिये कि नगर में कौन सोने से वंचित रह गया है, दौड़ा दिया |उसके आदमियों ने पूरा नगर छान मारा, किंतु उन्हें ऐसा कोई आदमी नहीं मिला |उन्होंने यह बात आकर सेठ को बता दी |किंतु सेठ को उनकी बात से संतुष्टि नहीं हुयी | वह खुद यह देखने के लिये निकल पड़ा |चलते-चलते उनका काफिला जंगल में से गुजरा | वहां एक मुनि साधना कर रहे थे |सेठ ने मुनि का आशीर्वाद लिया और उन्हें सोना देने की बात कही |मुनि ने नकारात्मक जवाब दिया – “ सेठ जी ! यह आपने अच्छा किया कि गरीबों में सोना बटवा दिया | लेकिन मुझे इससे क्या मतलब मैं मुनी हूं, ईश्वर की साधना और उसकी कृपया ही मेरे लिए दुनिया का सबसे बड़ा धन है |”सेठ को मुनि की यह बात बुरी लगी | उसने कठोर स्वर में कहा – “ दुनिया में ईश्वर की कृपा का कोई मोल नहीं |”मुनी ! सेठ के अहंकार को तोड़ गये | बोले – “ मैं कभी दान नहीं लेता | मेरा प्रभु मुझे उतना दे देता है जितने की मुझे आवश्यकता होती है | फिर भी यदि आप आग्रह कर ही रहे है, तो इस तुलसी के पत्ते के बराबर सोना मुझे दे दे |”इतना कहकर मुनि ने तुलसी के पत्ते पर “ राम ” का नाम लिखकर सेठ को दे दिया |यह देखते ही सेठ का अहंकार बलवत हो उठा | बोला – “ आप मेरा मजाक उड़ा रहे हैं | मुनिदेव ! मेरे घर में सोने की कमी नहीं है | आप निर्धनता में रहते हैं, इसलिए मैं आपकी सहायता करना चाहता था |”“ ठीक है! आप मुझे इस पत्ते के बराबर सोना दे दे |” मुनि ने कहा |सेठ ने खोज कर तराजू मंगाई | उसके एक पलड़े में पता रख दिया और दूसरे में कुछ सोना |किंतु,वह सोना कम रहा, तो सेठ ने और सोना पल्लडे में डाल दिया |लेकिन जैसे-जैसे वह पल्लडे में सोना बढ़ता जा रहा था | वैसे ही सोना कम पड़ता जा रहा था |पन्ने वाला पलड़ा अपनी जगह से हिलाने का नाम तक नहीं ले रहा था |यह देखकर सेठ हक्का-बक्का रह गया |उसे अपनी भूल का एहसास हुआ |वह मुनि के चरणों में गिर पड़ा – “ मुनीव्वर ! मेरी आंखों पर अहंकार का पर्दा पड़ा था | वह उठ गया है, मैं आपका सच्चे दिल से आभारी हूं | सच्चे धनी तो आप ही हैं | सचमुच दुनिया में ईश्वर की कृपया का ही महत्व है, और किसी का नहीं |”इसके बाद सेठ बिल्कुल बदल गया | उसके अंदर का अहंकार बिल्कुल समाप्त हो गया |*मित्रों” “अहंकार एक ऐसा दैत्य हैं, कि जिसके सिर पर चढ़ जाता है | उसकी बुद्धि भ्रष्ट करके रख देता है | साधु-संतों, ऋषि-मुनियों के सामने अहंकार करने वाला सदा मुंह की खाता है | जैसे कि सेठ अक्षय भद्र का मुनि के सम्मुख किया गया | अहंकार ने उसे नीचा देखने पर मजबूर कर दिया |”**सदैव प्रसन्न रहिये!!**जो प्राप्त है-पर्याप्त है!!

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मोक्ष


*मोक्ष*🌹🌹 ……एक राजा ने, जिसके कोई औलाद नहीं थी, एक सात मंज़िला महलबनवाया और अपनी सारी दौलत को अलग-अलग मंज़िलों पर फैला दिया।पहली मंज़िल पर कौड़ियाँ, दूसरी मंज़िल पर पैसे, तीसरी पर रुपये, चौथी पर मोहरें, पाँचवीं पर मोती, छठी पर अच्छे-अच्छे हीरे-जवाहरात औरसातवीं पर ख़ुद बैठ गया। शहर वालों को ख़बर दे दी कि जिसको जोमिले ले जाये। लेकिन जो एक बार आये वह फिर दूसरी बार न आये।लोग दौड़कर आने लगे।बहुत-से लोग तो पैसों की गठरियाँ बाँधकर ले गये। जो उनसे जरा ज़्यादा समझदार थे, वे रुपयों की गठरियाँ बाँधकर घर ले गये। जो और आगे बढ़े, वे चाँदी ले गये। कुछ लोगों ने कहा कि नहीं, और आगे जाना चाहिए। वे मोहरें लेकर वापस आ गये।जो और आगे गये वे मोती लेकर आ गये।जो और ज़्यादा समझदार थे, वे उनसे भी आगे गये और हीरे-जवाहरात लेकर आ गये। एक व्यक्ति कहने लगा नहीं, मैं सबसे ऊपर पहुँचूँगा और देखूँगा, वहाँ क्या है? वह जब ऊपर पहुँचा तो देखा कि वहाँ राजा ख़ुद बैठा हुआ है। राजा बैठा यह इंतज़ार कर रहा था कि क्या उसकी प्रजा है। कोई ऐसा व्यक्ति है, जो नीचे की सब वस्तुओं को छोड़कर ऊपर उसके पास पहुचेगा। राजा ने उसका स्वागत किया और अपने सिर से ताज उतारकर उसके सिर पर रख दिया और उसको राजा बना दिया। दूर्भाग्यवश हर जीव के भाग्य में यह ज्ञान नहीं होता कि जो हम इस जन्म में करते हैं, उसी का फल हमें अगले जन्म में भुगतना पड़ता है। *दुःख की बात है कि बहुत-से लोग अपने जीवन को व्यर्थ के कार्यों में गँवा देते हैं।**जो बेटे-बेटियों में उलझे रहते हैं, वे अपनी उम्र पैसे इकट्ठे करने में गुज़ार देते हैं।**जो लोग थोड़े समझदार हैं, वे रुपये कमा लेते हैं।* *जो लोग नित्य नियम, पूजा -पाठ व्रत आदि रखते हैं, वे चाँदी ले लेते हैं।* *जिन्होंने नौदरवाज़े छोड़कर अंदर परदा खोला, वे आँखों से ऊपर चढ़े, यानी मृत्युलोक को छोड़कर सहस्रदल-कँवल में पहुँचे, उन्होंने मोहरें ले लीं।**जो ब्रह्म में पहुँचे, उन्होंने मोती ले लिए।**जो पारब्रह्म में पहुँचे, उन्होंने हीरे-जवाहरात ले लिए।* *जिसने कहा कि नहीं मुझे धुर अंत तक पहुँचना है, वह ऊपर गया तो आगे शहंशाह अकालपुरुष प्रभू श्री हरि जी को बैठे देखा। श्री हरि जी अकालपुरुष ने उसको अपने साथ मिला लिया।*विचार करें, आपके अंदर करोड़ों खंड-ब्रह्मांड हैं, करोड़ों ख़ुशियाँ हैं, सुख और शांति है। ख़ुद परमात्मा श्री हरि जी आपके अंदर है, मनुष्य-चोले का मक़सद उस परमात्मा श्री हरि जी तक पहुँचना है। हमें चाहिए कि जो कुछ बन सको इसी जन्म में कर ले और मोक्ष को प्राप्त हो ।

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अकबर ने एक ब्राह्मण को दयनीय हालत में जब भिक्षाटन करते देखा तो बीरबल की ओर व्यंग्य कसकर बोले – ‘बीरबल ! ये हैं तुम्हारे ब्राह्मण ! जिन्हें ब्रह्म देवता के रुप में जाना जाता है । ये तो भिखारी हैं ।’

बीरबल ने उस समय तो कुछ नहीं कहा । लेकिन जब अकबर महल में चला गया तो बीरबल वापिस आया और ब्राह्मण से पूछा कि वह भिक्षाटन क्यों करता है ?

ब्राह्मण ने कहा – ‘मेरे पास धन, आभूषण, भूमि कुछ नहीं है और मैं ज्यादा शिक्षित भी नहीं हूँ । इसलिए परिवार के पोषण हेतू भिक्षाटन मेरी मजबूरी है ।’

बीरबल ने पूछा – ‘भिक्षाटन से दिन में कितना प्राप्त हो जाता है ?’

ब्राह्मण ने जवाब दिया – ‘छह से आठ अशर्फियाँ ।’

बीरबल ने कहा – ‘आपको यदि कुछ काम मिले तो क्या आप भिक्षा मांगना छोड़ देंगे ?’

ब्राह्मण ने पूछा – ‘मुझे क्या करना होगा ?’

बीरबल ने कहा – ‘आपको ब्रह्ममुहूर्त में स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करके प्रतिदिन 101 माला गायत्री मन्त्र का जाप करना होगा और इसके लिए आपको प्रतिदिन भेंटस्वरुप 10 अशर्फियाँ प्राप्त होंगी ।’

बीरबल का प्रस्ताव ब्राह्मण ने स्वीकार कर लिया । अगले दिन से ब्राह्मण ने भिक्षाटन करना बन्द कर दिया और बड़ी श्रद्धा भाव से गायत्री मन्त्र जाप करना प्रारम्भ कर दिया और शाम को 10 अशर्फियाँ भेंटस्वरुप लेकर अपने घर लौट आता । ब्राह्मण की सच्ची श्रद्धा व लग्न देखकर कुछ दिनों बाद बीरबल ने गायत्री मन्त्र जाप की संख्या और अशर्फियों की संख्या दोनों ही बढ़ा दीं ।

अब तो गायत्री मन्त्र की शक्ति के प्रभाव से ब्राह्मण को भूख, प्यास व शारीरिक व्याधि की तनिक भी चिन्ता नहीं रही । गायत्री मन्त्र जाप के कारण उसके चेहरे पर तेज झलकने लगा । लोगों का ध्यान ब्राह्मण की ओर आकर्षित होने लगा । दर्शनाभिलाषी उनके दर्शन कर मिठाई, फल, पैसे, कपड़े चढाने लगे । अब तो उसे बीरबल से प्राप्त होने वाली अशर्फियों की भी आवश्यकता नहीं रही । यहाँ तक कि अब तो ब्राह्मण को श्रद्धा पूर्वक चढ़ाई गई वस्तुओं का भी कोई आकर्षण नहीं रहा । बस वह सदैव मन से गायत्री जाप में लीन रहने लगा ।

ब्राह्मण सन्त के नित्य गायत्री जप की खबर चारों ओर फैलने लगी । दूरदराज से श्रद्धालु दर्शन करने आने लगे । भक्तों ने ब्राह्मण की तपस्थली में मन्दिर व आश्रम का निर्माण करा दिया । ब्राह्मण के तप की प्रसिद्धि की खबर अकबर को भी मिली । बादशाह ने भी दर्शन हेतू जाने का फैंसला लिया और वह शाही तोहफे लेकर राजसी ठाठबाट में बीरबल के साथ सन्त से मिलने चल पड़े । वहाँ पहुँचकर शाही भेंटे अर्पण कर ब्राह्मण को प्रणाम किया । ऐसे तेजोमय सन्त के दर्शनों से हर्षित हृदय सहित बादशाह बीरबल के साथ बाहर आ गए ।

तब बीरबल ने पूछा – ‘क्या आप इस सन्त को जानतें हैं ?’

अकबर ने कहा – ‘नहीं, बीरबल मैं तो इससे आज पहली बार मिला हूँ ।’

फिर बीरबल ने कहा – ‘महाराज ! आप इसे अच्छी तरह से जानते हो । यह वही भिखारी ब्राह्मण है, जिस पर आपने व्यंग्य कसकर कहा था कि ‘ये हैं तुम्हारे ब्राह्मण ! जिन्हें ब्रह्म देवता कहा जाता है ?’

आज आप स्वयं उसी ब्राह्मण के पैरों में शीश नवा कर आए हैं । अकबर के आश्चर्य की सीमा नहीं रही । बीरबल से पूछा – ‘लेकिन यह इतना बड़ा बदलाव कैसे हुआ ?’

बीरबल ने कहा – ‘महाराज ! वह मूल रुप में ब्राह्मण ही है । परिस्थितिवश वह अपने धर्म की सच्चाई व शक्तियोंं से दूर था । धर्म के एक गायत्री मन्त्र ने ब्राह्मण को साक्षात् ‘ब्रह्म’ बना दिया और कैसे बादशाह को चरणों में गिरने के लिए विवश कर दिया ।’यही ब्राह्मण आधीन मन्त्रों का प्रभाव है । यह नियम सभी ब्राह्मणों पर सामान रुप से लागू होता है । क्योंकि ब्राह्मण आसन और तप से दूर रहकर जी रहे हैं, इसीलिए पीड़ित हैं । वर्तमान में आवश्यकता है कि सभी ब्राह्मण पुनः अपने कर्म से जुड़ें, अपने संस्कारों को जानें और मानें । मूल ब्रह्मरुप में जो विलीन होने की क्षमता रखता है वही ब्राह्मण है । यदि ब्राह्मण अपने कर्मपथ पर दृढ़ता से चले तो देव शक्तियाँ उसके साथ चल पड़ती हैं ।*
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चमत्कार हुआ

*यह दिलचस्प दृश्य भारत के सर्वोच्च न्यायालय में था जहां पीठ श्रीराम जन्मभूमि के मुद्दे पर सुनवाई कर रही थी! *

  • दोनों पक्षों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील थे और अदालत को सबूत देने के लिए प्रत्येक पक्ष के अपने-अपने गवाह थे! * *जब श्री परासरन श्रीराम जन्मभूमि के रूप में अयोध्या के औचित्य को सामने रख रहे थे, तब माननीय न्यायाधीश ने हस्तक्षेप किया: *
  • उन्होंने पूछा “आप वेदों और शास्त्रों से यह साबित करने के लिए उद्धृत करते हैं कि श्री राम मौजूद थे, और अन्य प्रासंगिक मुद्दे! क्या शास्त्रों में कोई प्रमाण है जो श्री राम के जन्म स्थान को निर्दिष्ट करता है? ”*
  • गवाहों के समूह में से एक बूढ़ा सज्जन उठा। वह प्रज्ञासाक्षी (मुख्य गवाह) में से एक थे और उनके माता-पिता ने उनका नाम गिरिधर रखा था! * *उन्होंने कहा “माननीय महोदय, मैं आपसे ऋग्वेद का संदर्भ लेने का अनुरोध करता हूं!” *
  • उन्होंने अध्याय और श्लोक (श्लोक) को निर्दिष्ट किया और कहा, “वहां ऋग्वेद में इसका उल्लेख है, गैमिनीय संहिता! ये श्लोक श्री राम के जन्म स्थान तक पहुँचने के लिए सरयू नदी के तट पर एक विशिष्ट बिंदु से दिशाओं और दूरियों को निर्दिष्ट करते हैं। यदि कोई उन निर्देशों का पालन करता है, तो वह अयोध्या में एक विशिष्ट स्थान पर पहुँच जाता है! ”* *पीठ ने तत्काल सत्यापन का आदेश दिया, और यह महसूस करने के लिए किया गया कि श्री गिरिधर बहुत सटीक और सही थे! *
  • वहाँ ऋग्वेद से उनकी ओर दृष्टिगोचर होती थी ! और यह व्यक्ति स्मृति से श्लोक (श्लोक) शब्दशः उद्धृत कर रहा था! *
  • बेंच ने टिप्पणी की, “यह एक चमत्कार है जिसे हमने आज देखा है।” * *लेकिन जिस साक्षी का नाम गिरिधर रखा गया, वह बहुत ही शांत और निर्मल था, मानो सामान्य कामकाजी दिन में दफ्तर का काम हो! *न्यायाधीश द्वारा व्यक्त आश्चर्य को समझने के लिए भारतीय इतिहास में वापस जाना होगा, जिसे जल्द से जल्द ओवरहाल करने की आवश्यकता है! *
  • वर्ष 1950 था। माह जनवरी। महीने का 14 वां दिन। उत्तर प्रदेश के जौनपुर गाँव में ! मिश्र दंपत्ति – पंडित राजदेव मिश्र और शचिदेवी (यह नोट करना अच्छा है कि बच्चा जीवन में बाद में मुख्य साक्षी बन गया, श्री राम जन्मभूमि को पुनः प्राप्त करने के लिए) – अपने बच्चे के जन्म की प्रतीक्षा कर रहे थे! * *उस दिन एक बहुत ही स्वस्थ और स्वस्थ बच्चे का जन्म हुआ और उन्होंने उसका नाम गिरिधर रखा! *
  • गिरिधर मिश्रा ठीक थे, जब तक कि भाग्य ने उनके साथ क्रूर हाथ नहीं खेला, जब वे 2 महीने के थे! जिसने बदल दी मां-बाप और बच्चे की जिंदगी! *
  • एक ऐसे बच्चे की कल्पना करें जो अपने ज्ञान को प्राप्त करने और सुधारने के लिए उत्सुक था, लेकिन पढ़-लिख नहीं सकता था! पंडित राजदेव बालक के पास बैठते, और वेदों के श्लोकों का पाठ करते, प्रत्येक श्लोक में एक-एक शब्द समझाते! उन्हें यह जानकर प्रसन्नता हुई कि गिरिधर के पास एक महान पकड़, स्मृति और धारण करने की क्षमता थी, और उन्हें मौखिक रूप से सिखाए गए हर एक शब्द को याद कर सकते थे! * *जो कुछ भी ज्ञान हो सकता था, प्रदान करने के बाद, राजदेव ने अपने बेटे को रामानंद संप्रदाय के एक मठ में भर्ती कराया! *
  • उन्हें शिष्य के रूप में ग्रहण किया गया, और उन्हें एक नया नाम दिया गया – रामभद्र! * और बच्चे को एक ऐसा गुरु मिला जो उसे सिखा सके और किसी भी सामान्य इंसान की सीमा से परे अपने ज्ञान का विस्तार करने के लिए प्रोत्साहित कर सके!
  • रामभद्र ने ज्ञान के ब्रह्मांड का पता लगाने के अपने उत्साह में, कुछ प्राचीन भाषाओं सहित 22 भाषाओं को सीखा और महारत हासिल की! वह पढ़-लिख नहीं सकता था, और उसे अपनी याददाश्त और उसकी धारण शक्ति पर निर्भर रहना पड़ता था! *
  • उन्होंने शास्त्रों और आधुनिक छंदों को भी सीखा! वह संत तुलसीदास के प्रशंसक बन गए और राम चरित मानस की दुनिया की खोज की! *
  • जरा सोचो! कोई इन महाकाव्यों और शास्त्रों को पढ़ेगा, और वह उन्हें आगे की समझ और विश्लेषण के लिए अपनी स्मृति में संग्रहीत करेगा! उन्होंने अपने काम में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया, अक्सर लोगों को निर्देशित किया, और मौखिक रूप से प्रतिक्रिया प्राप्त की! *
  • 38 वर्ष की आयु में, 1988 में, उन्हें रामानंद आश्रम के चार जगद्गुरुओं में से एक जगद्गुरु रामभद्र आचार्य का ताज पहनाया गया! * *आपने इस समय तक अंदाजा लगा लिया होगा कि वह पढ़-लिख क्यों नहीं पाता था। हाँ। जब वह दो महीने का था, तब उसने अपनी आंखों की रोशनी पूरी तरह खो दी थी! * उनकी उपलब्धियों के बारे में जानना वाकई चौंका देने वाला है! *अंधा जगद्गुरु, 22 भाषाओं में महारत हासिल करने के अलावा, एक आध्यात्मिक नेता, शिक्षक, संस्कृत विद्वान, बहुभाषाविद, कवि, लेखक, पाठ टिप्पणीकार, दार्शनिक, संगीतकार, गायक, नाटककार और कहानीकार (कथा वाचक – कलाकार) के रूप में भी प्रसिद्ध हैं। ! *
  • उन्होंने गीता रामायणम, श्री भार्गव राघवीयम, अरुंधति, अष्टावक्र, काका विदुर जैसी 100 से अधिक पुस्तकें लिखी हैं! उन्होंने श्री सीताराम सुप्रभातम की रचना की!
  • एक कवि के रूप में, उन्होंने चार महाकाव्यों सहित 28 प्रसिद्ध कविताओं (संस्कृत और हिंदी) का निर्माण किया! * विभिन्न शास्त्रों पर 19 प्रसिद्ध भाष्य लिखे, जिनमें संत तुलसीदास द्वारा रामचरितमानस पर लोकप्रिय भाष्य हैं!
  • 5 संगीत एल्बमों के संगीतकार! * और 9 बहुत लोकप्रिय प्रवचन! विकलांगों के लिए जगद्गुरु रामभद्राचार्य विश्वविद्यालय के संस्थापक! तुलसी पीठ के आजीवन कुलाधिपति (संत तुलसीदास के नाम पर)! *उन्हें 2015 में पद्म विभूषण से अलंकृत किया गया था! *
  • मैं विस्मय से भर गया क्योंकि मैं उसके बारे में जानकारी एकत्र कर रहा था! एक बच्चा जो अंधा हो गया, और ज्ञान और शिक्षा के शिखर तक पहुँचने के लिए और उसके प्रचार-प्रसार के लिए संघर्ष किया! *
  • एक और सभी को प्रेरित करने के लिए क्या ही अद्भुत उदाहरण! मुझे बहुत छोटा और महत्वहीन लगा! मैं इसे आप सभी के साथ साझा कर रहा हूं क्योंकि इसने मुझे चौंका दिया है! * *हालांकि, एक नीरस विचार है! हम में से कितने लोग इस महान अंधे व्यक्ति के बारे में जानते थे? *
  • जबकि हेलेन केलर को एक अंधे व्यक्ति के रूप में उनकी उपलब्धियों के लिए प्रचारित किया गया था, और उन्हें सबक सिखाया जाता है, जगद्गुरु रामभद्र आचार्य हमारी शिक्षा प्रणाली में एक गैर इकाई हैं। हम ऐसे ही हैं! *
  • कोई आश्चर्य नहीं कि न्यायाधीश ने टिप्पणी की “मैंने अपने न्यायालय में एक चमत्कार देखा!”
  • यह लेख लंबा है, लेकिन 10 बार पढ़ने लायक है! कृपया इसे पढ़ें और अपने नेटवर्क पर शेयर करें। *