
कई बार हम लोगों को टीवी सीरियल में नारद मुनि को एक चाटुकार और चुगलीबाज की तरह प्रदर्शित करते हुए दिखाया गया है। जिन लोगों ने हमारे ग्रंथों को नहीं पढ़ा है उनके मन में नारद मुनि को लेकर गलत छवि बनना सम्भव है
परंतु क्या नारद मुनि सिर्फ इतने ही थे?
नारद मुनि ब्रह्मा के मानस पुत्रों में से एक है। उन्होने कठिन तपस्या से ब्रह्मर्षि पद प्राप्त किया है। शास्त्रों में इन्हें भगवान का मन कहा गया है। इसी कारण सभी युगों में, सब लोकों में, समस्त विद्याओं में, समाज के सभी वर्गो में नारदजी का सदा से प्रवेश रहा है।
देवताओं ने ही नहीं, वरन् दानवों ने भी उन्हें सदैव आदर दिया है। श्रीमद्भगवद्गीता के दशम अध्याय के २६वें श्लोक में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने इनकी महत्ता को स्वीकार करते हुए कहा है – देवर्षीणाम्चनारद:। देवर्षियों में मैं नारद हूं।
श्रीमद्भागवत महापुराणका कथन है, सृष्टि में भगवान ने देवर्षि नारद के रूप में तीसरा अवतार ग्रहण किया और सात्वततंत्र (जिसे नारद-पाञ्चरात्र भी कहते हैं) का उपदेश दिया जिसमें सत्कर्मो के द्वारा भव-बंधन से मुक्ति का मार्ग दिखाया गया है।
महाभारत में नारदजी के व्यक्तित्व का परिचय इस प्रकार दिया गया है – देवर्षि नारद वेद और उपनिषदों के मर्मज्ञ, देवताओं के पूज्य, इतिहास-पुराणों के विशेषज्ञ, पूर्व कल्पों (अतीत) की बातों को जानने वाले, न्याय एवं धर्म के तत्त्वज्ञ, शिक्षा, व्याकरण, आयुर्वेद, ज्योतिष के विद्वान, प्रभावशाली वक्ता, मेधावी, कवि, महापण्डित, बृहस्पति जैसे महाविद्वानोंकी शंकाओं का समाधान करने वाले, धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष के यथार्थ के ज्ञाता, योगबलसे समस्त लोकों के समाचार जान सकने में समर्थ, सांख्य एवं योग के सम्पूर्ण रहस्य को जानने वाले,
देवताओं के उपदेशक, समस्त शास्त्रों में प्रवीण, सद्गुणों के भण्डार, सदाचार के आधार, परम तेजस्वी, सभी विद्याओं में निपुण है।
सत्य सनातन धर्म की जय
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