Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

♦️♦️♦️ रात्रि कहांनी ♦️♦️♦️

👉🏿स्वर्ग यहां और नरक भी यहां🏵️
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एक बुजुर्ग औरत मर गई, यमराज लेने आये।

औरत ने यमराज से पूछा, आप मुझे स्वर्ग ले जायेगें या नरक।

यमराज बोले दोनों में से कहीं नहीं।

तुमनें इस जन्म में बहुत ही अच्छे कर्म किये हैं, इसलिये मैं तुम्हें सिधे प्रभु के धाम ले जा रहा हूं।

बुजुर्ग औरत खुश हो गई, बोली धन्यवाद, पर मेरी आपसे एक विनती है।

मैनें यहां धरती पर सबसे बहुत स्वर्ग – नरक के बारे में सुना है मैं एक बार इन दोनों जगाहो को देखना चाहती हूं।

यमराज बोले तुम्हारे कर्म अच्छे हैं, इसलिये मैं तुम्हारी ये इच्छा पूरी करता हूं।

चलो हम स्वर्ग और नरक के रसते से होते हुए प्रभु के धाम चलेगें।

दोनों चल पडें, सबसे पहले नरक आया।

नरक में बुजुर्ग औरत ने जो़र जो़र से लोगो के रोने कि आवाज़ सुनी।

वहां नरक में सभी लोग दुबले पतले और बीमार दिखाई दे रहे थे।

औरत ने एक आदमी से पूछा यहां आप सब लोगों कि ऐसी हालत क्यों है।

आदमी बोला तो और कैसी हालत होगी, मरने के बाद जबसे यहां आये हैं, हमने एक दिन भी खाना नहीं खाया।

भूख से हमारी आतमायें तड़प रही हैं

बुजुर्ग औरत कि नज़र एक वीशाल पतिले पर पडी़, जो कि लोगों के कद से करीब 300 फूट ऊंचा होगा, उस पतिले के ऊपर एक वीशाल चम्मच लटका हुआ था।

उस पतिले में से बहुत ही शानदार खुशबु आ रही थी।

बुजुर्ग औरत ने उस आदमी से पूछा इस पतिले में क्या है।

आदमी मायूस होकर बोला ये पतिला बहुत ही स्वादीशट खीर से हर समय भरा रहता है।

बुजुर्ग औरत ने हैरानी से पूछा, इसमें खीर है

तो आप लोग पेट भरके ये खीर खाते क्यों नहीं, भूख से क्यों तड़प रहें हैं।

आदमी रो रो कर बोलने लगा, कैसे खायें

ये पतिला 300 फीट ऊंचा है हममें से कोई भी उस पतिले तक नहीं पहुँच पाता।

बुजुर्ग औरत को उन पर तरस आ गया
सोचने लगी बेचारे, खीर का पतिला होते हुए भी भूख से बेहाल हैं।

शायद ईश्वर नें इन्हें ये ही दंड दिया होगा

यमराज बुजुर्ग औरत से बोले चलो हमें देर हो रही है।

दोनों चल पडे़, कुछ दूर चलने पर स्वरग आया।

वहां पर बुजुर्ग औरत को सबकी हंसने,खिलखिलाने कि आवाज़ सुनाई दी।

सब लोग बहुत खुश दिखाई दे रहे थे।
उनको खुश देखकर बुजुर्ग औरत भी बहुत खुश हो गई।

पर वहां स्वरग में भी बुजुर्ग औरत कि नज़र वैसे ही 300 फूट उचें पतिले पर पडी़ जैसा नरक में था, उसके ऊपर भी वैसा ही चम्मच लटका हुआ था।

बुजुर्ग औरत ने वहां लोगो से पूछा इस पतिले में कया है।

स्वर्ग के लोग बोले के इसमें बहुत टेस्टी खीर है।

बुजुर्ग औरत हैरान हो गई

उनसे बोली पर ये पतिला तो 300 फीट ऊंचा है

आप लोग तो इस तक पहुँच ही नहीं पाते होगें

उस हिसाब से तो आप लोगों को खाना मिलता ही नहीं होगा, आप लोग भूख से बेहाल होगें

पर मुझे तो आप सभी इतने खुश लग रहे हो, ऐसे कैसे

लोग बोले हम तो सभी लोग इस पतिले में से पेट भर के खीर खाते हैं

औरत बोली पर कैसे,पतिला तो बहुत ऊंचा है।

लोग बोले तो क्या हो गया पतिला ऊंचा है तो

यहां पर कितने सारे पेड़ हैं, ईश्वर ने ये पेड़ पौधे, नदी, झरने हम मनुष्यों के उपयोग के लिये तो बनाईं हैं

हमनें इन पेडो़ कि लकडी़ ली, उसको काटा, फिर लकड़ीयों के तुकडो़ को जोड़ के वीशाल सिढी़ का निर्माण किया

उस लकडी़ की सिढी़ के सहारे हम पतिले तक पहुंचते हैं

और सब मिलकर खीर का आंनद लेते हैं

बुजुर्ग औरत यमराज कि तरफ देखने लगी

यमराज मुसकाये बोले

ईशवर ने स्वर्ग और नरक मनुष्यों के हाथों में ही सौंप रखा है,चाहें तो अपने लिये नरक बना लें, चाहे तो अपने लिये स्वरग, ईशवर ने सबको एक समान हालातो में डाला हैं

उसके लिए उसके सभी बच्चें एक समान हैं, वो किसी से भेदभाव नहीं करता

वहां नरक में भी पेेड़ पौधे सब थे, पर वो लोग खुद ही आलसी हैं, उन्हें खीर हाथ में चाहीये,वो कोई कर्म नहीं करना चाहते, कोई मेहनत नहीं करना चाहते, इसलिये भूख से बेहाल हैं

क्योंकि ये ही तो ईश्वर कि बनाई इस दुनिया का नियम है, जो कर्म करेगा, मेहनत करेगा, उसी को मीठा फल खाने को मिलेगा

दोस्तों ये ही आज का सुविचार है, स्वर्ग और नरक आपके हाथ में है
मेहनत करें, अच्छे कर्म करें और अपने जीवन को स्वर्ग बनाएं।

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अकबर ने एक ब्राह्मण को दयनीय हालत में जब भिक्षाटन करते देखा तो बीरबल की ओर व्यंग्य कसकर बोले – ‘बीरबल ! ये हैं तुम्हारे ब्राह्मण ! जिन्हें ब्रह्म देवता के रुप में जाना जाता है । ये तो भिखारी हैं ।

बीरबल ने उस समय तो कुछ नहीं कहा । लेकिन जब अकबर महल में चला गया तो बीरबल वापिस आया और ब्राह्मण से पूछा कि वह भिक्षाटन क्यों करता है ?

ब्राह्मण ने कहा – ‘मेरे पास धन, आभूषण, भूमि कुछ नहीं है और मैं ज्यादा शिक्षित भी नहीं हूँ । इसलिए परिवार के पोषण हेतू भिक्षाटन मेरी मजबूरी है ।

बीरबल ने पूछा – ‘भिक्षाटन से दिन में कितना प्राप्त हो जाता है ?

ब्राह्मण ने जवाब दिया – ‘छह से आठ अशर्फियाँ ।

बीरबल ने कहा – ‘आपको यदि कुछ काम मिले तो क्या आप भिक्षा मांगना छोड़ देंगे ?’

ब्राह्मण ने पूछा – ‘मुझे क्या करना होगा ?’

बीरबल ने कहा – ‘आपको ब्रह्ममुहूर्त में स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करके प्रतिदिन 101 माला गायत्री मन्त्र का जाप करना होगा और इसके लिए आपको प्रतिदिन भेंट स्वरूप 10 अशर्फियाँ प्राप्त होंगी ।’

बीरबल का प्रस्ताव ब्राह्मण ने स्वीकार कर लिया । अगले दिन से ब्राह्मण ने भिक्षाटन करना बन्द कर दिया और बड़ी श्रद्धा भाव से गायत्री मन्त्र जाप करना प्रारम्भ कर दिया और शाम को 10 अशर्फियाँ भेंट स्वरूप लेकर अपने घर लौट आता । ब्राह्मण की सच्ची श्रद्धा व लगन देखकर कुछ दिनों बाद बीरबल ने गायत्री मन्त्र जाप की संख्या और अशर्फियों की संख्या दोनों ही बढ़ा दीं ।

अब तो गायत्री मन्त्र की शक्ति के प्रभाव से ब्राह्मण को भूख, प्यास व शारीरिक व्याधि की तनिक भी चिन्ता नहीं रही । गायत्री मन्त्र जाप के कारण उसके चेहरे पर तेज झलकने लगा । लोगों का ध्यान ब्राह्मण की ओर आकर्षित होने लगा । दर्शनाभिलाषी उनके दर्शन कर मिठाई, फल, पैसे, कपड़े चढ़ाने लगे । अब तो उसे बीरबल से प्राप्त होने वाली अशर्फियों की भी आवश्यकता नहीं रही । यहाँ तक कि अब तो ब्राह्मण को श्रद्धा पूर्वक चढ़ाई गई वस्तुओं का भी कोई आकर्षण नहीं रहा । बस वह सदैव मन से गायत्री जाप में लीन रहने लगा ।

ब्राह्मण सन्त के नित्य गायत्री जप की खबर चारों ओर फैलने लगी । दूरदराज से श्रद्धालु दर्शन करने आने लगे । भक्तों ने ब्राह्मण की तपस्थली में मन्दिर व आश्रम का निर्माण करा दिया । ब्राह्मण के तप की प्रसिद्धि की खबर अकबर को भी मिली । बादशाह ने भी दर्शन हेतु जाने का फैंसला लिया और वह शाही तोहफे लेकर राजसी ठाठबाट में बीरबल के साथ सन्त से मिलने चल पड़े । वहाँ पहुँचकर शाही भेंटे अर्पण कर ब्राह्मण को प्रणाम किया । ऐसे तेजोमय सन्त के दर्शनों से हर्षित हृदय सहित बादशाह बीरबल के साथ बाहर आ गए ।

तब बीरबल ने पूछा – ‘क्या आप इस सन्त को जानतें हैं ?’

अकबर ने कहा – ‘नहीं, बीरबल मैं तो इससे आज पहली बार मिला हूँ ।’

फिर बीरबल ने कहा – ‘महाराज ! आप इसे अच्छी तरह से जानते हो । यह वही भिखारी ब्राह्मण है, जिस पर आपने व्यंग्य कसकर कहा था कि ”ये हैं तुम्हारे ब्राह्मण ! जिन्हें ब्रह्म देवता कहा जाता है ?”

आज आप स्वयं उसी ब्राह्मण के पैरों में शीश नवा कर आए हैं । अकबर के आश्चर्य की सीमा नहीं रही । बीरबल से पूछा – ‘लेकिन यह इतना बड़ा बदलाव कैसे हुआ ?

बीरबल ने कहा – ‘महाराज ! वह मूल रूप में ब्राह्मण ही है । परिस्थितिवश वह अपने धर्म की सच्चाई व शक्तियोंं से दूर था । धर्म के एक गायत्री मन्त्र ने ब्राह्मण को साक्षात् ‘ब्रह्म’ बना दिया और कैसे बादशाह को चरणों में गिरने के लिए विवश कर दिया । ‘यही ब्राह्मण आधीन मन्त्रों का प्रभाव है । यह नियम सभी ब्राह्मणों पर सामान रूप से लागू होता है क्योंकि ब्राह्मण आसन और तप से दूर रहकर जी रहे हैं, इसीलिए पीड़ित हैं। वर्तमान में आवश्यकता है कि सभी ब्राह्मण पुनः अपने कर्म से जुड़ें, अपने संस्कारों को जानें और मानें । मूल ब्रह्मरूप में जो विलीन होने की क्षमता रखता है वही ब्राह्मण है । यदि ब्राह्मण अपने कर्मपथ पर दृढ़ता से चले तो देव शक्तियाँ उसके साथ चल पड़ती हैं ।
शंकर शांडिल्य जी की wall से..🙏

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दादा चूहड़मल फूहड़मल दूध की दुकान में गए। बोले, भाई, कैसे लिटर दूध?

दुकानदार बोला, दादा, तीन रुपया फीका, चार रुपया मीठा।

दादा बोले, क्या? चार रुपया मीठा!

दुकानदार बोला, दादा, शक्कर देख रहे हो, सोलह रुपए किलो!

दादा बोले, अच्छा भाई, एक पाव मीठा दूध दे दो।

दुकानदार ने दूध दिया। दादा पीने के बाद बोले, इसमें तो शक्कर थी ही नहीं। अब पी गए, तो अब तो कोई प्रमाण बचा नहीं। धार्मिक आदमी का अपना गणित है। अब मुझे शक्कर दो। शक्कर ऊपर से खा लूंगा।

दुकानदार चौंका। लेकिन अब करे भी क्या! और भीड़ इकट्ठी हो गई और लोगों ने कहा कि साईं झूठ थोड़े ही बोलेंगे। अरे, बड़े धार्मिक गुरु हैं! क्या छोटी सी शक्कर के पीछे झूठ बोलेंगे? दे शक्कर।

भीड़-भाड़ और बाजार का मामला, अपनी बेइज्जती न करवाने के लिए बेचारे ने शक्कर दी। दादा ने शक्कर खाई और शक्कर खाकर लुढ़कने लगे। कुलाटी खाने लगे। तरहत्तरह के आसनादि करने लगे। भीड़ और इकट्ठी हो गई। खासा सर्कस दादा ने खड़ा कर दिया। धार्मिक आदमी जो न करे थोड़ा! दुकानदार बहुत घबड़ाया। बोला कि साईं, अब क्या हुआ। अब क्या चाहिए, बाबा बोलो!

दादा कुछ बोलें ही नहीं। वे तो कुलाटे पर कुलाटे खाते जा रहे। दुकानदार ने सोचा कि शायद मेरे दूध में कुछ गड़बड़ी है। उसने सारा दूध फिंकवा दिया। और भी जो दुकानदार उसका दूध बेचते थे, उन्होंने भी सारा दूध फेंक दिया। जब सब दूध फेंक चुके तो दादा उठकर बोले, मेरे पैसे वापस कर। किसी की जान लेगा? अभी पुलिस में जाकर रिपोर्ट करता हूं।

सो उसने घबड़ाहट में उनके पैसे भी दे दिए और फिर बोला कि साईं, अब यह तो बताओ कि आपको आखिर हो क्या गया था? क्योंकि जिंदगी मुझे दूध बेचते हो गई, मेरे बाप-दादे दूध बेचते थे, उनके बाप-दादे भी दूध बेचते थे, लेकिन दूध ने कभी ऐसा कार्य करके नहीं दिखाया। हुआ क्या?

शीर्षासन और तरहत्तरह के आसन इत्यादि जितने भी योगासन जानते थे दादा ने सब करके दिखा दिए। कुछ और अपने भी जोड़ दिए। उसने कहा कि दूध में कोई खराबी रही होगी, मानता हूं। शक्कर में कोई खराबी रही होगी, मानता हूं। मगर ऐसी खराबी न सुनी कभी, न कभी देखी। अरे, आदमी बीमार हो जाए, वमन हो जाए। मगर ये इस तरह की कुलाटियां और यह सर्कस! सच कहना साईं आपको क्या हो गया था?

दादा हंसते हुए बोले, हुआ क्या था, अरे, मैं तो दूध में शक्कर मिला रहा था।

दादाओं ने धर्म खड़े किए हैं–बड़े गुरुघंटालों ने।

दादा चूहड़मल फूहड़मल अपने भक्तों के साथ एक बूढ़ी अमीर महिला को लूटने के लिए एक ट्राली एक ट्रेक्टर के पीछे बांधकर ले गए। उस महिला का सब मूल्यवान सामान ट्राली में डाला, तो महिला ने शोर मचाना शुरू किया। दादा ने उस महिला को भी उठाकर ट्राली में बिठा दिया। महिला चिल्लाने लगी कि मैं तो लुट गई, कि मैं तो मर गई! तब दादा और उसके भक्त हारमोनियमत्तबले वगैरह के साथ कहने लगे कि बुढ़िया सच कहती है, कि बुढ़िया सच कहती है! रास्ते भर वह रोती रही, चिल्लाती रही कि मैं तो लुट गई, कि मैं तो मर गई! और दादा और उसके भक्त ताल में गाते रहे कि बुढ़िया सच कहती है! रास्ते में खड़े हुए लोग हंसते, पुलिस वाले हंसते। और कहते कि भई बुढ़िया सच कहती है। अरे, दुनिया में सभी लुट रहे हैं! बुढ़िया और जोर-जोर से चिल्लाती कि बचाओ, मैं लुट गई! मगर दादा का भजन और भक्तों की धुन। सभी लोग कहते कि वाह, क्या कीर्तन-मंडली है!

इसको कहते हैं धार्मिक डाका। धर्म के नाम पर धार्मिक डाके पड़ते रहे हैं।

इसलिए मैं कहता हूं कि ईश्वर व्यक्ति नहीं, उपस्थिति है। जब तुम खुमारी में डूब जाओगे तो जानोगे।
ओशो

Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

1971 के युद्ध के उपरान्त 90,000 पाकिस्तानियों को बन्दी बनाया गया। बन्दी शिविर में पाकिस्तानी सेना के सूबेदार मेजर के खेमे में बाहर से किसी ने अंदर आने की अनुमति मांगी। पराजय के उपरान्त इस प्रकार का सम्मान प्रायः अनअपेक्षित होता है। सूबेदार मेजर ने जब देखा तो वहाँ कोई और नहीं, विजयी भारतीय सेना के प्रमुख – जनरल सैम मानेकशॉ खड़े थे। वहाँ पाकिस्तानी बंधकों के लिए की गयी व्यवस्था के बारे में पूछने के बाद सैम बहादुर ने पाकिस्तानी विधवाओं को ढाँढस बँधाया, उनके द्वारा बनाया हुआ भोजन चखा, और सबसे मिले जुले।
जब वे जाने लगे तो सूबेदार मेजर ने उनसे कुछ कहने की अनुमति मांगी। सूबेदार मेजर ने कहा – “मुझे अब मालूम चला कि भारत युद्ध क्यों जीता। वह इसलिए क्योंकि आप अपने सैनिकों का ख्याल रखते हैं। जिस तरह आप हमें मिलने आये, वैसे तो हमारे खुद के लोग हमसे नहीं मिलते। वो तो अपने आपको नवाबज़ादे समझते हैं। “
कुछ ऐसे थे फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ, जो दुश्मनों को भी अपना कायल बना लेते थे।
भारत के इस सपूत को उनकी जन्मतिथि पर मेरा सादर नमन।

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