“अनोखा हनीमून….
रमेश जी के सबसे छोटे बेटे मोहन का विवाह धूमधाम से सम्पन्न हो गया था…..रमेशबाबू और सुशीला देवी को चार संताने थी….तीन बेटियां और चौथे में सबसे छोटा पुत्र मोहन….
रमेश बाबू जब करीब तीस वर्ष पूर्व इस शहर आये थे तो उन्होंने सड़क किनारे साप्ताहिक बाज़ार में रेडीमेड कपड़े बेचने का काम शुरू किया था….
एक कमरे का घर… उसीमे किचन ,बैडरूम और दुकान का सामान भी…..बेहद तकलीफ भरे जाने कितने वर्ष गुजारे थे उनदोनो ने….
किंतु कठोर परिश्रम और बच्चो को बेहतर जीवन देने की ललक की वजह से वो हर मुश्किल से लड़ते हुए आगे बढ़ते चले गए थे….
आज शहर के मुख्य चौराहे पर उनकी मशहूर रेडीमेड कपड़ो और साड़ियों का शोरूम था….
अपना बड़ा सा घर था ,गाड़ी घोड़ा नोकर चाकर सबकुछ था….फिर भी रमेशबाबू और सुशीला देवी एक एक पैसा बस बच्चो पे खर्च किया करते थे….खुद पे खर्च करना तो जैसे कभी उन्हें आया ही नही….
चारो बच्चो की शिक्षा और पालन में कोई कमी नही छोड़ी थी उन्होंने….
फिर तीनो पुत्रियों का संस्कारी और सम्पन्न घरों में विवाह किया….और अब मोहन का विवाह भी हो गया था….
मोहन के लिए उन्होंने बचपन के मित्र और सरकारी स्कूल के चपरासी हरिगोपाल की पुत्री सुधा को बहुत पहले ही चुना था…..
मोहन भी सुधा को जीवनसाथी के रुप मे पाकर बहुत खुश था…..
विवाह की भागम भाग और मेहमानों की विदाई के बाद आज पहली बार पूरा परिवार एक साथ खाने बैठा था….
तीनो बेटियां अभी कुछ दिन मायके रुकने वाली थी….
सुधा छोटी ननद के साथ मिलकर सबको परोस रही थी….
“सुधा बिटिया और मोहन….. अब तुम दोनों सप्ताह दस दिन के लिए कही घूम आओ….
तुम दोनों का दाम्पत्य जीवन आरम्भ हो रहा है…
विवाह के उपरांत मनुष्य का एक नवजन्म होता है ऐसे में तुम दोनों कुछ दिन किसी ठंडे और हरे भरे इलाके में बिता आओ ताकि दाम्पत्य जीवन मे हमेशा ठंडक और हरियाली बनी रहे…
रमेश बाबू ने भोजन के पश्चात इलायची का दाना मुहं में रखते हुए कहा…..
“तुम्हारे बाबूजी ठीक कह रहे है बेटा…..
दुकान और घर की फिक्र छोड़कर तुम दोनो कुछ दिन बाहर घूम आओ….सुशीला देवी बेटे की तरफ देखते हुए कह रही थी….
“मां…. बाबूजी….
आप दोनों की अनुमति हो तो मैं कुछ कहना चाह रही थी… सुधा नजरे नीची करते हुए बीच मे बोल पड़ी….
“हां बेटा …..बोलो बोलो….
इसमे भला अनुमति की क्या बात है…सास ससुर एक साथ बोल पड़े….
“मां -बाबूजी आप दोनों ने पूरा जीवन बच्चो के बेहतर भविष्य के लिए खपा दिया है….
पिताजी के मुंह से बचपन से सब सुनती रही हूँ कि आप दोनों अपने लिए एक साड़ी या गमछा तक खरीदने से पहले दस बार सोचते थे लेकिन बच्चो के लिए कभी कोई कमी नही रखी…..
बाबूजी आप दोनों तो शादी के बाद किसी बर्फीले या हरे भरे इलाके में घूमने नही गए फिर आप बताइए कि कैसे इतना ठंडा स्वभाव और हरा भरा दाम्पत्य जीवन आप दोनों को मिला…..
हमदोनो के सामने घूमने के लिए पूरा जीवन पड़ा है…
अब घूमने और दुनिया देखने की बारी किसी की है तो वो आप दोनों की है….
हम दोनों ने आप दोनों का यूरोप घूमने का एक महीने का प्लान बना दिया है….
वीजा…. टिकट सबका इंतजाम हो चुका है….
कल मैं आपदोनो को लेकर मॉल जाऊंगी ताकि यूरोप के मौसम के अनुसार गर्म कपड़े और यात्रा के दूसरे जरूरी सामान की खरीद हो जाये….
अगले रविवार आपलोगो को निकलना है…और हां टूर कम्पनी वाले आपलोगो का हर तरह से ख्याल रखेंगे….
“और हां… मां…. मेरे लिए लंदन से एक हेट जरूर लेती आना…मोहन हंसते हुए बोला और फिर सुधा और मोहन खिलखिला कर हंसने लगे….
दुनिया भर के दुख तकलीफ उठा चुके रमेशबाबु को यकीन नही हो रहा था कि आज के युग मे शादी होकर आयी पुत्रवधु अपने सेर सपाटे की सोचने के बजाय सास ससुर के लिए विदेश दौरे का प्रोग्राम बनाने मे लगी थी….
“वाह भाभी…. आप दोनो ने खुद की बजाय मम्मी पापा के हनीमून का इंतजाम कर दिया है….
बोलते हुए तीनो बहने अपने भाई और भाभी से लिपट गयी थी …..
एक दोस्त की सुंदर रचना