Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

कहानी है पुरानी कि लाओत्से को मानने वाला एक बूढ़ा अपने जवान बेटे के साथ–बूढ़े की उम्र है कोई नब्बे वर्ष–अपने जवान बेटे के साथ, दोनों अपने बगीचे में, जहां बैल या घोड़े जोतना चाहिए, पानी के मोट में दोनों जुत कर और पानी खींच रहे हैं। कनफ्यूशियस वहां से गुजरता है। कनफ्यूशियस और लाओत्से में वैसा ही विपरीत भेद है, जैसा अरस्तू और लाओत्से में। कनफ्यूशियस एरिस्टोटेलियन है और उसके सोचने का ढंग अरस्तू जैसा है। इसलिए पश्चिम कनफ्यूशियस को बहुत सम्मान दिया पिछले तीन सौ वर्षों में। लाओत्से का सम्मान अब बढ़ रहा है, अब खयाल में आया है, क्योंकि विज्ञान बड़ी अजीब हालत में पड़ गया और बड़ी मुश्किल में पड़ गया।
कनफ्यूशियस गुजरता है बगीचे के पास से। देखता है, नब्बे साल का बूढ़ा, अपने तीस साल के जवान बेटे को, दोनों जुते हैं, पसीने से तरबतर हो रहे हैं, पानी खींच रहे हैं। कनफ्यूशियस को दया आई। उसने कहा, पागल, तुम्हें पता नहीं मालूम होता है। बूढ़े के पास जाकर उसने कहा कि तुम्हें पता है कि अब तो शहरों में हमने घोड़ों से या बैलों से पानी खींचना शुरू कर दिया है! तुम क्यों जुते हुए हो इसके भीतर?
उस बूढ़े ने कहा, जरा धीरे कहो, मेरा जवान बेटा न सुन ले। कनफ्यूशियस बहुत हैरान हुआ। उसने कहा, जरा थोड़ी देर से आना, जब मेरा बेटा घर भोजन करने चला जाए।
जब बेटा चला गया, कनफ्यूशियस वापस आया और उसने कहा, तुमने बेटे को क्यों न सुनने दिया?
उस बूढ़े ने कहा कि मैं नब्बे साल का हूं और अभी तीस साल के जवान से लड़ सकता हूं। लेकिन अगर मैं अपने बेटे को घोड़े जुतवा दूं, तो नब्बे साल की उम्र में मेरे जैसा स्वास्थ्य उसके पास फिर नहीं होगा। घोड़ों के पास होगा, मेरे बेटे के पास नहीं होगा। यह बात तुम मत कहो। मेरा बेटा सुन ले तो उसका जीवन नष्ट हो जाए। हमें पता चल गया है, हमें पता चल गया है कि शहरों में घोड़े जुतने लगे हैं। और हमें यह भी पता चल गया है कि मशीनें भी बन गई हैं जो पानी को कुएं से खींच लें। और हमारा बेटा चाहेगा कि मशीनों से खींच ले। लेकिन जब मशीनें कुएं से पानी खींचेंगी, तो बेटा क्या करेगा? उसके शरीर का क्या होगा? उसके स्वास्थ्य का क्या होगा?
हम एक तरफ जो करते हैं, तत्काल उसका दूसरी तरफ परिणाम होता है। और लाओत्से सही है, तो परिणाम बहुत भयंकर होता है।
उदाहरण के लिए, हम गहरी नींद सोना चाहते हैं। तो जो आदमी गहरी नींद सोना चाहता है, वह विश्राम का प्रेमी है। और जो विश्राम का प्रेमी है, वह श्रम न करेगा। और जो श्रम न करेगा, वह गहरी नींद न सो सकेगा। लाओत्से कहता है, श्रम और विश्राम संयुक्त हैं। अगर तुम विश्राम चाहते हो, तो गहरा श्रम करो; इतना श्रम करो कि विश्राम उतर आए तुम्हारे ऊपर।
लेकिन हम अरस्तू के ढंग से सोचेंगे, तो विश्राम और श्रम तो विपरीत हैं। अगर मैं विश्राम का प्रेमी हूं और गहरी नींद लेना चाहता हूं, तो मैं दिन भर आराम से बैठा रहूं। लेकिन जो दिन भर आराम से बैठा रहेगा, रात का आराम उसका नष्ट हो जाएगा। क्योंकि विश्राम के लिए श्रम के द्वारा अर्जन करना पड़ता है। इट हैज टु बी अर्न्ड। विश्राम में जाना है, तो श्रम में अर्जन करना पड़ेगा। और या फिर बिना विश्राम के राजी रहना पड़ेगा।
तो यह बड़े मजेदार घटना घटती है कि जो विश्राम का प्रेमी है, वह दिन भर विश्राम करता है, रात की नींद खो देता है। और जितनी रात की नींद खोता है, दूसरे दिन उतना ही विश्राम करता है कि अब नींद की कमी पूरी कर ले। जितनी कमी पूरी करता है, उतनी रात की नींद नष्ट होती चली जाती है। एक दिन वह पाता है, एक चक्कर में पड़ गया है, जहां विश्राम असंभव हो जाता है।
लाओत्से कहता है, विश्राम चाहते हो तो उलटी तरफ जाओ, श्रम करो। क्योंकि श्रम और विश्राम विपरीत नहीं, सहयोगी, संगी हैं, साथी हैं। जितना गहरा श्रम करोगे, उतने गहरे विश्राम में चले जाओगे। और इससे उलटा भी सही है, जितने गहरे विश्राम में जाओगे, दूसरे दिन उतनी ही बड़ी श्रम की क्षमता लेकर जगोगे। अगर यह खयाल आ जाए, तो लाओत्से कहेगा कि सवाल विपरीत को नष्ट करने का नहीं है, सवाल विपरीत के उपयोग करने का है।
अरस्तू कहता है कि प्रकृति बीमारियां देती है, तो प्रकृति से लड़ो। इसलिए पश्चिम का पूरा विज्ञान प्रकृति से संघर्ष है। सारी भाषा लड़ाई की है। रसेल ने एक किताब लिखी है: कांक्वेस्ट ऑफ नेचर–प्रकृति पर विजय। यह सारा संघर्ष की भाषा है।
लाओत्से हंसेगा। लाओत्से कहेगा, तुम्हें पता ही नहीं है कि तुम प्रकृति के एक हिस्से हो। तुम विजय पा कैसे सकोगे? जैसे मेरा हाथ मेरे ऊपर विजय पाने निकल जाए, तो क्या होगा? जैसे मेरा पैर सोचने लगे कि मुझ पर विजय पा ले, तो क्या होगा? मूढ़ता होगी। लाओत्से कहता है, प्रकृति पर विजय नहीं पाई जा सकती, क्योंकि तुम प्रकृति हो। और जो विजय पाने चला है, वह प्रकृति का ही हिस्सा है। विजय पाने की कोशिश में तुम सिर्फ तनाव से भर जाओगे, संताप से भर जाओगे। प्रकृति को जीओ, विजय पाने मत जाओ। प्रकृति से लड़ कर तुम उसके राज मत पूछो, प्रकृति से प्रेम करो, उसमें डूबो, वह अपने राज खोल देती है।
ओशो

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प्रेरक प्रसंग : विश्वास और कर्म की शक्ति

एक बार एक यात्री मरुस्थलमें कहीं भटक गया । उसके पास खाद्य सामग्री समाप्त हो गई और पिछले दो दिनोंसे वह पानीकी एक-एक बूंदके लिए विचलित हो रहा था ।

वह मन ही मन जान चुका था कि अगले कुछ ही घण्टोंमें यदि उसे कहींसे जल नहीं मिला तो उसकी मृत्यु निश्चित है ।

उसे ईश्वरपर विश्वास था कि उसे जल मिल जाएगा… तभी उसे एक कुटिया दिखाई दी । उसे अपनी दृष्टिपर विश्वास ही नहीं हो रहा था । पहले भी वह मृगतृष्णा और भ्रमके कारण धोखा खा चुका था; परन्तु उसके पास विश्वास करनेके अतिरिक्त कोई मार्ग भी तो नहीं था ।

वह अपनी अन्तिम शक्तिसे कुटियाकी ओर रेंगने लगा और इस बार भाग्य भी उसके साथ था, सचमुच वहां एक कुटिया थी !

परन्तु ये क्या ? कुटिया तो वीरान पडी थी, मानो वर्षोंसे कोई वहां भटका न हो । तब भी जलकी आशामें वह कुटियाके भीतर घुसा ।

वहां एक ‘हैण्ड पम्प’ लगा हुआ था । वह एक नूतन उर्जासे भर गया । जलकी एक-एक बूंदके लिए तरसता हुआ, वह तीव्रतासे उसे चलाने लगा; वह यन्त्र कबका सूख चुका था । वह निराश हो गया । उसे लगा कि अब उसे मृत्यसे कोई नहीं बचा सकता । वह निढाल होकर गिर पडा ।

तभी उसे कुटियाकी छतसे बंधी जलसे भरी एक बोतल दिखी । वह किसी प्रकार उसकी ओर लपका ।

वह उसे खोलकर पीने ही वाला था कि तभी उसे बोतलसे चिपका एक कागद दिखा….उसपर लिखा था : इस जलका प्रयोग जलके ‘हैण्ड पम्प’को चलानेके लिए करो…और पुनः बोतल भरकर रखना नहीं भूलना ।

ये एक विचित्रसी स्थिति थी, उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो जल पिए या उसे ‘हैण्ड पम्प’के यन्त्रमें डालकर उसे पुनः चालू करे ।

उसके मनमें बहुत प्रश्न उठने लगे कि यदि जल डालनेसे भी ‘पम्प’ नहीं चला….? यदि यहां लिखी बात झूठी हुई ?…और क्या पता, भूमिके नीचेका जल भी सूख चुका हो ?…; किन्तु क्या पता, पम्प चल ही पडे….? क्या पता, यहां लिखी बात सच हो…? वह समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे !

तब कुछ सोचनेके पश्चात उसने बोतल खोली और कांपते हुए हाथोंसे जल उस ‘पम्प’में डालने लगा, उसने भगवानसे प्रार्थना की और ‘पम्प’ चलाने लगा…एक-दो-तीन….और उसमेंसे शीतल जल निकलने लगा !

वो जल किसी अमृतसे कम नहीं था । उसने जल पिया, उसकी प्राणशक्ति लौट आई, बुद्धि कार्य करने लगी । उसने बोतलमें पुनः जल भर दिया और उसे छतसे बांध दिया । जब वो ऐसा कर रहा था तभी उसे अपने सामने एक और कांचकी बोतल दिखाई दी । खोला तो उसमे एक ‘कलम’ और एक मानचित्र पडा हुआ था, जिसमें मरुस्थलसे निकलनेका मार्ग था ।

वहांसे जानेसे पहले भरी बोतलपर चिपके कागदपर लिखने लगा कि मेरा विश्वास कीजिए, यह यन्त्र कार्य करता है ।

कुछ बहुत बडा पानेसे पहले हमें अपनी ओरसे भी कुछ देना होता है । जैसे उस यात्रीने नल चलानेके लिए पडा हुआ बोतलका जल, उस जल खींचनेवाले ‘पम्प’में डाल दिया ।

देव ऋषि

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शुभ प्रभात

घास-बांस की प्रेरणास्पद कहानी जो देती है सबसे बड़ी सीख…

ये कहानी एक ऐसे व्यक्ति की है जो एक बिजनेसमैन था लेकिन उसका बिजनेस डूब गया और वो पूरी तरह हताश हो गया। वह अपने जीवन से बुरी तरह थक चुका था।

एक दिन परेशान होकर वो जंगल में गया और काफी देर वहां अकेला बैठा रहा। कुछ सोचकर भगवान से बोला – मैं हार चुका हूं, मुझे कोई एक वजह बताइये कि मैं क्यों ना हताश होऊं, मेरा सब कुछ खत्म हो चुका है।

भगवान ने जवाब दिया, ‘तुम जंगल में इस घास और बांस के पेड़ को देखो- जब मैंने घास और इस बांस के बीज को लगाया, मैंने दोनों की देखभाल की। बराबर पानी दिया, बराबर प्रकाश दिया।’

‘घास बहुत जल्दी बड़ी होने लगी और इसने धरती को हरा भरा कर दिया, लेकिन बांस का बीज बड़ा नहीं हुआ। लेकिन मैंने बांस के लिए अपनी हिम्मत नहीं हारी।’

भगवान ने बोलना जारी रखा, ‘दूसरे साल, घास और घनी हो गई। उस पर झाड़ियां आने लगीं, लेकिन बांस के बीज में कोई ग्रोथ नहीं हुई। लेकिन मैंने फिर भी बांस के बीज के लिए हिम्मत नहीं हारी। तीसरे साल भी बांस के बीज में कोई वृद्धि नहीं हुई, लेकिन मित्र मैंने फिर भी हिम्मत नहीं हारी। चौथे साल भी कोई ग्रोथ नहीं हुई लेकिन मैं लगा रहा।’

भगवान ने आगे कहा, ‘पांच साल बाद, उस बांस के बीज से एक छोटा-सा पौधा अंकुरित हुआ। घास की तुलना में यह बहुत छोटा और कमजोर था लेकिन केवल 6 महीने बाद यह छोटा-सा पौधा 100 फीट लंबा हो गया। मैंने बांस की जड़ को इतना बड़ा करने के लिए पांच साल का समय लगाया। इन पांच सालों में इसकी जड़ इतनी मजबूत हो गई कि 100 फिट से ऊंचे बांस को संभाल सके।’

सबक: जब भी तुम्हें जीवन में संघर्ष करना पड़े तो समझिए कि आपकी जड़ मजबूत हो रही है। संघर्ष आपको मजबूत बना रहा है जिससे कि आप आने वाले कल को सबसे बेहतरीन बना सको। किसी दूसरे से अपनी तुलना मत करो।🙏🏻🙏🏻