Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक, रामायण - Ramayan

पवित्र भाव 🌹🌹🌹🙏🙏🙏
एक बार भारत सरकार ने बाँध बनाने का ठेका इंग्लैंड की कम्पनी को दे दिया , बाँध सफलतापूर्वक लगभग तैयार हो चुका था , सिर्फ कुछ काम ही बाकी था , परीक्षण का दौर चल रहाथा कि , एक रात अचानक ही मूसलाधार बारिश आ गई , जो रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी ।
इस कारण से बाँध मे जल का स्तर बढना शुरु हो गया , बाँध अभी पूरे तरह से सुदृढ़ नहीं हुआ था , बाँध की सुरक्षा पर प्राकृतिक खतरा देखकर , अग्रेज इंजीनियर परेशान हो रहा था कि बाँ अगर टूट गया तो मुझे जेल हो जायेगी , मेरे देश की बदनामी होगी आदि आदि ।
रात हो गई बारिश नहीं रुकी और बाँध से पानी रिसने लगा ।
🙏🚩सभी मजदूर जो भारतीय थे बाँध के निकट बनी अपनी अस्थायी झोपड़ियों मे चले गये थे ।
🙏🚩हर तरफ पानी ही पानी अंधेरा और कीचड़ , अंग्रेज इंजीनियर बेचैनी से इधर – उधर अहसहाय सा हुआ भटक रहा था , जब कुछ नहीं सूझा तो वह उन्हीं मजदूरों की कुटिया की तरफ गया ।
🙏🚩 वहां उसने देखा कि एक मजदूर परिवार तस्वीर के आगे दिया रखकर कुछ गा रहे हैं ।
🙏🚩अंग्रेज इंजीनियर ने उनसे लाचार अवस्था का जिक्र किया , और पूछा कि वह इस तस्वीर के सामने बैठ कर क्या कर रहे हैं ।
🙏🚩मजदूरों ने बताया कि वह सब अपने भगवान श्री राम सीता एवं लक्ष्मण की पूजा कर रहे हैं , आप भी इन्हीं राम को , राम राम राम , कहकर पुकारो यही मदद कर सकते हैं
🙏🚩अंग्रेज ने कहा कि बाँध कभी भी टूट सकता है , मजदूरों ने कहा हम तो प्रार्थना कर हरे हैं , तुम भी कर लो , अब तो हमारे राम ही रक्षा करेंगे ।
🙏🚩 मध्य रात्रि का समय , घनघोर अंधेरा था , वर्षा रुकने का नाम नहीं ले रही थी , अंग्रेज इंजीनियर लाचार सा हो , मन ही मन में राम राम राम राम बोलता हुआ रक्षा करो मेरी लाज रख लो कहता , अपनी एवं बाँध के आसपास के क्षेत्रों एवं जान माल की समपूर्ण बरबादी निश्चित जानकर बाँध की दीवार के उपर यह सोच आकर खडा हो गया , कि मरना तो है ही बाँध के साथ पानी मे डूबकर मर जाऊं कुछ लाज तो बच जायेगी ।
🙏🚩इतने मे ही अंग्रेज इंजीनियर ने देखा कि नीचे बाँध की दिवार के पास दो बच्चे बांध की मरम्मत कर रहे हैं , उसने अवाज लगाई कि बाहर आ जाओ मर जाओगे , परन्तु वह दोनों बालक मिट्टी का लेप बांध से पानी रिसने की जगह पर लगाते रहे । 🌹🌹
🙏🚩 इंजीनियर दौड कर मजदूरों के पास पहुंचा और उसने वह तसवीर फिर से देखी और कहा यह दोनों धनुष धारी धनुष लिये बाँध मे खडे दिवार पर मिट्टी लगाकर रिसता पानी को रोक रहे हैं ।
🙏🚩परन्तु , वहां आकर मजदूरों को तो कोई बालक नजर नहीं आये , अंग्रेज इंजीनियर कहता रहा कि दोनों वहां पर धनुष लिये खडे हैं , देखो यहीं तो खडे हैं , परन्तु उनको भगवान नजर नहीं आये , मजदूर समझ गये कि आज बाँध की रक्षा स्वयं भगवान ने ही आकर करी है , धन्य है यह अंग्रेज इंजीनियर जिसको भगवान के दर्शन हुये , सब अंग्रेज इंजीनियर के पैरों में दंडवत पड़ गये ।
🏵️ ❤️अंग्रेज इंजीनियर के दिमाग पर इस घटना का इतना प्रभाव पडा़ कि उसने अपने देश की शान शौकत भरी जिन्दगी का त्याग कर दिया और हिन्दु धर्म अपना कर संन्यासी बनकर , सन्यास जीवन के सभी कर्तव्यों को निभाया , भगवान राम के चरणों में अपना पूरा जीवन अयोध्या मे रह कर सर्मपित कर दिया ।❤️🏵️
( स्त्रोत : कल्याण पुस्तिका , गीताप्रेस गोरखपुर )
( सच्ची घटना पर आधारित )
🙏 कहने का तात्पर्य है कि भगवान को सच्चे भाव के साथ पुकारा जाये और साथ ही मान लिया जाये कि वह ही सब करेंगे , तो वह अपने भक्तों की रक्षा के लिये स्वयं चलकर आ जाते हैं , हमारे धार्मिक ग्रंथों मे ऐसे अनेकों सच्चे किस्से पढने को मिल जायेंगे ।🙏
🙏🍂आइयें आज की इस भयंकर महामारी के कठिन समय मे हम सब भी दिल से भाव के साथ अपने अपने इष्टदेव का जप कर जीवन सार्थक करें ! 🍂🙏
🙏 🏹 जय श्री राम जय श्री राम जय श्री राम 🏹🙏

Posted in राजनीति भारत की - Rajniti Bharat ki

जब एक आतंकवादी, यासिर अराफात ने इजराइल के विरुद्ध फिलिस्तीन राष्ट्र की घोषणा की, तो फिलिस्तीन को सबसे पहले मान्यता देने वाला देश कौन था❓

सउदी अरब? – जी नहीं,
पाकिस्तान? – जी नहीं,
अफगानिस्तान? – जी नहीं,
इराक? – जी नहीं,
तुर्की? – जी नहीं,
सोचिये फिर किस देश ने फिलिस्तीन को सबसे पहले मान्यता दी होगी❓

सेकुलर भारत! जी हाँ!

इंदिरा गाँधी ने मुस्लिम तुष्टीकरण के लिए, सबसे पहले फिलिस्तीन को मान्यता दी और यासिर अराफात जैसे आतंकवादी को “नेहरू शांति पुरस्कार” और राजीव गाँधी ने उसको “इंदिरा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय शांति पुरस्कार” दिए।

और तो और
राजीव गाँधी ने तो उसको पूरे विश्व में घूमने के लिए बोइंग ७४७ गिफ्ट में दिया था।

अब आगे जानिए…

वही खुराफात, सॉरी अराफात, ने OIC (Organisation of Islamic Countries) में काश्मीर को “पाकिस्तान का अभिन्न भाग” बताया और उस आतंकवादी ने बोला कि “पाकिस्तान जब भी चाहे तब मेरे लड़ाके काश्मीर की आजादी के लिए लड़ेंगे।”

और जी हाँ, इतना ही नहीं, जिस शख्स को दुनिया के १०३ देश आतंकवादी घोषित किये हों, और जिसने ८ विमानों का अपहरण किया हो, और जिसने दो हजार निर्दोष लोगों को मार डाला हो, ऐसे आतंकवादी यासिर अराफात को सबसे पहले भारत ने किसी अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा। जी हाँ।

इंदिरा गाँधी ने उसे “नेहरू शांति पुरस्कार” दिया, जिसमें एक करोड़ रुपये नगद और २०० ग्राम सोने से बना एक शील्ड होता है।

अब आप सोचिये, १९८३ में, यानि आज से ३७ वर्षों पहले, एक करोड़ रुपये की आज वैल्यू क्या होगी। (देढ़ अरब से भी ऊपर)

फिर राजीव गाँधी ने उसे “इंदिरा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय शांति पुरस्कार” दिया।

फिर यही यासिर अराफात काश्मीर के मामले पर खुलकर पाकिस्तान के साथ हो गया, और इसने घूम घूमकर पूरे इस्लामिक देशों में कहा, कि फिलिस्तीन और काश्मीर दोनों जगहों के मुसलमान गैर-मुसलमानों के हाथों मारे जा रहे हैं, इसलिए पूरे मुस्लिम जगत को इन दोनों मामलों पर एकजुट होना चाहिए।

अब, वो कांग्रेस पार्टी मोदी जी को सिखा रही है, कि “विदेश नीति कैसे की जाती है।”

— साभार

Posted in हिन्दू पतन

यहूदी इजरायली और विश्व के मुसलमान

बहुत कम लोग शायद जानते हैं कि
इस समय विश्व का एकलौता यहूदी देश इजरायल अपना
“50 वाँ विजयी दिवस”
मना रहा है।
मगर 51 साल पहले इसी दिन हुआ क्या था ?

भारत के हिन्दूवादियों और सेक्युलरों की
आँखें खोलने वाला युद्ध है।

जिस तरह 1947 में पाकिस्तान
भारत से अलग हुआ था
उसी तरह से इजरायल
फिलिस्तीन से अलग हुआ था।

बस अन्तर इतना था कि
पाकिस्तान
मुसलमानों के देशद्रोह का नतीजा था, और
इजरायल यहूदियों के अधिकारों का।
क्योंकि
फिलिस्तीन तो क्या पूरा मध्य एशिया
कभी यहूदियों का था
मगर इस्लाम फैलने के साथ साथ
इजरायल सिमटता गया।

1947 में इजरायल बना और
4 जून 1967 को
मिस्र, सीरिया, जॉर्डन, इराक, लेबनॉन, अल्जीरिया, कुवैत, लीबिया, मोरक्को, पाकिस्तान और ट्यूनीशिया

इन सभी मुस्लिम देशों ने मिलकर
इजरायल पर हमला कर दिया।

इजरायल में उस समय 20% मुसलमान थे।
ये 20 सालों से इजरायल को
बहुत प्यार कर रहे थे।

मगर जैसे ही उन्हें पता चला कि
ख़ुदा ने इजरायल को मिटाने के लिये
इराक और कुवैत से फौज भेजी है
इन्होंने इजरायल में
दङ्गे, फसाद शुरू कर दिए और
गृहयुध्द की हालत बना डाली।

इजरायल बेचारा बुरी तरह फॅस गया
क्योंकि उसे बने 20 साल भी पूरे नहीं हुए थे
सेना पर्याप्त नहीं थी और
इजरायल के अन्दर बैठे मुसलमान
ज्यादा उत्साहित थे,
इसलिए पुलिस प्रशासन उनसे भिड़ने में व्यस्त था।

बेचारा अकेला इजरायल फिर भी युद्ध में कूदा।
इजरायल के मुसलमानों ने पहले दिन
एक व्यापारिक इमारत में बम धमाका किया।
जवाब में
इजरायल रोया नहीं,
बल्कि उसने सीधे ग्रेनेड फेंक दिए।
अब यहूदियों का सब्र टूट चुका था
उनके नागरिक भी अब इस लड़ाई में कूद पड़े

शुरू के चार दिन
इजरायल सरकार का ध्यान सिर्फ
इजरायल के मुसलमानों पर था।
हालाँकि इस बीच उन्होंने

इराक और लीबिया की सेना को पीछे धकेल दिया।

बाहर सेना लड़ रही थी
और
अन्दर नागरिक।

देशभक्ति और एकता का
ऐसा नज़ारा
इतिहास में कभी नहीं देखा।

4 दिनों में यहूदियों ने
अपने घर के भेदियों को
पूरी तरह कुचलकर
जन्नत की ओर रवाना कर दिया।

अब उनके नागरिक सेना का हाथ बॅटाने
सीमा पर आ गए और
छठवाॅ दिन पूरा होते होते
सारे इस्लामिक देश
पीठ दिखाकर भाग चुके थे।

इजरायल ये युद्ध जीत चुका था।

अब इस युद्ध में
भारत के लिये हज़ारों सबक छुपे हैं

ये युद्ध 6 दिन चला।

इजरायल को 4 दिन
अपने अन्दर के मुसलमानों पर काबू पाने में
लग गये,
जबकि
बाहर वालों को उसने 2 दिन में
कूड़े में फेंक दिया।

इजरायल के युद्ध से 2 साल पहले
1965 में भारत ने पाकिस्तान से युद्ध किया था।

जिसमें भारत के मुस्लिम रेजीमेण्ट के
मुस्लिम सैनिकों ने पाकिस्तान के खिलाफ
युद्ध लड़ने से मना कर दिया था ।

भारत और इजरायल के मुसलमानों की
मानसिकता की तुलना

मगर अन्तर सिर्फ इतना था की
भारत में मुसलमान दङ्गे करने की हिम्मत
ना जुटा सके
क्योंकि उनकी आबादी 1950 में तब
मात्र 6% थी,
जबकि इजरायल में यही आबादी
20% हो गयी थी,
इसीलिए वहाँ दङ्गे कर लिए।

अब भारत में ये आबादी
6% नहीं है,
बल्कि
20% है..!

इस युद्ध का दूसरा सन्देश यहूदी लोग
मुसलमानों का असली रङ्ग समझ गए।

इजरायल ने मुसलमानों पर सीधे
कड़े कानून थोप दिए।

देशद्रोह की सज़ा
उन्हें मौत के रूप में दी थी।

यहूदियों ने यह बताया है कि

युद्ध में विजय
आपकी आबादी की मोहताज नहीं है
बल्कि
बाहर और भीतर से ही
आपकी देशभक्ति की एकता में है।