मैंने सुना हैं…। आदमियों की बीमारियां जंगलों जंगलों तक पहुंच जाती हैं।
एक बार जंगल में जानवरों ने एक प्रतियोगिता का आयोजन किया। जैसे आदमी करते हैं। तो सब तरह के खेल–कबड्डी, और वालीबाल, और फूटबाल–और जो जो जंगली जानवर कर सकते थे, उन्होंने सब खेलों का आयोजन किया। सिंह भी आया। बैठा देखता रहा। और प्रतियोगिता में तो उसने भाग न लिया; बड़े आनंद से देखता रहा; लेकिन आखिरी प्रतियोगिता थी, लतीफे सुनाने की। चुटकुले सुनाने की, उसमें वह भी भाग लेना चाहता था। उसने सोचा: कम से कम एक में तो मैं भी भाग लूं।
पहले एक खरगोश खड़ा हुआ; उसने एक लतीफा सुनाया। लेकिन खरगोश की जान कितनी? भीड़-भड़क्का और जानवरों को देख कर बहुत घबड़ा गया। आधा ही लतीफा सुना पाया और उसको पसीना बह गया; वह बैठ गया। फिर लोमड़ी ने सुनाया। लोमड़ी कुशल; पुरानी राजनीतिज्ञ; उसने लोगों को खूब हंसाया। ऐसे और भी जानवर कहे।
आखिर में सिंह खड़ा हुआ। सन्नाटा छा गया। अब उत्सुक हुए कि सिंह कौन सा लतीफा सुनाता है–देखें। माइक के पास आकर लतीफा तो दूर उसने बड़ी जोर से सिंह-गर्जना की। इतने जोर से…। एक तो वैसे ही सिंह-गर्जना–और फिर लाउड स्पीकर पर! छोटे-मोटे प्राणियों के तो प्राण निकल गये। खरगोश सामने ही बैठा था, प्रतियोगिता में पहले नंबर भाग लेने आया था, वह तो वहीं ढेर हो गया। कई प्राणी एकदम बेहोश हो गये। जो बचे उनकी भी छातियां धड़क गई।
दहाड़ने के बाद सिंह ने कहा, अब मूर्खों हंसो। हंसते क्यों नहीं? यही लतीफा था। हंसों। हंसी किसी को भी नहीं आ रही है। हंसी का कोई कारण नहीं है। लेकिन हंसना पड़ा। जब सिंह कहे…। तो लोग हंसने लगे। ऐसे हंसने लगे कि कई जानवरों को खांसी आने लगी–हंसी के मार। मगर जब तक सिंह कहे ना कि रुको, तब तक रुक भी नहीं सकते!
स्वभावतः पहला पुरस्कार सिंह को गया।
जहां शक्ति है और जहां शक्ति के साथ जबरदस्ती है, वहां भय पैदा होता है। भय में तुम हंस भी सकते हो। अब सिंह कहता है कि हंसो मूर्खों, हंसो। यही लतीफा था। हंसी किसी को भी नहीं आ रही है। लेकिन यह कोई हंसी होगी! इसमें हंसी होगी? इसमें सिर्फ एक धोखा होगा, एक प्रवंचना होगी; कि अभिनय होगा, एक पाखंड होगा।
ईश्वर से भयभीत–तो फिर प्रेम कैसे करोगे? और अगर ईश्वर से तुम भयभीत हो, तो भीतर गहरे में तुम्हारे घृणा होगी। तुम बदला लेना चाहोगे।
नीत्शे ने कहा है कि ईश्वर मर गया। और यह भी कहा है कि और किसी ने नहीं, आदमी ने ही उसकी हत्या कर दी है। नीत्शे से लोग बहुत नाराज
अगर उस दिन जंगल के जानवरों में कोई एकाध भी हिम्मतवर होता, तो खड़े होकर कहता कि बंद करो यह बकवास। यह कोई चुटकुला है? यह कोई लतीफा हुआ?
नीत्शे ने यह भी कहा है कि ईश्वर मर गया है और आदमी अब स्वतंत्र है। अब आदमी जो चाहे, कर सकता है। क्योंकि अब तक आदमी ने ईश्वर के डर से ही बहुत कुछ नहीं किया है।
आदमी बदला नहीं है; सिर्फ भय के कारण ग्रसित है। और जब महात्मा गांधी जैसे व्यक्ति भी कहे हैं कि मैं और किसी से नहीं डरता, सिर्फ ईश्वर से डरता हूं, तो जाहिर होती है बात कि ऐसे व्यक्तियों को भी ईश्वर की कोई प्रतीति नहीं है। प्रतीति हो नहीं सकती।
ईश्वर यानी प्रेम। प्रेम में कहां भय है! प्रेम में कैसा भय? प्रेम कोई तलवार थोड़े ही है। प्रेम में फुसलावा हो सकता, मनुहार हो सकती; प्रेम में कोई जबरदस्ती थोड़ी ही है।
लेकिन आदमी अब तक ऐसे ही मानता रहा है–कि भय के कारण।…तो तुमने जो एक समाज बना रखा है, उसमें सारी व्यवस्था भय के कारण है। तुम नैतिक हो, तो भय के कारण। तुम चोरी नहीं करते–तो भय के कारण। तुम झूठ नहीं बोलते–तो भय के कारण। तुम्हारे सब सदगुण भय पर टिके हैं! इसलिए तुम्हारे सब सदगुण दो कौड़ी के हैं।
Source-ओशो, कन थोरे कांकर घने-२