Posted in रामायण - Ramayan

वनवास समाप्त हुए वर्षों बीत गए थे, प्रभु श्रीराम और माता सीता की कृपा छाया में अयोध्या की प्रजा सुखमय जीवन जी रही थी। युवराज भरत अपनी कर्तव्यपरायणता और न्यायप्रियता के लिए ख्यात हो चुके थे।

एक दिन संध्या के समय सरयू के तट पर तीनों भाइयों संग टहलते श्रीराम से महात्मा भरत ने कहा, “एक बात पूछूं भइया? माता कैकई ने आपको वनवास दिलाने के लिए मंथरा के साथ मिल कर जो षड्यंत्र किया था, क्या वह राजद्रोह नहीं था? उनके षड्यंत्र के कारण एक ओर राज्य के भावी महाराज और महारानी को चौदह वर्ष का वनवास झेलना पड़ा तो दूसरी ओर पिता महाराज की दुखद मृत्यु हुई। ऐसे षड्यंत्र के लिए सामान्य नियमों के अनुसार तो मृत्युदंड दिया जाता है, फिर आपने माता कैकई को दण्ड क्यों नहीं दिया?

राम मुस्कुराए। बोले, “जानते हो भरत, किसी कुल में एक चरित्रवान और धर्मपरायण पुत्र जन्म ले ले तो उसका जीवन उसके असँख्य पीढ़ी के पितरों के अपराधों का प्रायश्चित कर देता है। जिस माँ ने तुम जैसे महात्मा को जन्म दिया हो उसे दण्ड कैसे दिया जा सकता है भरत ?”

भरत संतुष्ट नहीं हुए। कहा, “यह तो मोह है भइया, और राजा का दण्डविधान मोह से मुक्त होता है। एक राजा की तरह उत्तर दीजिये कि आपने माता को दंड क्यों नहीं दिया, समझिए कि आपसे यह प्रश्न आपका अनुज नहीं, अयोध्या का एक सामान्य नागरिक कर रहा है।

राम गम्भीर हो गए। कुछ क्षण के मौन के बाद कहा, ” अपने सगे-सम्बन्धियों के किसी अपराध पर कोई दण्ड न देना ही इस सृष्टि का कठोरतम दण्ड है भरत! माता कैकई ने अपनी एक भूल का बड़ा कठोर दण्ड भोगा है। वनवास के चौदह वर्षों में हम चारों भाई अपने अपने स्थान से परिस्थितियों से लड़ते रहे हैं, पर माता कैकई हर क्षण मरती रही हैं।

अपनी एक भूल के कारण उन्होंने अपना पति खोया, अपने चार बेटे खोए, अपना समस्त सुख खोया, फिर भी वे उस अपराधबोध से कभी मुक्त न हो सकीं। वनवास समाप्त हो गया तो परिवार के शेष सदस्य प्रसन्न और सुखी हो गए, पर वे कभी प्रसन्न न हो सकीं। कोई राजा किसी स्त्री को इससे कठोर दंड क्या दे सकता है? मैं तो सदैव यह सोच कर दुखी हो जाता हूँ कि मेरे कारण अनायास ही मेरी माँ को इतना कठोर दण्ड भोगना पड़ा।”

राम के नेत्रों में जल उतर आया था, और भरत आदि भाई मौन हो गए थे। राम ने फिर कहा,”और उनकी भूल को अपराध समझना ही क्यों भरत! यदि मेरा वनवास न हुआ होता तो संसार भरत और लक्ष्मण जैसे भाइयों के अतुल्य भ्रातृप्रेम को कैसे देख पाता। मैंने तो केवल अपने माता-पिता की आज्ञा का पालन मात्र किया था, पर तुम दोनों ने तो मेरे स्नेह में चौदह वर्ष का वनवास भोगा। वनवास न होता तो यह संसार सीखता कैसे कि भाइयों का सम्बन्ध होता कैसा है।”

भरत के प्रश्न मौन हो गए थे। वे अनायास ही बड़े भाई से लिपट गए।

Ramchandra Aarya

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निर्मल बाबा एक दिन दरबार में बैठे थे और भक्त अपनी दुखभरी कहानियाँ सुनाकर बाबा से सलाह मांग रहे थे इतने में पप्पू भी पहुंच गया ….

पप्पू : ” बाबा की जय हो ।
बाबा मुझे कोई रास्ता दिखाओ , मेरी शादी तय नहीं हो रही , आपकी शरण में आया हूँ ।”

निर्मल बाबा: ” आप काम क्या करते हो ?”

पप्पू : ” शादी होने के लिए कौनसा काम करना उचित रहेगा ? “

बाबा – ” तुम मिठाई की दूकान खोल लो। “

पप्पू – ” बाबा , वो तो 60 सालों से खुली हुई है, मेरे पिताजी की मिठाई की ही दुकान है ।”

बाबा : ” शनिवार को सुबह 10 बजे दुकान खोला करो ।”

पप्पू – “शनि मंदिर के बगल में ही मेरी दूकान है और मैं रोज 10 बजे ही खोलता हूँ ।”

बाबा : ” काले रंग के कुत्ते को मिठाई खिलाया करो ।”

पप्पू – ” मेरे घर दो काले कुत्ते ही है, चिद्दु और मणिया उनको सुबह शाम मिठाई खिलाता हूँ ।”

बाबा : ” सोमवार को शिवमंदिर जाया करो ।”

पप्पू – ” मैं केवल सोमवार ही नहीं अब तो रोज शिवमंदिर जाता हूँ दर्शन के बगैर मैं खाने को छूता तक नहीं ।”

बाबा : ” कितने भाई बहन हो ?”

पप्पू – ” बाबा आपके हिसाब से शादी तय होने के लिए कितने भाई बहन होने चाहिए ? “

बाबा – ” एक भाई एक बहन होनी चाहिए । “

पप्पू – ” बाबा , मेरे असल में एक भाई एक बहन ही है । “

बाबा : ” दान किया करो ।”

पप्पू – “बाबा मैंने अनाथ आश्रम खोल रखा है, देशद्रोहियों को रोज दान करता हूँ ।”

बाबा : ” एक बार बद्रीनाथ हो आओ ।”

पप्पू : ” बाबा आप के हिसाब से शादी होने के लिए कितने बार बद्रीनाथ जाना जरुरी है ?”

बाबा: “जिंदगी में एक बार हो आओ ।”

पप्पू : “मैं दो बार जा चुका हूँ चुनाव में ।”

बाबा – “नीले रंग की शर्ट पहना करो ।”

पप्पू – “बाबा मेरे पास सिर्फ नीले रंग के ही कुर्ते है , कल सारे धोने के लिए दिए हैं , वापस मिलेंगे तो सिर्फ वही पहनूंगा! “

बाबा शांत होकर जप करने लगते हैं ।
इस हरामजादे को क्या बोलू जो इसने नही किया हो

पप्पू ” बाबा , एक बात कहूँ ?”

बाबा ; “हां जरूर, बोलो बेटा जो बोलना है ।”

पप्पू : “मैं हिन्दुस्तान के बाहर पहले से शादी शुदा हूँ ,
और तीन बच्चों का बाप भी हूँ
इधर से गुजर रहा था ,
सोचा तुम्हे उँगली करता चलूँ।

😀😆😛

सीतला दुबे

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“सती अनुसूईया की महिमा तथा दत्तात्रेय की उत्पति”

सती अनुसूईया श्री अत्री ऋषि की पत्नी थी। जो अपने पतिव्रता धर्म के कारण सुप्रसिद्ध थी। एक दिन देव ऋषि नारद जी भगवान विष्णु जी से मिलने विष्णु लोक में गए। श्री विष्णु जी घर पर उपस्थित नहीं थे। श्री लक्ष्मी जी घर पर अकेली थी। बात-बातों में नारद जी ने अत्री ऋषि की पत्नी अनुसूईया जी की सुन्दरता तथा उसके पतिव्रता धर्म की अति महिमा की।
जिस कारण से लक्ष्मी जी को अनुसूईया के प्रति ईर्षा हो गई तथा उसके पतिव्रता धर्म को खण्ड करवाने की युक्ति सोचने लगी। नारद जी वहाँ से चल कर श्री शिव शंकर जी के लोक में उनसे मिलने के उद्देश्य से गए।

वहाँ पर भी देवी पार्वती जी ही घर पर थी, श्री शिव जी घर पर नहीं थे। श्री नारद जी ने बात-बातों में सती अनुसूईया जी के पतिव्रत धर्म व सुन्दरता की अति महिमा सुनाई तथा श्री ब्रह्मा लोक को प्रस्थान किया। देवी पार्वती को अनसुईया के प्रति ईर्षा हो गई कि ऐसी पतिव्रता कौन हो गई जिसकी चर्चा सर्व जगत् में हो रही है। पार्वती जी भी अनुसूईया के पतिव्रत धर्म को खण्ड करवाने का उपाय सोचने लगी।

नारद जी श्री ब्रह्मा लोक में पहुँचे तो श्री ब्रह्मा जी की पत्नी श्री सावित्री जी ही घर पर उपस्थित थी, श्री ब्रह्मा जी नहीं थे। ऋषि नारद जी ने वहाँ पर भी सती अनुसूईया के पतिव्रत धर्म तथा सुन्दरता की अति महिमा कही तथा वहाँ से चल पड़े। देवी सावित्री जी भी अनुसूईया से ईर्षा करने लगी तथा अनुसूईया के पतिव्रत धर्म को खण्ड करवाने का उपाय सोचने लगी।

तीनों (सावित्री, लक्ष्मी तथा पार्वती) इक्ट्ठी हुई तथा अनुसूईया के पतिव्रत धर्म को खण्ड कराने की युक्ति निकाली कि अपने-2 पतियों (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) को भेज कर अनुसूईया का पतिव्रत धर्म खण्ड कराना है। उसे अपने पतिव्रत धर्म का अधिक घमण्ड है। तीनों देवता (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) अपने-2 निवास स्थान पर पहुँचे। तीनों देवियों ने अनुसूईया का पतिव्रत धर्म खण्ड करने की जिद्द की।

तीनों भगवानों ने बहुत समझाया कि यह पाप हमसे मत करवाओ। परंतु तीनों देवी (सावित्री, लक्ष्मी तथा पार्वती) टस से मस नहीं हुई। तीनों भगवानों ने साधु वेश धारण किया तथा अत्रि ऋषि के आश्रम पर पहुंचे। उस समय अनुसूईया जी आश्रम पर अकेली थी। साधुवेश में तीन अत्तिथियों को द्वार पर देख कर अनुसूईया ने भोजन ग्रहण करने का आग्रह किया तीनों साधुओं ने कहा कि हम आपका भोजन अवश्य ग्रहण करेंगे।

परंतु एक शर्त पर कि आप निःवस्त्र होकर भोजन कराओगी। अनुसूईया ने साधुओं के शाप के भय से तथा अतिथि सेवा से वंचित रहने के पाप के भय से परमात्मा से प्रार्थना की कि हे परमेश्वर ! इन तीनों को छ:-छ: महीने के बच्चे की आयु के शिशु बनाओ। जिससे मेरा पतिव्रत धर्म भी खण्ड न हो तथा साधुओं को आहार भी प्राप्त हो व अतिथि सेवा न करने का पाप भी न लगे।

परमेश्वर की कृपा से तीनों देवता छ:-छ: महीने के बच्चे बन गए तथा अनुसूईया ने तीनों को निःवस्त्र होकर दूध पिलाया तथा पालने में लेटा दिया। तीनों देवता वापिस न लौटने के कारण तीनों देवी (सावित्री, लक्ष्मी तथा पार्वती) अत्रि ऋषि के आश्रम पर गई। अनुसूईया से अपने पतियों के विषय में पूछा कि क्या आपके पास हमारे पति (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) आए थे। अनुसूईया ने कहा कि ये तीनों पालने में झूल रहे हैं।

ये मुझ से निःवस्त्र होकर भोजन ग्रहण करने की इच्छा रखते थे। इसलिए इनका शिशु रूप होना आवश्यक था। तीनों देवियों ने तीनों भगवानों को पालने में शिशु रूप में लेटे देखा तथा पहचानने में असमर्थ रही। तब सती अनुसूईया के पतिव्रत धर्म की महिमा कही कि आप वास्तव में पतिव्रता पत्नी हो। हमसे ईर्षावश यह गलती हुई है। ये तीनों तो मना कर रहे थे।

परंतु हमारे हठ के समक्ष इन्होंने यह घृणित कार्य करने की चेष्टा की थी। कृप्या आप इन्हें पुनः उसी अवस्था में कीजिए। आपकी हम आभारी होंगी। अत्री ऋषि की पत्नी अनुसूईया ने परमेश्वर से अर्ज की जिस कारण से तीनों बालक उसी (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) अवस्था में हो गए तथा अनुसूईया की अति प्रसंशा की। अत्री ऋषि व अनुसूईया से तीनों भगवानों ने वर मांगने को कहा। तब अनुसूईया ने कहा कि आप तीनों हमारे घर बालक बन कर पुत्र रूप में आएँ। हम निःसंतान हैं।

तीनों भगवानों ने तथास्तु कहा तथा अपनी-2 पत्नियों के साथ अपने-2 स्थान को प्रस्थान कर गए। कालान्तर में दतात्रेय रूप में भगवान विष्णु का जन्म अनुसूईया के गर्भ से हुआ तथा ब्रह्मा जी का चन्द्रमा तथा शिव जी का दुर्वासा रूप में अत्रि की पत्नी अनुसूईया के गर्भ से जन्म हुआ। इस प्रकार श्री दतात्रेय जी का अर्विभाव अनुसूईया के गर्भ से हुआ।
दत्तात्रेय जी ने चौबीस गुरूओं से शिक्षा पाई। भगवान दत्त (दत्तात्रेय) जी के नाम पर “दत्त” सम्प्रदाय दक्षिण भारत में विशेष प्रसिद्ध है। गिगनार क्षेत्र में श्री दत्तात्रेय जी का सिद्ध पीठ है। दक्षिण भारत में इनके कई मन्दिर हैं।

https://www.jagatgururampalji.org/adhyatmik_gyan_ganga.pdf ( से साभार )

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आप सोचकर देखिये की दुनियां में सबसे महंगा क्या हैं !
सोना! प्लेटेनियम!! हीरा!! या इरेडियम!!
इन सबसे भी महंगी होती हैं पुरातन वस्तुएं! जी हां ‘पुरातन वस्तुओं’ की कीमत का आप अंदाजा भी नही लगा सकते हैं।
एक उदाहरण देता हूँ कि 2001 में इजिप्ट में खुदाई के दौरान एक शराब की बोतल निकली जो लगभग 1800 वर्ष पुरानी थी जिसकी नीलामी हुई और अंतरराष्ट्रीय बाजार में उसकी कीमत 110 करोड़ लगी! वह भी सन 2001 में!!!
हाँ 110 करोड़!! और उसे चीन के एक व्यापारी ने यह कीमत चुकाकर खरीदा था।
जिन्हें पता हैं वे तो नही ..लेकिन कुछ लोग सोचेंगे जरूर की ऐसा क्या था उस शराब में! क्योंकि वह इस धरती की उपलब्ध सबसे पुरानी शराब थी और इसी बात ने उसकी कीमत अरबों के पार पहुंचा दी थी।
2006 में वाशिंगटन के AO म्यूजियम में रखे दुनिया के सबसे पुराने सिक्कों की कीमत 250 करोड़ से शुरू होकर 310 करोड़ तक पहुंच गई और आनन फानन में अमेरिकी सरकार ने नीलामी बन्द करवाकर उन सिक्कों को अपनी कस्टडी में ले लिया था म्यूजियम को 340 करोड़ की कीमत चुकाई गई!!
पुरातन वस्तुओं की कीमत का अंदाजा आपको शायद हो गया होगा!!
अब जरा यह सोचिये की दुनिंया का सबसे बड़ा और प्राइवेट म्यूजियम हो जिसके पास सबसे ज्यादा पुरातन वस्तुओं का संग्रह हो उसका मालिक कितना अमीर होगा!!
सोनियां गाँधी की बहन इटली के सबसे बड़े तीन म्यूजियम की अकेली मालकिन हैं …उनमें एक म्यूजियम का नाम ‘गनेशन म्यूजियम’ हैं वह अघोषित दुनियां का सबसे बड़ा म्यूजियम हैं। मजे की बात ये हैं कि 98%मूर्तियों के संग्रह से सजा ये म्यूजियम भारत की मूर्तियों से भरा हैं जिनकी कीमत आप के केसियो केलकुलेटर में भी नही आएगी!! ये मूर्तियां वहाँ कैसे पहुंची ये बताने की शायद ही जरूरत पड़े लेकिन हाल ही में भारत सरकार के प्रयासों से ‘अप्सरा’ नाम की मूर्ति भारत वापिस आई हैं जो सीकर जिले के बाड़ोली गांव से चोरी हुई थी। इस मंदिर से और भी मूर्तियां चोरी हुई थी जिनकी कीमत करोड़ो डॉलर हैं उनमें दो मूर्तियों को भारत वापिस लाया जा चुका हैं इसके लिये में भारत सरकार की सराहना करता हूँ
चलते चलते आपको ये बता दूं कि कांग्रेस के तमिलनाडु में दो विधायक इसी मूर्ति चोरी प्रकरण में दो दो बार गिफ्तार हो चुके हैं। देशभर में दस साल पहले सैंकड़ो गैंग मूर्ति चोरी गैंग बनाकर इस अपराध में लिप्त थे। इंटरनेट पर जानकारी जुटाएंगे तो आपके सामने ये भी आएगा कि इंदिरा और सोनियां में मूर्ति चोरी मामले पर बहस हुई थी और सोनियां को इंदिरा ने बाकायदा वार्निंग दी थी। 1982 में कर्नाटक से दो इतालवी नागरिकों को रंगे हाथ गिरफ्तार किया गया और सोनियां के सीधे हस्तक्षेप पर उन्हें छोड़ दिया गया ये मामला ऑन रिकॉर्ड दर्ज हैं
बाकि मंदिरों से दूर होने के जोक पढ़कर हंसने वालो ..भगवान के नाम से बनी मूर्तियां भी अरबों डॉलर में बिकती हैं तो …भगवान की कीमत तुम क्या जानो!!

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👇👇 आज का प्रेरक प्रसंग 👇👇 *!! रिक्शे वाला !!*

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एक बार एक अमीर आदमी कहीं जा रहा होता है तो उसकी कार ख़राब हो जाती है। उसका कहीं पहुँचना बहुत जरुरी होता है। उसको दूर एक पेड़ के नीचे एक रिक्शा दिखाई देता है। वो उस रिक्शा वाले पास जाता है। वहा जाकर देखता है कि रिक्शा वाले ने अपने पैर हैंडल के ऊपर रखे होते है। पीठ उसकी अपनी सीट पर होती है और सिर जहा सवारी बैठती है उस सीट पर होती है ।

और वो मज़े से लेट कर गाना गुन-गुना रहा होता है। वो अमीर व्यक्ति रिक्शा वाले को ऐसे बैठे हुए देख कर बहुत हैरान होता है कि एक व्यक्ति ऐसे बेआराम जगह में कैसे रह सकता है, कैसे खुश रह सकता है। कैसे गुन-गुना सकता है।

वो उसको चलने के लिए बोलता है। रिक्शा वाला झट से उठता है और उसे 20 रूपए देने के लिए बोलता है।

रास्ते में वो रिक्शा वाला वही गाना गुन-गुनाते हुए मज़े से रिक्शा खींचता है। वो अमीर व्यक्ति एक बार फिर हैरान कि एक व्यक्ति 20 रूपए लेकर इतना खुश कैसे हो सकता है। इतने मज़े से कैसे गुन-गुना सकता है। वो थोडा इर्ष्यापूर्ण हो जाता है और रिक्शा वाले को समझने के लिए उसको अपने बंगले में रात को खाने के लिए बुला लेता है। रिक्शा वाला उसके बुलावे को स्वीकार कर देता है।

वो अपने हर नौकर को बोल देता है कि इस रिक्शा वाले को सबसे अच्छे खाने की सुविधा दी जाए। अलग अलग तरह के खाने की सेवा हो जाती है। सूप्स, आइस क्रीम, गुलाब जामुन सब्जियां यानि हर चीज वहाँ मौजूद थी।

वो रिक्शा वाला खाना शुरू कर देता है, कोई प्रतिक्रिया, कोई घबराहट बयान नहीं करता। बस वही गाना गुन-गुनाते हुए मजे से वो खाना खाता है। सभी लोगो को ऐसे लगता है जैसे रिक्शा वाला ऐसा खाना पहली बार नहीं खा रहा है। पहले भी कई बार खा चुका है। वो अमीर आदमी एक बार फिर हैरान एक बार फिर इर्ष्यापूर्ण कि कोई आम आदमी इतने ज्यादा तरह के व्यंजन देख के भी कोई हैरानी वाली प्रतिक्रिया क्यों नहीं देता और वैसे कैसे गुन-गुना रहा है जैसे रिक्शे में गुन-गुना रहा था।

यह सब कुछ देखकर अमीर आदमी की इर्ष्या और बढती है। अब वह रिक्शे वाले को अपने बंगले में कुछ दिन रुकने के लिए बोलता है। रिक्शा वाला हाँ कर देता है।

उसको बहुत ज्यादा इज्जत दी जाती है। कोई उसको जूते पहना रहा होता है, तो कोई कोट। एक बेल बजाने से तीन-तीन नौकर सामने आ जाते है। एक बड़ी साइज़ की टेलीविज़न स्क्रीन पर उसको प्रोग्राम दिखाए जाते है। और एयर-कंडीशन कमरे में सोने के लिए बोला जाता है।

अमीर आदमी नोट करता है कि वो रिक्शा वाला इतना कुछ देख कर भी कुछ प्रतिक्रिया नहीं दे रहा। वो वैसे ही साधारण चल रहा है। जैसे वो रिक्शा में था वैसे ही है। वैसे ही गाना गुन-गुना रहा है जैसे वो रिक्शा में गुन-गुना रहा था।

अमीर आदमी के इर्ष्या बढ़ती चली जाती है और वह सोचता है कि अब तो हद ही हो गई। इसको तो कोई हैरानी नहीं हो रही, इसको कोई फरक ही नहीं पढ़ रहा। ये वैसे ही खुश है, कोई प्रतिक्रिया ही नहीं दे रहा।

अब अमीर आदमी पूछता है: आप खुश हैं ना?
वो रिक्शा वाला कहते है: जी साहब बिलकुल खुश हूँ।
अमीर आदमी फिर पूछता है: आप आराम में हैं ना ?
रिक्शा वाला कहता है: जी बिलकुल आरामदायक हूँ।

अब अमीर आदमी तय करता है कि इसको उसी रिक्शा पर वापस छोड़ दिया जाये। वहाँ जाकर ही इसको इन बेहतरीन चीजों का एहसास होगा। क्योंकि वहाँ जाकर ये इन सब बेहतरीन चीजो को याद करेगा।

अमीर आदमी अपने सेक्रेटरी को बोलता है कि इसको कह दो कि आपने दिखावे के लिए कह दिया कि आप खुश हो, आप आरामदायक हो। लेकिन साहब समझ गये है कि आप खुश नहीं हो आराम में नहीं हो। इसलिए आपको उसी रिक्शा के पास छोड़ दिया जाएगा।”

सेक्रेटरी के ऐसा कहने पर रिक्शा वाला कहता है: ठीक है सर, जैसे आप चाहे, जब आप चाहे। उसे वापस उसी जगह पर छोड़ दिया जाता है जहाँ पर उसका रिक्शा था। अब वो अमीर आदमी अपने गाड़ी के काले शीशे ऊँचे करके उसे देखता है।

रिक्शे वाले ने अपनी सीट उठाई बैग में से काला सा, गन्दा सा, मेला सा कपड़ा निकाला, रिक्शा को साफ़ किया, मज़े में बैठ गया और वही गाना गुन-गुनाने लगा।

अमीर आदमी अपने सेक्रेटरी से पूछता है: “चक्कर क्या है। इसको कोई फर्क ही नहीं पड रहा इतनी आरामदायक वाली, इतनी बेहतरीन जिंदगी को ठुकरा के वापस इस कठिन जिंदगी में आना और फिर वैसे ही खुश होना, वैसे ही गुन-गुनाना।”

फिर वो सेक्रेटरी उस अमीर आदमी को कहता है: “सर यह एक कामियाब इन्सान की पहचान है। एक कामियाब इन्सान वर्तमान में जीता है, उसको मनोरंजन (enjoy) करता है और बढ़िया जिंदगी की उम्मीद में अपना वर्तमान खराब नहीं करता।

अगर उससे भी बढ़िया जिंदगी मिल गई तो उसे भी वेलकम करता है उसको भी मनोरंजन (enjoy) करता है उसे भी भोगता है और उस वर्तमान को भी ख़राब नहीं करता। और अगर जिंदगी में दुबारा कोई बुरा दिन देखना पड़े तो वो भी उस वर्तमान को उतने ही ख़ुशी से, उतने ही आनंद से, उतने ही मज़े से, भोगता है मनोरंजन करता है और उसी में आनंद लेता है।

कामयाबी आपके ख़ुशी में छुपी है, और अच्छे दिनों की उम्मीद में अपने वर्तमान को ख़राब नहीं करें। और न ही कम अच्छे दिनों में ज्यादा अच्छे दिनों को याद करके अपने वर्तमान को ख़राब करना है।

सदैव प्रसन्न रहिये।
जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।
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