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नमक का स्वाद……..

एक बार एक परेशान और निराश व्यक्ति अपने गुरु के पास पहुंचा और बोला – “गुरूजी मैं जिंदगी से बहुत परेशान हूँ। मेरी जिंदगी में परेशानियों और तनाव के सिवाय कुछ भी नहीं है। कृपया मुझे सही राह दिखाइये।” गुरु ने एक गिलास में पानी भरा और उसमें मुट्ठी भर नमक डाल दिया।

फिर गुरु ने उस व्यक्ति से पानी पीने को कहा। उस व्यक्ति ने ऐसा ही किया। गुरु :- इस पानी का स्वाद कैसा है?? “बहुत ही ख़राब है” उस व्यक्ति ने कहा। फिर गुरु उस व्यक्ति को पास के तालाब के पास ले गए। गुरु ने उस तालाब में भी मुठ्ठी भर नमक डाल दिया।

फिर उस व्यक्ति से कहा – इस तालाब का पानी पीकर बताओ की कैसा है। उस व्यक्ति ने तालाब का पानी पिया और बोला – गुरूजी यह तो बहुत ही मीठा है। गुरु ने कहा – “बेटा जीवन के दुःख भी इस मुठ्ठी भर नमक के समान ही है। जीवन में दुखों की मात्रा वही रहती है – न ज्यादा न कम।

लेकिन यह हम पर निर्भर करता है कि हम दुखों का कितना स्वाद लेते है। यह हम पर निर्भर करता है कि हम अपनी सोच एंव ज्ञान को गिलास की तरह सीमित रखकर रोज खारा पानी पीते है या फिर तालाब की तरह बनकर मीठा पानी पीते है।”

सीख:-
“एक मुट्ठी भर नमक, एक गिलास में भरे मीठे पानी को खारा बना सकता है लेकिन वही मुट्ठी भर नमक अगर तालाब या झील में डाल दिया जाए तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा। इसी तरह अगर हमारे भीतर सकारात्मक उर्जा का स्तर ऊँचा है तो छोटी-छोटी परेशानियों एंव समस्याओं से हमें कोई फर्क नहीं पड़ेगा।”

बस ईश्वर पर भरोसा छोड कर उनका भजन करते रहिये हर समस्या का समाधान सिर्फ़ वो ही कर सकते है हम तो सिर्फ़ दुःखी हो सकते हैं चिंता ही कर सकते हैं हमारी दुःखों का निधान तो वही कृपानिधान ही कर सकते है सिर्फ़ उनका चिंतन कीजिए

जब तक आप अपनी समस्याओं एंव कठिनाइयों की वजह दूसरों को मानते है, तब तक आप अपनी समस्याओं एंव कठिनाइयों को मिटा नहीं सकते।

हर में हरि बसे और
हर को हरि की आस
हरि हरि को मैं ढूँढ फिरी
और हरि है मेरे पास..🌹❤️

जय जय श्रीराधे

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✍️अवश्य यह कहानी एक हास्य है परंतु एक विशेष बात पर केंद्रित करती है, आप सब भी गंभीरता के साथ पढ़े और अवलोकन करें…

जंगल के स्कूल का रिजल्ट ✍️🖌️🖋️हुआ यूँ कि जंगल के राजा शेर ने ऐलान कर दिया कि अब आज के बाद कोई अनपढ़ न रहेगा। हर पशु को अपना बच्चा स्कूल भेजना होगा। राजा साहब का स्कूल पढ़ा-लिखाकर सबको Certificate बँटेगा। सब बच्चे चले स्कूल। हाथी का बच्चा भी आया, शेर का भी, बंदर भी आया और मछली भी, खरगोश भी आया तो कछुआ भी, ऊँट भी और जिराफ भी।

FIRST UNIT TEST/EXAM हुआ तो हाथी का बच्चा फेल।

“किस Subject में फेल हो गया जी?”

“पेड़ पर चढ़ने में फेल हो गया, हाथी का बच्चा।”

“अब क्या करें?”

“ट्यूशन दिलवाओ, कोचिंग में भेजो।” *अब हाथी की जिन्दगी का एक ही मक़सद था कि हमारे बच्चे को पेड़ पर चढ़ने में Top कराना है।* किसी तरह साल बीता। Final Result आया तो हाथी, ऊँट, जिराफ सब फेल हो गए। बंदर की औलाद first आयी। Principal ने Stage पर बुलाकर मैडल दिया। बंदर ने उछल-उछल के कलाबाजियाँ दिखाकरगुलाटियाँ मार कर खुशी का इजहार किया। *उधर अपमानित महसूस कर रहे हाथी, ऊँट और जिराफ ने अपने-अपने बच्चे कूट दिये*। नालायकों, इतने महँगे स्कूल में पढ़ाते हैं तुमको | ट्यूशन-कोचिंग सब लगवाए हैं। फिर भी आज तक तुम पेड़ पर चढ़ना नहीं सीखे। *सीखो, बंदर के बच्चे से सीखो कुछ, पढ़ाई पर ध्यान दो।* फेल हालांकि मछली भी हुई थी। बेशक़ Swimming में First आयी थी पर बाकी subject में तो फेल ही थी। मास्टरनी बोली, *"आपकी बेटी के साथ attendance की problem है।"* मछली ने बेटी को आँखें दिखाई। बेटी ने समझाने की कोशिश की कि, *"माँ, मेरा दम घुटता है इस स्कूल में। मुझे साँस ही नहीं आती। मुझे नहीं पढ़ना इस स्कूल में। हमारा स्कूल तो तालाब में होना चाहिये न?"* नहीं, ये राजा का स्कूल है। *तालाब वाले स्कूल में भेजकर मुझे अपनी बेइज्जती नहीं करानी। समाज में कुछ इज्जत Reputation है मेरी। तुमको इसी स्कूल में पढ़ना है। पढ़ाई पर ध्यान दो।*" हाथी, ऊँट और जिराफ अपने-अपने Failure बच्चों को पीटते हुए ले जा रहे थे। रास्ते में बूढ़े बरगद ने पूछा, *"क्यों पीट रहे हो, बच्चों को?"* जिराफ बोला, *"पेड़ पर चढ़ने में फेल हो गए?"* बूढ़ा बरगद सबसे पते की बात बोला, *"पर इन्हें पेड़ पर चढ़ाना ही क्यों है ?"* उसने हाथी से कहा, *"अपनी सूंड उठाओ और सबसे ऊँचा फल तोड़ लो। जिराफ तुम अपनी लंबी गर्दन उठाओ और सबसे ऊँचे पत्ते तोड़-तोड़ कर खाओ।"* ऊँट भी गर्दन लंबी करके फल पत्ते खाने लगा। *हाथी के बच्चे को क्यों चढ़ाना चाहते हो पेड़ पर? मछली को तालाब में ही सीखने दो न?*

दुर्भाग्य से आज स्कूली शिक्षा का पूरा Curriculum और Syllabus सिर्फ बंदर के बच्चे के लिये ही Designed है। इस स्कूल में 35 बच्चों की क्लास में सिर्फ बंदर ही First आएगा। बाकी सबको फेल होना ही है। हर बच्चे के लिए अलग Syllabus, अलग subject और अलग स्कूल चाहिये। *हाथी के बच्चे को पेड़ पर चढ़ाकर अपमानित मत करो। जबर्दस्ती उसके ऊपर फेलियर का ठप्पा मत लगाओ। ठीक है, बंदर का उत्साहवर्धन करो पर शेष 34 बच्चों को नालायक, कामचोर, लापरवाह, Duffer, Failure घोषित मत करो।* *मछली बेशक़ पेड़ पर न चढ़ पाये पर एक दिन वो पूरा समंदर नाप देगी।*

शिक्षा – अपने बच्चों की क्षमताओं व प्रतिभा की कद्र करें चाहे वह पढ़ाई, खेल, नाच, गाने, कला, अभिनय, BUSINESS, खेती, बागवानी, मकेनिकल, किसी भी क्षेत्र में हो और उन्हें उसी दिशा में अच्छा करने दें | जरूरी नहीं कि सभी बच्चे पढ़ने में ही अव्वल हो बस जरूरत हैं उनमें अच्छे संस्कार व नैतिक मूल्यों की जिससे बच्चे गलत रास्ते नहीं चुने l
सभी अभिभावकों को सादर समर्पित।🙏🆚

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बहुत सुंदर प्रसंग
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एक राजा ने यह ऐलान करवा दिया कि कल सुबह जब मेरे महल का मुख्य दरवाज़ा खोला जायेगा तब जिस शख़्स ने भी महल में जिस चीज़ को हाथ लगा दिया वह चीज़ उसकी हो जाएगी।
इस ऐलान को सुनकर सब लोग आपस में बातचीत करने लगे कि मैं तो सबसे क़ीमती चीज़ को हाथ लगाऊंगा।
कुछ लोग कहने लगे मैं तो सोने को हाथ लगाऊंगा, कुछ लोग चांदी को तो कुछ लोग कीमती जेवरात को, कुछ लोग घोड़ों को तो कुछ लोग हाथी को, कुछ लोग दुधारू गाय को हाथ लगाने की बात कर रहे थे।
जब सुबह महल का मुख्य दरवाजा खुला और सब लोग अपनी अपनी मनपसंद चीज़ों के लिये दौड़ने लगे।
सबको इस बात की जल्दी थी कि पहले मैं अपनी मनपसंद चीज़ों को हाथ लगा दूँ ताकि वह चीज़ हमेशा के लिए मेरी हो जाऐ।
राजा अपनी जगह पर बैठा सबको देख रहा था और अपने आस-पास हो रही भाग दौड़ को देखकर मुस्कुरा रहा था।
उसी समय उस भीड़ में से एक शख्स राजा की तरफ बढ़ने लगा और धीरे-धीरे चलता हुआ राजा के पास पहुँच कर उसने राजा को छू लिया।
राजा को हाथ लगाते ही राजा उसका हो गया और राजा की हर चीज भी उसकी हो गयी।
जिस तरह राजा ने उन लोगों को मौका दिया और उन लोगों ने गलतियां की।
ठीक इसी तरह सारी दुनियाँ का मालिक भी हम सबको हर रोज़ मौक़ा देता है, लेकिन अफ़सोस हम लोग भी हर रोज़ गलतियां करते हैं।
हम प्रभु को पाने की बजाए उस परमपिता की बनाई हुई दुनियाँ की चीजों की कामना करते हैं। लेकिन कभी भी हम लोग इस बात पर गौर नहीं करते कि क्यों न दुनियां के बनाने वाले प्रभु को पा लिया जाए
अगर प्रभु हमारे हो गए तो ही उसकी बनाई हुई हर चीज भी हमारी हो जाएगी
🙏🙏🙏 🙏

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🌳🦚आज की कहानी🦚🌳

💐💐समस्या का समाधान💐💐

एक दस वर्षीय लड़का रोज अपने पिता के साथ पास की पहाड़ी पर सैर को जाता था।
एक दिन लड़के ने कहा, “पिताजी चलिए आज हम दौड़ लगाते हैं, जो पहले चोटी पे लगी उस झंडी को छू लेगा वो रेस जीत जाएगा !”
पिताजी तैयार हो गए।
दूरी काफी थी, दोनों ने धीरे-धीरे दौड़ना शुरू किया।
कुछ देर दौड़ने के बाद पिताजी अचानक ही रुक गए।

“क्या हुआ पापा, आप अचानक रुक क्यों गए, आपने अभी से हार मान ली क्या?”, लड़का मुस्कुराते हुए बोला।
“नहीं-नहीं, मेरे जूते में कुछ कंकड़ पड़ गए हैं, बस उन्ही को निकालने के लिए रुका हूँ।”, पिताजी बोले।
लड़का बोला, “अरे, कंकड़ तो मेरे भी जूतों में पड़े हैं, पर अगर मैं रुक गया तो रेस हार जाऊँगा…”, और ये कहता हुआ वह तेजी से आगे भागा।

पिताजी भी कंकड़ निकाल कर आगे बढे, लड़का बहुत आगे निकल चुका था, पर अब उसे पाँव में दर्द का एहसास हो रहा था, और उसकी गति भी घटती जा रही थी। धीरे-धीरे पिताजी भी उसके करीब आने लगे थे।

लड़के के पैरों में तकलीफ देख पिताजी पीछे से चिल्लाये,” क्यों नहीं तुम भी अपने कंकड़ निकाल लेते हो?”
“मेरे पास इसके लिए टाइम नहीं है !”, लड़का बोला और दौड़ता रहा।
कुछ ही देर में पिताजी उससे आगे निकल गए।
चुभते कंकडों की वजह से लड़के की तकलीफ बहुत बढ़ चुकी थी और अब उससे चला नहीं जा रहा था, वह रुकते-रुकते चीखा, “पापा, अब मैं और नहीं दौड़ सकता !”
पिताजी जल्दी से दौड़कर वापस आये और अपने बेटे के जूते खोले, देखा तो पाँव से खून निकल रहा था।

वे झटपट उसे घर ले गए और मरहम-पट्टी की।
जब दर्द कुछ कम हो गया तो उन्होंने समझाया,” बेटे, मैंने आपसे कहा था ना पहले अपने कंकडों को निकाल लो फिर दौड़ो।”
“मैंने सोचा मैं रुकुंगा तो रेस हार जाऊँगा !” बेटा बोला।

“ ऐसा नही है बेटा, अगर हमारी लाइफ में कोई प्रॉब्लम आती है तो हमे उसे ये कह कर टालना नहीं चाहिए कि अभी हमारे पास समय नहीं है।

दरअसल होता क्या है, जब हम किसी समस्या को अनदेखी करते हैं तो वो धीरे-धीरे और बड़ी होती जाती है और अंततः हमें जितना नुक्सान पहुंचा सकती थी उससे कहीं अधिक नुक्सान पहुंचा देती है। तुम्हे पत्थर निकालने में मुश्किल से 1 मिनट का समय लगता पर अब उस 1 मिनट के बदले तुम्हे 1 हफ्ते तक दर्द सहना होगा। “ पिताजी ने अपनी बात पूरी की।
दोस्तों हमारा जीवन ऐसी तमाम कंकडों से भरा हुआ है l

शुरू में ये समस्याएं छोटी जान पड़ती है और हम इन पर बात करने या इनका समाधान खोजने से बचते हैं, पर धीरे-धीरे इनका रूप बड़ा हो जाता है l

समस्याओं को तभी पकडिये जब वो छोटी हैं वर्ना देरी करने पर वे उन कंकडों की तरह आपका भी खून बहा सकती हैं..!!

💐💐 💐💐

सदैव प्रसन्न रहिये।
जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।
🙏🙏🙏🙏🌳🌳🙏🙏🙏🙏🙏

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक, भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

“ધ લોક ઓફ નિલમબાગ”

અઢાર સો પાદરના ધણી ભાવનગરનાં મહારાજા કૃષ્ણકુમારસિંહજી એક વખત નગરચર્ચામાં નીકળે છે. તે વખતે તેમને “અન્નદાતા – જય માતાજી” એવા શબ્દો કાનમાં અથડાયા. મહારાજા પાછું ફરી જુવે તો સામે જેની આંખમાં ખુમારી છે તેવો બકરીઓ ચરાવતો એક ગરીબ યુવાન પોતાના મહારાજાને આદરથી પ્રણામ કરીને ઉભો હતો.
“શું નામ છે તારું?” રાજાએ પુછ્યું.
“મુબારક, અન્નદાતા યુવાને જવાબ આપ્યો.
ફરી મહારાજાએ પૂછ્યું, કે ભાવનગર માટે કામ કરીશ ?”
“જરૂર મહારાજ, કેમ નહી!”
તેમને નિલમબાગ પેલેસમાં ચોકીદારની નોકરી આપવામાં આવી. ધીરે ધીરે તેમની ઈમાનદારી જોઇને તેમને નિલમબાગ પેલેસના રાજખજાનાની ચાવીઓની જવાબદારી સોપવામાં આવી. રાજખજાનામાં મહારાણીના મોંઘા ઘરેણાં પણ રહેતા. મહારાણીને જયારે પ્રસંગોપાત ઘરેણાં જોઈતા હોય ત્યારે મુબારક ચાવીઓ આપે એટલે મહારાણી તેમાંથી જોઈતા ઘરેણાં લઇ લે અને પછી ફરીથી એજ પટારાઓ ઘરેણાં મૂકીને ચાવીઓ મુબારકને સોંપી દે, આ નિત્યક્રમ હતો, આજ ઘરેણાંઓમાં મહારાણીને સૌથી પ્રિય એવો હીરાજડિત હાર પણ રહેલો હતો.

એક વખત એવું બન્યું કે પટારામાં એ હાર જોવા ના મળ્યો, મહારાણીએ ખુબ શોધ્યો પણ હાર મળે જ નહિ. મહારાણીને મુબારક પર અપાર ભરોસો હતો તેમ છતાંય નાનો માણસ છે ભૂલ નહિ કરી હોય ને એવા વિચારોથી બેચેન રહેવા લાગ્યાં. થોડા સમય પછી મહારાણીની બેચેની ભાવનગર મહારાજથી છુપી ના રહી. કારણ પૂછવામાં આવ્યું ત્યારે રાજહઠ સામે મહારાણીએ હાર અંગે આખી વાત કરી. ભાવનગર મહારાજાએ તરત જ આદેશ કર્યો કે મુબારકને રાજદરબારમાં હાજર કરો. નિલમબાગ પેલેસની ચોકીદારી કરતો મુબારક જયારે ભાવનગર ઠાકોર સાહેબ સમક્ષ હાજર થયો ત્યારે હાર અંગે પ્રેમથી મુબારકને પૂછવામાં આવ્યું ત્યારે મુબારકએ આ અંગે સાવ અજાણ હોવાનું જણાવ્યું. ભાવનગર મહારાજાએ પણ મુબારકને કોઈ ઠપકો આપ્યા વગર જવા દીધો, પરંતુ મુબારક હારની ચોરીના લાગેલા “આણ”થી બેચેન બની ગયો. સીધો જ ઘરે ગયો અને નમાજનો રૂમાલ પાથરી આકાશ તરફ મીટ માંડીને અલ્લાતાલાને એક જ અરજ કરી કે “જો મેં ઈમાનદારીપૂર્વક નોકરી કરી હોય અને ક્યારેય હું ઈમાન ચુક્યો ના હોય તો ક્યાં તો ચોરીના આ આણમાંથી મુક્ત કરાવજે ને ક્યાં તો મને મારા શરીરથી જીવને “બસ આટલો જ અંતરનો પોકાર કરીને ઘરના એક ખૂણામાં બેસીને પ્રાર્થના કરવા લાગ્યો અને અન્ન જળનો ત્યાગ કરી દીધો.

કુદરતનો પણ એક સર્વસ્વીકૃત નિયમ છે. “સત્યની કસોટી થાય પણ છેવટે જીતતો સત્યની જ થાય” એજ રાત્રે અચાનક મહારાણીને ગાઢ નિંદ્રામાંથી અચાનક જ એકાએક બેઠા થઇ ગયા ને યાદ આવી ગયું કે ઉતાવળમાં હાર પટારામાં મુક્યો જ નહોતો પણ અરીસા પાસે રાખી દીધો હતો. તરત જ તપાસ કરતા હાર મળી આવ્યો.

રાત્રે જ ભાવનગર મહારાજને હાર મળી ગયાની જાણ કરવામાં આવી. બંનેને ખુબ પસ્તાવો થયો કે “મુબારક પર ખોટી શંકા કરી એક નેક ઈન્શાનનો આત્મો દુભાવ્યો “સવારે મુબારકને નિલમબાગ પેલેસના રાજદરબારમાં બોલાવવામાં આવ્યો અને હાર મળી ગયાની જાણ કરી અને આત્મો દુભાયો હોય તો માફી માગી.

હાર મળી ગયો છે એ વાતની ખબર પડતાં જ મુબારકના જાણે જીવમાં જીવ આવ્યો હોય એમ “આકાશ ભણી મીટ માંડીને સજળ નયને એટલું જ બોલ્યો કે “હે પરવર દિગાર તે આજ મારી ઇજ્જત બચાવી લીધી” બસ આટલું કહીને મુબારકે રાજખજાનાની ચાવીઓ ભાવનગર મહારાજાને સોંપી દીધી. ભાવનગર મહારાજાએ ખુબ આગ્રહ કર્યો ત્યારે માંડ મુબારક ફરીથી” ચોકીદાર” તરીકે નોકરીએ રહેવા સહમત થયો. વર્ષો સુધી મુબારક નિલમબાગ પેલેસની ચોકીદારી કરતો રહ્યો. મુબારકની ઈમાનદારી – વફાદારી અને કર્તવ્ય નિષ્ઠા પર કોઈ શક ન કરી શકે એવી છાપ અને ધાક મુબારકની ભાવનગર રાજમાં વર્તાતી.

વર્ષો બાદ એક દિવસ ભાવનગર મહારાજને સમાચાર મળ્યા કે “નિલમબાગ પેલેસનો ચોકીદાર “મુબારક” આજ અલ્લાહને પ્યારો થઇ ગયો છે. મહારાજાને પણ આંખે આંસુ આવી ગયા. પોતાના સેવકોને આદેશ કર્યો કે “મુબારક” નો જનાજો નીકળે ત્યારે મને જાણ કરજો મારે મારા મુબારકને અંતિમ વિદાય અને કાંધ આપવા જવું છે.

મુબારકના મૃત્યુને કલાકો વીતવા છતાં મુબારકના જનાજાના સમાચાર ના મળતા ભાવનગર મહારાજાએ તપાસ કરાવવા માણસોને મોકલ્યા ત્યારે ખબર પડી કે મુબારકને જનાજામાં ઓઢાડવાનું કફન ખરીદવાના પણ મુબારકના પરિવાર પાસે પૈસા નથી. ભાવનગર મહારાજા આટલું સાંભળતા જ ચોધાર આંસુએ રડી પડ્યા કે “નિલમબાગ પેલેસના રાજ ખજાનાની ચાવીઓ” જેને હસ્તક રહેતી એવા મારા મુબારકની આવી હાલત? તરત જ ભાવનગર મહારાજાએ હુકમ કર્યો કે “ભાવનગર રાજને શોભે એ રીતે મુબારકની અંતિમવિધિ કરવામાં આવે અને મુબારકના પરિવારને તમામ મદદ કરવામાં આવે” અને મુબારકની આવી હાલત કેમ થઇ એની તપાસ કરતા માલુમ પડ્યું કે મુબારકને જે પગાર મળતો તે જરૂરિયાતમંદને મદદ કરવામાં ખર્ચી નાખતો.

નીલમબાગના ચોકીદાર “મુબારક” નો જનાજો નીકળ્યો ત્યારે ભાવનગરના મહારાજાએ એક ઈચ્છા વ્યક્ત કરીને એ ઈચ્છા પુરી પણ કરી કે “મારા મુબારકને તમે જરૂર કાંધ દેજો પણ એક કાંધ તો હું શરૂઆતથી અંત સુધી હું જ આપીશ “ભાવનગર મહારાજ મુબારકના ઘરથી કબ્રસ્તાન સુધી ઉઘાડા પગે ચાલ્યા હતા અને કાંધ દીધી હતી. આજે પણ ભાવનગરના મુસ્લિમ કબ્રસ્તાનમાં “મુબારક” ની કબર છે અને ભાવનગરના મહારાજાએ મુબારકની કબર પર કબરનું નામ કોતરાવ્યું છે “ધ લોક ઓફ નિલમબાગ”