Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

♦️♦️♦️ रात्रि कहांनी ♦️♦️♦️

*👉🏿सद्व्यवहार का जादू 🏵️
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किसी गाँव में एक चोर रहता था।

एक बार उसे कई दिनों तक चोरी करने का अवसर ही नहीं मिला, जिससे उसके घर में खाने के लाले पड़ गये।

अब मरता क्या न करता, वह रात्रि के लगभग बारह बजे गाँव के बाहर बनी एक साधु की कुटिया में घुस गया।

वह जानता था कि साधु बड़े त्यागी हैं, अपने पास कुछ नहीं रखते फिर भी सोचा, ‘खाने पीने को ही कुछ मिल जायेगा। तो एक दो दिन का गुजारा चल जायेगा।’

जब चोर कुटिया में प्रवेश कर रहे थे, संयोगवश उसी समय साधु बाबा ध्यान से उठकर लघुशंका के निमित्त बाहर निकले।

चोर से उनका सामना हो गया। साधु उसे देखकर पहचान गये क्योंकि पहले कई बार देखा था, पर साधु यह नहीं जानते थे कि वह चोर है।

उन्हें आश्चर्य हुआ कि यह आधी रात को यहाँ क्यों आया !

साधु ने बड़े प्रेम से पूछाः “कहो बालक ! आधी रात को कैसे कष्ट किया ? कुछ काम है क्या ?”

चोर बोलाः “महाराज ! मैं दिन भर का भूखा हूँ।”

साधुः “ठीक है, आओ बैठो। मैंने शाम को धूनी में कुछ शकरकंद डाले थे, वे भुन गये होंगे, निकाल देता हूँ। तुम्हारा पेट भर जायेगा।

शाम को आ गये होते तो जो था हम दोनों मिलकर खा लेते। पेट का क्या है बेटा ! अगर मन में संतोष हो तो जितना मिले उसमें ही मनुष्य खुश रह सकता है। ‘यथा लाभ संतोष’ यही तो है।”

साधु ने दीपक जलाया। चोर को बैठने के लिए आसन दिया, पानी दिया और एक पत्ते पर भुने हुए शकरकंद रख दिये।

फिर पास में बैठकर उसे इस तरह खिलाया, जैसे कोई माँ अपने बच्चे को खिलाती है।

साधु बाबा के सद्व्यवहार से चोर निहाल हो गया, सोचने लगा, ‘एक मैं हूँ और एक ये बाबा हैं।

मैं चोरी करने आया और ये इतने प्यार से खिला रहे हैं ! मनुष्य ये भी हैं और मैं भी हूँ।

यह भी सच कहा हैः आदमी-आदमी में अंतर, कोई हीरा कोई कंकर। मैं तो इनके सामने कंकर से भी बदतर हूँ।’

मनुष्य में बुरी के साथ भली वृत्तियाँ भी रहती हैं, जो समय पाकर जाग उठती हैं।

जैसे उचित खाद-पानी पाकर बीज पनप जाता है, वैसे ही संत का संग पाकर मनुष्य की सदवृत्तियाँ लहलहा उठती हैं।

चोर के मन के सारे कुसंस्कार हवा हो गये। उसे संत के दर्शन, सान्निध्य और अमृतवर्षा दृष्टि का लाभ मिला।

एक घड़ी आधी घड़ी, आधी में पुनि आध।
तुलसी संगत साध की, हरे कोटि अपराध।।

उन ब्रह्मनिष्ठ साधुपुरुष के आधे घंटे के समागम से चोर के कितने ही मलिन संस्कार नष्ट हो गये।

साधु के सामने अपना अपराध कबूल करने को उसका मन उतावला हो उठा।

फिर उसे लगा कि ‘साधु बाबा को पता चलेगा कि मैं चोरी की नियत से आया था तो उनकी नजर में मेरी क्या इज्जत रह जायेगी !

क्या सोचेंगे बाबा कि कैसा पतित प्राणी है, जो मुझ संत के यहाँ चोरी करने आया !’

लेकिन फिर सोचा, ‘साधु मन में चाहे जो समझें, मैं तो इनके सामने अपना अपराध स्वीकार करके प्रायश्चित करूँगा।

इतने दयालू महापुरुष हैं, ये मेरा अपराध अवश्य क्षमा कर देंगे।’ संत के सामने प्रायश्चित करने से सारे पाप जलकर राख हो जाते हैं।

उसका भोजन पूरा होने के बाद साधु ने कहाः “बेटा ! अब इतनी रात में तुम कहाँ जाओगे, मेरे पास एक चटाई है, इसे ले लो और आराम से यहाँ सो जाओ। सुबह चले जाना।”

नेकी की मार से चोर दबा जा रहा था। वह साधु के पैरों पर गिर पड़ा और फूट-फूट कर रोने लगा।

साधु समझ न सके कि यह क्या हुआ ! साधु ने उसे प्रेमपूर्वक उठाया, प्रेम से सिर पर हाथ फेरते हुए पूछाः “बेटा ! क्या हुआ ?”

रोते-रोते चोर का गला रूँध गया। उसने बड़ी कठिनाई से अपने को सँभालकर कहाः

“महाराज ! मैं बड़ा अपराधी हूँ।”

साधु बोलेः “बेटा ! भगवान तो सबके अपराध क्षमा करने वाले हैं। उनकी शरण में जाने से वे बड़े-से-बड़े अपराध क्षमा कर देते हैं। तू उन्हीं की शरण में जा।”

चोरः “महाराज ! मेरे जैसे पापी का उद्धार नहीं हो सकता।”

साधुः “अरे पगले ! भगवान ने कहा हैः यदि कोई अतिशय दुराचारी भी अनन्य भाव से मेरा भक्त होकर मुझको भजता है तो वह साधु ही मानने योग्य है।”

“नहीं महाराज ! मैंने बड़ी चोरियाँ की हैं। आज भी मैं भूख से व्याकुल होकर आपके यहाँ चोरी करने आया था लेकिन आपके सदव्यवहार ने तो मेरा जीवन ही पलट दिया।

आज मैं आपके सामने कसम खाता हूँ कि आगे कभी चोरी नहीं करूँगा, किसी जीव को नहीं सताऊँगा।

आप मुझे अपनी शरण में लेकर अपना शिष्य बना लीजिये।”

साधु के प्यार के जादू ने चोर को साधु बना दिया।

उसने अपना पूरा जीवन उन साधु के चरणों में सदा के समर्पित करके अमूल्य मानव जीवन को अमूल्य-से-अमूल्य परमात्मा को पाने के रास्ते लगा दिया।

महापुरुषों की सीख है कि “आप सबसे आत्मवत् व्यवहार करें क्योंकि सुखी जीवन के लिए विशुद्ध निःस्वार्थ प्रेम ही असली खुराक है।

संसार इसी की भूख से मर रहा है, अतः प्रेम का वितरण करो। अपने हृदय के आत्मिक प्रेम को हृदय में ही मत छिपा रखो।

उदारता के साथ उसे बाँटो, जगत का बहुत-सा दुःख दूर हो जायेगा।”

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Posted in राजनीति भारत की - Rajniti Bharat ki

वर्ष 1980
इंदिरा गांधी की वापसी हुई थी ।आते ही उन्होंने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री श्री शरद पवार को चलता किया और वहां के नये मुख्यमंत्री बने श्री अब्दुल रहमान अंतुले। अंतुले इंदिरा गांधी के कट्टर समर्थक थे , इमरजेंसी में इन्होंने अपनी नेता का साथ दिया था और कांग्रेस के विभाजन के बाद इंदिरा कांग्रेस अंतुले साहब ही मैनेज करते थे । मराठा लौबी नाराज थी मगर इंदिरा गांधी को इन सब की कभी परवाह नहीं थी । सरकार चलने लगी।
उस समय देश के सबसे प्रतिष्ठित अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस के संपादक थे श्री अरूण शौरी । एक दिन जब शौरी साहब अपने चैंबर में बैठे थे तो उनसे मिलने एक नामी डाक्टर साहब आए। उन्होंने बताया कि वे एक अस्पताल खोलना चाहते हैं मगर फाइल सी एम के यहां अटकी पड़ी है । कारण पता चला कि 5 करोड़ रूपए एक ट्रस्ट को दान देने पर ही मंजूरी मिलेगी। और कुछ अन्य लोगों ने भी बताया कि बिना इसके कोई काम नहीं होता है ।
ट्रस्ट का नाम था इंदिरा गांधी प्रतिभा प्रतिष्ठान । अरूण शौरी ने पहली बार इस ट्रस्ट का नाम सुना था । उन्होंने डाक्टर साहब को विदा किया और अपने सहकर्मी गोविंद तलवलकर को इसके बारे में पता लगाने को कहा । खोजबीन शुरू हुई मगर किसी को पता नहीं था कि यह ट्रस्ट कहां है। फिर एक दिन सचिवालय बीट के एक पत्रकार ने पता कर ही लिया कि इस ट्रस्ट का कार्यालय कोयना बांध पुनर्वास औफिस के एक कमरे में है ।
खोजी टीम वहां पहुंची तो पता चला कि एक कमरे में दो लोग बैठते हैं ,एक कैशियर ,एक टाइपिस्ट बस । बाहर में एक छोटा सा बोर्ड है जो दिखता भी नहीं
यह भी पता चला कि दोनों स्टाफ लंच के लिए एक घंटे बाहर जाते हैं । बस उसी समय खोजी पत्रकार उस कमरे में घुसे । वहां उन्होंने पाया कि ट्रस्ट के नाम से करीब 102 चेक पड़े हैं जो विभिन्न श्रोतों से प्राप्त हुए हैं ।एक रजिस्टर में उनकी एंट्री भी है। सारे चेक नंबर और बैंक का नाम नोट कर लिया । समय हो चुका था इसलिए उस दिन ये लोग वापस आ गए।
जाकर शौरी साहब को बता दिया लेकिन वे खुश नहीं हुए ।उनका कहना था कि इन सब की फोटो कॉपी चाहिए ।
दूसरे दिन ये कोयना पुनर्वास औफिस गये और खुद को आडिट टीम का बताकर कुछ डाक्यूमेंट फोटो कौपी करने का जुगाड कर लिया । फिर लंच ब्रेक में रजिस्टर और चेक की फोटो कॉपी हासिल हो गई
अब भी अरुण शौरी खुश नहीं थे ।उनका मानना था कि चेक से कैसे प्रूफ होगा कि यह किसी काम के एवज में दी गई है ? तब नई सरकार में शंटिंग में पड़े एक वरीय आई ए एस अफसर की मदद ली गई। उन्होंने बताया कि जिस जिस तारीख का जिस बिजनेस मैन का चेक है उससे संबंधित कोई न कोई निर्णय कैबिनेट में पारित हुआ है । होटल के लिए जमीन दिए जाने के दिन होटल मालिक का चेक । बीयर बार एसोसिएशन का चेक और उसी दिन बीयर बार में डांस देखने की स्वीकृति । कड़ी से कड़ी मिलती गई । उस समय सीमेंट और चीनी का राशनिंग था। ये दोनों परमिट पर मिलते थे । सीमेंट और चीनी को फ्री सेल में बेचने का पारी पारी से कंपनियों को छूट मिलता था ।यही सबसे बड़ा घोटाला था। जिस कंपनी ने पैसे दिए उसे लगातार छूट । जिसने नहीं दिए उस की राशनिंग।
अब न्यूज बनाने की बारी थी। संपादक खुद रात में 11 बजे कंपोज करने बैठे ।उन्हें डर था कि लिक न हो जाए ।
और बात लिक हो गई। अंतुले साहब का फोन इंडियन एक्सप्रेस के मालिक श्री रामनाथ गोयनका को आया। उन्होंने साफ-साफ कह दिया कि मैं संपादकीय मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं करता और फोन रख दिया।
दूसरे दिन न्यूज छपा .. इंदिरा गांधी के नाम पर व्यापार ।
हंगामा हो गया । संसद में सवाल उठा तब वित्त मंत्री आर वेंकटरमण ने कहा कि इंदिरा गांधी को ऐसे किसी ट्रष्ट की जानकारी नहीं है
दूसरे दिन न्यूज छपा… झूठे हैं आप वित्त मंत्री जी और साथ में ट्रस्ट के उद्घाटन समारोह की तस्वीर भी छाप दी गई जिसमें इंदिरा गांधी भी उपस्थित थीं।
हंगामा इतना बढ़ा कि अंतुले साहब बर्खास्त हो गये ।
बताया जाता है कि मृणाल गोरे ने इस पर मुकदमा दायर कर दिया था और डर था कि इंदिरा गांधी भी न फंस जाएं।
इसलिए अंतुले को बर्खास्त कर दिया गया।
यह खोजी पत्रकारिता कै स्वर्णिम काल की अनूठी मिसाल है।

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“971 करोड़ का राजमहल” चुभ रहा है?


बहुत पीड़ा हो रही है न?


एक थे ओशो … अमेरिकियों पर उनका जादू ऐसा छाया कि एक समय अमेरिकी सरकार से जमीन खरीद कर एक नया शहर ही बसा दिया उन्होंने ..

‘रजनीशपुरम’ वही जिससे अमेरिका की आध्यात्मिक लॉबी की फटती थी.

ओशो के पास रोल्स रायस कारों का लंबा जखीरा था, करीब 90 … हालांकि कुछ रिपोर्ट में दावा किया जाता है कि 93 थी और कुछ 100 का भी दावा करते थे.

खैर, मसला यह था कि एक आध्यात्मिक गुरु के पास महँगी कारों का इतना लग्जूरियस काफिला क्यों है… जो बहुत से लोग जो ओशो को रत्ती भर भी नजदीक से नहीं जानते थे, उनकी ईर्ष्या का एक बहुत बड़ा कारण उनके पास रोल्स रायस कारों की भीड़ भी थी. यह मानव स्वभाव है कई बार हम खूबसूरत और बेशकीमती चीजों से स्वतः ही ईर्ष्या भाव पाल लेते हैं … यह एक तरह का निर्दोष मिथ्यावाद है.

हुआ यूं कि एक पहुंचे हुए व्यक्ति ने ओशो को पत्र लिखा कि वह उनसे मिलना चाहता है …. ओशो हर खत का जवाब देते थे, तो उन्होंने उस व्यक्ति को किसी रोज उनसे मिलने का लिखित निमंत्रण भेज दिया कि वह आ सकता है.

तय दिन पर वह व्यक्ति पहुंचा…. मजमा लगा हुआ था और ओशो जब अपनी रोज की चर्चाओं से निवृत हुए तब वह व्यक्ति अपनी जगह से उठा और उसने पूछा:

“आप स्वयं को एक आध्यात्मिक गुरु कहते हैं “

“आप एक ऐसी डेमोग्राफी से बिलॉन्ग करते हैं, जहां करोड़ों लोग रोज रात को बिना खाए सो जाते हैं “

” लाखों लोगों के सर पर छत नहीं है शिक्षा नहीं है उनके स्वास्थ्य की व्यवस्था नहीं है …. फिर भी आपके पास सैकड़ों महंगी गाड़ियों का काफिला है ….. आपको नहीं लगता यह देश की गरीब जनता का मजाक उड़ाने जैसा है “

एक सांस में उस व्यक्ति ने अपने सारे सवाल पूछ लिए, जो सवाल कम, आरोप और ताना ज्यादा थे.

ओशो ने इशारे से पूछा कि क्या तुम्हारे सवाल समाप्त हो गए ?

उस व्यक्ति ने सहमति में अपनी गर्दन हिलाई और भीड़ से किनारे खड़ा हो गया, पूरे आत्मविश्वास के साथ, जैसे उसने ओशो को निरुत्तर कर दिया हो.

ओशो ने कहना शुरू किया:

सरकारें प्रयास कर रही है, संस्थाएं प्रयास कर रही हैं …लोग स्वयं भी प्रार्थना कर रहे हैं …मगर परिणाम क्या है?

परिणाम है दीनता ..गरीबी …भुखमरी और लोग इस तरह सोचते हैं जैसे यह सारी जिम्मेदारी किसी और की है.

उन्होंने उस व्यक्ति की ओर इशारा करके कहा इन्होंने मुझे पत्र में लिखा था कि आप Rolls से चलते हैं …अगर इसे बेच दें और गरीबों में बांट दें तो कितना अच्छा हो …कितने जरूरतमंदों का पेट भर जाएगा …कितनों के तन पर वस्त्र आ जाएंगे.

उन्होंने उसी व्यक्ति से पूछा कि कारों को बेचकर कितना मिलेगा…. 70 करोड़ जरूरतमंद हैं देश में… अब क्योंकि तुम आ गए हो इसलिए अपना हिस्सा तो अभी लेते जाओ …. पांच पैसा भी नहीं पड़ेगा तुम्हारे हिस्से में. बाकी जो जरूरतमंद आएंगे हम उनको देते जाएंगे.

लेकिन मजा ऐसा है कि जब मैं Rolls Royce में नहीं चल रहा था तब भी जरूरतमंद इतने ही थे, मैं पैदल चलता था तब भी इतने ही थे.

कारों को बेच देने का आईडिया तुम्हारी छुद्र सोच है, तुम्हारा मस्तिष्क गरीबों की पीड़ा से नहीं, तुम्हारा ह्रदय इन कारों के प्रति ईर्ष्या से भरा हुआ है.

ओशो ने पूछा कि तुम ही बताओ तुमने जरूरतमंदों के लिए क्या किया? तुमने अपनी कार बेची? साइकिल बेची? तुमने अपना मकान बेचा? अपनी दुकान बेची?
तुम आखिर ऐसा करोगे ही क्यों?

आखिर जरूरतमंद अपने लिए क्या कर रहे हैं?

जरूरतमंदों का काम एक ही है कि वह लगातार जरूरतें पैदा करते रहें. देश के पास संसाधन कितना है, इसकी चिंता और फिक्र किए बगैर … देख लेना यह जरूरतमंद किसी दिन सरकार को इतना परेशान कर देंगे कि उसे एक या दो बच्चे पैदा होने जैसा कानून बनाना पड़ेगा.

लगातार जरूरतें पैदा करना देश के ऊपर उपकार जैसा नहीं है. आखिर तुम भी यहां तक जहाज के पैसे खर्च करके आए होगे ….यही पैसा तुम किसी जरूरतमंद को दे देते. उसका बड़ा उपकार होता. यह जो महंगे कपड़े तुमने पहने हैं इन्हें भी उतार कर यही किसी को दान करते चले जाओ ….. हजारों रुपए की तो तुम्हारी यह चमचमाती घड़ी ही होगी

वह आदमी मुड़ा और भाग खड़ा हुआ


सरकार ने नया संसद भवन बनाया है

इतनी बड़ी वाली अर्थव्यवस्था वाली सरकार के लिए 971 करोड रुपए कोई बहुत बड़ी बात नहीं है. इससे ज्यादा का तो पुरानी सरकारों के बागड़ बिल्लो ने घोटाला करके माल दबा रखा होगा.

घोटाले का माल दिखता नहीं, इसलिए तुम सवाल नहीं करते हो. संसद भवन दिखता है इसलिए तुम सवाल करने आ जाते हो.

देश का संसद भवन 135 करोड़ लोगों की संवैधानिक आस्था का प्रतीक है, हमारी सबसे बड़ी पंचायत है वह. उसको बनाने में सरकार ने बजट तय किया होगा. वही बजट, जिसमें से तुम्हारे घर का 12000 वाला शौचालय बना होगा.

लोगों की जरूरतें और समस्याएं कभी समाप्त नहीं होने वाली हैं. नया संसद भवन बनने से सैकड़ों साल पहले भी वह समस्याएं थी और हो सकता है आगे भी रहे. शत प्रतिशत बहुमत वाली सरकार भी इस बात की गारंटी नहीं दे सकती कि वह सारी समस्याएं समाप्त कर देंगी. समाधान एक सतत प्रक्रिया है और उसमें वक्त लगता है.

बहुत हद तक हुआ है ….और आगे अभी होना है.

नया संसद भवन फिजूलखर्ची नहीं है.

उसमें आम हिंदुस्तानी के मात्र ₹6 लगे हैं.

इतने में तो रजनीगंधा और तुलसी भी नहीं आती है.

उसको राजमहल कहकर ताने मत मारो भैया

जय श्री राम🙏

  • भारती शर्मा