पुराने समय की बात है, मेरठ शहर के पास एक छोटे से गांव में एक अंधा आदमी रहा करता था। वह बच्चों को कहानियां तथा चुटकुले सुनाया करता था। बच्चे उसके पास बैठकर खुश होते थे। आस-पास के घरों से उस सूरदास को खाने-पीने की चीजें मिल जाया करती थी। एक दिन गांव के किसी घर में त्यौहार का उत्सव मनाया जा रहा था। उस घर का बालक दौड़ता हुआ उसी अंधे के पास पहुंचा तथा साथ चलने का आग्रह करने लगा।
उसके घर में स्वादिष्ट खीर बनी थी। अंधे बाबा को वह साथ चलने को कह रहा था कि उसे घर में खीर खाने को मिलेगी।
गरीब अंधे बाबा ने शांत होकर पूछा कि खीर कैसी और किस प्रकार की होती है? लड़के ने समझाया कि खीर दूध से बनी सफेद-सफेद होती है। अंधे ने पूछा कि सफेद कैसा होता है? लड़के ने कहा कि सफेद नहीं जानते? बगुले के पंख जैसा सफेद…’
अंधे बाबा ने फिर पूछा कि बगुला कैसा होता है? लड़का काफी परेशान हो चुका था, उसने तुरंत अपना हाथ बगुले की तरह टेढ़ा करके अंधे को बताया कि बगुला ऐसा होता है। अंधे बाबा ने टेढ़े हाथ को टटोल कर देखा फिर बाला ”न बेटा न, मैं इस तरह की टेढ़ी खीर नहीं खा सकूंगा।” तभी से किसी कठिन कार्य के लिए यह कथन चला कि यह ”टेढ़ी खीर है।”
– राधाकान्त भारती