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आज का प्रेरक प्रसंग

!!!—: बुरी आदत :—!!!

एक बार स्वामी रामकृष्ण से एक साधक ने पूछा- ‘मैं हमेशा भगवान का नाम लेता रहता हूँ। भजन-कीर्तन करता हूँ, ध्यान लगाता हूँ, फिर भी मेरे मन में कुविचार क्यों उठते हैं?’

यह सुनकर स्वामीजी मुस्कुराए। उन्होंने साधक को समझाने के लिए एक किस्सा सुनाया।

एक आदमी ने कुत्ता पाला हुआ था। वह उससे बहुत प्यार करता था। कभी उसे गोद में लेता, कभी पुचकारता। यहाँ तक कि खाते-पीते, सोते-जागते या बाहर जाते समय भी कुत्ता उसके साथ ही रहता था।

उसकी इस हरकत को देखकर किसी दिन एक बुजुर्ग ने उससे कहा कि एक कुत्ते से इतना लगाव ठीक नहीं। आखिरकार है तो पशु ही। क्या पता कब किसी दिन कोई अनहोनी कर बैठे। तुम्हें नुकसान पहुंचा दे या काट ले।

यह बात उस आदमी के दिमाग में घर कर गई। उसने तुरंत कुत्ते से दूर रहने की ठान ली। लेकिन वह कुत्ता इस बात को भला कैसे समझे!

वह तो मालिक को देखते ही दौड़कर उसकी गोद में आ जाता था। मुंह चाटने की कोशिश करता। मालिक उसे मार-मारकर भगा भी देता। लेकिन कुत्ता अपनी आदत नहीं छोड़ता था।

बहुत दिनों की कठिन मेहनत और कुत्ते को दुत्कारने के बाद कुत्ते की यह आदत छूटी।

कथा सुनाकर स्वामीजी ने साधक से कहा-‘तुम भी वास्तव में ऐसे ही हो। जिन सांसारिक भोग-विलास में आसक्ति की आदतों को तुमने इतने लम्बे समय से पाल कर छाती से लगा रखा है, वे भला तुम्हें इतनी आसानी से कैसे छोड़ सकती हैं?

पहले तुम उनसे लाड़-प्यार करना बंद करो। उन्हें निर्दयी, निर्मोही होकर अपने से दूर करो। तब ही उनसे पूरी तरह से छुटकारा पा सकोगे। जैसे-जैसे बुरी आदतों का दमन करोगे, मन की एकाग्रता बढ़ती जाएगी और चित्त में अपने आप धर्म विराजता जाएगा।’

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🌹💖🙏 माँ का तोहफ़ा 🙏💖🌹शुभ रात्रि

एक मर्मस्पर्शी कहानी, अवश्य पढ़ें।
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एक दंपती दीपावली की ख़रीदारी करने को हड़बड़ी में था। पति ने पत्नी से कहा, “ज़ल्दी करो, मेरे पास टाईम नहीं है।” कह कर कमरे से बाहर निकल गया। तभी बाहर लॉन में बैठी माँ पर उसकी नज़र पड़ी।

कुछ सोचते हुए वापस कमरे में आया और अपनी पत्नी से बोला, “शालू, तुमने माँ से भी पूछा कि उनको दिवाली पर क्या चाहिए?

शालिनी बोली, “नहीं पूछा। अब उनको इस उम्र में क्या चाहिए होगा यार, दो वक्त की रोटी और दो जोड़ी कपड़े……. इसमें पूछने वाली क्या बात है?

यह बात नहीं है शालू…… माँ पहली बार दिवाली पर हमारे घर में रुकी हुई है। वरना तो हर बार गाँव में ही रहती हैं। तो… औपचारिकता के लिए ही पूछ लेती।

अरे इतना ही माँ पर प्यार उमड़ रहा है तो ख़ुद क्यों नहीं पूछ लेते? झल्लाकर चीखी थी शालू …और कंधे पर हैंड बैग लटकाते हुए तेज़ी से बाहर निकल गयी।

सूरज माँ के पास जाकर बोला, “माँ, हम लोग दिवाली की ख़रीदारी के लिए बाज़ार जा रहे हैं। आपको कुछ चाहिए तो..

माँ बीच में ही बोल पड़ी, “मुझे कुछ नहीं चाहिए बेटा।”

सोच लो माँ, अगर कुछ चाहिये तो बता दीजिए…..

सूरज के बहुत ज़ोर देने पर माँ बोली, “ठीक है, तुम रुको, मैं लिख कर देती हूँ। तुम्हें और बहू को बहुत ख़रीदारी करनी है, कहीं भूल न जाओ।” कहकर सूरज की माँ अपने कमरे में चली गईं। कुछ देर बाद बाहर आईं और लिस्ट सूरज को थमा दी।……

सूरज ड्राइविंग सीट पर बैठते हुए बोला, “देखा शालू, माँ को भी कुछ चाहिए था, पर बोल नहीं रही थीं। मेरे ज़िद करने पर लिस्ट बना कर दी है। इंसान जब तक ज़िंदा रहता है, रोटी और कपड़े के अलावा भी बहुत कुछ चाहिये होता है।”

अच्छा बाबा ठीक है, पर पहले मैं अपनी ज़रूरत का सारा सामान लूँगी। बाद में आप अपनी माँ की लिस्ट देखते रहना। कहकर शालिनी कार से बाहर निकल गयी।

पूरी ख़रीदारी करने के बाद शालिनी बोली, “अब मैं बहुत थक गयी हूँ, मैं कार में A/C चालू करके बैठती हूँ, आप अपनी माँ का सामान देख लो।”

अरे शालू, तुम भी रुको, फिर साथ चलते हैं, मुझे भी ज़ल्दी है।

देखता हूँ माँ ने इस दिवाली पर क्या मँगाया है? कहकर माँ की लिखी पर्ची ज़ेब से निकालता है।

बाप रे! इतनी लंबी लिस्ट, ….. पता नहीं क्या – क्या मँगाया होगा? ज़रूर अपने गाँव वाले छोटे बेटे के परिवार के लिए बहुत सारे सामान मँगाये होंगे। और बनो श्रवण कुमार, कहते हुए शालिनी गुस्से से सूरज की ओर देखने लगी।

पर ये क्या? सूरज की आँखों में आँसू…….. और लिस्ट पकड़े हुए हाथ सूखे पत्ते की तरह हिल रहा था….. पूरा शरीर काँप रहा था।

शालिनी बहुत घबरा गयी। क्या हुआ, ऐसा क्या माँग लिया है तुम्हारी माँ ने? कहकर सूरज के हाथ से पर्ची झपट ली….

हैरान थी शालिनी भी। इतनी बड़ी पर्ची में बस चंद शब्द ही लिखे थे…..

पर्ची में लिखा था….

“बेटा सूरज मुझे दिवाली पर तो क्या किसी भी अवसर पर कुछ नहीं चाहिए। फिर भी तुम ज़िद कर रहे हो तो…… तुम्हारे शहर की किसी दुकान में अगर मिल जाए तो फ़ुरसत के कुछ पल मेरे लिए लेते आना…. ढलती हुई साँझ हूँ अब मैं। सूरज, मुझे गहराते अँधियारे से डर लगने लगा है, बहुत डर लगता है। पल – पल मेरी तरफ़ बढ़ रही मौत को देखकर…. जानती हूँ टाला नहीं जा सकता, शाश्वत सत्‍य है….. पर अकेलेपन से बहुत घबराहट होती है सूरज।…… तो जब तक तुम्हारे घर पर हूँ, कुछ पल बैठा कर मेरे पास, कुछ देर के लिए ही सही बाँट लिया कर मेरे बुढ़ापे का अकेलापन।…. बिन दीप जलाए ही रौशन हो जाएगी मेरी जीवन की साँझ…. कितने साल हो गए बेटा तुझे स्पर्श नहीं किया। एक बार फिर से, आ मेरी गोद में सर रख और मैं ममता भरी हथेली से सहलाऊँ तेरे सर को। एक बार फिर से इतराए मेरा हृदय मेरे अपनों को क़रीब, बहुत क़रीब पा कर….और मुस्कुरा कर मिलूँ मौत के गले। क्या पता अगली दिवाली तक रहूँ ना रहूँ…..

पर्ची की आख़िरी लाइन पढ़ते – पढ़ते शालिनी फफक-फफक कर रो पड़ी…..

ऐसी ही होती हैं माँ…..

दोस्तो, अपने घर के उन विशाल हृदय वाले लोगों, जिनको आप बूढ़े और बुढ़िया की श्रेणी में रखते हैं, वे आपके जीवन के कल्पतरु हैं। उनका यथोचित आदर-सम्मान, सेवा-सुश्रुषा और देखभाल करें। यक़ीन मानिए, आपके भी बूढ़े होने के दिन नज़दीक ही हैं।…उसकी तैयारी आज से ही कर लें। इसमें कोई शक़ नहीं, आपके अच्छे-बुरे कृत्य देर-सवेर आप ही के पास लौट कर आने हैं।।

कहानी अच्छी लगी हो तो कृपया अग्रसारित अवश्य कीजिए। शायद किसी का हृदय परिवर्तन हो जाए और…..

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चेन्नई में समुद्र के किनारे एक सज्जन धोती कुर्ता में भगवद गीता पढ़ रहे थे।। तभी वहां एक लड़का आया और बोला कि आज साइंस का जमाना है….
फिर भी आप लोग ऐसी किताबे पढ़ते हो…
देखिए जमाना चांद पर पहुंच गया है…
और आप लोग ये गीता रामायण पर ही अटके हुए हो…..

उन सज्जन ने लड़के से पूंछा की “तुम गीता के बारे में क्या जानते हो”

वो लड़का जोश में आकर बोला–
अरे बकवास….मैं विक्रम साराभाई रीसर्च संस्थान का छात्र हु…I m a scientist….ये गीता तो बकवास है हमारे आगे

वो सज्जन हसने लगे….तभी दो बड़ी बड़ी गाड़िया वहां आयी…एक गाड़ी से कुछ ब्लैक कमांडो निकले….और एक गाड़ी से एक सैनिक।सैनिक ने पीछे का गेट खोला तो वो सज्जन पुरुष चुपचाप गाड़ी में जाकर बैठ गए…

लड़का ये सब देखकर हक्का बक्का था।। उसने दौड़कर उनसे पूंछा—-सर….सर आप कौन है??

वो सज्जन बोले—तुम जिस विक्रम साराभाई रिसर्च इंस्टीट्यूट में पढ़ते हो मैं वही विक्रम साराभाई हु…..

लड़के को 440 वाट का झटका लगा।।।।

इसी भगवद गीता को पढ़कर डॉ अब्दुल कलाम ने आजीवन मांस न खाने की प्रतिज्ञा कर ली थी….

गीता एक महाविज्ञान है…..गर्व कीजिये
।।

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चटोरे मदनमोहन जी…
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सनातन गोस्वामी जी मथुरा में एक चौबे के घर मधुकरी के लिए जाया करते थे, उस चौबे की स्त्री परमभक्त और मदन मोहन जी की उपासिका थी, उसके घर बाल भाव से मदन मोहन भगवान विराजते थे।

असल में सनातन जी उन्ही मदन मोहन जी के दर्शन हेतु प्रतिदिन मधुकरी के बहाने जाया करते थे।

मदन मोहन जी तो ग्वार ग्वाले ही ठहरे ये आचार विचार क्या जाने उस चौबे के लड़के के साथ ही एक पात्र में भोजन करते थे, ये देख सनातन जी को बड़ा आश्चर्य हुआ, ये मदनमोहन तो बड़े वचित्र है।

एक दिन इन्होने आग्रह करके मदन मोहन जी का उच्छिष्ठ (झूठा) अन्न मधुकरी में माँगा, चौबे की स्त्री ने भी स्वीकार करके दे दिया, बस फिर क्या था, इन्हे उस माखन चोर की लपलपाती जीभ से लगे हुए अन्न का चश्का लग गया, ये नित्य उसी अन्न को लेने जाने लगे।

एक दिन मदन मोहन ने इन्हे स्वप्न में दर्शन देकर कहा, “बाबा तुम रोज इतनी दूर से आते हो, और इस मथुरा शहर में भी हमे ऊब सी मालूम होवे हे, तुम उस चौबे से हमको मांग के ले आओ हमको भी तुम्हारे साथ जंगल में रहनो है।”

ठीक उसी रात को चौबे को भी यही स्वप्न हुआ की हमको आप सनातन बाबा को दान कर दो।

दूसरे दिन सनातन जी गये उस चौबे के घर और कहने लगे “मदन मोहन को अब जंगल में हमारे साथ रहना है, आपकी क्या इच्छा है?”

कुछ प्रेमयुक्त रोष से चौबे की पत्नी ने कहा “इसकी तो आदत ही ऐसी हे, जो भला अपनी सगी माँ का न हुआ तो मेरा क्या होगा।”

और ठाकुर जी की आज्ञा जान अश्रुविमोचन करते हुए थमा दिया मदन मोहन जी को सनातनजी को।

अब मदन मोहन को लेके ये बाबा जंगल में यमुना किनारे आये और सूर्यघाट के समीप एक सुरम्य टीले पे फूस की झोपडी बना के मदन मोहन को स्थापित कर पूजा करने लगे।

सनातन जी घर घर से चुटकी चुटकी आटा मांग के लाते और उसी की बिना नमक की बाटिया बना के मदन मोहन को भोग लगाते।

एक दिन मदन मोहन जी ने मुँह बिगाड़ के कहा:- “ओ बाबा ये रोज रोज बिना नमक की बाटी हमारे गले से नीचे नहीं उतरती, थोड़ा नमक भी मांग के लाया करो ना।”

सनातन जी ने झुँझलाकर कहा:- “यह इल्लत मुझसे न लगाओ, खानी हो तो ऐसी ही खाओ वरना अपने घर का रास्ता पकड़ो।”

मदन मोहन ने हस के कहा:- “एक कंकड़ी नमक के लिये कौन मना करेगा”, और ये जिद करने लगे।

दूसरे दिन ये आटे के साथ थोड़ा नमक भी मांग के लाने लगे।

चटोरे मदन मोहन को तो माखन मिश्री की चट पड़ी थी, एक दिन बड़ी दीनता से बाबा से बोले:- “बाबा ये रूखे टिक्कड तो रोज रोज खावे ही न जाये, थोड़ा माखन या घी भी कही से लाया करो तो अच्छा रहेगा।”

अब तो सनातन जी मदन मोहन को खरी-खोटी सुनाने लगे, उन्होंने कहा:- “देखो जी मेरे पास तो यही सूखे टिक्कड है, तुम्हे घी और माखन मिश्री की चट थी तो कही धनी सेठ के वहां जाते, ये भिखारी के वहां क्या करने आये हो, तुम्हारे गले से उतरे चाहे न उतरे, में तो घी-बुरा माँगने बिल्कुल नही जाने वाला, थोड़े यमुना जी के जल के साथ सटक लिया करो ना, मिट्टी भी तो सटक लिया करते थे।”

बेचारे मदन मोहन जी अपना मुँह बनाए चुप हो गये, उस लंगोटि बन्ध साधु से और कह भी क्या सकते थे।

दूसरे दिन सनातन जी ने देखा कोई बड़ा धनिक व्यापारी उनके समीप आ रहा हे, आते ही उसके सनातन जी को दण्डवत प्रणाम किया और करुण स्वर में कहने लगा:- “महात्मा जी मेरा जहाज बीच यमुना जी में अटक गया है, ऐसा आशीर्वाद दीजिये की वो निकल जाये।”

सनातन जी ने कहा:- “भाई में कुछ नही जानता, इस झोपडी में जो बैठा है न उससे जाके कहो।”

व्यापारी ने झोपड़े में जा के मदन मोहन जी से प्रार्थना की, बस फिर क्या था इनकी कृपा से जहाज उसी समय निकल गया, उसी समय उस व्यापारी ने हजारो रूपए लगा के बड़ी उदारता के साथ मदन मोहन जी का वही भव्य मंदिर बनवा दिया, और भगवान की सेवा के लिए बहुत सारे सेवक, रसोइये और नोकर चाकर रखवा दिये।

वह मंदिर वृंदावन में आज भी विध्यमान है…।

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🔷 एक व्यक्ति था. उसके पास नौकरी, घर-परिवार, रुपया-पैसा, रिश्तेदार और बच्चे सभी कुछ था। कहने का सार यह है उस व्यक्ति के पास किसी चीज़ की कोई कमी नही थी। अब जीवन है तो कुछ परेशानियां भी थी उसके जीवन में, जिससे हर पल वह जूझता ही रहता था। वह किसी भी तरह अपनी परेशानियों से मुक्ति चाहता था, कि जीवन में सुख-शांति से रह सके।

🔶 एक बार किसी ने उसे बताया की नगर सीमा पर कोई बहुत बड़े संत ठहरे हुए है, जिनके पास हर समस्या और प्रश्न का हल है। इतना सुनते ही वह व्यक्ति भागा-भागा संत की कुटिया में पहुँचा. वहाँ भीड़ बहुत होने के कारण उसकी बारी आते-आते रात हो गई। उसने संत से पूछा, बाबा, मेरे जीवन की परेशानियां कैसे ख़त्म होगी? मैं भी सुख-शांति से जीवन जीना चाहता हूँ।

🔷 संत ने कहा, ”इसका उत्तर मैं कल सुबह दूंगा। तब तक तुम एक काम करो. मेरे साथ जो ऊँटों का रखवाला आया था वो बीमार हो गया। तुम आज की रात ऊँटों की देखभाल का जिम्मा ले लो. जब यह सभी ऊँट सो जायें, तब तुम भी सो लेना।

🔶 सुबह वह व्यक्ति संत के पास पहुँचा और कहने लगा, मैं तो रात भर जगा रहा, सो ही नही पाया. कभी कोई ऊँट खड़ा हो जाता है तो कभी कोई. एक को बिठाने का प्रयास करता हूँ तो दूसरा खड़ा हो जाता है। कई ऊँट तो बैठना ही नही चाहते तो कई ऊँट थोड़ी देर में अपने आप बैठ जाते है। कुछ ऊँटों ने तो बैठने में बहुत ही समय लिया। मैं तो सारी रात भाग-दौड़ ही करता रहा।

🔷 संत ने मुस्कुराहट के साथ कहा, यही तुम्हारे कल के प्रश्नों का उत्तर है. कल पूरी रात का घटनाक्रम तुम्हारा जीवन है। अगर ऊँटों को परेशानियां मान ली जायें, तो समझना आसान होगा कि जीवन में कभी भी किसी भी क्षण सारी परेशानियां ख़त्म नही हो सकती। कुछ ना कुछ हमेशा लगा ही रहेगा. लेकिन इसका अर्थ यह बिल्कुल नही है कि हम जीवन का आनंद ही ना ले। हमें समस्याओं के बीच रहते हुए भी सुख के पल खोजने होंगे।

🔶 संत ने आगे कहा, अगर तुम्हारें जीवन में समस्याओं का ताँता लगा हुआ है तो उन्हें सुलझाने का प्रयास करना चाहिए, लेकिन हर पल उनके पीछे ही नही भागना चाहिए. ऊँटों के व्यवहार से तुम जान गये होंगे कि कुछ समस्याएं कोशिशों से ख़त्म हो जाती है, तो कुछ अपने आप सुलझ जाती है, कुछ पे कोई असर नही होगा और कुछ समय के साथ धीरे-धीरे सुलझ जाएंगी।

🔷 लेकिन इस बीच कुछ नई समस्याएं भी जन्म लेगी, जिनका सामना भी ऐसे ही करना पड़ेगा और इस तरह जीवन चलता ही रहेगा। अब यह तुम पर निर्भर करता है कि तुम इस बीच जीवन में आनंद लेते हो या समस्याओं के पीछे हैरान-परेशान व दुखी होकर भागते रहते हो।

राम चन्द्र आर्य