Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

आज़ाद हिन्द फौज के स्थापना की घोषणा हो चुकी थी…….. सैनिकों की नियुक्ति चालू थी…….सेना के कपडे, भोजन, हथियार, दवा आदि के लिए धन की सख्त जरूरत थी…… कुछ धन जापानियों ने दिया लेकिन वो जरूरत के जितना नहीं था……… नेताजी ने आह्वान किया…………

लोग नेताजी सुभाष चंद्र बोस को सिक्को और गहनों में तौल रहे थे………एक महिला आई जिसने फोटो फ्रेम तोड़ा, फ्रेम सोने का था और अंदर मृत पुत्र का फोटो था…… फ्रेम तराजू पर रख दिया……..!!

एक ग्वाला आया और उसने सारी गाय आज़ाद हिन्द फौज को दे दिया जिससे सैनिकों को दूध मिल सके….
कुछ जवान आये जिन्होंने पुछा वर्दी कहाँ है और बन्दूक कहाँ है……….. कुछ बुजुर्ग आए और अपने इकलोते पुत्र को नेताजी के छाया में रख दिया……..!!!

बुजुर्ग घायल सैनिकों की सेवा और कुली के काम करने को प्रवेश ले लिए…….

कुछ युवतियाँ आईं और उन्होंने रानी झाँसी रेजिमेंट में प्रवेश लिया………………

कुछ 45 पार महिलाऐं आई और रानी झाँसी रेजिमेंट में सीधे प्रवेश नहीं पाने के जगह पर रसोइया और नर्स बन गईं……….!!
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आखिर कौन थे ये लोग…….?? यही थे आम लोग….!! मलेशिया, सिंगापुर, बर्मा, फिजी, थाईलैंड और अन्य दक्षिणी एशिया में रहने वाले भारतीय थे……. जिन्होंने भारत के बारे में अपने उन बुजुर्गों से सुना था जिनको अँगरेज़ गुलाम बनाकर लाए थे……..!! जो कुली, मजदूर, जमादार आदि के रूप में काम करते थे……! जो वर्षों से अपने देश नहीं जा सके थे……. लेकिन अपने बच्चों – पीढ़ियों के दिल में भारत बसा दिया था उन्होंने अपने गाँव, कसबे शहर की कहानियाँ बताकर…..!

आज उन कहानियों ने चमत्कार कर दिया था……! वो कहानियाँ नहीं थी – देश की माटी का बुलावा था जो सीने में छिपा था….! आज नेताजी के आह्वान ने उस जवालामुखी को फोड़ दिया है…………………………..
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किसी की कोई जात नहीं थी…..!! बस सब भारतीय थे…..! दासता का दंश झेलते हुए….! अपने देश से पानी के जहाज़ में ठूँस कर जबरदस्ती यहाँ लाए गए थे…………… जिन्होंने अपना सब कुछ खो दिया था…………………… बस भारत और अपने माटी को जिन्दा रखा था दिल में…….!!

भारत को आज़ादी दिलाने में हज़ारों उन भारतोयों का लहू शामिल है जो कभी लौट नहीं पाए………….वहीँ वीरगति को प्राप्त हो गए………..जिनके भारत में रहे वाले परिवारों को आज तक नहीं पता कि उनका एक लाल देश के लिए बलिदान हो गया था कब का……….!!

जिनका नाम हमें आपको पता ही नहीं……!! जिनको अन्तिम संस्कार भी नसीब नहीं हुआ…………. जो न ही उन विदेश की धरती पर अपना घर या छाप बना पाए थे कि उनका कोई रिकॉर्ड रखता………………….!!!!!

ये पोस्ट समर्पित है उन अनाम आज़ादी पाने के दीवाने, बलिदानी और महान सैनिकों को…….! उनके ऋणी हैं हम…….! न उनका नाम पता है, न जात पता है……………………..तो हे आज़ाद भारत के लोगों एक हो जाओ……..!

आओ नेता जी के सपनो का भारत बनाए………. आओ उन अनाम बलिदानियों के लहू का ऋण चुकाएँ……….!!!

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

एक दिन एक किसान का बैल कुएँ में गिर गया प्रेरणादायक कहानी

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ये कहानी आपके जीने की सोच बदल देगी!
एक दिन एक किसान का बैल कुएँ में गिर गया….

वह बैल घंटों ज़ोर-ज़ोर से रोता रहा और किसान सुनता रहा और विचार करता रहा कि उसे क्या करना चाहिऐ और क्या नहीं। अंततः उसने निर्णय लिया कि चूंकि बैल काफी बूढा हो चूका था अतः उसे बचाने से कोई लाभ होने वाला नहीं था और इसलिए उसे कुएँ में ही दफना देना चाहिऐ।

प्रेरणादायक हिंदी कहानी

किसान ने अपने सभी पड़ोसियों को मदद के लिए बुलाया सभी ने एक-एक फावड़ा पकड़ा और कुएँ में मिट्टी डालनी शुरू कर दी। जैसे ही बैल कि समझ में आया कि यह क्या हो रहा है वह और ज़ोर-ज़ोर से चीख़-चीख़ कर रोने लगा और फिर, अचानक वह आश्चर्यजनक रुप से शांत हो गया।

सब लोग चुपचाप कुएँ में मिट्टी डालते रहे तभी किसान ने कुएँ में झाँका तो वह आश्चर्य से सन्न रह गया..
अपनी पीठ पर पड़ने वाले हर फावड़े की मिट्टी के साथ वह बैल एक आश्चर्यजनक हरकत कर रहा था वह हिल-हिल कर उस मिट्टी को नीचे गिरा देता था और फिर एक कदम बढ़ाकर उस पर चढ़ जाता था।
जैसे-जैसे किसान तथा उसके पड़ोसी उस पर फावड़ों से मिट्टी गिराते वैसे-वैसे वह हिल-हिल कर उस मिट्टी को गिरा देता और एक सीढी ऊपर चढ़ आता जल्दी ही सबको आश्चर्यचकित करते हुए वह बैल कुएँ के किनारे पर पहुंच गया और फिर कूदकर बाहर भाग गया।

ध्यान रखे आपके जीवन में भी बहुत तरह से मिट्टी फेंकी जायेगी बहुत तरह की गंदगी आप पर गिरेगी जैसे कि, आपको आगे बढ़ने से रोकने के लिए कोई बेकार में ही आपकी आलोचना करेगा….. कोई आपकी सफलता से ईर्ष्या के कारण आपको बेकार में ही भला बुरा कहेगा…. कोई आपसे आगे निकलने के लिए ऐसे रास्ते अपनाता हुआ दिखेगा जो आपके आदर्शों के विरुद्ध होंगे…

ऐसे में आपको हतोत्साहित हो कर कुएँ में ही नहीं पड़े रहना है बल्कि साहस के साथ हर तरह की गंदगी को गिरा देना है और उससे सीख ले कर उसे सीढ़ी बनाकर बिना अपने आदर्शों का त्याग किये अपने कदमों को आगे बढ़ाते जाना है।
सकारात्मक रहे.. सकारात्मक जिए!

इस संसार में….
सबसे बड़ी सम्पत्ति “बुद्धि”
सबसे अच्छा हथियार “धैर्य”
सबसे अच्छी सुरक्षा “विश्वास”
सबसे बढ़िया दवा “हँसी” है
और आश्चर्य की बात कि “ये सब निशुल्क हैं”

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

🌺विश्वास में अद्भुत शक्ति🌺
– श्रीरामकृष्ण परमहंसजी
एक आदमी समुद्र पार करना चाहता था।
एक साधु ने उसे एक ताबीज देकर कहा, इसके बल पर तुम समुद्र पार कर जाओगे।
उस ताबीज को ले आदमी पानी पर से चलते हुए आगे बढ़ने लगा।
बीचोबीच जाकर उसके मन मे कुतुहल हुआ की भला देखूँ, तो इस ताबीज के भीतर क्या चीज है, जिसके बल पर समुद्र पार किया जा सकता है।
उसने ताबीज को खोलकर देखा, उसमें एक कागज का टुकड़ा था, जिसपर केवल राम लिखा हुआ था।
वह उपेक्षा के साथ बोल उठा, बस यही है और कुछ नहीं।
जैसे ही यह संशय का भाव आया, वैसे ही वह डुब गया।
भगवान के नाम पर विस्वास हो, तो असंभव भी संभव हो सकता है।
विस्वास ही जीवन है और अविस्वास मृत्यु।
पत्थर हजारों साल तक पानी में पड़ा रहे, तो भी उसके भीतर एक बूँद भी पानी नहीं घुसता है, पर मिट्टी के ढेले में वह लगते ही घुल जाता है।
जिसके हृदय में विस्वास का बल है, वह हजारों बाधा- विघ्न की परीक्षा में से गुजर कर हताश नहीं होता, परन्तु अविस्वासी व्यक्ति छोटी- सी बात से ही विचलित हो जाता है।
एक शिष्य को गुरु पर इतना विस्वास था कि वह गुरु-गुरु कहते हुए विस्वास के बल पर नदी पार हो गया।
यह देखकर गुरु ने सोचा, सचमुच ही मुझमें इतनी शक्ति है, मुझे तो अबतक यह पता ही नहीं था।
दूसरे दिन गुरु मैं-मैं कहते हुए नदी पार होने गए; परन्तु पानी मे पैर रखते ही गिर पड़े औऱ अपने सम्भाल न पाकर डूब मरे।
विस्वास का परिणाम अद्भुत होता है।
परन्तु अहंकार से विनाश ही होता है।
स्वयं रामचंद्रजी को समुद्र पार करने के लिए सेतु बांधना पड़ा, परन्तु हनुमानजी केवल ‘जय श्री- राम’ कहकर एक ही छलांग में अनायास समुद्र लाँघ गए।
विश्वास में कितनी सामर्थ्य है।
कंटीली झाड़ियों से भरे मैदान पर से नंगे पैर नहीं चला जाता।
उस पर से चलने के लिए या तो पूरे मैदान को चमड़े से ढ ढँक देना होगा या तो अपने पैर में चमड़े के जूते चढ़ाने होंगे।
सचमुच मैदान को चमड़े से मढ़ना असंभव है, अतः पैरों में जुते पहनना ही उपयुक्त है।
इस तरह इस वासनापूर्ण संसार में असंख्य कामना -वासनाओं की पीड़ा से छुटकारा पाना हो, तो सभी वासनाओं की पूर्ति हो जानी चाहिए।
या फिर सभी का त्याग हो जाना चाहिए।
परन्तु वासनाओं का पूर्ति होना कभी सम्भव नहीं; क्योंकि एक वासना पूर्ति करने जाओ,तो दूसरी वासना आ खड़ी होती है।
इसलिए ज्ञान विचार सन्तोष के द्वारा वासनाओं का त्याग करना ही उपयुक्त है।
एक प्रकार की जहरीली मकड़ी होती है, वह यदि काट ले,तो कोइ दवा लगाने से पहले मंत्र के सहारे हल्दी का धुँआ देते हुए उसका विष उतारना पड़ता है।
उनके बाद ही दूसरी दवाओं का असर हो पाता है,अन्यथा नहीं।
इसी प्रकार जीव को कामिनी- काँचनरूपी जहरीली मकड़ी काट ले, तो पहले त्यागरुपी मंत्र से उनका जहर उतारना पड़ता है, तभी साधन भजन सफल हो पाता है।
जहाज में कंपास का काँटा सदा उत्तर की ओर रहता है, इसलिए जहाज की दिशा में भूल नहीं होती।
इसी प्रकार यदि मनुष्य का मन भी सदा ईश्वर की ओर रहे, तो उसे संसार सागर में दिशा चुकने का भय नहीं रहता।◾

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Posted in सुभाषित - Subhasit

આનંદમ્ પરમ સુખમ્ 👌🏼👌🏼👌🏼એક સાહિત્યપ્રેમી ગ્રુપ દર મહિનાના પહેલા શનિવારે મળે, સાહિત્યની વાતો કરે. પછી એક વિષય નકી કરે અને આવતી બેઠકમાં બધા એ વિષય પર પોતાના વિચારો લખીને લાવે અંતે રજૂ કરે. આ વખતની બેઠકમાં માઈકોફિકશનની વાત થઈ. બને એટલા ઓછા શબ્દોમાં પોતાની વાત ચોટદાર રીતે કહેવી. આવતા વખતનો વિષય નક્કી થયો *આનંદમ્ પરમ સુખમ.*

બધા આ વિષય પર ઓછામાં ઓછા શબ્દોમાં સમજાવવું.
એક મહિનો વીતી ગયો અને સાહિત્યપ્રેમી ગ્રુપની બેઠકમાં આજે ‘આનંદમ પરમ સુખમ’ પર બધાએ પોતાના વિચારો રજૂ કરવાનું શરૂ કર્યું. આનંદમ પરમ સુખમ એટલે?

એક આધેડ ઉમરના કાકા બોલ્યા, ઘરે પહોંચું તો ઓછું જોઈ શકતી મારી વૃદ્ધ મા મારી આહટ ઓળખીને કહે આવી ગયો દીકરા…. એટલે ‘આનંદમ પરમ સુખમ.’એક યુવાન બોલ્યો, *કંઈ વાંધો નહિ, બીજી નોકરી મળી જશે કહેતો...પત્નીનો હિંમત આપતો અવાજ એટલે 'આનંદમ પરમ સુખમ'.*

એક પિતાએ કહ્યું, કંઈ જ કહ્યા વિના બધું સમજી જતું સંતાન એટલે ‘આનંદમ પરમ સુખમ.’

એક ભાઈએ કહ્યું, રોજ ઈશ્વર સમક્ષ કોઈ માગણી વિનાની પ્રાર્થના એટલે ‘આનંદમ પરમ સુખમ.’એક કાકીએ કહ્યું, *રોજ જમતી વખતે આ પ્રભુકૃપા જ છે એનો અહેસાસ એટલે 'આનંદમ પરમ સુખમ્'.* એક કાકા બોલ્યા, *વહેલી સવારે મૉર્નિંગ વૉક પર પાછળથી ધબ્બો મારી... અલ્યા રસીકયા.... કહી વર્ષો પછી મળનાર જૂનો મિત્ર એટલે 'આનંદમ પરમ સુખમ.'* એક દાદા બોલ્યા, *પૌત્રના સ્વરૂપમાં મળી જતો એક નવો મિત્ર એટલે 'આનંદમ્ પરમ સુખમ. '*

બીજા કાકામે કહ્યું, સાસરે ગયેલી દીકરીની ખોટ પૂરી દેતી વહુનો મીઠો રણકો એટલે ‘આનંદમ પરમ સુખમ.’એક યુવતી બોલી, *ઓફિસેથી ઘરે પહોંચતાં સાસુમાએ આપેલો પાણીનો ગ્લાસ એટલે 'આનંદમ પરમ સુખમ'.*

એક મહિલાએ કહ્યું, થાકી ગયાં હોઈએ. ત્યારે વહાલથી પતિનું કહેવું કોઈ એક વસ્તુ બનાવ ચાલશે એટલે ‘આનંદમ પરમ સુખમ.’એક ભાઈએ કહ્યું, *પથારીમાં પડતાંવેત આંખ ક્યારે મીચાઈ જાય એ ખબર પણ ન પડે એટલે 'આનંદમ પરમ સુખમ'.*

આ બધાં ‘આનંદમ પરમ સુખમ’ ની વાતોમાં ક્યાંય પૈસા, મોંઘાં વસ્ત્રો કે દાગીના કે અન્ય ચીજો નથી એ ધ્યાનથી જોજો અને આવી કેટલીયે ‘આનંદમ પરમ સુખમ’ ની ક્ષણો તમારી પાસે છે એ તપાસી ઈશ્વરનો આભાર ચોક્કસ માનજો..
👍🏼🙏🏼

Posted in साकाहारी

माँसाहारी बन कर अपनी धार्मिक उर्जा खो मत देना।

आदमी को, स्वाभाविक रूप से, एक शाकाहारी होना चाहिए, क्यों कि पूरा शरीर शाकाहारी भोजन के लिए बना है।

वैज्ञानिक इस तथ्य को मानते हैं, कि मानव शरीर का संपूर्ण ढांचा दिखाता है, कि आदमी गैर-शाका-हारी नहीं होना चाहिए।

अब जांचने के तरीके हैं, कि जानवरों की एक निश्चित प्रजाति शाकाहारी है, या मांसाहारी, यह आंत पर निर्भर करता है, आंतों की लंबाई पर, मांसाहारी पशुओं के पास बहुत छोटी आंत होती है।

बाघ, शेर इन के पास बहुत ही छोटी आंत है, क्यों कि मांस पहले से ही एक पचा हुआ भोजन है। इसे पचाने के लिये लंबी आंत की जरूरत नहीं है।

पाचन का काम जानवर द्वारा कर दिया गया है।

अब तुम पशु का मांस खा रहे हो। यह पहले से ही पचा हुआ है, लंबी आंत की कोई जरूरत नहीं है।

आदमी की आंत सब से लंबी है, इस का मतलब है, कि आदमी शाकाहारी है। एक लंबी पाचनक्रिया की जरूरत है, और वहां बहुत मल-मूत्र होगा, जिसे बाहर निकालना होगा।

अगर आदमी मांसाहारी नहीं है, और वह मांस खाता चला जाता है, तो शरीर पर बोझ पड़ता है।

पूरब में, सभी महान ध्यानियों ने, बुद्ध, महावीर, ने इस तथ्य पर बल दिया है। अहिंसा की किसी अवधारणा की वजह से नहीं, वह गौण बात है, पर अगर तुम यथार्थत् गहरे ध्यान में जाना चाहते हो तो तुम्हारे शरीर को हल्का होने की जरूरत है।

प्राकृतिक, निर्भार, प्रवाहित। तुम्हारे शरीर को बोझ हटाने की जरूरत है, और एक मांसाहारी का शरीर बहुत बोझिल होता है।

जरा देखो, क्या होता है, जब तुम मांस खाते हो : –

जब तुम एक पशु को मारते हो, क्या होता है, पशु को, जब वह मारा जाता है ?

बेशक, कोई भी मारा जाना नहीं चाहता। जीवन स्वयं को लंबाना चाहता है, पशु स्वेच्छा से नहीं मर रहा है।

अगर कोई तुम्हें मारता है, तुम स्वेच्छा से नहीं मरोगे। अगर एक शेर तुम पर कूदता है, और तुम को मारता है, तुम्हारे मन पर क्या बीतेगी ?

वही होता है, जब तुम एक शेर को मारते हो। वेदना, भय, मृत्यु, पीड़ा, चिंता, क्रोध, हिंसा, उदासी ये सब चीजें पशु को होती हैं।

उस के पूरे शरीर पर हिंसा, वेदना, पीड़ा फैल जाती है।

पूरा शरीर विष से भर जाता है, शरीर की सब ग्रंथियां जहर छोड़ती हैं, क्यों कि जानवर न चाहते हुए भी मर रहा है। और फिर तुम मांस खाते हो, वह मांस सारा विष वहन करता है, जो कि पशु द्वारा छोड़ा गया है।

पूरी ऊर्जा जहरीली है। फिर वे जहर तुम्हारे शरीर में चले जाते हैं।

वह मांस जो तुम खा रहे हो एक पशु के शरीर से संबं-धित था। उस का वहां एक विशेष उद्देश्य था। चेतना का एक विशिष्ट प्रकार पशु-शरीर में बसता था।

तुम जानवरों की चेतना की तुलना में एक उच्च स्तर पर हो, और जब तुम पशु का मांस खाते हो, तुम्हारा शरीर सब से निम्न स्तर को चला जाता है, जानवर के निचले स्तर को।

तब तुम्हारी चेतना और तुम्हारे शरीर के बीच एक अंतर मौजूद होता है, और एक तनाव पैदा होता है और चिंता पैदा होती है।

व्यक्ति को वही चीज़ें खानी चाहिए जो प्राकृतिक हैं, तुम्हारे लिए प्राकृतिक….

फल, सब्जियां, मेवे आदि, खाओ जितना ज्यादा तुम खा सको। खूबसूरती यह है, कि तुम इन चीजों को जरूरत से अधिक नहीं खा सकते।

जो कुछ भी प्राकृतिक है, हमेशा तुम्हें संतुष्टि देता है, क्यों कि यह तुम्हारे शरीर को तृप्त करता है, तुम्हें भर देता है। तुम परिपूर्ण महसूस करते हो।

अगर कुछ चीज अप्रा-कृतिक है, वह तुम्हें कभी पूर्णता का एहसास नहीं देती। आइसक्रीम खाते जाओ, तुम को कभी नहीं लगता है, कि तुम तृप्त हो।

वास्तव में जितना अधिक तुम खाते हो, उतना अधिक तुम्हें खाते रहने का मन करता है। यह खाना नहीं है। तुम्हारे मन को धोखा दिया जा रहा है।

अब तुम शरीर की जरूरत के हिसाब से नहीं खा रहे हो, तुम केवल इसे स्वाद के लिए खा रहे हो। जीभ नियंत्रक बन गई है।

जीभ नियंत्रक नहीं होनी चाहिए, यह पेट के बारे में कुछ नहीं जानती। यह शरीर के बारे में कुछ भी नहीं जानती।

जीभ का एक विशेष उद्देश्य है, खाने का स्वाद लेना। स्वाभाविक रूप से, जीभ को परखना होता है, केवल यही चीज है, कौन सा खाना शरीर के लिए है, मेरे शरीर के लिए और कौन सा खाना मेरे शरीर के लिए नहीं है।

यह सिर्फ दरवाजे पर चौकीदार है, यह स्वामी नहीं है, और अगर दरवाजे पर चौकीदार स्वामी बन जाता है, तो सब कुछ अस्तव्यस्त हो जाएगा।

अब विज्ञापनदाता अच्छी तरह जानते हैं, कि जीभ को बरगलाया जा सकता है, नाक को बरगलाया जा सकता है। और वे स्वामी नहीं हैं। हो सकता है, तुम अवगत नहीं हो: भोजन पर दुनिया में अनुसंधान चलता रहता है, और वे कहते हैं, कि अगर तुम्हारी नाक पूरी तरह से बंद कर दी जाए, और तुम्हारी आंखें बंद हों, और फिर तुम्हें खाने के लिए एक प्याज दिया जाए, तुम नहीं बता सकते कि तुम क्या खा रहे हो।

तुम सेब और प्याज में अंतर नहीं कर सकते, अगर नाक पूरी तरह से बंद हो, क्यों कि आधा स्वाद गंध से आता है, नाक द्वारा तय किया जाता है, और आधा जीभ द्वारा तय किया जाता है।

ये दोनों नियंत्रक हो गए हैं। अब वे जानते हैं, कि आइसक्रीम पौष्टिक है, या नहीं यह बात नहीं है।

उस में स्वाद हो सकता है, उस में कुछ रसायन हो सकते हैं, जो जीभ को परितृप्त भले ही करें, मगर शरीर के लिए आवश्यक नहीं होते।

आदमी उलझन में है, भैंसों से भी अधिक उलझन में। तुम भैंसों को आइसक्रीम खाने के लिए राजी नहीं कर सकते। कोशिश करो !

एक प्राकृतिक खाना…और जब मैं प्राकृतिक कहता हूं, मेरा मतलब है, जो कि तुम्हारे शरीर की जरूरत है।

एक बाघ की जरूरत अलग है, उसे बहुत ही हिंसक होना होता है। यदि तुम एक बाघ का मांस खाओ तो तुम हिंसक हो जाओगे, लेकिन तुम्हारी हिंसा कहां व्यक्त होगी ?

तुम को मानव समाज में जीना है, एक जंगल में नहीं। फिर तुम को हिंसा को दबाना होगा। फिर एक दुष्चक्र शुरू होता है।

जब तुम हिंसा को दबाते हो, तब क्या होता है? जब तुम क्रोधित, हिंसक मह-सूस करते हो, एक तरह की जहरीली ऊर्जा निकलती है, क्यों कि वह जहर एक स्थिति उत्पन्न करता है, जहां तुम वास्तव में हिंसक हो सकते हो और किसी को मार सकते हो।

वह ऊर्जा तुम्हारे हाथ की ओर बहती है; वह ऊर्जा तुम्हारे दांतों की ओर बहती है। यही वे दो स्थान हैं जहां से जानवर हिंसक होते हैं। आदमी जानवरों के साम्राज्य का हिस्सा है।

जब तुम गुस्सा होते हो, तो ऊर्जा निकलती है, और यह हाथ और दांत तक आती है, जबड़े तक आती है, लेकिन तुम मानव समाज में जी रहे हो, और क्रोधित होना हमेशा लाभदायक नहीं है।

तुम एक सभ्य दुनिया में रहते हो और तुम एक जानवर की तरह बर्ताव नहीं कर सकते। यदि तुम एक जानवर की तरह व्यवहार करते हो, तो तुम्हें इसके लिए बहुत अधिक भुगतान करना पड़ेगा, और तुम उतना देने को तैयार नहीं हो।

तो फिर तुम क्या करते हो ?

तुम हाथ में क्रोध को दबा देते हो, तुम दांत में क्रोध को दबा देते हो, तुम एक झूठी मुस्कान चिपका लेते हो, और तुम्हारे दांत क्रोध को इकट्ठा करते जाते हैं।

मैंने शायद ही कभी प्राकृतिक जबड़े के साथ लोगों को देखा है।

वह प्राकृतिक नहीं होता, अवरुद्ध, कठोर क्यों कि उस में बहुत ज्यादा गुस्सा है। यदि तुम किसी व्यक्ति के जबड़े को दबाओ, क्रोध निकाला जा सकता है। हाथ बदसूरत हो जाते हैं।

वे मनोहरता खो देते हैं, वे लचीलापन खो देते हैं, क्यों कि बहुत अधिक गुस्सा वहां दबा है।

जो लोग गहरी मालिश पर काम कर रहे हैं, उन्हें पता चला है, कि जब तुम हाथ को गहराई से छूते हो, हाथ की मालिश करते हो, व्यक्ति क्रोधित होना शुरू होता है।

कोई कारण नहीं है। तुम आदमी की मालिश कर रहे हो और अचानक वह गुस्से का अनुभव करने लगता है।

यदि तुम जबड़े को दबाओ, व्यक्ति फिर गुस्सा हो जाता हैं। वे इकट्ठे किए हुए क्रोध को ढोते हैं। ये शरीर की अशुद्धताएं हैं, उन्हें निकालना ही है।

अगर तुम उन्हें नहीं निकालोगे तो, शरीर भारी रहेगा। हरे कृष्णा🙏

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गले का कैंसर था। पानी भी भीतर जाना मुश्किल हो गया, भोजन भी जाना मुश्किल हो गया। तो विवेकानंद ने एक दिन अपने गुरुदेव रामकृष्ण परमहंस से कहा कि ” आप माँ काली से अपने लिए प्रार्थना क्यों नही करते ? क्षणभर की बात है, आप कह दें, और गला ठीक हो जाएगा ! तो रामकृष्ण हंसते रहते , कुछ बोलते नहीं।

एक दिन बहुत आग्रह किया तो रामकृष्ण परमहंस ने कहा – ” तू समझता नहीं है रे नरेन्द्र। जो अपना किया है, उसका निपटारा कर लेना जरूरी है। नहीं तो उसके निपटारे के लिए फिर से आना पड़ेगा। तो जो हो रहा है, उसे हो जाने देना उचित है। उसमें कोई भी बाधा डालनी उचित नहीं है।” तो विवेकानंद बोले – ” इतना ना सही , इतना ही कह दें कम से कम कि गला इस योग्य तो रहे कि जीते जी पानी जा सके, भोजन किया जा सके ! हमें बड़ा असह्य कष्ट होता है, आपकी यह दशा देखकर । ” तो रामकृष्ण परमहंस बोले “आज मैं कहूंगा। “

जब सुबह वे उठे, तो जोर जोर से हंसने लगे और बोले – ” आज तो बड़ा मजा आया । तू कहता था ना, माँ से कह दो । मैंने कहा माँ से, तो मां बोली -” इसी गले से क्या कोई ठेका ले रखा है ? दूसरों के गलों से भोजन करने में तुझे क्या तकलीफ है ? “

हँसते हुए रामकृष्ण बोले -” तेरी बातों में आकर मुझे भी बुद्धू बनना पड़ा ! नाहक तू मेरे पीछे पड़ा था ना और यह बात सच है, जाहिर है, इसी गले का क्या ठेका है ? तो आज से जब तू भोजन करे, समझना कि मैं तेरे गले से भोजन कर रहा हू। फिर रामकृष्ण बहुत हंसते रहे उस दिन, दिन भर। डाक्टर आए और उन्होंने कहा, आप हंस रहे हैं ? और शरीर की अवस्था ऐसी है कि इससे ज्यादा पीड़ा की स्थिति नहीं हो सकती !

रामकृष्ण ने कहा – ” हंस रहा हूं इससे कि मेरी बुद्धि को क्या हो गया कि मुझे खुद खयाल न आया कि सभी गले अपने ही हैं। सभी गलों से अब मैं भोजन करूंगा ! अब इस एक गले की क्या जिद करनी है !”

कितनी ही विकट परिस्थिति क्यों न हो, संत कभी अपने लिए नहीं मांगते, साधू कभी अपने लिए नही मांगते, जो अपने लिए माँगा तो उनका संतत्व ख़त्म हो जाता है । वो रंक को राजा और राजा को रंक बना देते हैं लेकिन खुद भिक्षुक बने रहते हैं।

जब आत्मा का विश्वात्मा के साथ तादात्म्य हो जाता है तो फिर अपना – पराया कुछ नही रहता, इसलिए संत को अपने लिए मांगने की जरूरत नहीं क्योंकि उन्हें कभी किसी वस्तु का अभाव ही नहीं होता !

R K Varma