मिथिला में एक विद्वान भवनाथ मिश्र विद्यार्थियों को पढ़ाते थे। उनकी आर्थिक स्थिति अत्यंत दयनीय थी, फिर भी वे किसी से भी याचना नहीं करते थे।
भवनाथ के घर पुत्र का जन्म हुआ। दाई ने पुरस्कार माँगा। बालक की माता भवानी देवी ने भावपूर्ण ढंग से कहा –
“अभी घर में देने को कुछ भी नहीं है। इस बालक की पहली कमाई की पूरी धनराशि तुम्हें दे दूंगी।’’
दाई इस कथन पर संतुष्ट होकर बालक को आशीर्वाद दे कर चली गयी।
उस बालक का नाम रखा गया ‘शंकर’।
शंकर की आयु अभी पाँच वर्ष भी पूरी नहीं हुई थी। वह अन्य बालकों के साथ गाँव के बाहर खेल रहा था। उसी समय मिथिला के महाराज शिवसिंह देव वहाँ से गुजर रहे थे। उनकी दृष्टि शंकर पर पड़ी। चेहरे से उन्हें बालक प्रतिभाशाली मालूम हुआ। महाराज ने शंकर को बुलाकर पूछा –
‘‘बेटा ! तुम कुछ पढ़ते हो ?’’
शंकर – ‘‘जी।’’
‘‘कोई श्लोक सुनाओ।’’
‘‘स्वयं का बनाया हुआ सुनाऊँ या दूसरे का बनाया हुआ ?’’
‘‘स्वयं का बनाया हुआ सुनाओ ।’’
‘‘बालोऽहं जगदानन्द न मे बाला सरस्वती ।
अपूर्णे पञ्चमे वर्षे वर्णयामि जगत्त्रयम् ।।’’
अर्थात् हे जगत को आनंद देनेवाले (राजन्) ! मैं अभी बालक हूँ परंतु मेरी सरस्वती (विद्या) बालिका नहीं है । पाँचवाँ वर्ष अपूर्ण होने पर भी मैं तीनों लोकों का वर्णन कर सकता हूँ।
‘‘अब स्वयं का और दूसरे का मिलाकर श्लोक सुनाओ।’’
चलितश्चकितश्छन्नः प्रयाणे तव भूपते ।
सहस्रशीर्षा पुरुषः सहस्राक्षः सहस्रपात् ।।
अर्थात् – हे राजन् ! आपके कूच को देखकर सहस्रों पैर आंदोलित और सहस्रों सिर व सहस्रों नेत्र चकित हैं।
इतनी कम उम्र में संस्कृत का इतना ज्ञान व कुशाग्र बुद्धि देख राजा बहुत प्रसन्न हुए और अपने खजांची को बुलाकर बोले –
‘‘इस बालक को खजाने में ले जाओ और यह स्वयं जितना धन ले सके, लेने दो।’’
खजांची शंकर को ले गये। शंकर ने केवल लँगोटी पहन रखी थी, अतः उसी लँगोटी के एक भाग पर वह जितना धन ले सका, उतना लेकर घर आया।
उसने माँ को सारी बात बतायी। माता ने तुरंत उस दाई को बुलाया जिसे बालक की पहली कमाई की धनराशि देने का वचन दिया था।
दाई से आदरपूर्वक कहा – ‘‘यह शंकर की पहली कमाई
है। यह सारा धन आप ले जाओ ।’’
दाई बालक को आशीर्वाद दे प्रसन्नतापूर्वक सुवर्णमुद्राएँ, माणिक, रत्न आदि पुरस्काररूप में लेकर चली गयी । उसने उस धनराशि से गाँव में एक पोखर (तालाब) का निर्माण कराया, जिससे लोगों की सेवा हो सके। उस पोखर को लोग ‘दाई का पोखर’ कहने लगे, जिसके अवशेष आज भी बिहार में मधुबनी जिले के सरिसव गाँव में विद्यमान हैं ।
आगे चलकर शंकर मिश्र बड़े विद्वान हुए । उन्होंने वैशेषिक सूत्र पर आधारित उपस्कार ग्रंथ, खंडन खंड, खाद्य टीका रसार्णव इत्यादि अनेक ग्रंथों की रचना की ।
मूल पोस्ट :अरूण शास्त्री
शास्त्री प्रवीण त्रिवेदी की पोस्ट से संपादित अंश