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नाटक

“तुम्हारी माँ क्या बोल रही है? ये सच है क्या?”

“जी हाँ पापा, अनु का कहना है कि अब हमें अपने लिये अलग घर ले लेना चाहिये।” दरवाजे की आड़ में छिपी अनु मंद-मंद मुस्करा रही थी।

“अभी शादी को महीना भर नहीं हुआ और तू बहु के सुर में सुर मिलाने लगा। आखिर मुझे भी तो पता लगे दिक्कत क्या है यहाँ।”

“मुझे तो नहीं। कल कहीं आपको मुझ से दिक्कत हुई और आपने मुझे यहाँ से निकाल दिया फिर?”

“भला मुझे क्यों दिक्कत होने लगी और मैं तुझे निकालूँगा ही क्यूँ ? मेरा खून है तू ,पाल-पोस के बड़ा किया है तुझे।”

” नहीं वो बात नहीं है पापा…….पाल-पोस कर, पढ़ा-लिखा कर तो दादू ने भी आपको इतना लायक और कामयाब बना दिया। वो भी आपको उतना ही प्यार करतें हैं जितना आप मुझे। फिर भी दादू की बढ़ती उम्र की दिक्कतों की वजह से आपने उन्हें गाँव भिजवा दिया। ……. अगर कल को मेरे साथ कुछ ऐसा-वैसा हो गया और आपने मुझे निकाल दिया तो मैं कहाँ जाऊँगा। बस इसलिये सोचा अभी से अपने लिये अलग घर का बन्दोबस्त कर लूँ।”

पिता की अंगारे बरसाती हुई आँखें अब मारे शर्म के ज़मीन में गड़ी जा रहीं थीं। बिना कुछ कहे वे वहाँ से अपने कमरे में चले गये। गाँव फ़ोन लगाया, “बाबूजी दो दिन बाद आ रहा हूँ …….नहीं, अकेले ही आऊँगा …….आपको ले जाने के लिए……..बस समझ लीजिये लायक पोते ने आपके नालायक बेटे की आँखें खोल दी।”

इधर बेटे और बहु की आँखों में चमक और चेहरे पर मुस्कान तैर रही थी, दोनों का नाटक जो सफल हो गया था।

मीनाक्षी चौहान

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वर्तमान_TheBasicDifference

बीएड करने के ठीक बाद मंजरी की मुझसे शादी हो गई तो पढ़ाई-लिखाई सब भूल गई थी। अब कुछ देखना-पढ़ना चाहती थी तो सासु माँ ने उसकी कुछ पुरानी किताबें और नोट्स भेजे थे। मंजरी माँ के साथ बाज़ार गई थी, कुरियर वाले से मैंने वह पैकेट लिया और किताबों की गुणवत्ता देखने के लिए खोल लिया, अन्यथा उसे नई दिलवाने का ही इरादा था।
एक किताब में पीला पड़ा एक लिफ़ाफ़ा मिला जिसमें थी, उसकी किसी के साथ नजदीकियाँ दिखाती, एक तस्वीर। मैं देख कर भौंचक था, दिमाग सांय-सांय करने लगा था। तभी गेट पर आवाज़ हुई और मैंने वह लिफ़ाफ़ा उसमें ही रख दिया। उसने आते ही मेज पर पड़ा वह पैकेट उठाया और खुशी से भरकर उसमें से वही किताब निकाली। उसकी नज़र लिफ़ाफ़े पर गई तो वह सोच में पड़ गई।
“ये पैकेट आपने खोला था?” उसकी आवाज़ का कम्पन उसके दिल का हाल कह रहा था।
“हाँ, मैंने किताबों की गुणवत्ता देखने के लिए पैकेट खोला था, अच्छी हैं किताबें,” मैंने अपने मनोभावों को छिपाने का प्रयास किया।
वह मेरे साथ सोफे पर आ बैठी और मेरा हाथ अपने हाथों में ले लिया। उसके अंदर की उलझन मैं अपने भीतर साफ महसूस करने लगा। मुझे लगा था कि साल भर उसके साथ रहकर मैंने उसे पूरी तरह से जान लिया था; किंतु क्या सच में?
“आपने वह तस्वीर देख ली है न?” उसने मेरी आँखों में झाँका और कुछ कहे बिना सब जान लिया।
“मैंने तो तुमसे कुछ नहीं छिपाया था। तुम्हें लिली का भी बताया था और तनु का भी। तुमने उनकी तस्वीरें भी देखी थीं। तुम्हें भी तब इसके बारे में बता देना चाहिए था”।
“प्रियम, स्त्री और पुरुष में संवेदना के स्तर का एक बुनियादी अंतर है। जिस चीज को मैं देख कर भुला सकती हूँ, उसी चीज से आप बौखला सकते हैं। बस इसीलिए मैं चुप रही। जैसे आपने मेरे मना करने के बावजूद लिली और तनु की तस्वीरें फाड़ दी थीं, लीजिए…” उसने लिफ़ाफ़े में से तस्वीर निकाली और टुकड़े-टुकड़े कर डाली।
“तो अब स्त्री और पुरुष में संवेदना के स्तर के बुनियादी अंतर का क्या रहा?” मैं अब समझ का अंतर मिटाना चाहता था।
“वह आप अपने दिल से पूछिए— उसमें मेरी तस्वीर अब कैसी है?”
“पहले से बहुत साफ है,” मैंने कहा तो एक प्रगाढ़ चुम्बन ने दिल की चुभन मिटा डाली।
—Dr💦Ashokalra
Meerut

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एक व्यक्ति जो मृत्यु के करीब था, मृत्यु से पहले अपने बेटे को चाँदी के सिक्कों से भरा थैला देता है और बताता है की “जब भी इस थैले से चाँदी के सिक्के खत्म हो जाएँ तो मैं तुम्हें एक प्रार्थना बताता हूँ, उसे दोहराने से चाँदी के सिक्के फिर से भरने लग जाएँगे । उसने बेटे के कान में चार शब्दों की प्रार्थना कही और वह मर गया । अब बेटा चाँदी के सिक्कों से भरा थैला पाकर आनंदित हो उठा और उसे खर्च करने में लग गया । वह थैला इतना बड़ा था की उसे खर्च करने में कई साल बीत गए, इस बीच वह प्रार्थना भूल गया
जब थैला खत्म होने को आया तब उसे याद आया कि “अरे! वह चार शब्दों की प्रार्थना क्या थी ।” उसने बहुत याद किया, उसे याद ही नहीं आया ।अब वह लोगों से पूँछने लगा । पहले पड़ोसी से पूछता है की “ऐसी कोई प्रार्थना तुम जानते हो क्या, जिसमें चार शब्द हैं । पड़ोसी ने कहा, “हाँ, एक चार शब्दों की प्रार्थना मुझे मालूम है, “ईश्वर मेरी मदद करो ।” उसने सुना और उसे लगा की ये वे शब्द नहीं थे, कुछ अलग थे । कुछ सुना होता है तो हमें जाना-पहचाना सा लगता है । फिर भी उसने वह शब्द बहुत बार दोहराए, लेकिन चाँदी के सिक्के नहीं बढ़े तो वह बहुत दुःखी हुआ । फिर एक ब्राह्मण से मिला, उन्होंने बताया की “ईश्वर तुम महान हो” ये चार शब्दों की प्रार्थना हो सकती है, मगर इसके दोहराने से भी थैला नहीं भरा । वह एक धनिक से मिला, उसने कहा “ईश्वर मुझे धन दो” यह प्रार्थना भी कारगर साबित नहीं हुई । वह बहुत उदास हुआ उसने सभी से मिलकर देखा मगर उसे वह प्रार्थना नहीं मिली, जो पिताजी ने बताई थी।

वह उदास होकर घर में बैठा हुआ था तब एक भिखारी साधु उसके दरवाजे पर आया । उसने कहा, “सुबह से कुछ नहीं खाया, खाने के लिए कुछ हो तो दो ।” उस लड़के ने बचा हुआ खाना भिखारी साधु को दे दिया । उस भिखारी साधु ने खाना खाकर बर्तन वापस लौटाया और ईश्वर से प्रार्थना की, *”हे ईश्वर ! तुम्हारा धन्यवाद ।” अचानक वह चौंक पड़ा और चिल्लाया की “अरे! यही तो वह चार शब्द थे ।” उसने वे शब्द दोहराने शुरू किए-“हे ईश्वर तुम्हारा धन्यवाद”……..और उसके सिक्के बढ़ते गए… बढ़ते गए… इस तरह उसका पूरा थैला भर गया ।इससे समझें की जब उसने किसी की मदद की तब उसे वह मंत्र फिर से मिल गया । “हे ईश्वर ! तुम्हारा धन्यवाद ।”

यही उच्च प्रार्थना है क्योंकि जिस चीज के प्रति हम धन्यवाद देते हैं, वह चीज बढ़ती है । अगर पैसे के लिए धन्यवाद देते हैं तो पैसा बढ़ता है, प्रेम के लिए धन्यवाद देते हैं तो प्रेम बढ़ता है । ईश्वर या गुरूजी के प्रति धन्यवाद के भाव निकलते हैं की ऐसा ज्ञान सुनने तथा पढ़ने का मौका हमें प्राप्त हुआ है । बिना किसी प्रयास से यह ज्ञान हमारे जीवन में उतर रहा है वर्ना ऐसे अनेक लोग हैं, जो झूठी मान्यताओं में जीते हैं और उन्हीं मान्यताओं में ही मरते हैं । मरते वक्त भी उन्हें सत्य का पता नहीं चलता । उसी अंधेरे में जीते हैं, मरते हैं ।

ऊपर दी गई कहानी से समझें की “हे ईश्वर ! तुम्हारा धन्यवाद” ये चार शब्द, शब्द नहीं प्रार्थना की शक्ति हैं । अगर यह चार शब्द दोहराना किसी के लिए कठिन है तो इसे तीन शब्दों में कह सकते हैं, “ईश्वर तुम्हार धन्यवाद ।” ये तीन शब्द भी ज्यादा लग रहे हों तो दो शब्द कहें, “ईश्वर धन्यवाद !” और दो शब्द भी ज्यादा लग रहे हों तो सिर्फ एक ही शब्द कह सकते हैं, “धन्यवाद ।”

आइए, हम सब मिलकर एक साथ धन्यवाद दें उस ईश्वर को, जिसने हमें मनुष्य जन्म दिया और उसमें दी दो बातें – पहली “साँस का चलना” दूसरी “सत्य की प्यास ।” यही प्यास हमें खोजी से भक्त बनाएगी । भक्ति और प्रार्थना से होगा आनंद, परम आनंद, तेज आनंद ….!
जय सियाराम!
🙏हे ईश्वर तुम्हारा धन्यवाद🙏

हरीश शर्मा

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साथी हाथ बढ़ाना
एक अकेला थक जाएगा…..

एक परिवार के पुत्र के आकस्मिक निधन पर पूरा परिवार दुखी था…
शोक मनाने पहुंचे लोगों ने देखा कि इस परिवार के खेत में गेहूं की फसल पक कर तैयार हो चुकी है लेकिन दुख में डूबे परिवार उसे काट नहीं पा रहा है तो शोक प्रकट प्रकट करने पहुंचे लोगों ने ही फसल काटकर और उसे थ्रेसर से मड़ाई करके देश के सामने एक उत्कृष्ट उदाहरण दिया है कि किसी शोकग्रस्त परिवार की हम ऐसे भी मदद कर सकते हैं

जोधपुर (राजस्थान)। फसल काटते ये हाथ एक परिवार पर आई विपत्ति के समय आगे बढ़ रहे हैं।
मकसद दुख की घड़ी में इस परिवार के साथ खड़े रहने का है।
दरअसल, दयाकौर गांव निवासी भूरालाल पालीवाल के 18 वर्षीय बेटे गणपतराम की मौत चार दिन पहले रायपुर छत्तीसगढ़ में हो गई थी।
वह वहां फर्नीचर का काम करने वाले अपने भाई से मिलने गया था।

एकाएक पेट दर्द से तबीयत बिगड़ी और सांसें छूट गई। खेती बाड़ी और घर की जिम्मेदारी उठाने वाला एकाएक आंखों से ओझल हो गया।
ग्रामीणों व रिश्तेदारों ने जैसे-तैसे परिवार को संभाला।
मगर, खेत में गेहूं और जीरे की फसल पक चुकी थी।
इधर, मौसम विभाग ने भी चार दिन अंधड़ व बारिश की चेतावनी जारी की।ऐसी स्थिति में शोक जताने आने वाले लोगों ने ही तय किया कि वे फसल लेने में मदद करेंगे।
शनिवार को करीब 100 ग्रामीण खेत में फसल काटने में जुटे।
दोपहर तक 10 बीघा में खड़ी जीरा व गेहूं की फसल को इकट्ठा कर दिया। परिवार को जब 100 लोग खेत में काम करते दिखे तो सभी रोने लगे।

  • संजीव जी
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हवाई जहाज उड़ान भरने पर था सभी यात्री अपनी -अपनी सीट पर बैठे थे। सामने की सीट पर एक 6 साल की बच्ची बैठी थी उसके बगल में एक युवक भी बैठा था। हवाई जहाज ने धीरे धीरे हवाई पट्टी पर दौड़ना शूरू किया और कुछ ही देर में वह आसमान से बाते करने लगा ….हवाई जहाज जैसे ही ऊपर की उड़ा सभी आनंद से विभोर हो गये …तभी अचानक हवाई जहाज में हलचल हुई …हवाई जहाज हवा में डगमगाने लगा सभी यात्री भगवान को याद करने लगे चिल्लाने लगे । वह युवक भी सहम गया और चिल्लाने लगा लेकिन देखता क्या है कि उसके बगल में बैठी नन्ही सी बच्ची एक दम शांत बैठी है उसके चेहरे पर डर नहीं है। थोड़ी देर हवाई जहाज डगमगाने के बाद सामान्य रफ्तार में आ गया …वह युवक बड़ा अचंभित था कि इतना सब कुछ होने पर भी वह बच्ची डरी नहीं उसे लगा कि शायद उसे खतरे का भान ही न हो इसलिए उसनेे पूछा – “बेटा आपको पता है क्या हो रहा था” बच्ची ने कहा- हाँ मुझे पता है हवाई जहाज खतरे में था” युवक फिर आश्चर्य हुआ उसने फिर पूछा- ” पता होने के बाद भी आपको डर नहीं लगा ” बच्ची ने बहुत सुंदर जवाब दिया कहा – ” हवाई जहाज के पायलेट मेरे पापा हैं उन्हें पता है कि मैं हवाई जहाज में हूँ और वो कभी मेरा नुकसान नहीं होंगे देंगे ” युवक बस एक टक उसकी ओर देख रहा था …सोच रहा था इतनी छोटी सी बच्ची कितनी बड़ी बात कह गयी यह विश्वास हम बढ़ों में क्यों कम हो जाता हैं जब पता हैं कि इस संसार को चलाने वाले ईश्वर हैं। वो हमारे माता- पिता हैं वो कभी हमारा बुरा नहीं करेंगे ….
विश्वास रखिये …सब कुछ ठीक होगा ….ये अंधेरा भी छटेगा …फिर नयी सुबह होगी ….
सब कुछ मंगल होगा ….
ठाकुर जी सबकी रक्षा करेंगे …

विश्वास रखे , सब ठीक होगा !
जय श्री कृष्ण
🙏🙏🙏🙏🙏

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★★★एक दृष्टिकोण ये भी🙏

एक टक देर तक उस सुपुरुष को निहारते रहने के बाद बुजुर्ग भीलनी के मुंह से स्वर/बोल फूटे :-

“कहो राम ! सबरी की डीह ढूंढ़ने में अधिक कष्ट तो नहीं हुआ ?”

राम मुस्कुराए :-
“यहां तो आना ही था मां, कष्ट का क्या मोल/मूल्य ?”

“जानते हो राम ! तुम्हारी प्रतीक्षा तब से कर रही हूँ, जब तुम जन्में भी नहीं थे|
यह भी नहीं जानती थी,
कि तुम कौन हो ?
कैसे दिखते हो ?
क्यों आओगे मेरे पास ?
बस इतना ज्ञात था, कि कोई पुरुषोत्तम आएगा जो मेरी प्रतीक्षा का अंत करेगा|

राम ने कहा :-
“तभी तो मेरे जन्म के पूर्व ही तय हो चुका था, कि राम को सबरी के आश्रम में जाना है”|

“एक बात बताऊँ प्रभु !
भक्ति के दो भाव होते हैं | पहला ‘मर्कट भाव’, और दूसरा ‘मार्जार भाव’|

”बन्दर का बच्चा अपनी पूरी शक्ति लगाकर अपनी माँ का पेट पकड़े रहता है, ताकि गिरे न… उसे सबसे अधिक भरोसा माँ पर ही होता है, और वह उसे पूरी शक्ति से पकड़े रहता है। यही भक्ति का भी एक भाव है, जिसमें भक्त अपने ईश्वर को पूरी शक्ति से पकड़े रहता है| दिन रात उसकी आराधना करता है…” (मर्कट भाव)

पर मैंने यह भाव नहीं अपनाया| ”मैं तो उस बिल्ली के बच्चे की भाँति थी, जो अपनी माँ को पकड़ता ही नहीं, बल्कि निश्चिन्त बैठा रहता है कि माँ है न, वह स्वयं ही मेरी रक्षा करेगी, और माँ सचमुच उसे अपने मुँह में टांग कर घूमती है… मैं भी निश्चिन्त थी कि तुम आओगे ही, तुम्हें क्या पकड़ना…” (मार्जार भाव)

राम मुस्कुरा कर रह गए |

भीलनी ने पुनः कहा :-
“सोच रही हूँ बुराई में भी तनिक अच्छाई छिपी होती है न… “कहाँ सुदूर उत्तर के तुम, कहाँ घोर दक्षिण में मैं”| तुम प्रतिष्ठित रघुकुल के भविष्य, मैं वन की भीलनी… यदि रावण का अंत नहीं करना होता तो तुम कहाँ से आते ?”

राम गम्भीर हुए | कहा :-

भ्रम में न पड़ो मां ! “राम क्या रावण का वध करने आया है” ?

रावण का वध तो, लक्ष्मण अपने पैर से बाण चला कर कर सकता है|

राम हजारों कोस चल कर इस गहन वन में आया है, तो केवल तुमसे मिलने आया है मां, ताकि “सहस्त्रों वर्षों बाद, जब कोई भारत के अस्तित्व पर प्रश्न खड़ा करे तो इतिहास चिल्ला कर उत्तर दे, कि इस राष्ट्र को क्षत्रिय राम और उसकी भीलनी माँ ने मिल कर गढ़ा था”|

जब कोई भारत की परम्पराओं पर उँगली उठाये तो काल उसका गला पकड़ कर कहे कि नहीं ! यह एकमात्र ऐसी सभ्यता है जहाँ, एक राजपुत्र वन में प्रतीक्षा करती एक दरिद्र वनवासिनी से भेंट करने के लिए चौदह वर्ष का वनवास स्वीकार करता है|

राम वन में बस इसलिए आया है, ताकि “जब युगों का इतिहास लिखा जाय, तो उसमें अंकित हो कि ‘शासन/प्रशासन/सत्ता’ जब पैदल चल कर समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुँचे तभी वह रामराज्य है”|
(अंत्योदय)

राम वन में इसलिए आया है, ताकि भविष्य स्मरण रखे कि प्रतीक्षाएँ अवश्य पूरी होती हैं| राम रावण को मारने भर के लिए नहीं आया हैं मां|

माता सबरी एकटक राम को निहारती रहीं |

राम ने फिर कहा :-

राम की वन यात्रा रावण युद्ध के लिए नहीं है माता ! “राम की यात्रा प्रारंभ हुई है, भविष्य के आदर्श की स्थापना के लिए”|

राम निकला है, ताकि “विश्व को संदेश दे सके कि माँ की अवांछनीय इच्छओं को भी पूरा करना ही ‘राम’ होना है”|

राम निकला है, कि ताकि “भारत को सीख दे सके कि किसी सीता के अपमान का दण्ड असभ्य रावण के पूरे साम्राज्य के विध्वंस से पूरा होता है”|

राम आया है, ताकि “भारत को बता सके कि अन्याय का अंत करना ही धर्म है”|

राम आया है, ताकि “युगों को सीख दे सके कि विदेश में बैठे शत्रु की समाप्ति के लिए आवश्यक है, कि पहले देश में बैठी उसकी समर्थक सूर्पणखाओं की नाक काटी जाय, और खर-दूषणों का घमंड तोड़ा जाय”|

और

राम आया है, ताकि “युगों को बता सके कि रावणों से युद्ध केवल राम की शक्ति से नहीं बल्कि वन में बैठी सबरी के आशीर्वाद से जीते जाते हैं”|

सबरी की आँखों में जल भर आया था|
उसने बात बदलकर कहा :- “बेर खाओगे राम” ?

राम मुस्कुराए, “बिना खाये जाऊंगा भी नहीं मां”

सबरी अपनी कुटिया से झपोली में बेर ले कर आई और राम के समक्ष रख दिया|

राम और लक्ष्मण खाने लगे तो कहा :-
“बेर मीठे हैं न प्रभु” ?

“यहाँ आ कर मीठे और खट्टे का भेद भूल गया हूँ मां ! बस इतना समझ रहा हूँ, कि यही अमृत है”|

★सबरी मुस्कुराईं, बोलीं :- “सचमुच तुम मर्यादा पुरुषोत्तम हो, राम”
हिम्मत ना हारिए।
ना हारने देंगे श्री राम!!

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ब्रिटेन में एक ट्रेन द्रुत गति से दौड़ रही थी। ट्रेन अंग्रेजों से भरी हुई थी। उसी ट्रेन के एक डिब्बे में अंग्रेजों के साथ एक भारतीय भी बैठा हुआ था। डिब्बा अंग्रेजों से खचाखच भरा हुआ था। वे सभी उस भारतीय का मजाक उड़ाते जा रहे थे। कोई कह रहा था, देखो कौन नमूना ट्रेन में बैठ गया। तो कोई उनकी वेश-भूषा देखकर उन्हें गंवार कहकर हँस रहा था। कोई तो इतने गुस्से में था, की ट्रेन को कोसकर चिल्ला रहा था, एक भारतीय को ट्रेन मे चढ़ने क्यों दिया ?? इसे डिब्बे से उतारो।

किँतु उस धोती-कुर्ता, काला कोट एवं सिर पर पगड़ी पहने शख्स पर इसका कोई प्रभाव नही पड़ा। वह शांत गंभीर भाव से बैठा था, मानो किसी उधेड़-बुन मे लगा हो।

ट्रेन द्रुत गति से दौड़े जा रही थी औऱ अंग्रेजों का उस भारतीय का उपहास, अपमान भी उसी गति से जारी था। किंतु यकायक वह शख्स सीट से उठा और जोर से चिल्लाया “ट्रेन रोको”। कोई कुछ समझ पाता उसके पूर्व ही उसने ट्रेन की जंजीर खींच दी। ट्रेन रुक गईं। अब तो जैसे अंग्रेजों का गुस्सा फूट पड़ा। सभी उसको गालियां दे रहे थे। गंवार, जाहिल जितने भी शब्द शब्दकोश मे थे, बौछार कर रहे थे। किंतु वह शख्स गंभीर मुद्रा में शांत खड़ा था। मानो उसपर किसी की बात का कोई असर न पड़ रहा हो।

उसकी चुप्पी अंग्रेजों का गुस्सा और बढा रही थी। ट्रेन का गार्ड दौड़ा-दौड़ा आया। कड़क आवाज में पूछा:- “किसने ट्रेन रोकी ??” कोई अंग्रेज बोलता उसके पहले ही, वह शख्स बोल उठा :- “मैंने रोकी श्रीमान”
पागल हो क्या ?? पहली बार ट्रेन में बैठे हो ?? “तुम्हें पता है, बिना कारण ट्रेन रोकना अपराध हैं” – गार्ड गुस्से में बोला।

हाँ श्रीमान ज्ञात है किंतु मैं ट्रेन न रोकता तो सैंकड़ों लोगो की जान चली जाती। उस शख्स की बात सुनकर सब जोर-जोर से हंसने लगे। किँतु उसने बिना विचलित हुये, पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा :- यहाँ से करीब एक फरलाँग (220 गज) की दूरी पर पटरी टूटी हुई हैं। आप चाहे तो चलकर देख सकते है।

गार्ड के साथ वह शख्स और कुछ अंग्रेज सवारी भी साथ चल दी। रास्ते भर भी अंग्रेज उस पर फब्तियां कसने मे कोई कोर-कसर नही रख रहे थे। किँतु सबकी आँखें उस वक्त फ़टी की फटी रह गई जब वाक़ई , बताई गई दूरी के आस-पास पटरी टूटी हुई थी। नट-बोल्ट खुले हुए थे। अब गार्ड सहित वे सभी चेहरे जो उस भारतीय को गंवार, जाहिल, पागल कह रहे थे। वे सभी उसकी और कौतूहलवश देखने लगे। मानो पूछ रहे हो आपको ये सब इतनी दूरी से कैसे पता चला ??

गार्ड ने पूछा :- तुम्हें कैसे पता चला , पटरी टूटी हुई हैं ??

उसने कहा :- श्रीमान लोग ट्रेन में अपने-अपने कार्यो मे व्यस्त थे। उस वक्त मेरा ध्यान ट्रेन की गति पर केंद्रित था। ट्रेन स्वाभाविक गति से चल रही थी। किंतु अचानक पटरी की कंपन से उसकी गति में परिवर्तन महसूस हुआ। ऐसा तब होता हैं, जब कुछ दूरी पर पटरी टूटी हुई हो। अतः मैंने बिना क्षण गंवाए, ट्रेन रोकने हेतु जंजीर खींच दी।

गार्ड औऱ वहाँ खड़े अंग्रेज दंग रह गये। गार्ड ने पूछा, इतना बारीक तकनीकी ज्ञान, आप कोई साधारण व्यक्ति नही लगते। अपना परिचय दीजिये।

शख्स ने बड़ी शालीनता से जवाब दिया :- 🌞 श्रीमान मैं * इंजीनियर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया *

(जिनका नाम लेने मात्र में युवा नेता को नानी याद आ गई थी 😀😂😀)

जी हाँ, वह असाधारण शख्स कोई और नही * डॉ विश्वेश्वरैया * थे। 🚩 जो देश के * प्रथम आधुनिक इंजीनियर * थे। आज उनकी पुण्यतिथि पर शत शत नमन 🕉🙏